हिन्दी साहित्य – कविता ☆ चलता हुआ आदमी ☆ श्री रामस्वरूप दीक्षित ☆

श्री रामस्वरूप दीक्षित

(वरिष्ठ साहित्यकार  श्री रामस्वरूप दीक्षित जी गद्य, व्यंग्य , कविताओं और लघुकथाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। धर्मयुग,सारिका, हंस ,कथादेश  नवनीत, कादंबिनी, साहित्य अमृत, वसुधा, व्यंग्ययात्रा, अट्टाहास एवं जनसत्ता ,हिंदुस्तान, नवभारत टाइम्स, राष्ट्रीय सहारा,दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, नईदुनिया,पंजाब केसरी, राजस्थान पत्रिका,सहित देश की सभी प्रमुख पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित । कुछ रचनाओं का पंजाबी, बुन्देली, गुजराती और कन्नड़ में अनुवाद। मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन की टीकमगढ़ इकाई के अध्यक्ष। हम समय समय पर आपकी सार्थक रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास करते रहते हैं।

☆ कविता  – चलता हुआ आदमी ☆श्री रामस्वरूप दीक्षित ☆

बिना थके

बिना रुके

लगातार चलता हुआ

एक

निडर , निहत्था आदमी

 

खींच देता है

तानाशाह की नींद की चादर

 

और बिखर जाते हैं

चादर की तहों में लिपटे

खूंखार सपने

 

एक मेमना

खींच देता है

शेर के कान

 

शेर की दहाड़

 तोड़ देती है दम

उसी के गले में

 

जंगल देखने लगा है

आजादी का स्वप्न

 

चलता हुआ आदमी

एक बयान है

ठहरे हुए समय के खिलाफ

 

© रामस्वरूप दीक्षित

सिद्ध बाबा कॉलोनी, टीकमगढ़ 472001  मो. 9981411097

ईमेल –[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 137 ☆ बाल कविता – सूरज जी नारंगी जैसे…  ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 137 ☆

☆ बाल कविता – सूरज जी नारंगी जैसे ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

सूरज जी बच्चे – से बनकर

प्राची में  निकले हैं गोल।

नारंगी – से दिखें एकदम

जाने कितना इनका मोल।।

 

कोहरे की चादर में लिपटे

धीरे – धीरे ऊपर आए।

तुलसी अदरक चाय मिली तब

थोड़ा कोहरे से बच पाए।।

 

ज्यों – ज्यों बढ़ते ऊपर को तब

किरणें स्वर्णिम खूब बिखेरीं

शरद धूप तन उर्जित करती

सबके ही अनुकूल उजेरी।।

 

वर्षा गई उड़न छू गरमी

शरद ऋतु है मुस्काई।

छोटे दिन भी प्रीत लिख रहे

बहती शीतल पुरवाई।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #159 – मन दर्पण में… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी  एक अतिसुन्दर, भावप्रवण एवं विचारणीय कविता  “मन दर्पण में…”। )

☆  तन्मय साहित्य  #159 ☆

☆ मन दर्पण में…

फूल, शूल, तरु-लता, पर्ण

इस मन के उपवन में

प्रिय-अप्रिय पल पाल रखे

कितने अंतर्मन में।

 

बन्द करी आँखें तो,

रंगबिरंगे स्वप्न दिखे

तब अन्तस्‌ अवचेतन ने

कुछ मधुरिम छंद लिखे,

उलझे रहे स्वकल्पित

गन्धों के अपनेपन में।

प्रिय-अप्रिय पल —-

 

हुआ उजाला दिन भर

हम सूरज के साथ चले

किया हिसाब सांझ को

तो, घाटे में हाथ मले,

देख चांदनी बहके फिर

बिलमाये नर्तन में।

प्रिय-अप्रिय पल —-

 

कभी विषैली हवा हमें

कुंठित कर जाती है

कभी जिंदगी सुरभित

फूलों सी मुस्काती है,

पल-पल बदले चित्र-विचित्र

दिखे मन दर्पण में।

प्रिय-अप्रिय पल —-

 

वही वही, फिर-फिर

जीवन भर करना पड़ता है

वह मेरा अबूझ जो है,

सब कैसे सहता है, 

आतुर भी आनंदित भी

अभिनव परिवर्तन में।

प्रिय अप्रिय पल पाल रखे

कितने अंतर्मन में।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 49 ☆ बुन्देली गीत – नाचो मोर… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण बुन्देली गीत “नाचो मोर…”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 49 ✒️

? बुन्देली गीत – नाचो मोर…  ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

अंधियारौ छाओ चहुँओर ।

बन में खुस हो नाचो मोर॥॥

 

