हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 139 – आकर ऐसे चले गये… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – आकर ऐसे चले गये।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 139 – आकर ऐसे चले गये…  ✍

आकर ऐसे चले गये तुम

ज्यों बहार का झोका

मत जाओ प्रिय, रुक जाओ प्रिय

मैंने कितना रोका।

 

मैं बैठा था असुध अकेला

दी आवाज सुनाई,

जैसे गहरे अंधकूप में

किरन उतरती आई।

रोम रोम हो गया तरंगित, लेकिन मन ने टोका।

 

तुम आये तो विहँस उठा मैं

आँख अश्रु से घोई

जैसे कोई पा जाता है

वस्तु पुरानी खोई ।

मिलन बना पर्याय विरह का, मिलन रहा बस धोखा।

 

जाना दिखता पर्वत जैसा

धीरज जैसे राई

इतना ही संतोष शेष है

केवट की उतराई ।

आश्वासन जो दिया गया है, बार बार वह धोखा।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 138 – “नियत तिथी की तैयारी में…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है  आपका एक अभिनव गीत  नियत तिथी की तैयारी में)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 138 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

नियत तिथी की तैयारी में 

आँखों भरे उजास

खीर पूड़ी का स्वप्न नया

पिण्डदान के लिये

रामजस परसों गया, गया

 

लौट बाप की बरसी का

वह पुण्य लाभ लेगा

कुछ ज्यादा होगा कर्जा

पर फर्ज चुका देगा

 

राम रतन ने अपने

दद्दा की तेरहवीं में

मालपुये खिलवाये घी

के खालिश, तसमई में

 

इस विचार को लिये

रामजस बैठा गाड़ी में

नाम कमाना भी आवश्यक

जीवन में कृपया

 

फिर उधेडबुन को

सुलझाता पहुँचा बनियेके

बडी आरजू मिन्नत से

समझा पाया वह, ये –

 

एक एक पैसा चुकता

कर दूँगा मैं तेरा

खडी फसल है गेहूँ की

कर तू यकीन मेरा

 

कर्जे का मिलना भी तो है

एक बड़ी राहत

जब कि फँसा लोगों को

बनिया करता है, मृगया

 

नियत तिथी की तैयारी में

जुटा समूचा घर

क्या , कैसा, होना होगा

अच्छा, इस मौके पर

 

इधर गाँव के लोग कर्ज के

धन पर ध्यान रखे

और कल्पनाओं में सब

डूबे मशगूल दिखे

 

लोगों ने तय किया

रामजस का कर्जे का धन

सारा खर्चा जाये जिसमें

बचे न  इक रुपया

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

11-05-2023

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कविता ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – कविता ??

चलो

कुछ न करें

और रचें एक कविता…

 

सुनो,

कुछ न करने से

क्या रची जा सकती है

एक कविता..?

 

भगीरथ के

अथक परिश्रम से

पृथ्वी पर उतरी थी गंगा,

साठ हजार कुदालों के

स्वेद-कणों से

धारा बन बही थी गंगा,

अनुभूति की निर्मल

भगीरथी जब

सरस्वती होती है,

कविता

मन-मस्तिष्क से

कागज़ पर

अवतरित होती है…

 

कविता

कर्मठता की उपज है,

कर्म, निरीक्षण

और

चिंतन-मनन की समझ है,

तो फिर तुम्हीं कहो

कुछ न करते हुए

कैसे रची जा सकती है

एक कविता..?

 

और सुनो-

बिना अनुभव के

कैसी पढ़ी और समझी

जा सकती है कविता..?

