हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अवसरवाद ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – अवसरवाद ??

बित्ता भर करता हूँ,

गज भर बताता हूँ,

नगण्य का अनगिन करता हूँ,

जब कभी मैं दाता होता हूँ..,

 

सूत्र उलट देता हूँ,

बेशुमार हथियाता हूँ,

कमी का रोना रोता हूँ,

जब कभी मैं मँगता होता हूँ..,

 

धर्म, नैतिकता, सदाचार,

सारा कुछ दुय्यम बना रहा,

आदमी का मुखौटा जड़े पाखंड

दुनिया में अव्वल बना रहा..!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना संपन्न हुई साथ ही आपदां अपहर्तारं के तीन वर्ष पूर्ण हुए 🕉️

💥 अगली साधना की जानकारी शीघ्र ही आपको दी जाएगी💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #184 ☆ भावना की कुंडलियाँ… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  “भावना की कुंडलियाँ…।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 184 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना की कुंडलियाँ… ☆

मन की आंखों में बसा, बस तेरा ही प्यार।

देख तुझे पढ़ने लगे, आँखों का अखबार।।

आँखों का अखबार, पढ़ें फिर तुमको जानें।

मन ही मन में ठान, बात दिल की पहचानें।।

कहे भावना बात, सुनी बातें सब जन की।

तुम हो मेरी जान, बात कहता हूँ मन की।।

दिल से ही कहने लगी, धड़कन  दिल का हाल।

मन बेकाबू हो रहा, मिलने को तत्काल।।

मिलने को तत्काल, सनम तुम  आओ कैसे।

लिया तुम्हें है जान, नहीं हो  सपने जैसे।।

कहे भावना बात, रोज ये दिल की तुमसे ।

मन की मन से जान, बात कहते हैं दिलसे।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #170 ☆ “एक पूर्णिका … बेटा” ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है – एक पूर्णिका … बेटा”. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 170 ☆

 ☆ “एक पूर्णिका … बेटा☆ श्री संतोष नेमा ☆

बात  हमारी  मान  लो  बेटा

लोगों कों  पहचान लो  बेटा

कौन है अपना कौन  पराया

अपने  से  ही जान लो  बेटा

बड़े- बूढ़ों की बात सुनो  तुम

गाँठ  बड़ी  सी बाँध लो  बेटा

राह  धर्म  की  चलना  हरदम

दिल में अब यह ठान लो बेटा

काम-क्रोध मद लोभ से बचना

अपने  मन  में  आन  लो  बेटा

सोच-समझ  कर बोलो हमेशा

मुख  में  मीठी  जुवान लो बेटा

खूब  करो  माँ-बाप  की   सेवा

कर्मों    पर   संज्ञान   लो   बेटा

सपने  सभी  साकार  करो  तुम

ऐसी   ऊँची   उड़ान   लो   बेटा

पाना   यदि   “संतोष”. तुम्हें   है

हाथ  में  काम  महान  लो   बेटा

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “साथ तुम्हारा…” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ गीत – “साथ तुम्हारा…☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

हर पल साथ तुम्हारा हो, तेरा मुझे सहारा हो।

तुमसे बढ़कर और नहीं, तुझ तक जीवन सारा हो।।

 

मेरे प्रियवर, मेरे साथी,

चाहत है बस तेरी

तुझ तक सीमित मेरा जीवन,

और भावना मेरी

हर पल साथ तुम्हारा हो, बस तुझ पर दिल हारा हो।

हर पल साथ तुम्हारा हो, तेरा मुझे सहारा हो।।

 

गहन तिमिर में तू उजियारा,

है वसंत की बेला

तू केवल लगती मलयानिल,

दुनिया जगे झमेला

पास रहे तू हर पल मेरे, वरना दिल बेचारा हो।

हर पल साथ तुम्हारा हो, तेरा मुझे सहारा हो।।

 

तू जीवन की धवल चाँदनी,

सुखद एक अहसास

सभी ओर तो रोदन दिखता,

तू केवल विश्वास

सूरज-चाँद उगें जीवन में , सब कुछ तुझ पर वारा हो।

हर पल साथ तुम्हारा हो, तेरा मुझे सहारा हो।।

 

भजन-आरती तुझमें दिखते,

गुरुवाणी का गायन

परभाती की रौनक तुझमें,

राम-राम अभिवादन

पूरणमासी प्यार तुम्हारा, बहती गंगा धारा हो।

हर पल साथ तुम्हारा हो, तेरा मुझे सहारा हो।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आमरण ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – आमरण ??

दो समूहों के बीच

वाद-विवाद,

मार-पीट,

दंगा-फसाद,

फिर सुना-

बीच बचाव करनेवाला

निर्दोष मारा गया

दोनों तरफ के

सामूहिक हमले में..,

सोचता हूँ

यों कब तक

रोज़ मरता रहूँगा मैं..?

