हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 121 ☆ # खंडहर… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी होली पर्व पर विशेष कविता “# खंडहर… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 121 ☆

☆ # खंडहर… # ☆ 

सूरज की किरणों से

जो धरती जाग जाती थी

जहां ठंडी ठंडी पुरवाई

नया सवेरा लाती थी

स्नान, पूजा, ध्यान, तप

जहां घुला था कण-कण में

जहां मंदिर की घंटियां और

अजान एक साथ होती थी

रणबाँकुरे अपनी आजादी के लिए

लड़ते रहे आखरी सांस तक

सिर कटा दिया अपना

पर आने नहीं दी आंच तक

अपने पौरुष के दम पर

अपना साम्राज्य फैलाया था

एक छोर से दूसरे छोर तक

अपना ध्वज लहराया था

प्रजा का कल्याण, हित

हर राजा को प्यारा था

यहां कोई नहीं पराया था

यहां दुश्मन भी जान से प्यारा था

सुख, शांति, धर्म के

सब रखवाले थे

अपनी धार्मिक आस्था पर

जान न्योछावर करने वाले थे

हिंदू राजा का सेनापति मुगलवंशी था

तो मुगल का सेनापति हिंदू था

चाहे जिस खेमें में हो पर

समर्पण सबका बिंदु था

अपने अपने कर्तव्य को

निष्ठा से निभाते थे

शहादत दे देते रण में

पर कभी पीठ नहीं दिखाते थे

रणबाँकुरे ने लड़ी लड़ाइयां

कुछ जीती, कुछ हारे

अपने सम्मान के लिए

लड़ते रहे वो सारे

वीरांगनाओं ने भी अदम्य साहस

दिखाया था

सतीत्व की रक्षा के लिए

तीन बार जौहर अपनाया था

इन योद्धाओं को, वीरांगनाओं को

शत्, शत् नमन है

जिनको जान से ज्यादा

प्यारा वतन है

 

यह ऊंचे ऊंचे दुर्गम किले

अपनी कहानी दोहराते हैं

हर पत्थर बोलता है

इतिहास को समझाते हैं

सबको गले लगाओ

हर शख्स को अपना बनाओ

सब मिलकर रहेंगे तो

तूफानों को सह पायेंगे

वर्ना

समय के तूफान में

इन किलों की तरह बिखरकर

एक एक पत्थर निकलकर

सिर्फ

खंडहर रह जायेंगे /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 131 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media# 131 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 131) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 131 ?

☆☆☆☆☆

Walk Alone

सच कहने का अगर

इतना शौक है,

तो तन्हा चलने का भी

हौसला रखना…!

☆☆

If you are so fond of

telling the truth,

Then, have the courage

to walk all alone…!

☆☆☆☆ 

मेरी इक ज़िंदगी के कितने

हिस्सेदार  हैं  मगर,

किसी की  जिंदगी  में  मेरा

हिस्सा  क्यूँ  नहीं  होता…

हमारे लिए तो इस दुनिया

में खास वो ही लोग हैं….

जो वक्त आने पर अपना

कीमती वक्त दिया करते हैं..!

☆☆

There are umpteen

sharers of my life,

But I dont have any claim

in someone else’s life…!

For me those people   only

reside in my heart…

Who give their precious time

when the time comes..!

☆☆☆☆☆

Sleepless Soul

☆ 

तमन्नायें यूंही मचलती रहीं

रातें आँखों में ढलती रहीं,

जिस्म को तो नींद आती रही मगर

रूह करवट बदलती रही

☆☆ 

Yearnings kept on lingering but the

nights kept on passing in the eyes,

Body always fell asleep but the

sleepless soul kept tossing itself…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 130 ☆ – गीत – ओ! मेरी रचना संतानों आओ… – ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  गीत “~ ओ! मेरी रचना संतानों आओ… ~”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 130 ☆ 

~ गीत ~ ओ! मेरी रचना संतानों आओ ~ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

ओ! मेरे प्यारे अरमानों,

आओ, तुम पर जान लुटाऊँ.

