हिंदी साहित्य – कविता ☆ “बूंदें…” ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ कविता ☆ “बूंदें…” ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

○○○

बूंदें बनकर बड़े प्यार से

प्यासी  धरती    छुएं   ।

समेट लें आँचल में अपने

सौंधी सौंधी    खुशबुएं ।। 

○○○

वर्षा रूके तो गुल बूटों की

नोंकों    पर     लटकें  ।

सर्द हवा के झोंकों   से

सिहरें  काँपें और  चुएं ।।

           ○○○

बूंदों की सुइयों में कमसिन

सपने  पिरो   पिरोकर  ।

ऐसे मौसम के लिए दो घड़ी

रूमानी कपड़े     सिएं ।।

○○○

शीशमहल हीरे कभी कंचे

कभी पानी के मणिदीप ।

धरकर नाना रूप सनम

बन जाएं     बहुरूपिए ।।

○○○

बिखेर दें सीलापन इतना

जीवन के पन्नों     पर ।

जलते सूखे जज़्बातों को

मिल जाएं      हाशिए  ।।

♡♡♡♡♡

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – जादू ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – जादू ??

अनुभूति वयस्क तो हुई

पर कथन से सकुचाती रही,

आत्मसात तो किया

किंतु बाँचे जाने से

कागज़  मुकरता रहा,

मुझसे छूटते गए

पन्ने  कोरे के कोरे,

पढ़ने वालों की

आँख का जादू

मेरे नाम से

जाने क्या-क्या पढ़ता रहा..!

9:19 बजे, प्रात:,  25.7.18

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नमः शिवाय 🕉️ साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ  🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #8 ☆ कविता – “कलाकार…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 8 ☆

 ☆ कविता ☆ “कलाकार…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

हाँ  मै एक कलाकार हूँ 

एक बगीचे की तरह हूँ 

जिसमे फूल भी हैं और कांटे भी हैं

तुम्हें जो चुभे वो चुनके देता हूँ 

 

हाँ मै एक कलाकार हूं..

 

वैसे तो एक आम इंसान हूँ 

वो ही रोटी खाता हूँ 

वही कपड़ा पहेंता हूँ 

रोटी खाकर भी भूखा हूँ 

कपड़ा पहनकर भी निर्वस्त्र हूँ 

 

हाँ मै एक कलाकार हूँ …

 

मेरा अपना कोई रंग नहीं

मेरा अपना कोई ग़म नहीं

तुम्हारे गम में रोता हूँ 

रंग में तुम्हारे रंगता हूँ 

दिल में तुम्हारे ख़ुशी चाहता हूँ 

तुम्हारी आंखों में ख़ुशी पाता हूँ 

 

हाँ मै एक कलाकार हूँ ..

 

भीतर मेरे भी एक दुनिया है

जो हमेशा बर्बाद है

मगर आबाद तुम्हारी दुनिया चाहता हूँ 

खुद एक घायल हूँ 

दर्द तुम्हारे समझता हूँ 

 

हाँ मै एक कलाकार हूँ …

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 170 ☆ बाल कविता – बत्तख और मछलियां ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 131मौलिक पुस्तकें (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित तथा कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी संस्थान के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 169 ☆

☆ बाल कविता – बत्तख और मछलियाँ ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

चोंच है पीली, पंख विशाल।

    बत्तख रानी बड़ी कमाल।।

दाना खाती बड़े चाव से।

     मछली देखें बड़े भाव से।।

 

मछली बोलीं अरे! ओ बत्तख

     हमें भी दाना खिलवाओ।

भूख लगी है बड़े जोर की

     हमसे नहीं तुम शरमाओ।।

 

बत्तख बोली अरे मछलियो

    दाना  तुम्हें खिलाती हूँ।

सैर करूँगी मैं भी जल की

     तुमको सखा बनाती हूँ।।

 

सभी मछलियों को बत्तख ने

    दाना प्रेम से खिलवाया।

पेट भरे पर नाचे – कूदे

    सबने ही आनन्द मनाया।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #192 – कविता – मौन मन का मीत… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता  मौन मन का मीत)

☆ तन्मय साहित्य  #192 ☆

☆ मौन मन का मीत…. ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

ओशो को पढ़ते हुए मौन पर एक छंद सृजित हुआ, प्रतिक्रियार्थ प्रस्तुत है…

बिना कहे, जो सब कह जाए वही मौन है

निर्विचार, चिंतक हो जाए वही मौन है

अन्तर शुन्याकाश, व्याप्त चेतनानुभूति

निष्प्रह मन, खुशियाँ पहुँचाये वही मौन है।

 – तन्मय

उपरोक्त मुक्तक के संदर्भ में एक रचना “मौन मन का मीत…” जो पूर्व में विपश्यना के 10 दिवसीय मौन साधना शिविर करने के बाद लिखी थी, मन हो रहा है आपसे साझा करने का, प्रतिक्रियार्थ प्रस्तुत है –

☆ मौन मन का मीत…. ☆

मौन मन का मीत

मौन परम सखा है

स्वाद, मधुरस मौन का

हमने चखा है।

 

अब अकेले ही मगन हैं

शून्यता, जैसे गगन है

मुस्कुराती है, उदासी

चाहतों के, शुष्क वन है

जो मिले एकांत क्षण

उसमें स्वयं को ही जपा है, मौन…

 

कौन है, किसकी प्रतीक्षा

कर रहे, खुद की समीक्षा

हर घड़ी, हर पल निरंतर

चल रही, अपनी परीक्षा

पढ़ रहे हैं, स्वयं को

अंतःकरण में जो छपा है, मौन…

 

