हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से#10 ☆ पगडंडियों के रास्ते ☆ डॉ. सलमा जमाल

डॉ.  सलमा जमाल

 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 22 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक लगभग 72 राष्ट्रीय एवं 3 अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन। ) 

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है। 

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर भावप्रवण  रचना  “पगडंडियों के रास्ते”। 

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 10 ✒️

?  पगडंडियों के रास्ते —  डॉ. सलमा जमाल ?

इक हंसी दोशीज़ा

पुरुषों को रिक्शे पे लिए ।

जा रही थी ठाट से

पगडंडियों के रास्ते ।।

चलते चलते एक नज़र

ग़ुरूर से देखा मुझे ,

कहती हो ,मंज़िल पर

ढोकर ले जाऊंगी तुझे ,

जोश है तूफ़ान सा,

फ़ख़्र औरत के वास्ते ।

जा रही ——————-।।

 

वाह रे हिंदुस्तान , क्या

हुस्न की तोक़ीर है ,

औरत के कंधे पे बैठे,

मर्द ये रणवीर हैं ,

पाला होगा बाप ने इस ,

परी को किस नाज़ से ।

जा रही ——————–।।

 

रहना था जिसको महलों में,

सड़क पर आ गई ,

नारी की अस्मत देख ,

धरती मां भी शरमा गई ,

अबला नहीं , सबला है ,

यह दुर्गा बनी खाक से ।

जा रही —————–।।

 

हे वतन की रूह ऐ ,

हिंदुस्तां की रहनुमा ,

हालात से लड़कर बनी,

हिम्मते मरदे जवां ,

क़ायम की मिसाल तूने ,

पन्नों में इतिहास के ।

जा रही —————-।।

 

औरत अब पाज़ेब की ,

झंकार तक सीमित नहीं ,

लालो गौहर ,ज़र – ज़ेवर ,

नज़र में क़ीमत नहीं ।

हक़ पाए अपना ‘ सलमा ‘

बराबरी के वास्ते ।

जा रही ——————–।।

 

© डा. सलमा जमाल 

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 11 (71-75)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #11 (71-75) ॥ ☆

क्षत्रि जाति, जिसने किया मम पितु का संहार।

से मैंने बदला लिया कुचल अनेकों बार।।71अ।।

 

लेकिन सोया सर्प ज्यों पा फिर दण्डप्रहार।

धनुर्भंग से मैं हुआ आहत उसी प्रकार।।71ब।।

 

तोड़ उसे तुमने डिगा दिया मेरा विश्वास।            

तोड़ न पाये कोई नृप जिस धनु को सायास।।72।।

 

परशु अस्त्र धारी मेरे हैं दो शत्रु महान।

एक सहस्त्रर्जुन तथा तुम द्वितीय नादान।।74।।

 

अतः यदपि क्षत्रियों का मैंने किया विनाश।

किन्तु न जीता तुम्हें तो मेरा यश-उपहार।।75।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – लेखन ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि –लेखन ??

…मृत्यु पर इतना अधिक क्यों लिखते हो?

…मैं मृत्यु पर नहीं लिखता।

…अपना लिखा पढ़कर देखो।

…अच्छा बताओ, जीवन में अटल क्या है?

…मृत्यु।

…जीवन में नित्य क्या है?

… मृत्यु।

…जीवन में शाश्वत क्या है?

…मृत्यु।

… मैं अटल, नित्य और शाश्वत पर लिखता हूँ।

©  संजय भारद्वाज

(11.42 बजे, 22.1.2020)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

बाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 17 – सजल – नहीं रहा वह कभी अकेला… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है बुंदेली गीत  “नहीं रहा वह कभी अकेला…..। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 17 – सजल – नहीं रहा वह कभी अकेला…

समांत- एला

पदांत- अपदांत

मात्राभार- 16

 

राजनीति में बड़ा झमेला।

सबका-अपना खुला तबेला।।

 

नेतागिरी चलाने खातिर,

मिडयाई सरकस का मेला।

 

हर चुनाव की एक कहानी,

टूटी-टांग से होता खेला।

 

फौज पली है उनकी अपनी,

जनता खाती रहे करेला।

 

एक बार जो चुनकर आता,

नहीं रहा वह कभी अकेला।

 

कर्मी चरणदास कहलाते,

जीवन भर वह खाता केला।

 

भले बुरे की परख किसे अब

फिर भी चला रहे हैं धेला।

 

राजनीति के कुशल खिलाड़ी,

सबने पाल रखे हैं चेला।

 

शासन तंत्र चले जब पीछे,

जनता का चलता है रेला ।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 11 (66-70)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #11 (66-70) ॥ ☆