रंग-बिरंगे, पंखा जिनमें,

टकीं तरैयाँ भीतर उनमें,

‘लरकन बच्चन को चितचोर।

बन में………… ॥

 

करिया-करिया बदरा आये,

मोरन नें पंखा फैलाये,

मींऊँ-मींऊँ कौ हो रऔ सोर।

बन में………… ॥

 

मोर-मोरनी बन में नाचत,

जबईं ढोल बदरा के बाजत,

हौन लगी सतरंगी भोर।

बन में………… ॥

 

मुकुट-कान्ह के पंख विराजै,

भौत हमाये मन कौं साजै,

कलगी माथे धरी सिरमोर।

बन में………… ॥

 

साँची-साँची आज तैं बोल,

का लै है पंखन कौ मोल,

जंगल बनौ कय “सलमा” ठौर।

बन में………… ॥

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 115 – गीत – क्षण को क्यों बचा लिया ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण गीत –क्षण को क्यों बचा लिया।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 115 – गीत – क्षण को क्यों बचा लिया ✍

अर्पित अगर किया है जीवन

तो क्षण को क्यों बचा लिया।

 

क्षण का ही विस्तार समय है

प्रेम नहीं कुछ केवल लय हैं

विलय अगर कर दिया स्वयं का

तो मन को क्यों बचा लिया?

 

मन का मधुबन ही तो सच है

तन का क्या वह मात्र कवच है

सौंप दिया है मन मधुबन

तो तन को ही क्यों बचा लिया।

 

अर्पित अगर किया है जीवन

क्षण को क्यों बचा लिया।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 117 – “रिस रही है धूप…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “रिस रही है धूप।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 117 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “रिस रही है धूप” || ☆

खास जरदोजी

चिकन के

हम बँधे हैं फूल

चोटी में रिबन के

 

जहाँ अम्बर व

वनस्पति में हँसी है

जो समयकी

शिराओं में जा बसी है

 

हृदय में उल्लास

की उठती तरंगें

बिम्ब हैं लटके गगन

हम पीत दिन के

 

रिस रही है धूप

चुपचाप छप्पर से

हो रही है भीड़

वापस इस शहर से

 

बिखरती जूड़े से

व्यव्हल रोशनी

केश फैले ज्यों दिखे

हों नव किरन के

 

ताँम्बियाँ संध्या

बदल कर नई साड़ी

खींचने में लगी

दिन की बड़ी गाड़ी

 

औरअस्ताचल

पहुँच कर खोजती

कुन्तलों में छोर

खोंसी गई पिनके

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

17-11-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – प्रकृति ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ मार्गशीष साधना🌻

आज का साधना मंत्र  – ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – प्रकृति ??

प्रकृति ने चितेरे थे चित्र चहुँ ओर,

मनुष्य ने कुछ चित्र मिटाए,

अपने बसेरे बसाए,

 

प्रकृति बनाती रही चित्र निरंतर,

मनुष्य ने गेरू-चूने से

वही चित्र दीवारों पर लगाए,

प्रकृति ने येन केन प्रकारेण

जारी रखा चित्र बनाना,

मनुष्य ने पशुचर्म, नख, दंत सजाए,

 

निर्वासन भोगती रही,

सिमटती रही, मिटती रही,

विसंगतियों में यथासंभव

चित्र बनाती रही प्रकृति,

 

प्रकृति को उकेरनेवाला,

प्रकृति के ख़ात्मे पर तुला,

मनुष्य की कृति में

अब नहीं बची प्रकृति,

 

मनुष्य अब खींचने लगा है

मनुष्य के चित्र..,

मैं आशंकित हूँ,

बेहद आशंकित हूँ..!

© संजय भारद्वाज 

(प्रातः 10:21 बजे, 21.8.2019)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 106 ☆ # खाली हाथ जाना है… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है दीप पर्व पर आपकी एक भावप्रवण कविता “#खाली हाथ जाना है…#”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 106 ☆

☆ # खाली हाथ जाना है… # ☆ 

जीवन की आपाधापी में

क्या खोना क्या पाना है

जन्म लिया है इस धरती पर

तो सब को एक दिन जाना है

 

कांटों को सहलाओ तुम

फूलों सा मुस्कराओ तुम

जीवन जो मिला है तो

परोपकार में लगाओ तुम

 

स्वर्ग यहीं है नरक यहीं है

कर्म भाग्य की रेखा है

पाप, पुण्य सब साथ है तेरे

कल को किसने देखा है

 

जब तक सांस चलेगी तब तक

हर पल एक जिज्ञासा है

कभी खुशी तो कभी गम है

यही जीवन की परिभाषा है

 

कैसा घमंड, कैसा अहंकार

यह तो सब फानी है

याद रहते हैं वहीं दुनिया में

जिनकी सबसे अलग कहानी है

 

धन संपदा, पद प्रतिष्ठा

यहीं पर रह जाना है

खाली हाथ आया था जग में

खाली हाथ ही जाना है/

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 117 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 117 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 117) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 117 ?

