श्री आशीष गौड़
सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री आशीष गौड़ जी का साहित्यिक परिचय श्री आशीष जी के ही शब्दों में “मुझे हिंदी साहित्य, हिंदी कविता और अंग्रेजी साहित्य पढ़ने का शौक है। मेरी पढ़ने की रुचि भारतीय और वैश्विक इतिहास, साहित्य और सिनेमा में है। मैं हिंदी कविता और हिंदी लघु कथाएँ लिखता हूँ। मैं अपने ब्लॉग से जुड़ा हुआ हूँ जहाँ मैं विभिन्न विषयों पर अपने हिंदी और अंग्रेजी निबंध और कविताएं रिकॉर्ड करता हूँ। मैंने 2019 में हिंदी कविता पर अपनी पहली और एकमात्र पुस्तक सर्द शब सुलगते ख़्वाब प्रकाशित की है। आप मुझे प्रतिलिपि और कविशाला की वेबसाइट पर पढ़ सकते हैं। मैंने हाल ही में पॉडकास्ट करना भी शुरू किया है। आप मुझे मेरे इंस्टाग्राम हैंडल पर भी फॉलो कर सकते हैं।”
आज प्रस्तुत है एक विचारणीय एवं भावप्रवण कविता सिद्धार्थ का यज्ञ।
☆ कविता ☆ सिद्धार्थ का यज्ञ ☆ श्री आशीष गौड़ ☆
मेरी सारी सशक्त कामनाओं में मुझे बारंबार अब भी वही खिड़की नज़र आती है ।
जहां से, मैं रोज़ एक ज्वलंत लकड़ी को देखा करता था।
धुएँ से धुलते कुहासे में, उस पेड़ के नीचे मुझे सिद्धार्थ नज़र आते थे ।
फिर रोज़ रोज़ उन शाखाओं को वह काटते रहे ।
अपने घर के आँगन में उन्हें जलाते रहे ॥
हर दिन मैंने, उस खिड़की से पेड़ को पूरा जलता देखा ।
नहीं मैंने नहीं जलाया था उसकी टहनियों को ।
मेरा सरोकार तो सिर्फ़ सिद्धार्थ को बदलते देखना था ।
मैं रोज़, खिड़की से उन्हें ढूँढता ।
मैं रोज़ उनकी चमड़ी क्षण क्षण झुलसती देखता ॥
वह लोग लकड़ी जलाने में लगे रहे और मैं सिद्धार्थ को देखने में।
पूरा पेड़ जल गया और खिड़की खुली की खुली रही ।
सिद्धार्थ का यज्ञ पूरा हुआ और
बुद्ध पेड़ छोड़ के चले गये ।
उस खिड़की से अब सूखा पेड़ दिखता है जिसका मेरुदंड सीधा है और सामने के घर का दरवाज़ा खुला है ॥
© श्री आशीष गौड़
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