हिन्दी साहित्य – कविता ☆ नज़्म – अनसुनी दास्ताँ – ☆ डॉ रेनू सिंह ☆

(ई-अभिव्यक्ति में प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. रेनू सिंह जी का हार्दिक स्वागत है। आपने हिन्दी साहित्य में पी एच डी की डिग्री हासिल की है। आपका हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी और उर्दू में भी समान अधिकार है। एक प्रभावशाली रचनाकार के अतिरिक्त आप  कॉरपोरेट वर्ल्ड में भी सक्रिय हैं और अनेक कंपनियों की डायरेक्टर भी हैं। आपके पति एक सेवानिवृत्त आई एफ एस अधिकारी हैं। अपनी व्यस्त दिनचर्या के बावजूद आप  साहित्य सेवा में निरंतर लगी रहती हैं। आज प्रस्तुत है आपकी नज़्म – “अनसुनी दास्ताँ”।)

? नज़्म – अनसुनी दास्ताँ डॉ. रेनू सिंह ?

न मंज़िल थी कोई, न था रास्ता,

दीन दुनिया से उसको, न था वास्ता,

उलझी – उलझी लटें, मैला सा पैरहन,

होंठ सूखे हुये मुरझाया सा तन,

चेहरा बेनूर सा, बिखरा बिखरा सा मन ,

सुबह के दीप से, टिमटिमाते नयन

कंपकंपाती हुई, बुदबुदाती हुई

लड़खड़ा के वो फिर-फिर संभलती हुई,

न जाने ,वो किस बाग़ का फूल थी,

वक़्त की आँधियों में हुई धूल थी,

वो तो टूटा हुआ ऐसा एक साज़ थी

न कोई गीत जिसमें, न आवाज़ थी,

ऐसा पंछी कि जिसकी न परवाज़ थी,

ऐसी नदिया न जिसमें कोई धार थी,

वो मुझे एक दिन राह में मिल गई

उसने देखा मुझे और ठिठक सी गई

उसकी नज़रें मेरे रूख़ पे जम सी गईं,

तीर की तरह दिल में उतर सी गईं,

उसकी नज़रों में ऐसे सवालात थे,

जवाब जिनके न कोई मेरे पास थे…

जो सुनी ना किसी ने, वो फ़रियाद थी,

जो भुला दी थी अपनों ने, वो ‘याद’ थी,

जी रही थी मगर ,घुल रही साँस थी,

उसको जीवन से फ़िर भी कोई आस थी,

पूछना था उसे, है कहाँ उसका रब?

जानना था उसे ज़िन्दगी का सबब,

वो उदासीन है उसकी हस्ती से क्यूँ?

तोलता है तराज़ू में इंसाँ को क्यूँ

एक इंसाँ को देता है महल-ओ-हरम,

दूजे को बाँट देता है सब रहने-ग़म?

भेजेगा वो मसीहा भी ऐसा कभी?

जो मिटा देगा दुनिया से दुखड़े सभी,

गीत खुशियों भरे, वो भी फिर गायेगी,

किसी मजबूर को न कभी ठुकरायेगी,

जो दिया है ज़माने ने उसको यहाँ,

किसी और के संग ना कभी दोहराएगी,

क्या वो भी कभी मुस्कुरा पाएगी?

या ब्याबाँ में यूँही दफ़्न हो जाएगी?

बैठ कर राहगुज़र में वो शाम-ओ- सहर,

पूछती थी यही बात सबसे मगर,

न पाया कभी उसने इसका जवाब,

एक हँसी बन गयी उसकी आँखों का ख़्वाब,

उन सवालों के आगे मैं भी थी ला-जवाब,

उसके आगे ठहरने की न थी मुझमें ताब,

उससे नज़रें चुरा आगे मैं बढ़ गई,

ग़ुबार उड़ता रहा वो खड़ी रह गयी,

फ़िर सवालातों में वो बुनी रह गई,

वो ठगी सी खड़ी की खड़ी रह गयी,

दर्द की दास्ताँ अनसुनी ही रह गई

दर्द की दास्ताँ अनसुनी ही रह गई..!

                  

© डा. रेनू सिंह 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 150 ☆ बाल कविता – गुड़िया रानी… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 150 ☆

☆ बाल कविता – गुड़िया रानी… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

गुड़िया रानी समझदार हैं

     भोली- भाली पर हैं छोटी।

 

बहुत देर में भोजन करतीं

      थोड़ा खातीं फल औ’ रोटी।।

 

स्वयं कभी ना भोजन खाएँ।

      बाबा, दादी उन्हें खिलाएँ।

 

जॉब करें मम्मी औ’ पापा।

     लेकिन जल्दी खोएँ आपा।।

 

अक्सर होती है तकरार।

     गुड़िया का दोनों से प्यार।।

 

गुड़िया माँ- पापा से बोली।

     बातों में मिसरी – सी घोली।।

 

नहीं सुहाए मुझको झगड़ा।

   मैं डर जाती जब हो तगड़ा।।

 

कोमल मन है मेरा समझो।

     खुशियों को बाँटों ना गम दो।।

 

