English Literature – Poetry ☆ ‘भेड़िया…’ श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Wolf…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi short story ~ भेड़िया..~.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना

? संजय दृष्टि – भेड़िया ??

भेड़िया उठा ले गया

झाड़ी की ओट में,

बर्बरता से उसका

अंग-प्रत्यंग भक्षण किया,

कुछ दिन बाद

देह का सड़ा-गला

अवशेष बरामद हुआ,

भेड़ियों का ग्राफ

निरंतर बढ़ता गया,

फिर यकायक

दुर्लभ होते प्राणियों में

भेड़िये का नाम पाकर

मेरा माथा ठनक गया,

अध्ययन से यह

तथ्य स्पष्ट हुआ,

चौपाये भेड़िये

जिस गति से घट रहे हैं,

दोपाये भेड़िये

उससे कई गुना अधिक

गति से बढ़ रहे हैं…!

© संजय भारद्वाज 

मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

? ~ Wolf… ~ ??

The wolf took away

a person in the

cover of the bush,

savagely devoured

him limb by limb,

 

A few days later,

the decomposed

remains of the body

were recovered.

 

The wolf count

continued to grow…

 

Then all of a sudden

Everyone was shocked

to find the name of wolf

among the rare animals.

 

The study revealed that

The speed at which

the quadruped wolves

were decreasing,

the bipedal wolves

were increasing

exponentially more

than that…!

~Pravin

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #186 ☆ भावना के दोहे… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 186 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे… ☆

द्वंद्व नहीं पालो कभी, बने रहो इंसान।

जो त्यागे अभिमान को, बढ़े उसी की शान।।

आपस के संबंध पर, पड़े न कभी दरार।

रखो इसे संभालकर, बढ़े रिश्तों में प्यार।।

भेदभाव करना नहीं, करना है व्यवहार।

सोच मनुज की ठीक हो, वही  बड़ा उपकार।।

टूट रहे है आज तो, बड़े – बड़े परिवार।

समझ नहीं है साथ की, ना समझे व्यवहार।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अरमान… ☆ श्री अरविन्द मोहन नायक ☆

श्री अरविन्द मोहन नायक

(ई-अभिव्यक्ति में श्री अरविन्द मोहन नायक जी का हार्दिक स्वागत। जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रॉनिक्स एवं टेलीकम्यूनिकेशन में स्नातक। सार्वजनिक क्षेत्रों में 37 वर्षों में विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए ओएनजीसी से महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत। कंप्यूटर सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के स्थानीय एवं राष्ट्रीय स्तर की समितियों में वरिष्ठ पदों का सफलतापूर्वक निर्वहन। आजीवन सदस्यता – FIETE, FIEI, SMCSI, MISTD। प्रकाशित कार्य – चार काव्य संकलन, यथा – ‘प्रयास’, ‘एहसास’, ‘आरोह’ एवं ‘सफर’।  भावी योजनाएँ (सूक्ष्म संकेत) – लेखन के साथ-साथ जन जागरण और युवाओं में नई चेतना के संचार हेतु प्रयासरत। हम आपके साहित्य को अपने प्रबुद्ध पाठकों से समय -समय पर साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना ‘अरमान’।)

✍ अरमान… ☆ श्री अरविन्द मोहन नायक

वो आते हैं हर रोज़, सपने में मेरे

यूँ लगता है आएंगे, अब दर पर मेरे

गो रहता है मुझको, अब भी भरोसा

मना लूंगा उनको, दर आएंगे मेरे

ये बढ़ती उमर का, है आलम अनूठा

यही सोचता हूँ, वो मेहमां हैं मेरे

करूँगा मैं मिन्नत, या मुझको बुला लो

ये दुनिया अनूठी, क्या अरमान तेरे

सजाया था घर को, समय आ गया है

गो छूटेगी काया, ओ रहमान मेरे

ये सर तेरी गोदी में, रखना मैं चाहूं

है ‘नायक’ की मर्जी, हे भगवान मेरे

© श्री अरविन्द मोहन नायक 

सम्पर्क : २०३ नेपियर ग्रैंड, होम साइंस कॉलेज के समीप, नेपियर टाऊन, जबलपुर म प्र – ४८२००१

