हिन्दी साहित्य – कविता ☆ आतंक और विनाश ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ आतंक और विनाश ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

आतंक मिटाता ज़िन्दगी, करता सदा विनाश,

यह समझें हैवान यदि, तो बदलेगा मौसम।

ख़ूनखराबा कब तक होगा, बतलाओ तुम मुझको,

पहलगाम जैसी जगहों पर होगा कब तक मातम।।

जिसने तुमको भड़काया है, समझो उनकी करनी,

मूर्ख बनाकर वे यूँ सबको, करें मौत का खेला।

नहीं जान लेने में हिचकें, चिंतन है शैतानी,

बरबादी भाती है जिनको, करते रोज़ झमेला।।

 *

लानत है आतंक कर्म पर, मौत का जो उत्सव है,

कब तक लाशें और गिरेगीं, कब तक सब रोएंगे।

असुर मनुज की बस्ती में हों, तो कैसे सुख-चैना,

कैसे हम सब शांत चित्त हो, फिर तो सो पाएंगे।।

 *

यही चेतना, संदेशा है, अविलम्ब जागना होगा,

अब तो इस आतंक को हमको, अभी रोकना होगा।

यही जागरण, वक़्त कह रहा, आतंक की अब इतिश्री हो,

नगर-गांव में हर्ष पले अब, शौर्य रोपना होगा।।

 *

आतंक मानसिकता हैवानी, मिटे ज़िन्दगी जिससे,

होता सदा विनाश खुशी का, केवल बचता है ग़म।

धर्म कराता न बर्बादी, इसको तो तुम जानो,

फिर क्यों ख़ून बहाते हो तुम, चला गोलियाँ औ’ बम।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विश्राम ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – विश्राम ? ?

जब ‘बिटवीन द लाइंस’

धुंधलाने लगे,

तो कुछ देर विश्राम करो,

धूप में उड़ने दो स्याही को,

क्योंकि

बलात सृजन से बेहतर है-

कोरा काग़ज़ और

सूखी क़लम!

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 12 अप्रैल 2025 से 19 मई 2025 तक श्री महावीर साधना सम्पन्न होगी 💥  

🕉️ प्रतिदिन हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमन्नाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें, आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 250 ☆ पाकिस्तान को दो टूक… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मानबाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंतउत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 250 ☆ 

☆ पाकिस्तान को दो टूक ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

झूठा पाकिस्तान है, बेचे रोज जमीर।

मातम में शहबाज है, गिरगिट बना मुनीर।।

भारत की सेना प्रबल, तोड़ा पाक गुरुर।

एक वार में कर दिए, सपने चकनाचूर।।

 *

घाव दिए जो पाक ने, भारत भूल न पाय।

चुन-चुन कर बदला लिया, दुश्मन अब थर्राय।।

 *

बहनों की जो माँग का, उजड़ा था सिंदूर।

बदला उसका ले लिया, हुई वेदना दूर।।

 *

चूर हुआ मद पाक का, रोया खूब मसूद।

सब्र अभी थोड़ा करो, करें नेस्तनाबूद।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ सिंदूर का मूल्य… ☆ डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ ☆

डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

(डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ जी  बेंगलुरु के नोबल कॉलेज में प्राध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं एवं  साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में मन्नू भंडारी के कथा साहित्य में मनोवैज्ञानिकता, दो कविता संग्रह, पाँच कहानी संग्रह,  दो  उपन्यास “फिर एक नयी सुबह” और  “औरत तेरी यही कहानी” प्रकाशित। इसके अतिरिक्त आपकी एक लम्बी कविता को इंडियन बुक ऑफ़ रिकार्ड्स 2020 में स्थान दिया गया है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। हाल ही में आशीर्वाद सम्मान से अलंकृत । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता सिंदूर का मूल्य… ।)  

☆ कविता ☆ सिंदूर का मूल्य… ☆ डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ ☆

लाख रोकने की कोशिश की फिर भी

चल पडी़ है कलम नही रूकेगी

अब सुनो तुम अरि

तुम ने मिटाया सिंदूर

गलत किया तुमने

मिटाकर हमारी बहुओं का सिंदूर

नहीं बहेंगे आसू

नारी है सम्माननीय

नहीं है परख देवी की

तुमने भी जन्म लिया है

मां की कोख से—

जो भूले हो याद कर

वार कर नारी पर!!

