हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “सावन की कुंडलिया…” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ “सावन की कुंडलिया…” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

(१)

सावन आया मन रहा,  बूंदों का त्योहार।

मौसम को तो मिल गया, क़ुदरत का उपहार।।

क़ुदरत का उपहार, दादुरों में खुशहाली।

खेतों में मुस्कान, सिंचाई है मतवाली।।

मेघों का उपकार, धरा पर जल है आया।

स्वर गूंजें चहुंओर, आज तो सावन आया।।

(२)

सावन आया द्वार पर, करने सबसे प्यार।

मेघों द्वारा हो रहा, वर्षा का सत्कार।।

वर्षा का सत्कार, स्रोत जल के खुश दिखते।

कविगण में है हर्ष, सभी कविताएं लिखते।।

नाचें वन में मोर, सुखद पावस की माया।

आल्हा की है तान, बंधुवर सावन आया।।

(३)

सावन आया झूमकर, गाता हितकर गीत।

वर्षा रानी बन गई, कृषकों की मनमीत।।

कृषकों की मनमीत, नदी-नाले मस्ती में।

जंगल में है जोश, पेड़ सारे हस्ती में।।

मौसम का यशगान, हवाओं का रुख भाया।

उत्साहित सब लोग, सुहाना सावन आया।।

(४)

सावन आया है चहक, मौसम में आवेग।

मेघों ने हमको दिया, जल का पावन नेग।।

जल का पावन नेग, क्यारियों में रौनक है।

नदियों में सैलाब, बस्तियों में धक-धक है।

राखी का त्योहार, खुशी के पल लाया है।

ख़ूब पले अनुराग, देख सावन आया है।।

(५)

सावन आया ऐ सुनो, सब कुछ है अनुकूल।

आतप के चुभते नहीं, अब तो तीखे शूल।।

अब तो तीखे शूल, शीत की लय है प्यारी।

मौसम रचे खुमार, धरा लगती है न्यारी।।

सबने पीकर चाय, गर्म मुंगौड़ा खाया।

बिलखें ठंडे पेय, जोश में सावन आया।।

(६)

सावन आया मीत सुन, मादक चले बयार।

फिर भी तू क्यों दूर है, सूना मम् संसार।।

सूना मम् संसार, नहीं कुछ भी है भाता।

बांहें हैं बेचैन, एक पल चैन न आता।।

दिल में जागी प्रीति, मिलन का भाव समाया।

आज यही बस सत्य, रसीला सावन आया।।

सावन है नव चेतना, सावन इक उत्साह। 

सावन इक चिंतन नया, सावन है नव राह।। 

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 12 – हमने हार न मानी है… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – हमने हार न मानी है।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 12 – हमने हार न मानी है… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

रही उजड़ती हर दम

अपनी छप्पर-छानी है

पर अत्याचारों से

हमने हार न मानी है

 

लोहा तपता, पिटता है

लोहारों से

पुन: चमकता है तपकर

तलवारों से

संघर्षो से लिखी

प्रगति की नई कहानी है

 

चीटी गिर-गिरकर भी

चढ़ती कठिन पहाड़ी है

तू भी हार न मान

कि विपदा दिखती गाढ़ी है

पर्वत को भी धूल चटाई

जब-जब ठानी है

 

काटा जाता वृक्ष

ठूंठ रह जाती बाकी है

निकल वहीं से कोंपल ने

फिर दुनिया झाँकी है

अँगड़ाई लेकर,

हरियाली चादर तानी है

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 89 – सजल – वक्त भी ठहरा हुआ है…  ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “सजल – वक्त भी ठहरा हुआ है… …”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 89 – सजल – वक्त भी ठहरा हुआ है ☆

(सजल :: मात्रा – 14, समांत – हरा, पदांत –हुआ है)

 मौन कुछ गहरा हुआ है।

वक्त भी ठहरा हुआ है।।

आइए हम साथ जी लें,

प्रेम का पहरा हुआ है।

गर्म साँसों की दहक से,

सुर्ख सा चेहरा हुआ है।

थाम रक्खो हाथ मेरा,

सूर्य अब बहरा हुआ है।

कामनाओं की इमारत,

विजय का सेहरा हुआ है।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – शिलालेख ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – शिलालेख ??

