श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है सामाजिक विमर्श पर आधारित विचारणीय लघुकथा “जल संरक्षण”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 208 ☆
🪔🪔शुभ दीपावली 🪔🪔
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सारे जग में होती पूजा, धन श्री लक्ष्मी माता है।
दरिद्रता को दूर भगाती, चंचलता की दाता है।।
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घर-घर होती साफ सफाई, बच्चों की खुशहाली है।
काली रात अमावस आई, बिखरी छटा निराली है।।
जन-जन को यह पावन करती, सुख समृद्धि से नाता है।
सारे जग में होती पूजा, धन श्री लक्ष्मी माता है।।
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देवासुर संग्राम भयानक, अमृत को लालायित थे।
क्षीरसागर के गर्भ गृह में, कोटि रतन समाहित थे।।
समुद्र मंथन किया सभी ने, देव वेद के ज्ञाता थे।
सारे जग में होती पूजा, सुख समृद्धि से नाता है।।
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बनते मंदराचल मथानी, सर्प वासुकी डोर बने।
मंथन करते खींचातानी, देव दानव दोनों तने।।
निकले चौदह रत्न वहाँ से, सबके मन को भाता है।
सारे जग में होती पूजा, सुख समृद्धि से नाता है।।
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लक्ष्मी जी जब निकली बाहर, नारायण को प्यारी है।
श्री लक्ष्मी नारायण महिमा, दुनिया तुम पर वारी है।।
विष को धारण करते शंकर, तीन लोक सब गाता है।
सारे जग में होती पूजा, धन श्री लक्ष्मी माता है।।
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पीकर अमृत देव अमर है, दानव दल तो हारा है।
त्रेता युग में दशरथ नंदन, रावण कुल को तारा है।।
निशिचर मारे लौट अयोध्या, राम राज्य फिर आता है।
सारे जग में होती पूजा, सुख समृद्धि से नाता है।।
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द्वारे दीपक सजा आरती, मंगल बेला आई है।
ढोल नगाड़े आतिशबाजी, बाज रहे शहनाई है।।
शुभ लाभ की देते बधाई, दीपावली सजाता है।
सारे जग में होती पूजा, धन श्री लक्ष्मी माता है।।
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© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