बने हो सियार?

नहीं हो वीर…

नहीं जानते परिभाषा वीर की

पहलें जानों तुम

हम बताएंगे तुम्हें

नारी हैं दुर्गा की छाया

हम तुम्हारे वजूद को

ही करेंगे नेस्तानाबूद

डाला है हाथ सांप के बिल में

याद रखना तुम हो हिन्दुस्तान में

हम चाहते थे शांति

तुम चाहते हो युद्ध

हमने नहीं पहनी चूडियां

गलतफहमी में मत रहना

आज सह हमारी मार

सिंदूर छीना है तुम ने

हम न्याय दिलायेंगे

तैयार रहना आतंकवादियों

तुमसे लेंगे

एक एक सांस का बदला  

यही है हमारा लक्ष्य

नहीं छिड़ना था तुम्हें

जगाया है सुप्त सिंह को

अब भागो जितना भाग सकते हो

हमारे पंजे है तुम्हारे पीछे,

मुड़ोगे तो जान से जाओगे

वंदेमातरम

जय हिन्द

© डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

संपर्क: प्राध्यापिका, लेखिका व कवयित्री, हिन्दी विभाग, नोबल कॉलेज, जेपी नगर, बेंगलूरू।

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #279 – कविता – समूल मिटे आतंक… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी द्वारा गीत-नवगीत, बाल कविता, दोहे, हाइकु, लघुकथा आदि विधाओं में सतत लेखन। प्रकाशित कृतियाँ – एक लोकभाषा निमाड़ी काव्य संग्रह 3 हिंदी गीत संग्रह, 2 बाल कविता संग्रह, 1 लघुकथा संग्रह, 1 कारगिल शहीद राजेन्द्र यादव पर खंडकाव्य, तथा 1 दोहा संग्रह सहित 9 साहित्यिक पुस्तकें प्रकाशित। प्रकाशनार्थ पांडुलिपि – गीत व हाइकु संग्रह। विभिन्न साझा संग्रहों सहित पत्र पत्रिकाओं में रचना तथा आकाशवाणी / दूरदर्शन भोपाल से हिंदी एवं लोकभाषा निमाड़ी में प्रकाशन-प्रसारण, संवेदना (पथिकृत मानव सेवा संघ की पत्रिका का संपादन), साहित्य संपादक- रंग संस्कृति त्रैमासिक, भोपाल, 3 वर्ष पूर्व तक साहित्य संपादक- रुचिर संस्कार मासिक, जबलपुर, विशेष—  सन 2017 से महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9th की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में एक लघुकथा ” रात का चौकीदार” सम्मिलित। सम्मान : विद्या वाचस्पति सम्मान, कादम्बिनी सम्मान, कादम्बरी सम्मान, निमाड़ी लोक साहित्य सम्मान एवं लघुकथा यश अर्चन, दोहा रत्न अलंकरण, प्रज्ञा रत्न सम्मान, पद्य कृति पवैया सम्मान, साहित्य भूषण सहित अर्ध शताधिक सम्मान। संप्रति : भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स प्रतिष्ठान भोपाल के नगर प्रशासन विभाग से जनवरी 2010 में सेवा निवृत्ति। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता समूल मिटे आतंक” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #279 ☆

☆ समूल मिटे आतंक…  ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

(पहलगाम  निर्मम हत्याएँ… 22/04/25)