© संजय भारद्वाज 

(गुरुवार दि. 2 जून 2016, संध्या 7:10 बजे)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक।

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 129 ☆ # हमने साथ साथ… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# हमने साथ साथ… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 129 ☆

☆ # हमने साथ साथ… # ☆ 

हमने गुजारा है

यह वक्त साथ साथ

वक्त के थपेड़ो को

झेला है साथ साथ

 

तूफानों ने कोई

कसर नही छोड़ी

जब भी मौका मिला

कश्ती मेरी तोड़ी

हमने बनाया है

नयी कश्ती को साथ साथ

 

एक वक्त ऐसा आया

अपनों ने साथ छोड़ा

सुनहरे सपनों को

बेरहमी से तोड़ा

हमने नये सपनों को

फिर देखा है साथ साथ

 

जिन पौधों को लगाया था

कि खिलेंगे फूल यहां

वो खुशबू बिखेरेंगे, महकेंगे

गुलशन में वहां

हमें कांटे मिले, जिसे चुना है

हमने साथ साथ

 

खुशियां उधार की

जमाने में बहुत मिली

उनकी उमर छोटी थी

कुछ देर तक चली

खुशियां ढूंढते रहे

हम जीवन भर साथ साथ

 

यह रिश्ते नाते, दिखावे का प्यार

एक खूबसूरत भरम है

बुजुर्ग मां-बाप, एक बोझ है

कहते बेशरम है

पति पत्नी का रिश्ता अटूट है

जो हम निभा रहे हैं साथ साथ/

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 139 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media# 139 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 139) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 139 ?

☆☆☆☆☆

☆ Language of Silence 

☆☆☆

खामोशियों की भी एक

अपनी ज़ुबान होती है

मगर बातें भी सबसे ज्यादा

दो चुप लोगों में होती हैं।

☆ ☆

 Even the silence has its

own expressive language

Most intent talks happen

between two silent people.

☆☆☆☆☆

बिखर गये सब ख्वाब मेरे

बन  के  चुनिंदा अलफ़ाज़…

एहसास तेरा वो हकीक़त बन

मन में यूंही सिमट कर रह गया…

☆ ☆

By turning into few words,

all my dreams got scattered…

Yet your feelings remained

confined in mind, as a reality

 ☆☆☆☆☆

तुमसे  जुड़े  हुए  एहसास

मेरे लिए बहुत खास होते हैं,

क्योंकि उन अहसासो में

हम बिल्कुल तेरे पास होते हैं…

☆ ☆

Feelings linked with you

are very special to me,

Because in those feelings

I’m totally with you only…

☆☆☆☆☆

मैं  तेरे  बाद  कोई

तेरे  जैसा  ढूँढता हूँ,

जो बेवफ़ाई तो  करे

मगर  बेवफ़ा न लगे…

☆ ☆

After you, I look for

someone like you only

Who is unfaithful but

doesn’t look disloyal

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – लघुकथा ☆ कविता ☆ मातृ दिवस विशेष – “माँ और बच्चा” ☆ श्री घनश्याम अग्रवाल ☆

श्री घनश्याम अग्रवाल

 

☆ मातृ दिवस विशेष – “माँ और बच्चा” ☆ श्री घनश्याम अग्रवाल

(“कि मैं जिन्दा हूँ अभी :- मेरी माँ और सरस्वती माँ, दोनों माँओं ने मुझसे कहा – “बेटे, जब तूने कलम छू ही लिया है, तो सदा सच ही लिखना। खुद के खिलाफ हो तो भी और मेरे खिलाफ हो तो भी। ” मदर्स-डे  के अवसर पर माँ के खिलाफ नहीं, कलम के पक्ष में। माओं को एक प्रणाम — )

टीवी देखती / किटी पार्टी में/ माँ

तीन माह के रोते बच्चे के मुँह में/

बजाय स्तन के/

थमा देती है

स्तन जैसी

रबर की एक निप्पल।

बच्चा मन ही मन बोलता है-

” मम्मी,

अब हम बच्चे नहीं रहे,

पैदा हो गए हैं।

हम सब जानते हैं,

रबर की चिपचिपाट

और स्तन की गर्माहट को

अच्छी तरह पहचानते हैं। “

दूसरे ही पल उसे

पिछले  जनम में सुने हुए

मुनव्वर राणा के कुछ शेर याद आए

 और बजाय ‘वाह ‘ के उसके मुँह से

ये कच्चे-पक्के शेर निकल आए।

“माँ कितनी भी मैली हो

माँ से कोई

उज्जवल हो नहीं सकता,

माँ ने दिया है

तो स्तन ही होगा

निप्पल हो नहीं सकता।” 