मो  +९१ ९४२८० ०७५१८ ईमेल – [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #172 ☆ “संतोष के दोहे…” ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है – “संतोष के दोहे”. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 172 ☆

 ☆ “संतोष के दोहे…☆ श्री संतोष नेमा ☆

दिन-रात मेहनत करे, श्रम का लेता दाम

खून-पसीना बहाकर, करता अपने काम

जब तक देता साथ तन, परिश्रम करता रोज

इक दिन यदि आया नहीं, करे न कोई खोज

उसकी चाहत बस यही, भरे पेट दो जून

कभी -कभी तो खा रहा, साथ प्याज़ औ नून

जीवन में बस एक ही, उदर भरण का लक्ष्य

जिसकी खातिर रात-दिन, करता मुश्किल कृत्य

सुनता कौन गरीब की, करते सब उपयोग

नेता माँगे वोट बस, यहाँ मतलबी लोग

मजदूरों के नाम पर, बनीं योजना खूब

राहत पर मिलती नहीं, सुन सुन जाते ऊब

महल-अटारी बना कर, स्वयं खोजते छाँव

उनकी खातिर एक बस, वही पुराने गाँव

उनके दम से हो रहा, अब चहुँ ओर विकास

क्या मजदूरों की कभी, पूरन होगी आस

मजदूरों को हक़ मिले, चाहे यह संतोष

खुशियाँ उनके घर रहें, हो सब वांछित कोष

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – रक्तदान… ☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆

डॉ निशा अग्रवाल

☆ कविता – रक्तदान ☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆

(14 जून – विश्व रक्त दाता दिवस विशेष)

जब भी होती दुर्घटनाएं

मानव लहू लुहान हो जाता

रक्त का दरिया निकल शरीर से

सड़क पर यूं ही बहता जाता

 

कभी रोग लग जाते ऐसे

रक्त शरीर में कम हो जाता

चक्कर खाकर गिरता मानव

मिले रक्त जब चल पाता

 

जब आ जाता रक्षक कोई

कर्ण जैसा रक्त दाता कोई

कहता जान बचालो इसकी

मेरा रक्त इसे चढ़ा दो कोई

 

चढ़े रक्त जब मिले रक्त से

सांसें तब वापस आ जाती

जीवन का बस मोल बताकर

नव जीवन को पुलकित करती

 

रक्त दाता ही जीवन दाता

रक्त बैंक में जमा करवाता

पड़े जरूरत जब भी रक्त की

सभी ग्रुप का रक्त मिल जाता

 

रक्तदान से रक्त है बनता

रक्त संचरण नसों में रहता

ना ही होती कोई बीमारी

ना ही आती इससे कमजोरी

 

जब भी करनी हो जन सेवा

रक्त दान सब अवश्य कराएं

जीवन के इस महादान से

खुद को न कभी वंचित पाएं।

 

©  डॉ निशा अग्रवाल

(ब्यूरो चीफ ऑफ जयपुर ‘सच की दस्तक’ मासिक पत्रिका)

एजुकेशनिस्ट, स्क्रिप्ट राइटर, लेखिका, गायिका, कवियत्री

जयपुर ,राजस्थान

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विदेह ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – विदेह ??

बूझता हूँ पहेली-

कटोरे में कटोरा ;

पुत्र, पिता से गोरा,

भीतर झाँकता हूँ,

अपनी देह के भीतर

एक और देह पाता हूँ,

इस देह का भान

सांसारिक प्रश्नों को

कर देता है बौना,

अपनी आँख से

अपनी आँख में देखो,

देह से विदेह कर देता है

इस देह का होना…!

© संजय भारद्वाज 

रात्रि 3:22 बजे, 12 जुलाई 2021

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ आषाढ़ मास साधना- यह साधना आषाढ़ प्रतिपदा तदनुसार सोमवार 5 जून से आरम्भ होकर देवशयनी एकादशी गुरुवार 29 जून तक चलेगी। 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #2 ☆ कविता – “बेबस वन…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #2 ☆

 ☆ कविता ☆ “बेबस वन…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

वैसे तो मैं मायूस नहीं होता

बेबसी के वन से खफा नहीं होता

दर्द को जीतना जरूरी है

जीतकर भी हारना यहां का रिवाज़ है ।

 