तर्क वितर्क कुतर्कों के सँग, खड़े हो गए विद्रोही

उनके मन की हुई,  जिन्होंने ही विषबेलें ये बोई

*

नरपिशाच उन नपुंसकों ने, हत्या करी निहत्थों की,

साजिश में इनके पीछे, इनमें से ही घर का कोई।

*

सुख शांति कब पची, बताओ असुर जिहादी नागों को

कपटी कालनेमियों वेशधारी, इन काले कागों को

*

जिनसे हो बदनाम कौम, सबको ये बात समझनी है,

समूल मिटे आतंक, तोड़ दें हिंसक खूनी धागों को।

*

आस्तीनों में छिपे सँपोले, रह-रह फन फुँफकार रहे

जनमानस में नई चेतना देख, विवश चित्कार रहे

*

हत्याओं पर संवेदन की जगह, सियासत जारी है,

किस्से गढ़ने लगे सेक्युलर, देश विरोधी धार बहे।

*

जो जिस भाषा में समझे, वैसे इनको समझाना है

अत्याचारी के खिलाफ, हाथों में शस्त्र उठाना है

*

समूल मिटा दें इन्हें और, इनके पोषक गद्दारों को,

छिपे विघ्नसंतोषी चेहरों को भी, सबक सिखाना है।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश साहित्य # 103 ☆ ग़ज़ल – एक हक़ीक़त ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय ग़ज़ल  “एक हक़ीक़त ” ।)       

✍ जय प्रकाश साहित्य # 103 ☆ ग़ज़ल – एक हक़ीक़त ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

ख़ामोशी  जंगल  पर  तारी  है,

एक हक़ीक़त सब पर भारी है।

*

ख़ून हुआ है जिसके सपनों का,

उसकी  आँखों  में  लाचारी  है।

*

उनकी कविता पर कुछ क्या कहना,

शब्दों   की    बस   पच्चीकारी   है ।

*

भूख खड़ी है जिनके द्वारे पर,

उनकी  रोटी  भी  सरकारी है।

*

मानवता की क्या उसको चिंता,

वो  तो  लाशों  का  व्यापारी है।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – स्थितप्रज्ञ ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – स्थितप्रज्ञ ? ?

शव को

जलाते हैं,

दफनाते हैं,

शोक, विलाप,

रुदन, प्रलाप,

अस्थियाँ, माँस,

लकड़ियाँ, बाँस,

बंद मुट्‌ठी लिए

आदमी का आना,

मुट्‌ठी भर होकर

आदमी का जाना,

सब देखते हैं,

सब समझते हैं,

निष्ठा से

अपना काम करते हैं,

श्मशान के ये कर्मचारी;

परायों की भीड़ में

अपनों से लगते हैं…,

घर लौटकर

रोज़ाना की सारी भूमिकाएँ

आनंद से निभाते हैं,

विवाह, उत्सव,

पर्व, त्यौहार,

सभी मनाते हैं,

खाते हैं, पीते हैं,

नाचते हैं, गाते हैं…,

स्थितप्रज्ञता को भगवान

मोक्षद्वार घोषित करते हैं,

धर्मशास्त्र संभवत: 

ऐसे ही लोगों को

स्थितप्रज्ञ कहते हैं….!

?

 

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 12 अप्रैल 2025 से 19 मई 2025 तक श्री महावीर साधना सम्पन्न होगी 💥  

🕉️ प्रतिदिन हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमन्नाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें, आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – ग़ज़ल ☆ बहुत उलझनें है यार सियासत में यहाँ… ☆ श्री हेमंत तारे ☆

श्री हेमंत तारे 

श्री हेमन्त तारे जी भारतीय स्टेट बैंक से वर्ष 2014 में सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृत्ति उपरान्त अपने उर्दू भाषा से प्रेम को जी रहे हैं। विगत 10 वर्षों से उर्दू अदब की ख़िदमत आपका प्रिय शग़ल है। यदा- कदा हिन्दी भाषा की अतुकांत कविता के माध्यम से भी अपनी संवेदनाएँ व्यक्त किया करते हैं। “जो सीखा अब तक,  चंद कविताएं चंद अशआर”  शीर्षक से आपका एक काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुका है। आज प्रस्तुत है आपकी एक ग़ज़ल – बहुत उलझनें है यार सियासत में यहाँ।)