पर मुशायरों की ‘वाह – वाह’ और तालियाँ

कुछ ही देर की होती है।

वह स्तन नहीं, निप्पल है

इस  हकीकत को आखिर

बच्चा भी जान गया।

मगर बकोल-ए- ग़ालिब,

दिल के बहलाने को….,

बच्चा, निप्पल में

स्तन का ख्याल करते

उसे चूसते हुए

चुपचाप सो जाता है

इस रात वह

माँ से बड़ा हो जाता है।

          **

(मित्रो, रचना और रचनाकार का संबंध माँ और बच्चे सा होता है। बिना नाम के शेयर करने का पाप न करें।)

© श्री घनश्याम अग्रवाल

(हास्य-व्यंग्य कवि)

094228 60199

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 138 ☆ गीत: कोई अपना यहाँ… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  गीत: कोई अपना यहाँ)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 138 ☆ 

गीत: कोई अपना यहाँ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

मन विहग उड़ रहा,

खोजता फिर रहा.

काश! पाये कभी-

कोई अपना यहाँ??

*

साँस राधा हुई, आस मीरां हुई,

श्याम चाहा मगर, किसने पाया कहाँ?

चैन के पल चुके, नैन थककर झुके-

भोगता दिल रहा

सिर्फ तपना यहाँ…

*

जब उजाला मिला, साथ परछाईं थी.

जब अँधेरा घिरा, सँग तनहाई थी.

जो थे अपने जलाया, भुलाया तुरत-

बच न पाया कभी

कोई सपना यहाँ…

*

जिंदगी का सफर, ख़त्म-आरंभ हो.

दैव! करना दया, शेष ना दंभ हो.

बिंदु आगे बढ़े, सिंधु में जा मिले-

कैद कर ना सके,

कोई नपना यहाँ…

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२-५-२०१२, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #189 – 75 – “अदब की महफ़िलें आबाद रहीं…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “अदब की महफ़िलें आबाद रहीं…”)

? ग़ज़ल # 75 – “अदब की महफ़िलें आबाद रहीं…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

बेचारगी में ग़म रहा बेहिसाब,

मुसलसल आता रहा बेहिसाब।

गरम ठंडा तूफ़ान खूब गुज़रा,

इनका भी रखना पड़ा हिसाब।  

अदब की महफ़िलें आबाद रहीं,

मेहरून्निसा संग आया महताब।

दुश्मन हर चाल सोचकर रखता,

दाव दोस्तों का खासा लाजवाब।  

फलक से डोली में आएगी हसीना,

‘आतिश’ यही नियति का इंतख़ाब।  

* इंतख़ाब – चुनाव

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ ‘सार…’ श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘The Essence of Life…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem “~ सार ~.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना

? संजय दृष्टि – सार ??

कितना अलग है

एक आँख का

कई सपने देखना और

कई आँखों का मिलकर

एक सपना देखना,

माना कि व्याकरण में

एकवचन से

बहुवचन होना विस्तार है

पर जीवन की बारहखड़ी में

बहुवचन को

एकवचन में बदल पाना

संसार का सार है!

© संजय भारद्वाज 

मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

? ~ The Essence of Life… ??

How different it is

to see many dreams

through one eye

and to see one dream of

many eyes together…

Agreed that there is an

expansion from singular

to plural in grammar,

But in life’s vowels and

consonants of grammar,

converting plural to singular

is the essence of the world..!

~Pravin

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आयाम ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – आयाम ??

दीवार पर

जो उभरता है,

मुझे, तुम्हें

वह चित्र

अलग कैसे दिखता है..?

देखने, मिटाने का

अपना आयाम,

अपनी रेखाएँ

खींचता है…,

दीवार पर नहीं,

आँख में चित्र

बसता है…!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक।

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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