हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #186 – 72 – “ तू ज़िंदगी भर सजता संवरता रहा…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “ तू ज़िंदगी भर सजता संवरता रहा…”)

? ग़ज़ल # 72 – “तू ज़िंदगी भर सजता संवरता रहा…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

तू चाहता क्या और माँगता क्या है,

तू सच बता आख़िर चाहता क्या है।

उड़ चुका बहुत ख्वाहिशी फ़लक पर

अब रुक जा बेवज़ह उड़ता क्या है।

तेरी बेवफ़ाई के क़िस्से बहुत मशहूर,

बता तेरा मुहब्बत से वास्ता क्या है।

दराज खुला रखा लिफ़ाफ़ों के लिए,

तेरे हुजूम में वसूली हफ़्ता क्या है।

दिल में तेरे अभी भी जमा है मैल,

दूसरों के दिलों में झांकता क्या है।

तूने किया वही जो चाहा ताज़िंदगी,

तू बता  तुझे अब सालता क्या है।

तू ज़िंदगी भर सजता संवरता रहा,

तेरी पत्तल में फैला रायता क्या है।

आ जकड़ा तुझे फ़ानी अहसासात ने,

मंज़ूर कर फ़ना अब भागता क्या है।

आतिश की असलियत सब जानते हैं,

फिर तू बेसिरपैर की हाँकता क्या है।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि –कुहासा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – कुहासा ??

भ्रम का कुहासा छँटते ही

दृश्य ऋतंभर हो जाते हैं,

चक्षु खोलर निहारता हूँ,

रिश्ते दिगम्बर हो जाते हैं..!

© संजय भारद्वाज 

12:27 बजे अपराह्न, 4 जुलाई 2022

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक।

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अक्षय तृतीया… ☆ सुश्री रुचिता तुषार नीमा ☆

सुश्री रुचिता तुषार नीमा

☆ कविता ☆ अक्षय तृतीया…   ☆ सुश्री रुचिता तुषार नीमा ☆

वैशाख मास, शुक्ल पक्ष , आखा तीज है आई

आप सभी को इस शुभ दिन की हार्दिक हार्दिक बधाई

 

बिन मुहूर्त के लग्न होते, होते सब शुभ कार्य

करके हम भी दान धर्म, पुण्यों को करें साकार

 

अवतरण दिवस यह परशुराम का, लिया प्रभु ने अवतार

फरसे को अपना शस्त्र बना, किया क्षत्रिय वंश  संहार

 

अवतरित हुई गंगा मैया, किया सबका उद्धार

आज ही के दिन जन्म लिए ब्रह्मा पुत्र अक्षय कुमार

 

भंडार भरे सब अन्न धन के,जब हुआ अन्नपूर्णा अवतार,

गरीब सुदामा के चावल खा, श्री कृष्ण ने दिया कर्ज उतार

 

सुख समृद्धि शांति की कामना का है ये पावन त्यौहार

बना रहे आशीष प्रभु का, मिले ईश कृपा अपरम्पार

 

© सुश्री रुचिता तुषार नीमा

इंदौर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 64 ☆ ।।नई पीढ़ी को सौंपनी है, शुद्ध स्वच्छ पर्यावरण की विरासत।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।।नई पीढ़ी को सौंपनी है, शुद्ध स्वच्छ पर्यावरण की विरासत।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 64 ☆

☆ मुक्तक  ☆ ।।नई पीढ़ी को सौंपनी है, शुद्ध स्वच्छ पर्यावरण की विरासत।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

(पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल पर विशेष रचना)

[1]

वृक्षों से ही हमारे जीवन में आती हरियाली है।

प्रकृति पोषित और हर ओर होती खुशहाली है।।

पर्यावरण सरंक्षण धुरी है जीवन के रक्षा की।

जानो तभी मनेगी नई पीढ़ी की होली दीवाली है।।

[2]

रक्षा पर्यावरण की तेरी मेरी सबकी जिम्मेदारी है।

हम अभी से हों समझदार इसी में होशियारी है।।

नहीं तो इस बर्बादी की होगी हमारी ही जवाबदारी।

यही आज समय का तकाजा और खबरदारी है।।

[3]

जो हम सिखायेंगे नई पीढ़ी वही करेगीआगे जाकर।

पर्यावरण के प्रति जागरूक होगी यह शिक्षा लाकर।।

आज कर्तव्य कि नई पीढ़ी को सौंपना स्वच्छ पर्यावरण।

अन्यथा आने वाली पीढ़ी दुःख भरेगी ये विरासत पाकर।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 128 ☆ “रेल पर दो कविताएं…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित  – “रेल पर दो कविताएं…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण   प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #128 ☆ कविता – “रेल पर दो कविताएं…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

