हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 07 – कथा लिखी  बदहाली की… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – कथा लिखी  बदहाली की।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 07 – कथा लिखी  बदहाली की… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

पीड़ा का अध्याय जुड़ा क्‍यों

पुस्तक में खुशहाली की

 

जहाँ चाँद का चित्र बनाया

तारक दल का वहीं घनेरा

नभ पर शुभग वितान तना था

राहु-केतु से उल्‍का दल ने

पल में यूँ आतंक मचाया

फैली खूनी लाली थी

 

बन्द हुआ परियों का नर्तन

तम्बू उखड़ गये उत्सव के

हुआ दृश्य का यूँ परिवर्तन

महारास रूक गया अचानक

पल-भर में अंधियारा छाया

दुख की छाया काली थी

 

रक्त रंजिता हुई दिशाएँ.

ऐसी रात पिशाचिन आयी

अग्निबाण छोड़ें उल्काएँ

बहके अश्व विकास मार्ग से

चकनाचूर स्वप्न कर डाले

   कथा लिखी बदहाली की

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 84 – सजल – अग्नि सदा देती है आँच… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “सजल – अग्नि सदा देती है आँच…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 84 – सजल – अग्नि सदा देती है आँच… ☆

अग्नि सदा देती है आँच ।

ज्ञानी तू, पुस्तक को बाँच।।

 

देख-सम्हल कर, चलें सभी,

राहों में बिखरे हैं, काँच।

 

क्यों करता तन पर अभिमान

ईश्वर करता सबकी जाँच।

 

नाच न आए आँगन टेढ़ा,

जीवन में तुम बोलो साँच।

 

उमर बढ़ी चलो सम्हल कर,

कभी न पथ पर भरो कुलाँच

 ©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – भेड़िया ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – भेड़िया ??

भेड़िया उठा ले गया

झाड़ी की ओट में,

बर्बरता से उसका

अंग-प्रत्यंग भक्षण किया,

कुछ दिन बाद

देह का सड़ा-गला

अवशेष बरामद हुआ,

भेड़ियों का ग्राफ

निरंतर बढ़ता गया,

फिर यकायक

दुर्लभ होते प्राणियों में

भेड़िये का नाम पाकर

मेरा माथा ठनक गया,

अध्ययन से यह

तथ्य स्पष्ट हुआ,

चौपाये भेड़िये

जिस गति से घट रहे हैं,

दोपाये भेड़िये

उससे कई गुना अधिक

गति से बढ़ रहे हैं…!

© संजय भारद्वाज 

(प्रातः 3.45 बजे, 26.4.2019)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ आषाढ़ मास साधना- यह साधना आषाढ़ प्रतिपदा तदनुसार सोमवार 5 जून से आरम्भ होकर देवशयनी एकादशी गुरुवार 29 जून तक चलेगी। 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 142 – वशीकरण है तेरा… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – वशीकरण है तेरा।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 143 – वशीकरण है तेरा…  ✍

वशीकरण है तेरा, शरणागत मन मेरा।

 

लम्बी गहरी मरूस्थली में

भटक भटक भरमाया

जाने किसकी पुण्यप्रभा से

हरित भूमि को पाया

आनत हूँ आश्चर्यचकित हूँ, किसने दिया बसेरा।

 

धूल धूसरिता रही ज़िन्दगी

एक रंग था काला

मुझको कुछ भी पता नहीं था

कैसा है उजियाला।

दिव्य ज्योति अम्बर से उतरी, नूतन दृश्य उकेरा।

 

महक उठा है मन में मधुवन

अद्भुत रास रचा है

वेणुगीत सा जीवन लगता

या फिर वेद ऋचा है।

संभव हुआ असंभव कैसे, निश्चय जादू तेरा।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 142 – “हुआ उड़ानों में कपोत…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है  आपका एक अभिनव गीत  “हुआ उड़ानों में कपोत)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 142 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

हुआ उड़ानों में कपोत ☆

निर्धनता व भूख दिखाती

जहा जुगलबंदी

उस घर का बूढ़ा मालिक

है अपना रमचंदी

 