 समझ गए गुड़िया की बात।

      कटें प्रेम से दिन औ’ रात।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #172 – होली पर्व विशेष – कहाँ आज प्रह्लाद… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है होली पर्व पर आपकी एक भावप्रवण कविता  “कहाँ आज प्रह्लाद…”)

☆  तन्मय साहित्य  #172 ☆

☆ होली पर्व विशेष – कहाँ आज प्रह्लाद… 

रंगभरी इस दुनियाँ  में

अनगिन बदरंगी चेहरे भी हैं

नहीं सुहाता अच्छा उनको

कानों से वे बहरे भी हैं।

 

नीला, हरा, गुलाबी, पीला,

नहीं रंग केशरिया भाए

खूनी रंगों से रिश्ते,

कब धवल रंग में ठहरे भी हैं।

 

कहाँ आज प्रह्लाद,

चतुर्दिश हैं हिरण्यकश्यप ही सारे

नरसिंहों के शौर्य पराक्रम,

पर शैतानी पहरे भी हैं।

 

अमराई की मोहक गंध

न है फगुनाहट अब फागुन में

प्रतिबंधित हैं छंद ,

गीत पर वार हुए वे गहरे भी हैं।

 

प्रेम-प्यार, सद्भाव प्रीत की रीत,

अतीत की बात पुरानी

सूख रही सरिताएँ तो

स्वाभाविक विचलित लहरें भी हैं।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – शाश्वत ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि –  शाश्वत ??

…मृत्यु पर इतना अधिक क्यों लिखते हो?

…मैं मृत्यु पर नहीं लिखता।

…अपना लिखा पढ़कर देखो।

…अच्छा बताओ, जीवन में अटल क्या है?

…मृत्यु।

…जीवन में नित्य क्या है?

… मृत्यु।

…जीवन में शाश्वत क्या है?

…मृत्यु।

… मैं अटल, नित्य और शाश्वत पर लिखता हूँ।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को समर्पित आपदां अपहर्तारं साधना गुरुवार दि. 9 मार्च से आरम्भ होगी। यह श्रीरामनवमी अर्थात 30 मार्च को विराम लेगी।

💥 इसमें श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का पाठ होगा, साथ ही गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीराम स्तुति भी। आत्म-परिष्कार और ध्यानसाधना तो साथ चलेंगी ही।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 58 ☆ गीत – गीत तुम्हें याद आयेंगे… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण गीत – “गीत तुम्हें याद आयेंगे ”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 58 ✒️

?  गीत – गीत तुम्हें याद आयेंगे … ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

तुम्हें याद आयेगी, होली पर हमारी

वो प्यार की पैगें, हमारी तुम्हारी।

 

बहेंगी फागुन की मुअत्तर  हवाएँ

आमों में बौर, महकती फिज़ायें 

तब आखों से बरसेंगी काई घटायें

न देगी चैन मन को अश्क बारी…

 

जंगल में टेसू के, दहकते अंगारे

सरसों के खेल, वो दिलकश नज़ारे

हँसेगी जब कोयल, खिलेंगी बहारें

निगाहों में हसरत, दमे बेकरारी…

 

तन्हाई में जब कसम खायेंगी बाहें

गुलाल से भरपूर होगी रंगीन राहें

होठों पे आयेगी, बेताब आहें

कभी मैं थी राधा तुम कृष्ण मुरारी…

 

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – दोहे – “नारी तू नारायणी” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆ ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेष –  दोहे – “नारी तू नारायणी” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

नारी तू नारायणी, है दुर्गा का रूप।

रमा, उमा, माँ शारदे, में तेरी ही धूप।।

 

नारी तू नारायणी, ज्ञान, चेतना,मान।

जिस गृह रहती तू वहाँ, पलता नित उत्थान।।

 

नारी तू नारायणी, जीवन का है सार।

तेरे कारण ही मिला, जग को यह उजियार।।

 

नारी तू नारायणी, है सुर, लय अरु ताल।

गहन तिमिर हारा सदा, काटे तू सब जाल।।

 

नारी तू नारायणी,तू हर पल अभिराम।

तू धन, विद्या, नूर है, तू है मीठी शाम।।

 

नारी तू नारायणी, गरिमा तेरे संग।

खुशियों का उत्कर्ष तू, तेरे अनगिन रंग।।

 

नारी तू नारायणी, रोते को है हास।

मायूसी में तू रचे, जगमग करती आस।।

 

नारी तू उर्जामयी, नारी तू तो ताप।

तेरे गुण,देवत्व को, कौन सका है माप।।

 

नारी तू नारायणी, ममतामय हर रोम।

करुणामय,शालीन है, ऊँची जैसे व्योम।।

 

नारी तू नारायणी, कभी न माने हार।

साहस तेरा देखकर, होती जय जयकार।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “रंगरेजा” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ कविता ☆ “रंगरेजा” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

इंसान है तो रंग पाए

रंग है तो इंसान होए

कायनात हर हर रंग रंगाए

रंगरेजा हर हर मन भिगाए

 

