हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 75 ☆ राम ने है देह त्यागी… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “राम ने है देह त्यागी…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 75 ☆ राम ने है देह त्यागी… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

फिर नदी के शांत जल में

राम ने है देह त्यागी ।

 

अब नहीं होता कोई

ऋषि आहत क्रोंच्च बध से

नहीं लिखता चरित मानस

अब कोई तुलसी अबध से

 

भोगती वनवास जनता

नहीं सम्मोहन से जागी।

 

प्रतीक्षा में हैं पड़ीं

उद्धार को शापित शिलाएँ

हारता पुरुषार्थ पल-पल

टूटतीं बस प्रत्यंचाएँ

 

फिर किसी हलधर जनक का

हो गया है मन विरागी।

 

नाभि कुंडों में भरा है

हर किसी रावण के अमृत

और शक्ति के पुजारी

कर रहे उनको ही उपकृत

 

भूमिजा भू में समायी

अयोध्या फिर हुई अभागी।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अमृत ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – अमृत ? ?

एक ओर

चखनी पड़ी

प्रशंसा की

गाढ़ी चाशनी,

दूसरी ओर

निगलना पड़ा

आलोचना का

नीम काढ़ा,

वह मीठा ज़हर

बाँटेगा या फिर

लपटें उगलेगा?

उसने कलम उठाई

मथने लगा आक्रोश,

बेतहाशा खींचने लगा

आड़ी-तिरछी रेखाएँ,

सृजन की आकृति

बनने, दिखने लगी,

अमृत की धार

बिछने, जमने लगी…!

© संजय भारद्वाज  

( प्रात: 4.40 बजे, 12 नवम्बर 2019)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 नवरात्रि साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र ही देंगे 💥🕉️ 

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 79 ☆ गैर मुमकिन है हार हो तेरी… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “गैर मुमकिन है हार हो तेरी“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 79 ☆

✍ गैर मुमकिन है हार हो तेरी… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

यूँ बसर हमने ज़िन्दगीं की है

हर नफ़स गम से दोस्ती की है

 *

मैं न काफ़िर हूँ फिर भी तुझसे मिल

इश्क़ में तेरी वन्दगी की है

 *

ग़म ख़ुशी जो भी दो कबूल मुझे

मैंने शिद्दत से आशिक़ी की है

 *

मिट गई जेहल की अमावस्या

इल्म की जबसे रोशनी की है

 *

जीत कैसे चुनाव में मिलती

तुमने सौगात में कमी की है

 *

गैर मुमकिन है हार हो तेरी

तूने दिल से अगर सई की है

 *

आप को क्यों बुरा लगा इतना

बात उसने बड़ी खरी की है

 *

यूँ न बेकार बैठते ए अरुण

तुमने तालीम कागज़ी की है

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिंदी साहित्य – कविता ☆ कोहरा… ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ कविता ☆ कोहरा… ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

धूप की राहें रोक रखी हैं

कहते हैं भीषण कोहरा है।

चाँद छुएंगे एक ही रट है

फलक पे कब कोई ठहरा है।

पाँव थमे तो रुकी जिन्दगी

इसका अर्थ बड़ा ही गहरा है।

साधू की कुटिया के आगे

गुंडों मुस्टंडों का पहरा है।

मूरत का कद ऊँचा कर लो

आदम तो बौना बहरा है ।

रावण को रावण फूँक रहा

कहते हैं यही दशहरा है ।

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 208 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of social media # 208 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 208) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 208 ?

☆☆☆☆☆

चलो अब जाने भी दो

क्या करोगे दास्तां सुनकर

खामोशी तुम समझोगे नहीं

और हमसे बयाँ होगा नहीं…

☆☆

Let’s leave it at that now….

What’ll you do by hearing my story

You won’t understand the silence

And I’ll not be able to explain…!

☆☆☆☆☆

मेरी तमन्ना न थी कभी

तेरे बगैर रहने की मगर

मजबूर को मजबूर की

मजबूरीयां मजबूर कर देती हैं!

☆☆

Never did I desire to

Live without you but…

The helplessness compels 

the helpless to live without!

☆☆☆☆☆

कैदी हैं सब यहाँ…

कोई ख्वाबों का..

तो कोई ख्वाहिशों का..

तो कोई ज़िम्मेदारियों का…

☆☆

Everyone is prisoner here,

Some of their dreams,

While some of their desires…

Others of responsibilities…

☆☆☆☆☆

होती तो हैं ख़ताएँ

हर एक से मगर…

कुछ जानते नहीं हैं

कुछ मानते नहीं…

☆☆

Committal of mistakes

Happens by everyone…

Some are not aware of it

While others don’t accept it…

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 208 ☆ जागो माँ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है नवरात्रि पर्व पर विशेष जागो माँ…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 208 ☆

जागो माँ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

जागो माँ! जागो माँ!!

सीमा पर अरिदल ने भारत को घेरा है

सत्ता पर स्वार्थों ने जमा लिया डेरा है

जनमत की अनदेखी, चिंतन पर पहरा है

भक्तों ने गाली का पढ़ लिया ककहरा है 

सैनिक का खून अब न बहे मौन त्यागो माँ

जागो माँ! जागो माँ!!

*

जनगण है दीन-हीन, रोटी के लाले हैं 

चिड़ियों की रखवाली, बाज मिल सम्हाले हैं

नेता के वसन श्वेत, अंतर्मन काले हैं

सेठों के स्वार्थ भ्रष्ट तंत्र के हवाले हैं

रिश्वत-मँहगाई पर ब्रम्ह अस्त्र दागो माँ

जागो माँ! जागो माँ!!

*

जन जैसे प्रतिनिधि को औसत ही वेतन हो

मेहनत का मोल मिले, खुश मजूर का मन हो

नेता-अफसर सुत के हाथों में भी गन हो 

मेहनत कर सेठ पले, जन नायक सज्जन हो

राजनीति नैतिकता एक साथ पागो माँ

*

सीमा पर अरिदल ने भारत को घेरा है

सत्ता पर स्वार्थों ने जमा लिया डेरा है

जनमत की अनदेखी, चिंतन पर पहरा है

भक्तों ने गाली का पढ़ लिया ककहरा है 

सैनिक का खून अब न बहे मौन त्यागो माँ

जागो माँ! जागो माँ!!

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१८-४-२०१४

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिंदी साहित्य – कविता ☆ ज़िंदगी और दरख़्त… ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ कविता ☆ ज़िंदगी और दरख़्त… ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

किसी दरख़्त के

पीले पत्तों की तरह

झर रहे हैं

दिन

जिन्दगी की शाख से

 

बेआवाज़

 

दर्द तो होता होगा

ऐसा ही कानून है

कुदरत का

 

हर वक्त शोर

जरूरी तो नहीं

 

नवांकुर

 रक्तिम, कुछ तांबई टूसे

कोमल, कच्चे हरे रंग के

नव पल्लव

पल पल रंग बदलते हैं

न कोई आहट

न सूचना

 

सुबहें चुपचाप

दोपहर से

सांझ में ढलकर

स्याह रात में खो जाती हैं

 

पीले सूखे पत्तों को

 हाँकती है हवा

जाने कहाँ कहाँ

 

समेट लेती है

धरती अपने

आँचल में

 

न दरख्त कुछ कह पाता है

न जिन्दगी

एक अचीन्हा दर्द

अछोर

बिखर जाता है

चहुँ ओर।

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – औरत ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – औरत ? ?