कविता नहीं मांगती समय,

न शिल्प विशेष,

न ही कोई साँचा

जिसमें ढालकर

छत्तीस-चौबीस-छत्तीस

या ज़ीरो फिगर गढ़ी जा सके,

कविता मांग नहीं रखती

लम्बे चौड़े वक्तव्य

या भारी-भरकम थीसिस की,

कविता तो दौड़ी चली आती है

नन्ही परी-सी रुनझुन करती;

आँखों में आविष्कारी कुतूहल

चेहरे पर अबोध सर्वज्ञता के भाव,

एक हाथ में ज़रा-सी मिट्टी

और दूसरे में कल्पवृक्ष के बीज लिए,

कविता के ये क्षण

धुंधला जाएँ तो

विस्मृति हो जाते हैं,

मानसपटल पर उकेर लिये जाएँ तो

शिलालेख कहलाते हैं..!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नमः शिवाय 🕉️ साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ  🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 147 – गीत – कुछ भी नहीं कहूँगा… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण गीत – कुछ भी नहीं कहूँगा।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 147 – गीत – कुछ भी नहीं कहूँगा…  ✍

कुछ भी नहीं कहूँगा।

बस चुपचाप रहूँगा।

जो कहना था कहा, सुना

सपना अपनी आँख बुना

मेरी रही हैसियत जो

चाहा उससे लाख गुना।

अब अपने आप दहूँगा

बस चुपचाप रहूँगा।

देवल की प्रतिमा प्यारी

देख रही दुनिया सारी

दृष्टि सभी की दूध धुली

केवल मैं ही संसारी।

अब अपने पाप गहूँगा

बस चुपचाप रहूँगा।

इच्छाओं का अंत नहीं

होता सभी तुरन्त नहीं

केवल दोष यही मेरा

मैं मानव हूँ संत नहीं।

अब अपने शाप सहूँगा

बस चुपचाप रहूँगा।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 147 – “पूछ रही हर दिशा यहाँ…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है  आपका एक अभिनव गीत  पूछ रही हर दिशा यहाँ)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 147 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “पूछ रही हर दिशा यहाँ…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

आज नही बरसेंगे बादल

शपथ उठा लौटे

कहते हम भी थक जाते हैं

कारण,  इकलौते

 

धुंध छँटी अब तक कुछ –

कुछ है इनकी आँखों से

संध्या के सपनो के टूटे

हुये सुराखों से

 

परछाईं उड़ती दिखती

है नभ की कोरों से

लगता श्याम-घटा ने

खोले जैसे कजरौटे

 

पूछ रही हर दिशा यहाँ

बिनबरसे मत जाना

वृष्टि-छाँव का यही

इलाका वरन हरजाना

 

मेरी बहने हंसी खुशी

करने को अगवानी

खडी हुई हैं अगरुगंध

ले बाहर परकोटे

 

छुटपुट बारदात सी बूँदे

यहाँ वहाँ गिर कर

चलीं गई ले संग घटा को

सिर्फ यहाँ घिर कर

 

सूख-सूख सरिताओं

की भी नब्ज लगी डूबी

रोयें भी तो कैसे

ले आँसू मोटे-मोटे

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

18-06-2023 

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – शब्द- दर-शब्द ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – शब्द- दर-शब्द ??

शब्दों के ढेर सरीखे

रखे हैं काया के

कई चोले मेरे सम्मुख,

यह पहनूँ, वो उतारूँ

इसे रखूँ , उसे संवारूँ..?

 

तुम ढूँढ़ते रहना

चोले का इतिहास

या तलाशना व्याकरण,

परिभाषित करना

चाहे अनुशासित,

अपभ्रंश कहना

 या परिष्कृत,

शुद्ध या सम्मिश्रित,

कितना ही घेरना

तलवार चलाना,

ख़त्म नहीं कर पाओगे

शब्दों में छिपा मेरा अस्तित्व!

