॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #16 (36 – 40) ॥ ☆
रघुवंश सर्ग : -16
अयोध्या के उपवन के शीतल समीरण ने वृक्षो औ’ सरयू के जल को जगाया।
अगवानी की सबने कुश और सेना की, मिल प्रेम से सारा पथ श्रम मिटाया।।36।।
तब कुल पताका सदृश पूज्य कुश प्रजापालक ने ध्वज सहित सेना को अपनी।
निकटस्थ ग्रामीण अंचल में रक्खा, जो शत्रुओं के लिये था असहनीय।।37।।
ज्यों तप्त धरती को वर्षा घनों ने बरस समय पर नित हरा है बनाया।
त्यों कुश की आज्ञा से साधन औ’ कौशल ने उजड़ी अयोध्या को फिर से सजाया।।38।।
फिर मंदिरों के नगर अयोध्या में जहां देवप्रतिमायें देती दिखाई।
कुश ने बुला वास्तुविद पंडितों को, पशुदान के साथ पूजा कराई।।39।।
कामी यथा कान्ता के हृदय में, कुश हुए प्रविशित नृपति के भवन में।
यथोचित भवन राजपुरूषों को देकर, लगाया उन्हें राजय के संचलन में।।40।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