हैं, वही सब चाँद तारे

हैं, वही प्रियजन हमारे

और हम भी तो वही हैं

आवरण, कैसे उतारें

बाँटने को व्यग्र हम

जो, गाँठ में बाँधे रखा है, मौन…

 

मौन, सरगम गुनगुनाये

मौन, प्रज्ञा को जगाये

मौन, प्रकृति से मुखर हो

प्रणव मय गुंजन सुनाये

मौन की तेजस्विता से

मुदित हो तन मन तपा है।

स्वाद मधुरस मौन का

हमने चखा है।।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 17 ☆ राम को वनवास… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “राम को वनवास।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 17 ☆  राम को वनवास… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

ज़रूरत है फिर मिले,

राम को वनवास।

 

सरक आया जंगलों तक

शहर का जंगल,

हो रहे हैं सुबाहू

मारीच के दंगल,

 

ताड़का से गगनचुंबी,

बन गये आवास।

 

नदी बहरी हो गई है

मूक हैं झरने,

ज़हर पीकर हवाएँ भी

लगी हैं डसने,

 

हवन होती आस्थाएँ,

छल रहा विश्वास।

 

कहाँ विश्वामित्र हैं

कहाँ हैं गौतम,

अहल्या सी प्रजा सारी

पड़ी है बेदम,

 

कब उठेगा परस पाकर

मृत पड़ा उल्लास।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ आजिज़ी का न उतारे कभी तन से ज़ेवर… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “आजिज़ी का न उतारे कभी तन से ज़ेवर“)

✍ आजिज़ी का न उतारे कभी तन से ज़ेवर… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

हिन्द में आना फ़रिश्तों का लगा रहता है

जर्रे ज़र्रे में यहाँ नूरे खुदा रहता है

बंद मजलूम को हर आदमी का दर होता

सिर्फ़ भगवान का दर सबको खुला रहता है

सिर्फ बातें नहीं जो उन पे अमल भी करता

सबकी नजरों में वो इंसान बड़ा रहता है

आजिज़ी का न उतारे कभी तन से ज़ेवर

तब बुलंदी पे कोई शख़्स बना रहता है

सर्फ सोडा न डिटर्जेट से वो धुल पाया

दाग बदनामी का जो दोस्त लगा रहता है

टाट टेरीन फलालीन या मलमल पहना

जो गधा होता है हर हाल गधा रहता है

इल्म उंसका है बड़ा ठोस तजुर्बे का अरुण

ज़िन्दगीं के जो मदरसे का पढ़ा रहता है

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 13 – वहाँ की दुनिया काली है… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – वहाँ की दुनिया काली है।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 13 – वहाँ की दुनिया काली है… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

वहाँ की दुनिया काली है

जहाँ रोशनी दिखी

वहाँ की दुनिया काली है

 

वनस्थली वीरान

तभी तो सावन रूठा है

ज्याँ नेताओं का

आश्वासन रहता झूठा है

सत्ता के गलियारों की

हर बात निराली है

 

आदर्शों पर मंहगाई ने

कसा शिकंजा है

रिश्वतखोरी का

दफ्तर में खूनी पंजा है

कोर्ट-कचहरी में तक

चलती खूब दलाली है

 

काम नहीं होते दफ्तर में

बिना कमीशन के

रिश्वत ज्यादा प्यारी लगती

मासिक वेतन से

लाँच-घूस से ही प्रसन्‍न

रहती घरवाली है

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 90 – मनोज के दोहे… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 90 – मनोज के दोहे… ☆

१ अंबुद

उमड़-घुमड़ अंबुद चले, हाथों में जलपान।

प्यासों को पानी पिला, फिर पाया वरदान।।

२ नटखट

नटखट अंबुद खेलते, लुका-छिपी का खेल।

कहीं तृप्त धरती करें, कहीं सुखाते बेल।।

३ प्रार्थना

यही प्रार्थना कर रहे, धरती के इंसान।

जल-वर्षा इतनी करो, धरा न जन हैरान।।

४ चारुता

प्रकृति चारुता से भरी, झूम उठे तालाब।

मेघों ने बौछार कर, खोली कर्म-किताब।।

५ अभिसार

बरसा ऋतु का आगमन,नदियाँ हैं बेताब।

उदधि-प्रेम अभिसार में, उफनातीं सैलाब।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – स्थितप्रज्ञ ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – स्थितप्रज्ञ ??

शव को

जलाते हैं,

दफनाते हैं,

शोक, विलाप,

रुदन, प्रलाप,

अस्थियाँ, माँस,

लकड़ियाँ, बाँस,

बंद मुट्‌ठी लिए

आदमी का आना,

मुट्‌ठी भर होकर

आदमी का जाना,

सब देखते हैं

सब समझते हैं,

निष्ठा से

अपना काम करते हैं;

श्मशान के ये कर्मचारी;

परायों की भीड़ में

अपनों से लगते हैं,

घर लौटकर

रोज़ाना की भूमिकाएँ

आनंद से निभाते हैं,

विवाह, उत्सव,

पर्व, त्यौहार,

सभी मनाते हैं,

खाते हैं, पीते हैं,

नाचते हैं, गाते हैं,

स्थितप्रज्ञता को भगवान

मोक्षद्वार घोषित करते हैं;

धर्मशास्त्र संभवत: 

ऐसे ही लोगों को

स्थितप्रज्ञ कहते हैं..!

© संजय भारद्वाज 

(28 जुलाई 2016, रात्रि 9:43 बजे।)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नमः शिवाय 🕉️ साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ  🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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