हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #2 ☆ कविता – “बेबस वन…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #2 ☆

 ☆ कविता ☆ “बेबस वन…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

वैसे तो मैं मायूस नहीं होता

बेबसी के वन से खफा नहीं होता

दर्द को जीतना जरूरी है

जीतकर भी हारना यहां का रिवाज़ है ।

 

दौर तो आयेंगे, दौर तो जाएंगे

मौसम भी कभी तो मिट जाएंगे

पहले मिटकर ही फिर बना हूं

मौसम सड़क का अभी भूला नहीं हूं ।

 

हां कभी कुछ पल आते है

जो बेहद बेबस करते है

इलाज उनके जानता हूं

दवा भी शौक से पीता  हूं ।

 

पत्थर दिल बनना पड़ता है

किलों से दिल को जोड़ना पड़ता है

गर बेबसी के वन में जिंदा रहना है

तो वनराज बनके ही रहना पड़ता है ।

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 164 ☆ बाल कविता – सुंदर नीड़ बनाती ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 131मौलिक पुस्तकें (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित तथा कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी संस्थान के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 164 ☆

☆ बाल कविता – सुंदर नीड़ बनाती ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

बुद्धिमान है बया चिरैया

मेहनत की है थाती।

तिनके – तिनके चुनकर लाए

सुंदर नीड़ बनाती।।

 

आँधी – बर्षा सब कुछ झेले

उसका नीड़ निराला।

लटका रहता लालटेन – सा

करता सदा उजाला।।

 

बुनकर को भी मात दे रही

प्यारी बया चिरइया।

जो देखे वह दंग रह जाए

करता था – था थइया।।

 

खुश रहे परिवार के सँग में

गीत खुशी के गाए।

जीवन जीना एक कला है

सबको पाठ पढ़ाए।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #186 – कविता – सशंकित नई पौध है… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय पर्यावरण विषयक कविता  “सशंकित नई पौध है)

☆  तन्मय साहित्य  #186 ☆

☆ सशंकित नई पौध है☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

अब विपक्ष का काम, सिर्फ करना विरोध है

साँच-झूठ की सोच, किसी को नहीं बोध है

दिखता है सबको, विरोध में राजयोग है।

 

वे कहते ही रहे हमेशा

अपने मन की

इन्हें फिक्र है अपने जन-धन

और स्वजन की

सत्ता लोलुपता से

दोनों संक्रमणित हैं,

भूले हैं दुख-व्यथा

निरीह आम जन-जन की

व्याधि यह असाध्य, जिसको भी लगा रोग है

दिखता है सबको विरोध में राजयोग है।…..

 

हाथों में दी रास, नियंत्रण को

इस रथ की

किंतु सारथी को ही नहीं पहचान

कंटकिय दुर्गम पथ की

वे फूले हैं, फहराने में

विजय पताका

इधर विरासत को लेकर

ये भ्रमित विगत की

जन मन है बेचैन सशंकित नई पौध है

दिखता है सबको विरोध में राजयोग है।…..

 

जो कुर्सी पर बैठे हैं

दिग्विजयी बनकर

दूजे भी हारे मन मारे घूम रहे हैं

यूँ ही तन कर

एक पूर्व इक वर्तमान

दोनों, कुर्सी के इच्छाधारी

आँखें बंद दिखे नहीं इनको

बेबस जनता की लाचारी

चले सियासत के हथकंडे, नए शोध हैं

दिखता है सबको विरोध में राजयोग है।…

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 11 ☆ … सूरज सगा कहाँ है? ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “सूरज सगा कहाँ है…?।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 11 ☆ यायावर यात्राएँ… सूरज सगा कहाँ है ? ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

घेर हमें अँधियारे बैठे

जाने कब होगा भुन्सारा

सूरज अपना सगा कहाँ है?

 

जले अधबुझे दिए लिए

अब भी चलती पगडंडी

सड़कें लील गईं खेतों को

फसल बिकी सब मंडी

 

गाँव गली आँगन चौबारा

निठुर दलिद्दर भगा कहाँ है?

 

रिश्ते गँधियाते हैं

संबंधों में धार नहीं है

मँझधारों में नैया

हाथों में पतवार नहीं है

 

डूब चुका है पुच्छल तारा

चाँद-चाँदनी पगा कहाँ है?

 

नहीं जागती हैं चौपालें

जगता है सन्नाटा

अपनेपन से ज़्यादा महँगा

हुआ दाल व आटा

 

कैसे होगा राम गुजारा

भाग अभी तक जगा कहाँ है?

          ***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ एक प्रेम कहानी… ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम् ☆

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आई आई एम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। आप सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत थे साथ ही आप विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में भी शामिल थे।)

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी ने अपने प्रवीन  ‘आफ़ताब’ उपनाम से  अप्रतिम साहित्य की रचना की है। आज प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम भावप्रवण रचना “एक प्रेम कहानी…  

? एक प्रेम कहानी… ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम् ☆ ?