 

अक्ष बीज कुण्डल सदृश पहन दाहिने कान।

परशुराम थे लग रहे क्षत्रिय-काल समान।।66।।

 

क्षत्रिय द्वारा पितृवध जनित क्रोध को देख।

परशुराम से, समय लख झिझके नृपति विशेष।।67।।

 

हार-सर्प में ‘मणि’ सदृश, पुत्र-शत्रु में राम।

सुनकर दशरथ को हुआ भय औ’ हर्ष ललाम।।68।।

 

‘अर्ध्य’-‘अर्ध्य’-कहते नृपति दशरथ को न निहार।

परशुराम ने राम पर की कुदृष्टि की मार।।69।।

 

परशुराम अति क्रोध से धनुष बाण को तान।

सम्मुख निर्भय राम से बोले शत्रु समान।।70।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 74 – दोहे ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 74 –  दोहे ✍

कुर्सी कुर्सी विराजे, नेता बंदर छाप।

खाना-पीना, उछलना इनके क्रिया कलाप।।

 

आएगा, वह आएगा, राह देखते नित्य ।

कहां न्याय का सिंहासन कहां विक्रमादित्य।।

 

अंधे गूंगे बधिर जो, थामें हाथ कमान ।

फर्क नहीं उनके लिए, मरे राम- रहमान।।

 

मेहनतकश भूखा मरे, अवमूल्यित विद्वान।

हर लठैत ने खोल ली, भैंसों की दुकान।।

 

प्रजातंत्र के पहरुए, पचा गए चौपाल ।

अटकी हो तो दौड़िये, दिल्ली या भोपाल।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 74 – “कैसे रहें सुर्खियों में” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “कैसे रहें सुर्खियों में।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 74 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “कैसे रहें सुर्खियों में” || ☆

ऊँचे भवनों में रह कर के

सिर्फ गरीबी पर लिखना ।

ऐसे गीतों से हट कर कुछ

नया -नया भैया लिखना।।

 

रेशम ही जब बना तुम्हें तो

चमक दिखा करअपनीभी।

शिफ्टकरोअपनी किस्मत को,

ले जुगाड़ वाली चाभी।

 

कभी कभार पाँचतारा में-

फटी जीन्स में भीदिखना।।

 

गया ट्रेंड होरी धनियां का

“कैसे रहें सुर्खियों में।”

सारी दुनियाँ घूम रही है

सन्शोधनी चर्खियों में।

 

इसी विषय पर अपनी प्रतिभा

के मीठे फल को चखना।।

 

यह भी नया ट्रेंड है आया

सरकारों में घुस जाओ।

लिखा भूख या खून पसीने

पर जो तुमने, मिटवाओ।

 

अपने संरक्षण को मन्त्री

स्तर का नेता रखना ।।

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

20-01-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – जर्जर ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि –जर्जर ??

कौन कहता है

निर्जीव वस्तुएँ

अजर होती हैं,

घर की कलह से

घर की दीवारें

जर्जर होती हैं!

©  संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

बाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा 65 ☆ अनुपम वीर सुभाष ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण  कविता  “अनुपम वीर सुभाष”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा 65 ☆ अनुपम वीर सुभाष ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

जिसके गौरव से गौरवांवित भारत का इतिहास है

उन महान पुरुषों में से एक अनुपम वीर सुभाष हैं ।

 

एक चरित्र अनोखा ऐसा जिसके प्रखर प्रकाश में

सभी दूसरे तारे धूमिल से दिखते आकाश में ॥

 

जिसे गृहस्थी , सुख – सपना सब लगता था जंजाल सा

या ऊँची शिक्षा भी जिसने रखी न वैभव लालसा ॥

 

उपन्यास सी जिसकी जीवन – गाथा कई आयाम की

जिसने कभी न की आकांक्षा कहीं , किसी आराम की ॥

 

दृष्टि रही पाने स्वदेश की आजादी का रास्ता

लक्ष्य एक ही रहा , रखा न अधिक किसी से वास्ता ॥

 

दल के भीतर भी विरोध का गरल पान कर शांति से

होकर दूर भ्रांति से नाता जोड़ा निश्चित क्रांति से ॥

 

अपना दर्शन और दिशा ले आगे बढ़ते शान से

अमर आज भी जो जग में है , जन मन में सम्मान से ॥

 

छोड़ा हिन्द , हिन्द के सुख हित नूतन सैनिक वेश ले

“ तुम दो खून मुझे , मैं दूंगा आजादी ‘ का संदेश दे ॥

 