(एस.एन.डी.टी.महिला विश्वविद्यालय के एम.ए. के पाठ्यक्रम में सम्मिलित की गई कविता ‘औरत’)

मैंने देखी-

बालकनी की रेलिंग पर लटकी

खूबसूरती के नए एंगल बनाती औरत;

मैंने देखी-

धोबीघाट पर पानी की लय के साथ

यौवन निचोड़ती औरत;

मैंने देखी-

कच्ची रस्सी पर संतुलन साधती

सॉंचेदार, खट्‌टी-मीठी औरत;

मैंने देखी-

चूल्हे की आँच में

माथे पर चमकते मोती संवारती औरत;

मैंने देखी-

फलों की टोकरी उठाये

सौंदर्य के प्रतिमान लुटाती औरत।

अलग-अलग किस्से

अलग-अलग चर्चे

औरत के लिए राग एकता के साथ

सबने सचमुच देखी थी ऐसी औरत,

बस नहीं दिखी थी उनको-

रेलिंग पर लटककर

छत बुहारती औरत;

धोबीघाट पर मोगरी के बल पर

कपड़े फटकारती औरत;

रस्सी पर खड़े हो अपने बच्चों की

भूख को ललकारती औरत;

गूँधती-बेलती-पकाती

पसीने से झिजती

पर रोटी खिलाती औरत;

सिर पर उठाकर बोझ

गृहस्थी का जिम्मा बॅंटाती औरत;

शायद-

हाथी और अंधों की कहानी की तर्ज पर

सबने देखी अपनी सुविधा से

थोड़ी-थोड़ी औरत;

अफसोस-

किसीने नहीं देखी एक बार में

पूरी की पूरी औरत!

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 नवरात्रि साधना कल सम्पन्न हो गई 💥

🕉️ आज विजयादशमी के निमित्त रामरक्षास्तोत्रम् के पाठ करेंगे 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ ‘सार्थक’ श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Contemplation…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poetry “सार्थक.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना

? संजय उवाच – सार्थक ? ?

एक बात और, यदि जीवन में कभी भी, किसी भी पड़ाव पर मृत्यु आ सकती है तो किसी भी पड़ाव पर जीवन आरंभ क्यों नहीं हो सकता? इसीलिए कहा है,

कदम उठे,

यात्रा बनी,

साँसें खर्च हुईं

अनुभव संचित हुआ,

कुछ दिया, कुछ पाया

अर्द्धचक्र पूर्ण हुआ,

भूमिकाएँ बदलीं-

शेष साँसों को

पाथेय कर सको

तो संचय सार्थक है

अन्यथा

श्वासोच्छवास व्यर्थ है..!

ध्यान रहे, जीवन में वर्ष तो हरेक जोड़ता है पर वर्षों में जीवन बिरला ही फूँकता है। आपका बिरलापन प्रस्फुटन के लिए प्रतीक्षारत है।

© संजय भारद्वाज  

मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

?~ Contemplation ~??
Just a contemplation,

If death can come

at any stage of life,

then why can’t life

begin at any stage?

 

Steps were taken,

The journey was made,

Breaths were consumed,

Experience was accumulated,

Something was given,

Something was received…

 

The semi-circle got completed,

Roles got reversed

If you can make the

remaining breaths

worth journeying,

Then only,

accumulation is worthwhile,

Else,

Breathing is futile..!

 

Remember,

Everyone adds years to life,

but only a few

breathe life into years.

Your rarity

is waiting to blossom…!

??

~ Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 134 ☆ मुक्तक – ।। विजयदशमी पर्व ।। भीतर का भी रावण मारें ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 134 ☆

☆ मुक्तक ।। विजयदशमी पर्व ।। भीतर का भी रावण मारें ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

[1]

समाज का  सुधार भी  करें और  खुद  को   भी  सुधारें।

दूसरों की ही  गलती    नहीं अंतःकरण को भी   निहारें।।

विजयदशमी  का  यह   पर्व है  बुराई  पर  जीत   का।

बस पुतला दहन  ही काफी नहीं  भीतर का रावण  मारें।।

[2]

हमारे भीतर  छिपा  दशानन उसको भी हमें  हराना   है।

काट-काट कर दस शीश हमें नामो   निशान  मिटाना है।।

यही होगा  विजयदशमी पर्व का  सच्चा  हर्ष  उल्ल्हास।

अपने भीतर के रावण  पर भी हमें विजय को पाना है।।

।। विजयदशमी पर्व की अनन्त असीम शुभकामनाओं सहित।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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