(16 अप्रेल, 1853 – यह दिवस ऐतिहासिक ,जब दौड़ी थी पटरी पर रेल पहली बार…)

[1]  रेल भारत में

परिवर्तन इस विश्व का आवश्यक व्यवहार

धीरे-धीरे सदा से बदल रहा संसार

सदी अट्ठारह तक रहा धार्मिक सोच प्रधान

 पर उसके उपरांत नित सबल हुआ विज्ञान

 

बदली दृष्टि जरूरतें उपजे नए विचार

यूरोप से चालू हुए नए नए अविष्कार

भूमि वायु जल अग्नि नभ प्रमुख तत्व ये पांच

इनके गुण और धर्म की शुरू हुई नई जांच

 

इनके चिंतन परीक्षण से उपजा नव ज्ञान

प्रकृति की समझ प्रयोग ही कहलाता विज्ञान

ज्यों ज्यों इस सदवृत्ति का बढ़ता गया रुझान

जग में नित होते गए नए सुखद निर्माण

 

चूल्हे पै चढ़ी जल भरी गंज का ढक्कन देख

जेम्स वाट की बुद्धि में उपजा नवल विवेक

उसे उठाकर गिराकर उड़ जाती जो भाप

जल को भाप में बदल शक्ति देता ताप

 

इसी प्रश्न में छुपा है रेल का आविष्कार

वाष्प इंजन सृजन का यह ही मूलाधार

समय-समय होते गए क्रमशः कई सुधार

इंजन पटरी मार्ग और डिब्बे बने हजार

 

रेल गाड़ियां चल पड़ी बढ़ा विश्व व्यापार

लाखों लोगों को मिले इससे नए रोजगार

यात्रा माल ढुलाई से कई हुए मालामाल

और बड़े क्या सुधार हो यह है सतत सवाल

 

आई अट्ठारह सौ सैंतीस में भारत पहली रेल

 धोने पत्थर सड़क के शुरू हुआ था खेल

शुरू हुआ मद्रास से रेलों का विस्तार

आज जो बढ़ हो गया है कि मी अड़सठ हजार

 

अब विद्युत से चल रही रेलवे कई हजार

कई फैक्ट्रियां बनाती पुर्जे विविध प्रकार

अब तो हर एक क्षेत्र में व्याप्त ज्ञान विज्ञान

लगता है विज्ञान ही है अब का भगवान

 

[2] रेल के प्रभाव

रेलगाड़ियों का हुआ ज्यों ज्यों अधिक प्रसार

सुगम हुई यात्राएं और बढा क्रमिक व्यापार

 आने जाने से बढा आपस में सद्भाव

 सुविधाएं बढ़ती गई घटते गए अभाव

 

सहज हुआ आवागमन नियम भी बने उदार

 बदला हर एक देश औ बदल चला संसार

लेन-देन में वृद्धि हुई खुले नए बाजार

लाभ मिला हर व्यक्ति को बढ़े नए रोजगार

 

 शुरु में अपने देश में कई थे रेल के गेज

इससे कुछ असुविधाएं थीं थे क्षेत्रीय विभेद

प्रमुख लाइने एक हुई बदल रहे अब गेज

एक गेज होंगे तभी  प्रगति भी होगी तेज

 

आगे एंजिन से जुड़े डिब्बे भरे अनेक करते

करते लंबी यात्रा बनकर गाड़ी एक

दर्शक को दिखता सदा  रेल क मोहक रूप

खड़ी हो या हो दौड़ती दिखती रेल अनूप

 

रेल दौड़ती सुनाती एक लयात्मक गीत

बच्चों को लगता मधुर वह ध्वनि मय  संगीत

रेल मार्ग में जहां भी होता अधिक घुमाव

 वहां निरखना रेल को रचता मनहर भाव

 

 नयन देखते दृश्य हैं मन पाता आनन्द

सुंदर दृश्यों को सदा करते सभी पसंद

रेल ने ही विकसित किया पर्यटन उद्योग

 तीर्थाटन भी बन गया एक सुखदाई योग

 

समय और व्यय बचाने  प्रचलित कई हैं रेल

राजधानी, दुरंतो, संपर्क क्रांति या मेल

स्टेशन बनता जहाँ होता बड़ा प्रभाव

 रेल आर्थिक ही नहीं लाती कई बदलाव

 

रेल पहुँच देती बदल सारा ही परिवेश

सामाजिक बदलाव से बनता सुंदर देश

 छू जाती जिस भाग को आती जाती रेल

होने लगता प्रगति का वहीं मनोहर खेल

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #177 ☆ भावना के दोहे… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  भावना के दोहे ।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 177 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे … ☆