ओ! मेरे सपनों अनजानों-

तुमको मैं साकार बनाऊँ…

*

मैं हूँ पंख उड़ान तुम्हीं हो,

मैं हूँ खेत, मचान तुम्हीं हो.

मैं हूँ स्वर, सरगम हो तुम ही-

मैं अक्षर हूँ गान तुम्हीं हो.

ओ! मेरी निश्छल मुस्कानों

आओ, लब पर तुम्हें सजाऊँ…

*

मैं हूँ मधु, मधु गान तुम्हीं हो.

मैं हूँ शर संधान तुम्हीं हो.

जनम-जनम का अपना नाता-

मैं हूँ रस रसखान तुम्हीं हो.

ओ! मेरे निर्धन धनवानों आओ!

श्रम का पाठ पढाऊँ…

*

मैं हूँ तुच्छ, महान तुम्हीं हो.

मैं हूँ धरा, वितान तुम्हीं हो.

मैं हूँ षडरस मधुमय व्यंजन.

‘सलिल’ मान का पान तुम्हीं हो.

ओ! मेरी रचना संतानों आओ,

दस दिश तुम्हें गुंजाऊँ…

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१०-३-२०१०, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गीत – “मानवता सबसे बड़ा धर्म” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ गीत – “मानवता सबसे बड़ा धर्म” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

मानवता को जब मानोगे, तब जीने का मान है।

मानवता है धर्म बड़ा, मिलता जिससे यशगान है।।

 

जाति-पाँति में क्या रक्खा है, ये बेमानी बातें हैं।

मानव-मानव एक बराबर, ऊँचनीच सब घातें हैं।।

नित बराबरी को अपनाना, यह प्रभु का जयगान है।

मानवता है धर्म बड़ा, मिलता जिससे यशगान है।।

 

दीन-दुखी के अश्रु पौंछकर, जो देता है सम्बल

पेट है भूखा,तो दे रोटी, दे सर्दी में कम्बल

अंतर्मन में है करुणा तो,मानव गुण की खान है।

मानवता है धर्म बड़ा, मिलता जिससे यशगान है।।

 

धन-दौलत मत करो इकट्ठा, कुछ नहिं पाओगे

जब आएगा तुम्हें बुलावा, तुम पछताओगे

हमको निज कर्त्तव्य निभाकर, पा लेनी पहचान है।

मानवता है धर्म बड़ा, मिलता नित यशगान है।।

 

शानोशौकत नहीं काम की, चमक-दमक में क्या रक्खा

वही जानता सेवा का फल, जिसने है इसको चक्खा

देव नहीं,मानव कहलाऊँ, यही आज अरमान है।

मानवता है धर्म बड़ा, मिलता जिससे यशगान है।।

 

जीवन का तो अर्थ प्यार है, अपनेपन का गहना है।

वह ही तो नित शोभित होता, जिसने इसको पहना है।।

जो जीवन को नहिं पहचाना, वह मानव अनजान है।

मानवता है धर्म बड़ा, मिलता जिससे यशगान है।।

 

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #181 – 67 – “अक्सर ही चराग़ों ने जलाया है…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “अक्सर ही चराग़ों ने जलाया है …”)

? ग़ज़ल # 67 – “अक्सर ही चराग़ों ने जलाया है …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

किस तरफ़ जा रही नई नस्ल भटक कर,

कब्र में अश्क़ बहाती मरियम सुबक कर।

तकता मुझे कौन मुहब्बत भरी नज़र से,

किसने मुझे देखा खिड़की से दुबक कर।

भूचाल सा आया है फिर कोई मेरे अंदर,

निकले मुँह से ग़लत  लफ़्ज़ अटक कर।

होने लगा जब  शोर ज्यादा  मेरे  अंदर,

मैं ख़ुद से बहुत दूर जा बैठा छिटक कर।

अक्सर ही चराग़ों ने जलाया है मेरा दिल,

आतिश देखा जाएगा चाँद से चिपक कर।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – रंग…(2) ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि –  रंग…(2) ??