मामूली है नहीं पाँच जन का

पालन पोषण

उसी गाँव में जहाँ चौधरी

करता हो शोषण

 

बना नसेनी एक अकेला

है पहाड चढ़ता

कमर हुई है दोहरी

कम न हो पायी दृढ़ता

 

कुचले हैं अरमान जहाँ-

उसके, अपनों ने भी

विवश थका हारा

समेटता है चिन्दी चिन्दी

 

हुआ उड़ानों में कपोत

सा सपनों से बाहर

पता नहीं वह कौन

दिलासा देगा जोआकर

 

इस हिसाब से डरी हुई

हैं घर की स्थितियाँ

क्या गरीब का सामं-

जस्य , रही क्या गतिविधियाँ

 

खोज रहा उल्लास

शिथिल पत्नी के माथे पर

सहमी सहमी लगी जहाँ

पर कुंकुम की बिन्दी

 

एक हाथ में ले अनाज

दूजे में व्यथा कथा

झुकी पीठ पर लाद चला

रमचंदी वही प्रथा

 

पिसवाना है इसे साव की

आटा चक्की पर

पत्नी खुश होगी भोजन की

बडी तरक्की पर

 

पढ़ा लिखा था नहीं

जान न पाया ‘शोषण की

सरल लिपी में लिखी गई

यह गहन कठिन हिन्दी

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

10-06-2023

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अलार्म ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि –  अलार्म ??

बतियाने के लिए

अब बचा नहीं

किसीके पास समय,

यूँ ही अकारण

हँसने-हँसाने के लिए

अब बचा नहीं

किसीके पास समय,

बातों में अब

होती है मार्केटिंग,

प्रचार, प्रसार,

विस्तार, व्यापार,

आजीविका के लिए

व्यापार करना

प्राकृतिक धर्म होता है,

पर आदमी का

व्यापारी भर रह जाना

संकट का अलार्म होता है…!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ आषाढ़ मास साधना- यह साधना आषाढ़ प्रतिपदा तदनुसार सोमवार 5 जून से आरम्भ होकर देवशयनी एकादशी गुरुवार 29 जून तक चलेगी। 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ घनश्याम जी के दोहे – “पहली बरसात” ☆ श्री घनश्याम अग्रवाल ☆

श्री घनश्याम अग्रवाल

 

☆ घनश्याम जी के दोहे – “पहली बरसात” ☆ श्री घनश्याम अग्रवाल

मौका अच्छा हाथ मेँ, सोच रहा है चोर।

सोया थानेदार है, और घटा घनघोर ॥

(चोरोँ को पहली बरसात मुबारक )

कुछ के तो छप्पर उडे, कुछ के बहे मकान।

तब जाकर उनकी बनी, कोठी आलीशान ॥

(महाचोरोँ को भी पहली बरसात मुबारक)

चालाकी का फायदा, उठा रहें हैं आज ।

दुगुने दामों बेचते, भीगा हुआ अनाज ।।

(जमाखोरों को पहली बरसात मुबारक)

बेबस हो लुटती रही, चीख गई बेकार ।
शोर बादलों का घना, टूटे बिजली तार ।।

(हरामखोरों को भी पहली बरसात मुबारक)

(मित्रो, रचना और रचनाकार का संबंध माँ और बच्चे सा होता है। बिना नाम के शेयर करने का पाप न करें।)

© श्री घनश्याम अग्रवाल

(हास्य-व्यंग्य कवि)

094228 60199

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 134 ☆ # ठहाके लगाओ दोस्तों… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# ठहाके लगाओ दोस्तों… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 134 ☆

☆ # ठहाके लगाओ दोस्तों… # ☆ 

जिंदगी के दो पल मिले हैं

गुनगुनाओ दोस्तों

बीत गया उसे भूल जाओ

ठहाके लगाओ दोस्तों

 

जो करना था हमने किया

हर लम्हा जी भरकर जिया

कभी फूलों में मशरूफ रहे

कभी कांटों का जहर पिया

फूलों का रस पीकर

भंवरे सा मुस्कुराओ दोस्तों

 