मौन के विशाल सिंहासन पर विराजमान

वो अनकहे शब्द, जो हमारी खामोशियां

कभी बोल तक न सकीं…

वो अनछुए जज़्बात, जिन्हें हमारी आँख

कभी बयां न कर पाईं…

प्रेम-छंदें, जो हमारे दिलों की आवाजें थीं,

एक साथ गुनगुना भी न पाईं…

लहराती धड़कनें फिर कभी दिलों को

करीब से कभी छू भी न पाईं…

उन अनकही, अनसुनी अनुभूतियों का

अहसास तक भी न कर पाईं…

हमारे बीच हमेशा रहीं संवेदनाएं

कभी संवाद भी न कर पाईं…

 

आओ, उन भावनाओं  को

आत्मा से संवाद करने दें

आत्माओं को प्रेमावेश के 

आवेग के सामने झुक जाने दें

हमारी इस  अनोखी अनकही

प्रेम कहानी को सदा सर्वदा के

लिए अजर अमर हो जाने दें..!

~ प्रवीन रघुवंशी ‘आफताब’

© कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

पुणे

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 67 ☆ ग़ज़ल – लौट आओ साजन… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है पर्यावरण दिवस पर आपकी एक भावप्रवण ग़ज़ल लौट आओ साजन…

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 67 ✒️

?  ग़ज़ल – लौट आओ साजन… ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

तन्हा रातें गुज़ारीं ,

करवट बदल – बदल के ।

अब लौट आओ साजन ,

क़हक़शां पे चलके ।।

ताउम्र साथ मेरा ,

तुमने निभाया होता ।

मझधार में छोड़ा ,

क्या हाल होंगे कल के ।।

तन्हा —————–

तुमको हो मुबारक ,

ख़ुदा का प्यारा होना ।

आऊंगी पास तेरे ,

एक दिन साथ अजल के

तन्हा —————–

तेरी सलामती की ,

मांगी हज़ार दुआएं ।

रह गए हो हमदम ,

तस्वीर में बदल के ।।

तन्हा —————–

बन जाए ना तमाशा ,

मेरी मोहब्बत का ।

ख़ामोश हुए अल्फ़ाज़ ,

सलमा की ग़ज़ल के ।।

तन्हा —————–

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 07 – कथा लिखी  बदहाली की… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – कथा लिखी  बदहाली की।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 07 – कथा लिखी  बदहाली की… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

पीड़ा का अध्याय जुड़ा क्‍यों

पुस्तक में खुशहाली की

 

जहाँ चाँद का चित्र बनाया

तारक दल का वहीं घनेरा

नभ पर शुभग वितान तना था

राहु-केतु से उल्‍का दल ने

पल में यूँ आतंक मचाया

फैली खूनी लाली थी

 

बन्द हुआ परियों का नर्तन

तम्बू उखड़ गये उत्सव के

हुआ दृश्य का यूँ परिवर्तन

महारास रूक गया अचानक

पल-भर में अंधियारा छाया

दुख की छाया काली थी

 

रक्त रंजिता हुई दिशाएँ.

ऐसी रात पिशाचिन आयी

अग्निबाण छोड़ें उल्काएँ

बहके अश्व विकास मार्ग से

चकनाचूर स्वप्न कर डाले

   कथा लिखी बदहाली की

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 84 – सजल – अग्नि सदा देती है आँच… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “सजल – अग्नि सदा देती है आँच…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 84 – सजल – अग्नि सदा देती है आँच… ☆

अग्नि सदा देती है आँच ।

ज्ञानी तू, पुस्तक को बाँच।।

 

देख-सम्हल कर, चलें सभी,

राहों में बिखरे हैं, काँच।

 

क्यों करता तन पर अभिमान

ईश्वर करता सबकी जाँच।

 

नाच न आए आँगन टेढ़ा,

जीवन में तुम बोलो साँच।

 

उमर बढ़ी चलो सम्हल कर,

कभी न पथ पर भरो कुलाँच

 ©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – भेड़िया ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – भेड़िया ??

भेड़िया उठा ले गया

झाड़ी की ओट में,

बर्बरता से उसका

अंग-प्रत्यंग भक्षण किया,

कुछ दिन बाद

देह का सड़ा-गला

अवशेष बरामद हुआ,

भेड़ियों का ग्राफ

निरंतर बढ़ता गया,

फिर यकायक

दुर्लभ होते प्राणियों में

भेड़िये का नाम पाकर

मेरा माथा ठनक गया,

अध्ययन से यह

तथ्य स्पष्ट हुआ,

चौपाये भेड़िये

जिस गति से घट रहे हैं,

दोपाये भेड़िये

उससे कई गुना अधिक

गति से बढ़ रहे हैं…!

© संजय भारद्वाज 

(प्रातः 3.45 बजे, 26.4.2019)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ आषाढ़ मास साधना- यह साधना आषाढ़ प्रतिपदा तदनुसार सोमवार 5 जून से आरम्भ होकर देवशयनी एकादशी गुरुवार 29 जून तक चलेगी। 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 142 – वशीकरण है तेरा… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – वशीकरण है तेरा।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 143 – वशीकरण है तेरा…  ✍

वशीकरण है तेरा, शरणागत मन मेरा।

 

लम्बी गहरी मरूस्थली में

भटक भटक भरमाया

जाने किसकी पुण्यप्रभा से

हरित भूमि को पाया

आनत हूँ आश्चर्यचकित हूँ, किसने दिया बसेरा।

 

धूल धूसरिता रही ज़िन्दगी

एक रंग था काला

मुझको कुछ भी पता नहीं था

कैसा है उजियाला।

दिव्य ज्योति अम्बर से उतरी, नूतन दृश्य उकेरा।

 

महक उठा है मन में मधुवन

अद्भुत रास रचा है

वेणुगीत सा जीवन लगता

या फिर वेद ऋचा है।

संभव हुआ असंभव कैसे, निश्चय जादू तेरा।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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