☆☆☆☆☆

जिस रोज़ से तूने छोड़ा इसे

हमने भी खाली ही रखा है,

यहां तलक खुशियों को भी

इस दिल में ठहरने न दिया…

☆☆

Ever since you vacated it,

I’ve also kept it empty only

Not even allowed the joy

to enter in this heart…!

☆☆☆☆☆ 

तजुर्बे अजीबो गरीब

हैं ज़िंदगी के कई,

ज़ालिम भी बने हैं

किरदार बंदगी के कई…

☆☆

Many experiences of life

are intriguingly strange…

Seen many oppressors too

becoming servitors of God…!

☆☆☆☆☆ 

 मैं फूल ही चुनती रह गई और

मुझे ख़बर तलक नहीं हुई

कि वो शख़्स मेरे शहर में

आकर चला भी गया…!

☆☆

 I kept picking flowers only

and didn’t even know that…

That person came to my

city and went away…!

☆☆☆☆☆ 

 ऐ ज़िंदगी तेरे नाराज़ होने

से भी भला क्या होगा…

हमेशा मुसकुराते  रहने का तो

हमारी फितरत में शुमार है…!

☆☆ 

O life, what will happen

even if you get angry

Always keep smiling

is one of my habit…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिंदी साहित्य – कविता ☆कविता ❤ बड़ी ठंड है ! ❤ ☆ डॉ अमिताभ शंकर राय चौधरी ☆

डॉ अमिताभ शंकर राय चौधरी

(डॉ अमिताभ शंकर राय चौधरी जी एक संवेदनशील एवं सुप्रसिद्ध साहित्यकार के अतिरिक्त वरिष्ठ चिकित्सक  के रूप में समाज को अपनी सेवाओं दे रहे हैं। अब तक आपकी चार पुस्तकें (दो  हिंदी  तथा एक अंग्रेजी और एक बांग्ला भाषा में ) प्रकाशित हो चुकी हैं।  आपकी रचनाओं का अंग्रेजी, उड़िया, मराठी और गुजराती  भाषाओं में अनुवाद हो  चुकाहै। आप कथाबिंब ‘ द्वारा ‘कमलेश्वर स्मृति कथा पुरस्कार (2013, 2017 और 2019) से पुरस्कृत हैं एवं महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा द्वारा “हिंदी सेवी सम्मान “ से सम्मानित हैं।)

☆ कविता 🤦‍♀️बड़ी ठंड है ! डॉ अमिताभ शंकर राय चौधरी 

किसकी हिम्मत कहे कि मुझको

                                लगता भीषण जाड़ा।

सुन सुन कर सरदी में मेरी

                               चढ़ता जाता पारा।

सुबह हुई है, और हाथ में

                               गरम चाय की प्याली।

बक बक करते थमा गई वो

                               बुढ़िया ‘मेरी वाली’।

पी रहा हूँ ओढ़ के कम्बल

                               लिहाफ ही मिल जाता।

कौन हाथ से किसे सँभालूँ

                               इसे कौन समझाता ?

मफलर एक बँधा कानो पर

                               पवन नहीं घुस पाये,

जब खेत को चुग गई चिड़िया

                               मनवा क्यों पछताये ?

छीं छीं कहीं शुरू हो जाए

                                छींक, नाक से पानी,

कहीं उठा पटके बुड्ढे को

                              करे क्यों पहलवानी ?

परसों रात हवा थी सन सन

                              मैं तो कोट पहन कर

काँप काँप कर पहुँच गया था

                              जब लिहाफ के अन्दर,

आग बबूला होकर बुढ़िया

                              लगी सुनाने ताने,

ऐसे कौन बेड पर आता?

                              लगे बहुत सठियाने ?

गरम रजाई के अन्दर भी

                              कोट पहन कर सोना ?’

करके गुस्सा हाय मुझे फिर 

                             आता है जी रोना।’

                       ♦♦♦

© डॉ. अमिताभ शंकर राय चौधरी

नया पता: द्वारा, डा. अलोक कुमार मुखर्जी, 104/93, विजय पथ, मानसरोवर। जयपुर। राजस्थान। 302020

मो: 9455168359, 9140214489

ईमेल: [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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