कौन कहता है बुढ़े हो गये

कौन ये झूठे किस्से गढ़ रहा है

चढ़ती उमर का नशा है भाई

धीरे-धीरे चढ़ रहा है

पहन कर बरमोड़ा, टी-शर्ट

दौड़ लगाओ दोस्तों

 

शाम को पत्नी के संग

नियमित सैर करा करो

एकांत में हाथों में हाथ धरे

आंखें चार किया करो

छोड़ कर शर्मो हया

पत्नी पर प्यार लुटाओ दोस्तों

 

दोस्तों की महफ़िल सजाओ

खूब ऐश किया करो

एक दो पेग लेकर

चुटकुले पेश किया करो

पेंशन तुम्हारी है

खुद पर उड़ाओ दोस्तों

 

दुनिया की चिंता मत करो

कि किसने पीछे क्या कहा ?

सब मतलब के मारे हैं

हमने तो हर पल यही सहा

दुनिया को आंखें मूंदकर

ठोकर लगाओ दोस्तों

 

ना किसी की चिन्ता

ना अब किसी का डर है

मृत्यु तो अटल है

यहां कौन है जो अमर है

जो दिल में उतर जाये

उससे प्रीत लगाओ दोस्तों /

 

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 143 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media# 143 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 143) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 143 ?

☆☆☆☆☆

हमने तो शिद्दत से सज़दे

किये थे तेरे दर पे,

क्या  ख़बर  थी कि हर

बुत ख़ुदा नहीं होता…

☆☆ 

I kept worshipping at your

doorstep with great devotion,

Never did I know that

not every idol is the God…

☆☆☆☆☆

कसमों के, वादों के बहुत देख

लिए हमने अय्यारी भरे रंग

है क्या कोई इतना अपना जो

अँधेरों को गले लगा बैठे मेरे संग..!

☆☆☆ 

I’ve seen many a shade and

colours of oath and promise

Is there anyone who could be

embracing me sans disguise..!

☆☆☆☆☆

न जाने किस बात का गुरूर है उस मगरूर को,

हंस कर हर बात मेरी उड़ा देता है वो

बड़ी मशक्कतों से सुलझाते हैं हम खुद को, मगर

रोज़ एक नई मुश्किल में डाल देता है वो…!

☆☆☆ 

Knoweth not what arrogance that egoist has,

He laughs off at my every advice sarcastically

I resolve my problems with great difficulty, but

Every day he puts me in a new a trouble…!

☆☆☆☆☆

टिके हैं यकीन के धागों

पर जो रिश्ते,

भूल कर भी उन्हें कभी

उलझने मत देना…!

☆☆☆ 

Relationship that rests on

the thread of faith and trust

Don’t ever let them get

entangled even by mistake…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #193 – 79 – “दरिया ए इश्क़ में…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “दरिया ए इश्क़ में…”)

? ग़ज़ल # 79 – “दरिया ए इश्क़ में…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

चार दिन की ज़िंदगी में दो दिन प्यार के,

मुसलसल इम्तहान चल रहे जीत हार के।

नाव मेरी है भंवर में  ना कोई नाख़ुदा,

है भरोसा पार होगी ये बिन पतवार के।

एक झलक पर मर मिटा दिवाना आशिक़,

हैं कई परवाने उस महताब ए रूखसार के।

कड़कड़ाती ठंड में उनकी मुहब्बत का असर,

कंबल सी मुलायम गर्मी देते पहलू यार के।

दरिया ए इश्क़ में हम गहरे उतरते चले गए,

अब भँवर में है सफ़ीना जज़्बाती अदाकार के।

इक दिया देहरी पे अब भी जल रहा उम्मीद का,

दिन ज़रूर बदलेंगे बारिश में खस ओ खार के।

आतिश अब तुम पर ख़ुदा तक का साया नहीं,

ज़िंदगी जी नहीं जाती बिना किसी दिलदार के।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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