कोई इश्क में लाल देखूं

कही सुबह की लाली देखूं

कोई यादों में रंगता देखूं

कहीं खोया नीला आसमां देखूं

 

बेरंग होती हरियाली में

जान लाता बसंत देखूं

नई हरियाली में शान लाते

ये फूलों के रंग बसंती देखूं

 

सुबह सब रंग लेकर आते देखूं

निशा सब रंग लेकर जाते देखूं

तुम भी आए हो सब रंग लेके

जाने से पहले बनाया चित्र देखूं

 

रंगरेजा का ये खेल देखूं

हर रंग में जलती ये होली देखूं

फिर राख से भी रंगते हुए

मधुबन में हँसता युगंधर देखूं

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 72 – मनोज के दोहे – ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  “मनोज के दोहे”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 72 – मनोज के दोहे – ☆

1 सुकुमार

लखन राम सुकुमार सिय, चले कौशलाधीश।

मात-पिता आशीष ले, बढ़े नवा कर शीश।।

2 राधिका

प्रेम राधिका का अमर, जग करता नित याद।

भक्त सभी जपते सदा, जब आता अवसाद।।

3 उपवास

तन-मन को निर्मल करे, जो करता उपवास।

रोग शोक व्यापे नहीं, जीवन भर मधुमास।।

4 लोचन

लोचन हैं राजीव के, श्याम वर्ण अभिराम।

द्वापर में फिर आ गए, अवतारी घन-श्याम।।

5 मिठास

वाणी सिक्त मिठास की, होती है अनमोल।

जीवन भर जो स्वाद ले, बोले मिश्री घोल।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ होली पर्व विशेष – “होली का गीत” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆ ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ कविता ☆ होली पर्व विशेष – “होली का गीत” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

हे! गिरिधारी नंदलाल,तुम होली पर आ जाओ।।

राधारानी को सँग लेकर,फिर से रँग बरसाओ।।

 

प्रेम आजअभिशाप हो रहा,

बढ़ता नित संताप है।

भटकावों का राज हो गया,

विहँस रहा अब पाप है।।

प्रेम,प्रीति की गरिमा लौटे,अंतस में बस जाओ। ।

राधारानी को सँग लेकर,फिर से रँग बरसाओ।।

 

मक्कारों की बन आई है,

फूहड़ता की महफिल।

फेंक रहे सब नकली पाँसे,

व्याकुल हैं सच्चे दिल।।

द्रोपदियाँ तो डरी हुई हैं,बंशी मधुर बजाओ।

राधारानी को सँग लेकर,फिर से रँग बरसाओ।।

 

आशाएँ तो रोज़ सिसकतीं,

मातम का है मेला ।

कहने को है प्यार यहाँ पर,

हर दिल आज अकेला ।।

हे नटनागर ! रासरचैया,मंगलगान सुनाओ।

राधारानी को सँग लेकर,फिर से रँग बरसाओ।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ होली पर्व विशेष – होली प्रेम प्रतीक है…☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆

डॉ निशा अग्रवाल

☆ कविता ☆ होली पर्व विशेष – होली प्रेम प्रतीक है… ☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆

रंगीन त्यौहार है आया, कि  मन खुशियों से झूमे है।

हरे ,नीले, लाल रंग ने, अनेकों रंग बिखेरे हैं।

 

मगर एक रंग है अदभुत, जो प्रकृति में अनौखा है।

प्रेम रंग रंग है ऐसा, जिसे कान्हा में देखा है।

मगर एक रंग है अदभुत, जो प्रकृति में निराला है।

प्रेम रंग रंग है ऐसा, विष भी अमृत का प्याला है।

 

रंगीन त्यौहार है आया , कि  मन खुशियों से झूमे है।

हरे ,नीले, लाल रंग ने, अनेकों रंग बिखेरे हैं।

 

भाव ऐसा जगा कान्हा, कि कटु दुर्भाव मिट जाए।

आहुति नफरत की देकर, प्रेम रंग में ही रंग जाएं।

ये रुसवाई मिटा कान्हा, प्रेम ज्योति में छिप जाए।

रहे कोई ना बेगाना, सभी मुझमें ही रम जाएं।

 

रंगीन त्यौहार है आया, कि मन खुशियों से झूमे है।

हरे, नीले लाल रंग ने, अनेकों रंग बिखेरे हैं।

 

बुराई पर अच्छाई जीत की, हासिल करो एक बार।

सोच बदलो, नजर बदलो, नजरिया बदल जाए हर बार।

फिर पतझड़ में भी आ जाए, बसंत मन फूलों सी बहार।

फिर देखो खुशनुमा और जगमगाता आपका संसार।

 

रंगीन त्यौहार आया है, कि  मन खुशियों से झूमे है।

हरे, नीले, लाल रंग ने, अनेकों रंग बिखेरे हैं।

©  डॉ निशा अग्रवाल

(ब्यूरो चीफ ऑफ जयपुर ‘सच की दस्तक’ मासिक पत्रिका)

एजुकेशनिस्ट, स्क्रिप्ट राइटर, लेखिका, गायिका, कवियत्री

जयपुर ,राजस्थान

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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