कस्तूरी

कस्तूरी कुंडल बसे, ढूँढे मृग चहुँ ओर।

भटक भटक के खोजता, आता वापस छोर।।

खेत

बीजारोपण कर रहा, खेतों खेत किसान।

खुश होकर वह झूमता,फसल देखता धान।।

दृष्टि

देख रहे हैं वो हमें, दृष्टि है इसी ओर।

समझ रहे हैं हम उसे, बंधी प्यार की डोर।।

कबूतर

संदेशा कबूतर से, भेजा अपना प्यार ।

आएगा अब एक दिन, प्यार का इजहार।।

आम

झूम झूमकर गिर रहे, मीठे मीठे आम

भिन्न भिन्न हैं जातियाँ, लगड़ा प्रिय बदाम।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अजेय ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

 ? संजय दृष्टि – अजेय ??

समुद्री लहरों का

कंपन-प्रकंपन,

प्रसरण-आकुंचन,

मशीनों से

मापनेवालों की

आज हार हुई,

मेरे मन में

उमड़ती-घुमड़ती लहरें,

उनकी पकड़

और परख से

दूर जो सिद्ध हुईं..!

© संजय भारद्वाज 

7.11.2016, रात्रि 9.40 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक।

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #164 ☆ “संतोष के दोहे… कर्म” ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है – संतोष के दोहे … कर्म ”. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 164 ☆

☆ “संतोष के दोहे … कर्म ” ☆ श्री संतोष नेमा ☆

कर्मों पर होता सदा,कर्ता का अधिकार

कर्म कभी छिपते नहीं,करते वो झंकार

कर्मों से किस्मत बने,कर्म जीवनाधार

कभी न पीछा छोड़ते,फल के वो हकदार

जैसी करनी कर चले,भरनी वैसी होय

कर्मों की किताब कभी,बांच सके ना कोय

सबको मिलता यहीं पर,पाप पुण्य परिणाम

जो जिसने जैसे किये,बुरे भले सब काम

तय करते हैं कर्म को,स्व आचार- विचार

कर्मों से सुख-दुख मिलें,तय होते व्यबहार

पाप- पुण्य की नियति से,करें सभी हम कर्म

सदाचरण करते चलें,यही हमारा धर्म

अंत काम आता नहीं,करो कमाई लाख

साथ चले नेकी सदा,तन हो जाता राख

गया वक्त आता नहीं,समझें यह श्रीमान

करें समय पर काम हम,रखें समय का मान

कर्म करें ऐसे सदा,जिसमें हो “संतोष”

कोई कभी न दे सके,जिसकी खातिर दोष

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ प्रेमा के प्रेमिल सृजन… मुक्तक ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ 

(साहित्यकार श्रीमति योगिता चौरसिया जी की रचनाएँ प्रतिष्ठित समाचार पत्रों/पत्र पत्रिकाओं में विभिन्न विधाओं में सतत प्रकाशित। कई साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। दोहा संग्रह दोहा कलश प्रकाशित, विविध छंद कलश प्रकाशनाधीन ।राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय मंच / संस्थाओं से 200 से अधिक सम्मानों से सम्मानित। साहित्य के साथ ही समाजसेवा में भी सेवारत। हम समय समय पर आपकी रचनाएँ अपने प्रबुद्ध पाठकों से साझा करते रहेंगे।)  

☆ कविता ☆ प्रेमा के प्रेमिल सृजन… मुक्तक ☆ श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’ ☆

(शिखरिणी छंद -मुक्तक)

सदा माधो मेरे सहज हृद संताप हरते ।

विरह देखो रोते मिलन मन आलाप भरते ।

मिलों प्यारे मेरे हृदय अब संज्ञान भर दें ।

नहीं तेरे जैसा मगन मन जी जाप करते ।।

 

पुकारा है आओ किशन, अब तो त्राण कर दे।

बनी मैं अज्ञानी वरद बन कल्याण कर दे ।

सभी भूली हूंँ मैं, प्रभु सहज निर्वाण कर दे ,

दिए गीता में सारात्, विभु जगत निर्माण कर दे ।।

☆ 

© श्रीमति योगिता चौरसिया ‘प्रेमा’

मंडला, मध्यप्रदेश

(दोहा कलश (जिसमें विविध प्रकार के दोहा व विधान है) के लिए मो 8435157848 पर संपर्क कर सकते हैं ) 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – टी आर पी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – टी आर पी ??

लोकतंत्र के स्तम्भ का

अजब नज़ारा है,

आँख के गर्भ में है,

तब तक ही आँसू तुम्हारा है,

खारा पानी छलकाना

सबसे बड़ी भूल हो जाएगा,

देखते-देखते तुम्हारा आँसू

टीआरपी टूल हो जाएगा..!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक।

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares