हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 77 ☆ मुक्तक ☆ ।। जाने किस की दुआ कब ज़िंदगी के काम आ जाए ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ मुक्तक ☆ ।। जाने किस की दुआ कब ज़िंदगी के काम आ जाए ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

बाद जिंदगी   के भी  आदमी  जिंदा रहता  है।

वही ही याद रहता   जो बात भले की कहता है।।

धन ऐश्वर्य अभिमान सब धरा पर धरा रह जायगा।

वही इंसान कहलाता किसी   लिए दर्द सहता है।।

[2]

जियो जीने दो का ही सिद्धान्त सबसे अच्छा है।

मधुर मुख     वाणी वेदांत   ही सबसे अच्छा है।।

वसुधैव कुटुंबकम् के अनुपालन में ही सृष्टि रक्षा।

सबका मान सम्मान  चित शांत सबसे अच्छा है।।

[3]

बुलबुले सा जीवन   कि   पल का   पता नहीं है।

मतकर कोई अभिमान कि कल का पता नहीं है।।

अहम क्रोध घृणा करते पहले स्वयं का ही पतन।

अभिमान में प्रभु की लाठी का लगता पता नहीं है।।

[4]

ना जाने जीवन की कब  आखिरी शाम आ जाये।

अंतिम बुलावा और जाने का वह पैगाम आ जाये।।

सबसे बनाकर रखो बस दिल की  नेक नियत से।

जाने किसकी दुआ कब जिंदगी के काम आ जाये।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 141 ☆ कविता – “गायत्री मंत्र …” हिन्दी छंद बद्ध भावानुवाद ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित   “गायत्री मंत्र…” का हिन्दी छंद बद्ध भावानुवाद । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण   प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

 ☆ कविता – “गायत्री मंत्र …” हिन्दी छंद बद्ध भावानुवाद ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं।

भर्गो देवस्य धीमहि धियो योन: प्रचोदयात्॥

☆ हिन्दी छंद बद्ध भावानुवाद गायत्री मंत्र ☆

जो जगत को प्रभा और ऐश्वर्य देता है दान

जो है आलोकित परम और ज्ञान से भासमान ॥

शुद्ध है विज्ञानमय है, सबका उत्प्रेरक है जो

सब सुखो का प्रदाता, अज्ञान उन्मूलक है जो ॥

उसकी पावन भक्ति को हम, हृदय में धारण करें

प्रेम से उसके गुणो का, रात दिन गायन करें ॥

उसका ही लें हम सहारा, उससे ये विनती करें

प्रेरणा सत्कर्म करने की, सदा वे दें हमें ॥

बुद्धि होवे तीव्र, मन की मूढ़ता सब दूर हो

ज्ञान के आलोक से जीवन सदा भरपूर हो ॥ 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #191 ☆ भावना के दोहे… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “भावना के दोहे।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 191 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆

निज साँसों में बस रहा, तेरा मेरा गीत।

पा लूँ तुझको मैं तभी, जीवन है संगीत।।

नेह की तरंग मन में , लेती रोज उछाल।

दिल से पूछो हमारा, यही बुरा है हाल।।

रिमझिम रिमझिम बरसता, बरसे बादल आज।

लगे न मन मेरा सजन, करने को कोई काज।।

नैन विरह में बरस रहे, हृदय करे चित्कार।

सूना आंगन सजन बिन, सावन करे पुकार।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “एक नदी की मौत…” ☆ श्री संजय सरोज ☆

श्री संजय सरोज 

(सुप्रसिद्ध लेखक श्री संजय सरोज जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत। आप वर्तमान में असिस्टेंट कमिश्नर, (स्टेट-जी एस टी ) के पद पर कार्यरत हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  भावप्रवण कविता  – “एक नदी की मौत …)

☆ कविता ☆ ? एक नदी की मौत … – दो कविताएं ??