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना संपन्न हुई साथ ही आपदां अपहर्तारं के तीन वर्ष पूर्ण हुए 🕉️

💥 अगली साधना की जानकारी शीघ्र ही आपको दी जाएगी💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 162 ☆ बाल कविता – सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 131मौलिक पुस्तकें (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित तथा कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी संस्थान के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 162 ☆

☆ बाल कविता – सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

राधाकृष्णन थे गुरू, अदभुत उन का ज्ञान।

पाँच सितंबर जन्मदिन, करे देश सम्मान।।

 

श्रेष्ठ विचारक, वक्ता, रखा दार्शनिक ज्ञान।

उत्कृष्ट लेखनी से बने, मानव एक महान।।

 

ईश्वर के प्रिय भक्त थे, बाँटा जग को प्यार।

सत्य बोलकर ही सदा, कभी न मानी हार।।

 

शिक्षक बनकर देश का, सदा बढ़ाया मान।

किया समर्पित स्वयं को, बाँटा सबको ज्ञान।।

 

प्रतिभा की सदमूर्ति थे, नहीं किया अभियान।

सदा पुण्य करते रहे, और बढ़ाई शान।।

 

लड़े सदा अज्ञान से, किया दूर अँधकार।

मिटा कुरीति ज्ञान से, किया सदा उद्धार।।

 

खुशी, प्रेम सत बाँटकर, करें सभी हम याद।

सर्वपल्ली राधाकृष्णन, सदा रहे निर्विवाद।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #184 – कविता – जब से ताबीज़ गले में बाँधा… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता  “जब से ताबीज़ गले में बाँधा…”)

☆  तन्मय साहित्य  #184 ☆

☆ जब से ताबीज़ गले में बाँधा… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

वो बात साफ साफ कहता है   

जैसे नदिया का नीर बहता है।

 

अड़चनें राह में आये जितनी

मुस्कुराते हुए वो सहता है।

 

अपने दुख दर्द यूँ सहजता से

हर किसी से नहीं वो कहता है।

 

हर समय सोच के समन्दर में

डूबकर खुद में मगन रहता है।

 

बसन्त में बसन्त सा रहता

पतझड़ों में भी सदा महका है।

 

इतनी गहराईयों में रहकर भी

पारदर्शी सहज सतह सा है।

 

शीत से काँपती हवाओं में

जेठ सा रैन-दिवस दहता है।

 

जब से ताबीज़ गले में बाँधा

उसी दिन से वो शख्स बहका है।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 09 ☆ देव सभी पत्थर हैं… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “देव सभी पत्थर हैं।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 09 ☆ देव सभी पत्थर हैं… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

शहर गाँव

बस्ती सब जंगल है

लगता है

डर अपने आप से।

 

मन जब

शिकारी का होता है

एक अजब

पागलपन ढोता है

मृगतृष्णा

का मारा ये जीवन

कस्तूरी

उम्र व्यर्थ खोता है

 

झूठ जहाँ

सत्य की नक़ल है

पुते हुए

चेहरे हैं पाप से।

 

अर्थहीन

आदमी की प्रज्ञा है

नपुंसक

विचारों की संज्ञा है

शब्द-शब्द

रक्त में नहाया है

परिभाषित

होना अवज्ञा है

 

आदमी से

आदमी सबल है

देव सभी

पत्थर हैं शाप से।

          ***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ ‘कवि …’ श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Poet…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem ~ कवि ~.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना

? संजय दृष्टि – कवि ??

विशेषज्ञ हूँ,

तीन भुजाएँ खींचता हूँ,

तीन कोण बनाता हूँ,

तब त्रिभुज नाम दे पाता हूँ..,

तुम क्या करते हो कविवर?

विशेष कुछ नहीं,

बस, त्रिभुज में

चौथा कोण देख पाता हूँ..!

© संजय भारद्वाज 

मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

? ~ Poet ??

I am an expert

I draw three sides

make three angles

Then I name it a triangle..,

And, what do you do, Mr Poet?

Nothing special,

Just in that triangle

I’m able to see

the fourth angle..!

~Pravin

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 05 – आँखों ने ओढ़ी बेशर्मी… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – आँखों ने ओढ़ी बेशर्मी।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 05 – आँखों ने ओढ़ी बेशर्मी… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

झूले नहीं दिखाई देते

      बूढ़े वट की डाल पर

 

आँखों से ओझल हरियाली

दुर्लभ छटा लुभाने वाली

हमने सघन वृक्ष सब काटे

अब पड़ते सूरज के चाँटे

तृष्णा का बाजार यहाँ

      अब रहता सदा उबाल पर

 

आहत मर्यादा पुस्तैनी

हुई स्वार्थ की जिव्हा पैनी

नये खून में है हठधर्मी

आँखों ने ओढ़ी बेशर्मी

अब पूजन में नहीं बैठती

      बहुएँ पल्‍लू डालकर

 

रिश्ते-नाते दागदार हैं

बस आडम्बर झागदार हैं

हुई अमर्यादित चंचलता

है उफान पर उच्शृंखलता 

वैभव के कपसीले सपने

      रखे निरर्थक पालकर

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares