हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 117 – गीत – कहूँ योजना… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण गीत – कहूँ योजना।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 117 – गीत – कहूँ योजना…  ✍

नाम तुम्हारा क्या जानूँ मैं

मन कहता मैं कहूँ योजना।

 

गौरवर्ण छविछाया सुन्दर

अधरों पर मुस्कान मनोहर

हँसी कि जैसे निर्झरणी हो

मत प्रवाह को कभी थामना।

 

अंत: है इच्छा की गागर

आँखों में सपनों का सागर

मचल रहीं हैं लोल लहरियाँ

प्रकटित होती मनो कामना ।

 

राधा रस का है आकर्षण

मनमोहन का पूर्ण समर्पण

सम्मोहन के गंधपाश में

कोई कैसे करे याचना ।

 

अपलक देखा करें नयन, मन

मन रहता है उन्मन उन्मन

शब्दों के संवाद अधूरे 

मन ही मन मैं करूँ चिन्तना।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 119 – “सिर्फ भौंह की ओट…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत –सिर्फ भौंह की ओट।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 119 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “सिर्फ भौंह की ओट…” || ☆

अब उलाहना देती है

मेरे घर की छानी

जिसे बनाकर थकी,

हार कर विवश मरी नानी

 

रही चौंकती फुरसत,

जिन के दरवाजे आकर

और लौटता रहा पसीना

समझा समझा कर

 

सिर्फ भौंह की ओट

सम्हलता आया अनुशासन

कामचोर ना कर पाये

थे अपनी मनमानी

 

उन्हे बाद में मिल ना पाया

मान कभी इस घर

वह नानी हर समय रही

जो सेवा को तत्पर

 

उनकी बेटी, मेरी माँ,

जोर शून्य बनी ठहरी

उसको  यह पीड़ा आयी

थी सच में अनजानी

 

इस कुटुम्ब की उठा

पटक का कारण था मामा

उसकी पत्नी चमत्कार सँग

थी अन्तर्यामा

 

यह सम्मिलत व्यवस्था

लगती तो थी सम्मानित 

जिसका साज सम्हाल

मर गई थी करती नानी

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

14-12-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अलख ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ मार्गशीष साधना सम्पन्न हो गई है। 🌻

अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र ही दी जाएगी  

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि –  अलख ??

जीवन क्षणभंगुर है;

सिक्का बताता रहा,

समय का चलन बदल दिया;

उसने सिक्का उलट दिया…,

क्षणभंगुरता में ही जीवन है;

अब सिक्के ने कहा,

शब्द और अर्थ के बीच

अलख दृष्टि होती है,

लघु से विराट की यात्रा

ऐसे ही होती है..।

© संजय भारद्वाज 

प्रात: 9:46 बजे, 15 दिसम्बर 2021

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 166 ☆ – “छकौड़ी की परेशानी”☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर एवं विचारणीय कविता –‘छकौड़ी की परेशानी’)

☆ कविता # 166 ☆ ‘छकौड़ी की परेशानी’ ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

छकौड़ी परेशान है।

 

खेत की धान

सुअर चर गए,

छकौड़ी का बैल

भूखा मर गया,

राशन कार्ड को

चूहे कुतर गए,

 

छकौड़ी परेशान है। 

 

गांव के मालगुजार से

उधारी के ब्याज से,

पत्नी की बीमारी से

मंहगी मंहगाई से

अनाज उगाने से

एड़ी के फफोलों से

खेत के चिल्लाने से

पैसे उगाने वालों से

 

छकौड़ी परेशान है।

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ काश कर सकूँ… ☆ श्री जयेश वर्मा

श्री जयेश वर्मा

(श्री जयेश कुमार वर्मा जी  बैंक ऑफ़ बरोडा (देना बैंक) से वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। हम अपने पाठकों से आपकी सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ समय समय पर साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता काश कर सकूँ)

यूट्यूब लिंक >> https://youtu.be/RbvnfV76mVI

☆ कविता  ☆ काश कर सकूँ… ☆ श्री जयेश वर्मा ☆

कभी तेरे चेहरे को हाथों में ले

नेह जता सकूँ 

कभी उन छलके हुए

आंसुओं को दिलासा दे सकूँ 

 

यूं तो छुपा लिए हैं तुमने

मुझसे दर्द आंसुओं के

वो चेहरा ही दिखा दो

छुपाया है मुझसे, तो बता सकूँ 

 

जो वक्त ने किया बेइंसाफ

तेरे चेहरे पे लकीर खेंच कर

जिसने कभी रुसवा, किसी को

बेइंसाफ नहीं किया..

 

©  जयेश वर्मा

संपर्क :  94 इंद्रपुरी कॉलोनी, ग्वारीघाट रोड, जबलपुर (मध्यप्रदेश)

मो 7746001236

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 108 ☆ # कवि… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है दीप पर्व पर आपकी एक भावप्रवण कविता “#कवि…#”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 108 ☆

☆ # कवि… # ☆ 

हे प्रगतिशील होने का

दावा करने वाले कवि

भूख, गरीबी, अन्याय पर

धावा करने वाले कवि

यहां सदियों से लोग

भीख मांगकर

पेट की आग बुझाते हैं  

गंदे नल का पानी पीकर

अपनी प्यास बुझाते हैं

खुले आसमान के नीचे

सोकर रात बिताते हैं

ठंड और बरसात में

पेपर ओढ़ते हैं

पेपर बिछाते हैं

हर मौसम लेता इम्तिहान है

वो तो कहने को इंसान है

अधनंगा तन, बेचैन मन

दर दर भटकता है

उन्हें दरवाजे पर देख

तुम्हें कितना खटकता है

वो हर गाली, दुत्कार सहते हैं

सहमी हुई आंखों से अश्रु बहते है

उनमें से ही कोई

जब आवाज उठाता है

अपना आक्रोश जताता है

उसे जेल में

डाल दिया जाता है

वो आजीवन बाहर नहीं आता है

 

उसके दुःख दर्द पर

तुमने कब कविता लिखी है

तुम्हारी लेखनी में

उनकी पीड़ा कब दिखी है

तुमने इस अन्याय के खिलाफ

कब मोर्चा खोला है

खुले आम अपनी कविता से

कब हल्ला बोला है

तुम्हारी चुप्पी

इस अन्याय का कारण है

क्योंकि तुम जैसे लोग

सरमायेदारों के चारण है

तुमको मैं कैसे

अंबर का प्रखर रवि लिखूं

तुमको मैं कैसे

महान कवि लिखूं

गर तुम इस व्यवस्था के

खिलाफ लिखते

तो हाथों हाथ बिकते

हमारी आने वाली पीढ़ियाँ

इससे ही कुछ सीखते

हे कवि!

तुमने अगर ये हुनर सीखा होता

तो आज तुम्हारा नाम

हमारे हृदय पर लिखा होता

हमारे हृदय पर लिखा होता//

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 119 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 119 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 119) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 119 ?

🌼अनायास🌺

उसने कहा

कॉफी पियोगे

मैंने कहा नहीं

मुझे चाय पसंद है

उसने चाय और कॉफी मिलाकर बनाई

अब उसके लिये वो कॉफी थी और मेरे लिये चाय.

 

उसने कहा

चाय पीते वक्त

आवाज़ बहुत करते हो तुम

मैंने कहा हाँ आदत है

फिर उसने कहा

ये आदत कभी मत छोड़ना

चाहे मै भी कहूँ.

 

उसने कहा

रुमाल क्यों नहीं रखते तुम

मैंने कहा

आदत नहीं है

उसने कहा

हर वक्त मेरे पास

कॉटन का दुपट्टा नहीं होता है

आदत बदल लो अपनी.

 

उसने कहा

मुझसे कभी मत मिलना

आज के बाद

मैंने कहा

ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी

वो गुस्से में भी हंस पड़ी

और बोली

मेरी मर्जी की परवाह करने वाले से तो

बार बार मिलना ही पड़ेगा…

❤️

🌼 Spontaneity 🌺

She said

have coffee

I said:

No, I like tea

She made tea and coffee mixed

Now, it was coffee for her and tea for me.

 

She said:

While drinking tea,

you make a lot of noise

I said: Yes, I do, it’s my habit

Then she said:

Never give up this habit

Even if I say…

 

She said:

Why don’t you keep a handkerchief

I said:

I’m not used to of…

She said:

I don’t always carry

a cotton scarf with me

Change your habit…

 

She said:

Never meet me after today

I said:

Ok, as you wish…

She burst into laughter even in anger

and said:

I’ll have to meet again and again with someone who cares so much about my wishes…!