नदी के चेहरे को मलती दूधिया रोशनी,

 और उसके चेहरे पर बरसता जीवन रस,

 जैसे-जैसे बरसता जाता जीवन रस,

 वैसे वैसे और थिरकती, उछलती, नाचती नदी ,

और रेंवे* तेज कर देते अपना संगीत।

 

 शांत हो गई है अब नदी,

 फैल गई है उसके चेहरे पर रक्तिम आभा ,

आ गए हैं पलकों के नीचे लाल लाल डोरे

 शायद सोने जा रही है नदी,

  थक जो गई है रात के करतब से ।

 

पर उसे जगायेंगे,

 हां ! अब हम उसे जगायेंगे,

 और पोतेंगे उसके चेहरे पर  चर्म रस , अम्ल रस,

 और मलेंगे मल रस,

 और खिलाएंगे प्लास्टिक और कांच बेशुमार,

 अभागों ! बदरंग और कुरूप हो जाएगी यह नदी,

 हाय! मर जाएगी यह नदी….

 

*रेंवे=एक प्रकार का कीडा जो नदी के पास रहता है और रात मे आवाज करता है।

©  श्री संजय सरोज 

नोयडा

मो 72350 01753

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – चौकन्ना ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – चौकन्ना ??

सीने की

ठक-ठक

के बीच

कभी-कभार

सुनता हूँ

मृत्यु की

खट-खट भी,

ठक-ठक..

खट-खट..,

कान अब

चौकन्ना हुए हैं

अन्यथा ये

ठक-ठक और

खट-खट तो

जन्म से ही

चल रही हैं साथ

और अनवरत..,

आदमी यदि

निरंतर

सुनता रहे

ठक-ठक के साथ

खट-खट भी,

बहुत संभव है

उसकी सोच

निखर जाए,

खट-खट तक

पहुँचने से पहले

ठक-ठक

सँवर जाए..!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नमः शिवाय 🕉️ साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ  🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 169 ☆ बाल कविता – परी, चाँद की सुखद कहानी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 131मौलिक पुस्तकें (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित तथा कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी संस्थान के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 169 ☆

☆ बाल कविता – परी, चाँद की सुखद कहानी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

दादी कहें मुझे शहजादी

    नाम मेरा सुमन रानी।

दादी से मैं रोज ही सुनती

   परी , चाँद की सुखद कहानी।।

 

सपने में शहजादी बनकर

   चली सैर को नभ में मैं।

परियों से मिल करी दोस्ती

   खुशियाँ सबमें भर दूँ मैं।।

 

चंदा से मैं बातें करने

   पहुँची चंद्र लोक में मैं।

क्या – क्या करते चंदा मामा

   आज पूछती तुमसे मैं।।

 

रोज – रोज ही घट बढ़ जाते

   और कभी तो तुम छिप जाते।

दूज चाँद पर बालक बनते

    पूनम को चाँदी बरसाते।।

 

कहा उन्हें समझाकर मैंने

   सदा रोज पूनम से निकलो।

घटना – बढ़ना बंद करो तुम

 नहीं कभी तुम पथ से फिसलो।।

 

सपना टूटा जगी खुशी से

       नभ से चाँदी बरस रही थी।

 चंदा को मैं मामा कहकर

      फूलों – सी मैं सरस् रही थी।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #7 ☆ कविता – “खुद मिटकर यूं…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #7 ☆

 ☆ कविता ☆ “खुद मिटकर यूं …” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

हव्वा, तुम्हारी चाल कैसी

उलझी है मेरे दिल में 

तुम्हारे कातिल इरादे

इन फलों में जो मिलाओ

 

खुद मिटकर यूं 

हमें और ना मिटाओ…

 

ठीक है हुई भूल है

इतना गुस्सा ना करो

गुस्से में यूं गालों को

सेब लाल जो बनाओ

बात खुलके करो

यूं हसी से ना टोको

दूरियां चल के मिटाओ

निगाहों से और ना बढ़ाओ

 

खुद मिटकर यूं 

हमें और ना मिटाओ…

 

भूल आदम की थी

सितम हम पे ना गिराओ

जितने की अकल तुममें थीं

शर्मिंदा हमे और ना करो

 

खुद मिटकर यूं 

हमें और ना मिटाओ…

 