एक धारणा , एक साधना , चिन्ता गहन , समान नित

नारा था ‘ जयहिन्द ‘ शपथ थी मर मिटने की देश हित

 

था मन अनुरंजित भारत माँ के सच्चे अनुराग से

कभी न दम ली रहा खेलता जीवन भर बस आग से ॥

 

गठित फौज आजाद हिन्द कर , खुद उसका नेतृत्व कर

आजादी की विजय पताका , लाते अपने साथ घर

 

अकथ परिस्थितियों में बेबस बढ़ते निज अभियान में

हुआ लुप्त , लग गई आग थी कहते उनके यान में ॥

 

उस महान की याद सँजोये दुखी बहुत इतिहास है

क्योंकि आज भी ‘ कहाँ गया वह ? ‘ कोई प्रमाण न पास है ।

 

वर्षों बाद आज भी उसकी स्मृति में सम्मान से

भारत में ‘ जयहिन्द ‘ का नारा गूँज रहा अभिमान से ॥

 

स्वाभिमान , संकल्प , कर्म पर थी सुभाष की आस्था

जो मानव की कीर्ति भवन तक पहुँचाने का रास्ता ॥

 

उसके पावन देशप्रेम को , साहसमय अभियान को

आओ सब मिल नमन करें , हम वीर सुभाष महान को ॥

 

तेइस जनवरी आज जन्मतिथि उस भारत के लाल की

जिसकी प्रेरक जीवन यात्रा पावन याद उभारती ॥

 

इस दिन ने ही भारत माँ को दिया सपूत सुभाष था

जिस पर भारत जन मानस का अडिग अमर विश्वास था ।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 94 ☆ वीर सुभाष – जन्मदिवस पर विशेष ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे । 

आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण  रचना “वीर सुभाष – जन्मदिवस पर विशेष”. 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 94 ☆

☆ गीत – वीर सुभाष – जन्मदिवस पर विशेष ☆ 

 

आकर वीर सुभाष गर्व से

वंदे मातरम गा जाओ।

वतन याद कर रहा आपको

सरगम तान सुना जाओ।।

 

कतरा – कतरा लहू तुम्हारा

काम देश के आया था

इसीलिए तो आजादी का

झंडा भी फहराया था

गोरों को भी छका- छका कर

जोश नया दिलवाया था

ऊँचा रखकर शीश धरा का

शान – मान करवाया था

 

सत्ता के भूखे पेटों को

कुछ तो सीख सिखा जाओ।

वतन याद कर रहा आपको

सरगम तान सुना जाओ।।

 

नेताजी उपनाम तुम्हारा

सब श्रद्धा से लेते है

नेता आज नई पीढ़ी के

बीज घृणा के बोते हैं

डूबे नाव वतन की लेकिन

अपनी नैया खेते हैं

स्वार्थ में डूबे हैं इतने

दुश्मन लगें चहेते हैं

 

नेताजी के नाम काम की

आकर लाज बचा जाओ।।

वतन याद कर रहा आपको

सरगम तान सुना जाओ।।

 

जंग कहीं है कश्मीर की

कहीं सुलगता राजस्थान

आतंकी सिर उठा रहे हैं

कुछ कहते जिनको बलिदान

कैसे न्याय यहाँ हो पाए

सबने छेड़ी अपनी तान

ऐक्य नहीं जब तक हो पाए

कैसे गूँजें मीठे गान

 

भेदभाव का जहर मिटाकर

सबमें ऐक्य करा जाओ।।

वतन याद कर रहा आपको

सरगम तान सुना जाओ।।

 

लिखते – लिखते ये आँखें भी

झरने-सी हो जाती हैं

आजादी है अभी अधूरी

भय के दृश्य दिखाती हैं

अभी यहाँ कितनी अबलाएं

रोज हवन हो जाती हैं

दफन हो रहा न्याय यहाँ पर

चीखें मर – मर जाती हैं

 

देखो तस्वीरें गौरव की

कुछ तो पाठ पढ़ा जाओ।।

वतन याद कर रहा आपको

सरगम तान सुना जाओ।।

 

कहाँ चले तुम, कहाँ खो गए

ये अब तक भी भान नहीं

किसकी चालें, किसकी घातें

ये भी हमको ज्ञान नहीं

कौन मिला था अंग्रेजों से

कोई यह बतलाएगा

उनके पार्थिव तन को लेकर

आज मुझे दिखलाएगा

 

मेरे प्रश्नों के उत्तर भी

आकर के तुम दे जाओ।।

वतन कर रहा याद आपको

सरगम तान सुना जाओ।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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