❤️

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 119 ☆ “सॉनेट ~ नर्मदा” ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित “सॉनेट ~ नर्मदा”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 119 ☆ 

☆ सॉनेट ~ नर्मदा ☆

नर्मदा सलिला सनातन,

करोड़ों वर्षों पुरानी,

हर लहर कहती कहानी।

रहो बनकर पतित पावन।।

 

शिशु सदृश यह खूब मचले,

बालिका चंचल-चपल है,

किशोरी रूपा नवल है।

युवा दौड़े कूद फिसले।।

 

सलिल अमृत पिलाती है,

शिवांगी मोहे जगत को।

भीति भव की मिटाती है।।

 

स्वाभिमानी अब्याहा है,

जगज्जननी सुमाता है।

शीश सुर-नर नवाता है।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१४-१२-२०२२

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिंदी साहित्य – कविता ☆ माँ के दियें ☆ डॉ अमिताभ शंकर राय चौधरी ☆

डॉ अमिताभ शंकर राय चौधरी

(डॉ अमिताभ शंकर राय चौधरी जी एक संवेदनशील एवं सुप्रसिद्ध साहित्यकार के अतिरिक्त वरिष्ठ चिकित्सक  के रूप में समाज को अपनी सेवाओं दे रहे हैं। अब तक आपकी चार पुस्तकें (दो  हिंदी  तथा एक अंग्रेजी और एक बांग्ला भाषा में ) प्रकाशित हो चुकी हैं।  आपकी रचनाओं का अंग्रेजी, उड़िया, मराठी और गुजराती  भाषाओं में अनुवाद हो  चुकाहै। आप कथाबिंब ‘ द्वारा ‘कमलेश्वर स्मृति कथा पुरस्कार (2013, 2017 और 2019) से पुरस्कृत हैं एवं महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा द्वारा “हिंदी सेवी सम्मान “ से सम्मानित हैं।)

☆ कविता ☆ माँ के दियें ☆ डॉ अमिताभ शंकर राय चौधरी 

थक कर जब घर लौटा तो छू

गई मुझे पुरवाई।

दस्तक देते मानो माँ ने

कहा, ‘ठहर मैं आई।’

मेरे बालों को सहलाकर

हवा भी फुसफुसाई,

‘तेरी माँ की छूअन लेकर

तुझको देने आई।’

पारिजात का पेड़ खड़ा था

खूब हिलायी शाखें,

उसके सफेद फूल गिरे सब

मेरे सिर पर आके।

माँ की ममता ऐसे ही क्या

बरस रही है मुझ पर?

चारों ओर बिखर गये फूल

माँ की खुशबू लेकर।

एकबार माँ तुझको देखूँ

तरस रही थी आँखें,

तुझको छूने मन था आतुर

फैलाया था पाँखें।

मन आँगन में फिर से कोई

खिड़की ही खुल जाती।

माँ खिड़की से झाँक झाँक कर

मानो मुझे बुलाती।

दूर गगन में बैठी माँ ने

दियें जलाये सारे –

रात अँधेरी, राह दिखाने –

आसमान में तारे !

♦♦♦

© डॉ. अमिताभ शंकर राय चौधरी

नया पता: द्वारा, डा. अलोक कुमार मुखर्जी, 104/93, विजय पथ, मानसरोवर। जयपुर। राजस्थान। 302020

मो: 9455168359, 9140214489

ईमेल: [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आत्मानंद साहित्य #151 ☆ कविता – आज ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 151 ☆

☆ ‌कविता – आज ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

जो बीत गया वो भूतकाल था,

जो‌ बचा हुआ वह आज है।

उसका संबंध है भविष्य काल से,

यही तो गहरा‌ राज है।

आज की मेहनत पर टिका हुआ,

सफल भविष्य  का साज है।

कर्मवीर मानव  अपने कर्मों पे

करता नाज है।

आज की मेहनत का परिणाम ‌

सदैव भविष्य में मिलता है।

अकर्मण्य पछताता है,

उसका दुखी मिजाज है।

भूतकाल ना लौट के आए,

खाली स्मृतियों में दिखता है।

जिसने मेहनत किया आज,

वह नई उंचाई छूता है।

वह चढ़ा बुलंदी की छाती पर,

उसे आज दुआएं  देता है।

इस समय के रूप तीन है भाई,

 कल आज और कल।

  बीते समय को आज भुला कर,

आगे आगे  तू अब  चल।

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

14.12.2022, 10.04 

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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