दौर तो आयेंगे, दौर तो जाएंगे

मौसम भी कभी तो मिट जाएंगे

पहले मिटकर ही फिर बना हूं

मौसम सड़क का अभी भूला नहीं हूं ।

 

हां कभी कुछ पल आते है

जो बेहद बेबस करते है

इलाज उनके जानता हूं

दवा भी शौक से पीता  हूं ।

 

पत्थर दिल बनना पड़ता है

किलों से दिल को जोड़ना पड़ता है

गर बेबसी के वन में जिंदा रहना है

तो वनराज बनके ही रहना पड़ता है ।

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 164 ☆ बाल कविता – सुंदर नीड़ बनाती ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 131मौलिक पुस्तकें (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित तथा कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी संस्थान के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 164 ☆

☆ बाल कविता – सुंदर नीड़ बनाती ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

बुद्धिमान है बया चिरैया

मेहनत की है थाती।

तिनके – तिनके चुनकर लाए

सुंदर नीड़ बनाती।।

 

आँधी – बर्षा सब कुछ झेले

उसका नीड़ निराला।

लटका रहता लालटेन – सा

करता सदा उजाला।।

 

बुनकर को भी मात दे रही

प्यारी बया चिरइया।

जो देखे वह दंग रह जाए

करता था – था थइया।।

 

खुश रहे परिवार के सँग में

गीत खुशी के गाए।

जीवन जीना एक कला है

सबको पाठ पढ़ाए।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #186 – कविता – सशंकित नई पौध है… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय पर्यावरण विषयक कविता  “सशंकित नई पौध है)

☆  तन्मय साहित्य  #186 ☆

☆ सशंकित नई पौध है☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

अब विपक्ष का काम, सिर्फ करना विरोध है

साँच-झूठ की सोच, किसी को नहीं बोध है

दिखता है सबको, विरोध में राजयोग है।

 

वे कहते ही रहे हमेशा

अपने मन की

इन्हें फिक्र है अपने जन-धन

और स्वजन की

सत्ता लोलुपता से

दोनों संक्रमणित हैं,

भूले हैं दुख-व्यथा

निरीह आम जन-जन की

व्याधि यह असाध्य, जिसको भी लगा रोग है

दिखता है सबको विरोध में राजयोग है।…..

 

हाथों में दी रास, नियंत्रण को

इस रथ की

किंतु सारथी को ही नहीं पहचान

कंटकिय दुर्गम पथ की

वे फूले हैं, फहराने में

विजय पताका

इधर विरासत को लेकर

ये भ्रमित विगत की

जन मन है बेचैन सशंकित नई पौध है

दिखता है सबको विरोध में राजयोग है।…..

 

जो कुर्सी पर बैठे हैं

दिग्विजयी बनकर

दूजे भी हारे मन मारे घूम रहे हैं

यूँ ही तन कर

एक पूर्व इक वर्तमान

दोनों, कुर्सी के इच्छाधारी

आँखें बंद दिखे नहीं इनको

बेबस जनता की लाचारी

चले सियासत के हथकंडे, नए शोध हैं

दिखता है सबको विरोध में राजयोग है।…

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 11 ☆ … सूरज सगा कहाँ है? ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “सूरज सगा कहाँ है…?।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 11 ☆ यायावर यात्राएँ… सूरज सगा कहाँ है ? ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

घेर हमें अँधियारे बैठे

जाने कब होगा भुन्सारा

सूरज अपना सगा कहाँ है?

 

जले अधबुझे दिए लिए

अब भी चलती पगडंडी

सड़कें लील गईं खेतों को

फसल बिकी सब मंडी

 

गाँव गली आँगन चौबारा

निठुर दलिद्दर भगा कहाँ है?

 

रिश्ते गँधियाते हैं

संबंधों में धार नहीं है

मँझधारों में नैया

हाथों में पतवार नहीं है

 

डूब चुका है पुच्छल तारा

चाँद-चाँदनी पगा कहाँ है?

 

नहीं जागती हैं चौपालें

जगता है सन्नाटा

अपनेपन से ज़्यादा महँगा

हुआ दाल व आटा

 

कैसे होगा राम गुजारा

भाग अभी तक जगा कहाँ है?

          ***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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