वैसे भी तुम

यूं ही जीती हुई हो

अब हमें  और तुम

ऐसे यूं ना हराओ

सिर से हमारे अब

ये पत्थर उतारो

तुम्हे ताज चाहिए

बस मांग कर देखो

हम पे वो सजाकर

यूं  ख़ुद राज जो करो

 

खुद मिटकर यूं 

हमें और ना मिटाओ…

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #191 – कविता – कैसे उस पर करें भरोसा… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता  “कैसे उस पर करें भरोसा)

☆  तन्मय साहित्य  #191 ☆

☆ कैसे उस पर करें भरोसा☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

उसने जब-तब झूठ परोसा

कैसे उस पर, करें भरोसा।

 

ठुकरा कर वह छोड़ गया है

स्नेहिल धागे तोड़ गया है

देख पराई घी चुपड़ी वह

रिश्तों से मुँह मोड़ गया है,

 

अपने मुँह का कौर खिलाकर

जिसे जतन से पाला-पोसा

कैसे उस पर करें भरोसा…..

 

मिली न सुविधा अपने क्रम में

मृगमरीचिकाओं के भ्रम में

झंडा-झोला छोड़-छाड़ कर

चला गया दूजे आश्रम में,

 

खीर मलाई, इधर डकारे

ऊपर से जी भर कर कोसा

कैसे उस पर करें भरोसा…..

 

कल तक जो थे शत्रु पराये

उनसे ही अब हाथ मिलाये

व्यथित,चकित,संभ्रमित समर्थक

पर इनको नहीं लज्जा आये,

 

स्वारथ के खातिर दलबदलू

पहनें टोपी, कभी अँगोछा

कैसे उस पर करें भरोसा……

 

लोक-तंत्र के हैं ये प्रहरी

चलते रहें साजिशें गहरी

आँख-कान से अंधे-बहरे,

मीठे बोल, असर है जहरी,

 

स्वाद कसैला होता, इनके

बारे में जब-जब भी सोचा

कैसे उस पर, करें भरोसा।।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 16 ☆ अधिक वर्षा का गीत… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “अधिक वर्षा का गीत।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 16 ☆  अधिक वर्षा का गीत… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

नदी उड़ेले कितना पानी,

प्यास नहीं बुझती सागर की।।

 

मेंड़ उठाये खेत खड़े हैं,

डूब गई हैं फ़सलें सारी।

हाथ धरे कलुआ बैठा है,

कहाँ जाए बरखा है भारी।

 

बचा खुचा भी दाँव लगा है,

ख़बर नहीं मिलती बाहर की।।

 

सभी दिशाएँ पानी पानी,

शहर गाँव के रस्ते टूटे।

राहत की आशा में सारे,

भाग लिए बैठे हैं फूटे।

 

ढोर बछेरू बँधे थान से,

धार नहीं टूटी छप्पर की।।

 

घेर-घेर कर पानी मारे,

घुमड़-घुमड़ कर बरसें बदरा।

रह-रह बिजुरी चमक डराती,

नदिया नाले बने हैं खतरा।

 

बाँध हो रहे बेक़ाबू हैं,

सुध-बुध खो बैठे हैं घर की।।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ असर यूँ मुहब्बत दिखाई हमारी… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “असर यूँ मुहब्बत दिखाई हमारी“)

✍ असर यूँ मुहब्बत दिखाई हमारी… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

नजर में जिगर में बसा तू ही तू है

रहे दूर पर सामने हूबहू है

अलावा तेरे ख्याल आता न दिल में

मुझे रात दिन तेरी ही आरजू है

असर यूँ मुहब्बत दिखाई हमारी

सभी की ज़ुबाँ पर यहाँ कू-ब-कू है

शबाब आप पर खूब आया है ऐसा

लगी होड़ पाने यहाँ चार सू है

तग़ाफ़ुल में ये बात भी दिल में रखना

नहीं रब्त की हो सकेगी रफू है

सताइश नहीं ये हकीक़त है जाँना

नहीं दूसरा आपसा माहरू है

ये कैसी अदावत अरुण भाइयों में

अगर एक जैसा जो इनका लहू है

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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