रंगबिरंगा माहौल,

हर तरफ रंग ही रंग,

फिर तुम्हारे चेहरे पर

किसी तरह का

कोई रंग क्यों नहीं दिखता..?

ज़िंदगी के

इतने रंगों से गुज़र चुका,

लोगों को जाने कितने

रंग बदलते देख चुका,

रंगों से किसी तरह का

कोई असर अब नहीं पड़ता

चाहूँ भी तो चेहरे पर

कोई रंग अब नहीं चढ़ता..!

© संजय भारद्वाज 

रात 9:48 बजे, 20 फरवरी 2023

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को समर्पित आपदां अपहर्तारं साधना गुरुवार दि. 9 मार्च से श्रीरामनवमी अर्थात 30 मार्च तक चलेगी।

💥 इसमें श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का पाठ होगा, साथ ही गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीराम स्तुति भी। आत्म-परिष्कार और ध्यानसाधना तो साथ चलेंगी ही।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 59 ☆ ।। जिन्दगी अभी बाकी है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।। जिन्दगी अभी बाकी है ।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 59 ☆

☆ मुक्तक  ☆ ।। जिन्दगी अभी बाकी है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

नई उड़ान नए आगाज़   का वक़्त बाकी है।

नई सोच किसी नए साज का वक़्त बाकी है।।

अभी तो खेली है बस पहली पारी जीवन की।

दूसरी पारी का  खुलना राज़ अभी बाकी है।।

[2]

अधूरी हसरतों को नए परवाज़ अभी देना है।

जो पीछे छूट गए उनको आवाज़ अभी देना है।।

अभी तक जो सुप्त  ललक लगन कई कामों की।

जगाकर उस जोश कोअपनाआज अभी देना है।।

[3]

देश समाज के लिए सरोकार अभी निभाना है।

बढ़करआगे कुछ नया करके दिखाना है।।

अभी उम्र गर साठ   की  हुई तो क्या बात।

नई नई मंजिलों पर लगानाअभी निशाना है।।

[4]

बहुत दूर जाना कि जिंदगी अभी बाकी है।

जोशो जनून का जाम खुद बनेगा साकी है।।

बच्चों परिवार को दिखाना हरअच्छा रास्ता।

जिस पल ठहरे बनेगा जीवन बैसाखी है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 123 ☆ कविता – “बने रिश्तों को हरदम प्रेम जल से  सींचते रहिये…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक गावव ग़ज़ल  – “बने रिश्तों को हरदम प्रेम जल से  सींचते रहिये…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण   प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

काव्य धारा #123 ☆  गजल – “बने रिश्तों को हरदम प्रेम जल से  सींचते रहिये…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अचानक राह चलते साथ जो जब छोड़ जाते हैं

वे साथी जिन्दगी भर, सच, हमेशा याद आते हैं।

 

बने रिश्तों को हरदम प्रेम जल से  सींचते रहिये

कठिन मौकोें पै आखिर अपने ही तो काम आते हैं।

 

नहीं देखे किसी के दिन हमेशा एक से हमने

बरसते हैं जहाँ आंसू वे घर भी जगमगाते हैं।

 

बुरा भी हो तो भी अपना ही सबके मन को भाता है

इसी से अपनी टूटी झोपड़ी भी सब सजाते हैं।

 

समझना सोचना हर काम के पहले जरूरी है

किये कर्मो का फल क्योंकि हमेशा  लोग पाते हैं।

 

जहाँ पाता जो भी कोई परिश्रम से ही पाता है

जो सपने देखते रहते कभी कुछ भी न पाते हैं।

 

बहुत सी बातें मन की लोग औरों से छुपाते हैं

अधर जो कह नहीं पाते नयन कह साफ जाते हैं।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ नदी – दो कविताएं ☆ श्री हरभगवान चावला ☆

श्री हरभगवान चावला

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं  में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा  लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।) 

आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण एवं विचारणीय कविताएं – नदी – दो कविताएं)

☆ कविता  ☆  नदी – दो कविताएं ☆ श्री हरभगवान चावला ☆

नदी – एक

मेरे प्राण नदी में बसते थे

और नदी सूख रही थी

मैं नदी की धारा को

कलकल बहते देखना चाहता था

और धारा को रेत ने ढाँप लिया था

मैं अपनी अंजुरियों से

निरंतर हटा रहा था रेत

नदी पुकार उठती बार-बार-

‘सूख जाना मेरी नियति है

व्यर्थ प्रयत्न मत करो, लौट जाओ’

हताश मैं लौटने को होता

तो तड़प उठती नदी

थोड़ा दृष्टि से ओझल होता

तो सुनाई पड़ता कातर स्वर-

‘कहाँ हो ?’

मैं नदी के पास पहुँच

फिर रेत से लड़ने लगता

रेत से लड़ते-लड़ते छलनी हो गए मेरे हाथ

मेरे हाथ देख विचलित हो उठी नदी

उसने उमड़ कर थाम लिए मेरे हाथ

मुझे ताकती रही

और बड़बड़ाती रही नदी-

‘क्यों हठ करते हो

क्यों रेत हो जाना चाहते हो मेरी तरह

लौट जाओ, लौट जाओ !’

मैं हठ ठानकर रेत से लड़ रहा हूँ

और अचरज कि नदी

खुद रेत से प्यार करने लगी है

मुझे अब भी बार-बार सुन पड़ती है

नदी की करुण प्रार्थना-

‘लौट जाओ, मैं मृगतृष्णा हूँ

मेरे पास आओगे

तो प्यास के सिवा कुछ नहीं पाओगे

रेत से लड़ोगे तो हार जाओगे’

मैं नदी की पुकार सुनता हूँ

फिर भी वहीं खड़ा हूँ

मुझे ड़र है तो लौटा तो

तुरंत रेत हो जाएगी नदी

रेत से लड़ते हुए रेत हो जाना स्वीकार है मुझे

सूखने के लिए कैसे छोड़ दूँ

नदी में मेरे प्राण बसते हैं।

 

☆ नदी – दो ☆

तुम चाहते हो

नदी हमेशा बहती रहे

शांत और संयत

उसमें इतना भर पानी रहे

कि तुम किनारे बैठे रहो

और तुम्हारे पाँव जल में डूबे रहें

नदी न कभी तुम्हारा हाथ छुए

न तुम्हारे चेहरे को भिगोए कभी फुहार

नदी कभी आह्लादित न हो, न बहुत उदास

बरसात के मौसम में

कहीं-कहीं से आकर

नदी में मिलता रहे जल

नदी तब भी बनी रहे

स्वच्छ और संयमित

कितने भी पत्थर टूटकर गिरें

नदी का प्रवाह न हो बाधित

मौसम कैसा भी हो

वह बहे एकरस

तुम्हारे पाँवों को छूती हुई

तुम्हें भी पता है

लाख कोशिशों के बावजूद

ऐसे ही नहीं बहती रह सकती

कोई नदी !

©  हरभगवान चावला

सम्पर्क – 406, सेक्टर-20, हुडा,  सिरसा- 125055 (हरियाणा) फोन : 9354545440

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कृतज्ञता ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि –  कृतज्ञता ??

(आगामी कवितासंग्रह से)

कृतज्ञ हूँ

उन सबका,

मुझे रोकने

जो रचते रहे

चक्रव्यूह..,

और परोक्ष में

शनैः- शनैः

गढ़ते गए

मेरे भीतर

अभिमन्यु..!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को समर्पित आपदां अपहर्तारं साधना गुरुवार दि. 9 मार्च से श्रीरामनवमी अर्थात 30 मार्च तक चलेगी।

💥 इसमें श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का पाठ होगा, साथ ही गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीराम स्तुति भी। आत्म-परिष्कार और ध्यानसाधना तो साथ चलेंगी ही।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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