 

मेरा वर्तमान चोला

खींच पाए अगर,

तब भी-

हर दूसरे शब्द में,

मैं रहूँगा..,

फिर तीसरे, चौथे,

चार सौवें, चालीस हज़ारवें

और असंख्य शब्दों में

बसकर महाकाव्य कहूँगा..,

 

हाँ, अगर कभी

प्रयत्नपूर्वक

घोंट पाए गला

मेरे शब्द का,

मत मनाना उत्सव

मत करना तुमुल निनाद,

गूँजेगा मौन मेरा

मेरे शब्दों के बाद..,

 

शापित अश्वत्थामा नहीं

शाश्वत सारस्वत हूँ मैं,

अमृत बन अनुभूति में रहूँगा

शब्द- दर-शब्द बहूँगा..,

 

मेरे शब्दों के सहारे

जब कभी मुझे

श्रद्धांजलि देना चाहोगे,

झिलमिलाने लगेंगे शब्द मेरे

आयोजन की धारा बदल देंगे,

तुम नाचोगे, हर्ष मनाओगे

भूलकर शोकसभा

मेरे नये जन्म की

बधाइयाँ गाओगे..!

(कविता संग्रह ‘मैं नहीं लिखता कविता।’)

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 139 ☆ # जन्म-मरण… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# जन्म-मरण… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 139 ☆

☆ # जन्म-मरण… #

जब जीवन इक सौगात है

फिर गमगीन क्यों जमाना है

खुशी और गम का क्या है

इन्हें आना और जाना है

 

खिलें हुए फूल

हर मन को कितना भाते हैं

भीनी भीनी खुशबू से

हर तन को कितना लुभाते हैं

इन फूलों का क्या है

बहार में खिलना

पतझड़ में झड़ जाना है

 

सावन में अंबर पर

कितने बादल छाते हैं

धरती की प्यास बुझाने

कितना जल बरसाते हैं

इन बादलों का क्या है

सावन में आना

बरस कर चले जाना है

 

भास्कर कण कण में

प्राण भर देता है

शशि, हर तारे में

अपना रूप धर लेता है

रवि और चंद्रमा का क्या है

हर रोज निकलना

और डूब जाना है

 

जीवन तो सांसों का

एक अद्भभुत खेल है

मृत्यु तो अटल है

पर जीवन से कहां मेल है

इस जनम -मरण का क्या है

एक का आना तो

दूसरे का जाना है /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 148 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 148 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 148) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 148 ?

☆☆☆☆☆

Occupants of Heart ☆

☆☆

जो हमेशा आपके

दिल में रहते हैं…

उनकी बातें दिल पे

ना लेना कभी…!

Never take the words

of those to the heart…

Who are an indispensable

part of your heart…!

Self-respect 

थोड़ी सी खुद्दारी भी

लाज़मी है, दोस्तों…

उसने बात नहीं की तो

हम ने भी छोड़ दी…!

Little bit of self-respect is

also unavoidable, friends,

When he didn’t talk to me,

I also brushed him off…!

New Life… 

☆☆☆ 

उस मोड से शुरू करनी है

फिर से नई जिंदगी,

जहाँ सारा शहर अपना था

और तुम एक अजनबी…!

Need to start the life allover

again from that point…

Where the whole city was mine

and you were just a stranger…!

यहां वक़्त पर कोई किसी

के काम नहीं आता  है…

हमनें तो अपने आप को

भी आज़मा कर देखा है..!

Here nobody comes

forward to help…

I’ve  tried it even

on  myself…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 146 ☆ सॉनेट – लालबहादुर ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना  “सॉनेट – लालबहादुर)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 146 ☆

सॉनेट – लालबहादुर ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

छोटा कद, ऊँचा किरदार।

लालबहादुर नेता सच्चे।

सादे सरल जिस तरह बच्चे।।

भारत माँ पे हुए निसार।।

नन्हें ने दृढ़ कदम बढ़ाया।

विश्वशक्ति को धता बताया।

भूखा रहना मन को भाया।।

सीमा पर दुश्मन थर्राया।।

बापू के सच्चे अनुयायी।

दिशा देश को सही दिखायी।

जनगण से श्रद्धा नित पायी।

विजय पताका थी फहरार्ई।।

दुश्मन ने भी करी बड़ाई।।

सब दुनिया ने जय-जय गाई।।

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

९-२-२०१५, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

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 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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