✍ बहुत उलझनें है यार सियासत में यहाँ… ☆ श्री हेमंत तारे  

गरचे यूं होता के मैं इक मुसव्विर होता

मेरे जेहन में तू और तेरा तसव्वुर होता

रंग, ब्रश, कैनवास मैं और तू संग रहते

मैं तिरी तस्वीरे बनाता और मुनव्वर होता

*

मिरा नसीब है के तू यहीं है, आसपास है

तू मिरे पास न होता तो मैं मुन्फरिद होता

*

अच्छा है कोई, ख़्वाहिश बाकी न रही

अब पुरसुकूँ हूँ मैं, वर्ना मुन्तजिर होता

*

बहुत उलझनें है यार सियासत में यहाँ

मैं चाहिता वर्ना तो क़ाबिज़े इक्तिदार होता

*

वो शाइर अच्छा है कहते हैं सभी

गर मशायरा पढता तो मुकर्रर होता

*

वो तो इक संग ने पनाह दे दी वरना

ये हक़ीर ठोकरें दर – ब- दर होता

*

‘हेमंत अब और नही, उसपे एतिमाद नही

वो सलीके से निभाता तो उसपे ऐतिबार होता

(मुसव्विर = चित्रकार, मुनव्वर = प्रकाशमान/ प्रसिद्ध, मुन्फरिद = एकाकी, मुन्तजिर = पाने की चाह में प्रतिक्षित, काब़िज़ = मालिकाना हक, इक्तिदार = सत्ता, मुकर्रर = बार – बार का आग्रह, संग = पत्थर, हक़ीर = तुच्छ/ तिनका, एतिमाद = भरोसा, ऐतिबार = भरोसा / विश्वास)

© श्री हेमंत तारे

मो.  8989792935

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ ग़ज़ल # 106 ☆ वक़्त रुख़सत का आ रहा नजदीक… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “वक़्त रुख़सत का आ रहा नजदीक“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ ग़ज़ल # 106 ☆

✍ वक़्त रुख़सत का आ रहा नजदीक… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

आदमी है या है बला तौबा

कर रहा दोस्त बन दग़ा तौबा

 *

इश्क़ से मैंने कर लिया तौबा

मुस्तक़िल पर न रह सका तौबा

 *

मयकशी की न याद फिर आई

मदभरी आँख का नशा तौबा

 *

शूल भी फूल भी हैं राहों में

शूल मुझको ही क्यों चुभा तौबा

 *

साँस लेना भी आज दूभर है

ये प्रदूषण भरी हवा तौबा

 *

ज़िस्म का लम्स क्या हुआ तेरे

धड़कनों में उछाल सा तौबा

 *

दोस्त अग़यार सा मिला मुझसे

ये तग़ाफ़ुल नहीं क़ज़ा तौबा

 *

मैक़दे की बना वो रौनक है

मय से जिसकी है बा-रहा तौबा

 *

वक़्त रुख़सत का आ रहा नजदीक

कर गुनाहों से बा ख़ुदा तौबा

 *

अय अरुण इस डगर पे मत जाना

प्यार जिसने किया किया तौबा

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 100 – मुक्तक – चिंतन के चौपाल – 6 ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकें गे। 

इस सप्ताह से प्रस्तुत हैं “चिंतन के चौपाल” के विचारणीय मुक्तक।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 100 – मुक्तक – चिंतन के चौपाल – 6 ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

ठेका लिया है जिनने ईमानदारियों का,

ठगना है पेशा उनकी दूकानदारियों का,

हर वृक्ष में समाया रहता है डर हमेशा 

पर्यावरण सुधारक नेता की आरियों का

0

फल भुगतना ही पड़ा इन्सां को अपने पाप का, 

वक्त फिर अवसर नहीं देता है पश्चाताप का, 

जिनने लूटी है किसी बेटी-बहू की आबरू 

उनकी संतानें झुका देती हैं सिर माँ-बाप का।

0

मेरे चेहरे का पानी थे, 

वे घर के छप्पर-छानी थे, 

झुके, न झुकने दिया कभी भी 

मेरे पिता स्वाभिमानी थे।

0

आशिकों पर अगर सितम होंगे, 

तेरी महफिल में फिर न हम होंगे, 

चाटुकारों की भीड़ तो होगी, 

तुम पे मिटने के पर न दम होंगे।

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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