हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 8 – भजन – कान्हा की नगरिया ☆ डॉ. सलमा जमाल

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 22 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक लगभग 72 राष्ट्रीय एवं 3 अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।  

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है। 

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक भक्ति रस में रचित अतिसुन्दर रचना  कान्हा की नगरिया ”। 

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 8 ✒️

?  भजन – कान्हा की नगरिया —  डॉ. सलमा जमाल ?

हम तो जाएंगे कान्हा की नगरिया ।

टेढ़ी-मेढ़ी गैल दूर है डगरिया ।।

 

गोपी ग्वाल संग रास रचाऊं ,

मुरली बन कान्हा के अधर सजाऊं ,

पनघट पर फोड़े मोरी गगरिया ।

टेढ़ी-मेढ़ी ———————– ।।

 

मोह- माया तज कृष्ण को ध्याऊं,

लोक लाज मीरा सी गवाऊं ,

हमने रंग डाली श्याम रंग चुनरिया ।

टेढ़ी-मेढ़ी ———————-।।

 

गोवर्धन गिरी पे जाके बसूंगी,

बरसो झमाझम बदरी से कहूंगी,

उंगली पर धारें गिरी सांवरिया ।

टेढ़ी-मेढ़ी ———————–।।

 

यमुना के तीरे कदंब की छंइयां ,

सांझ परे वन सें लौटें घर गईंयां ,

मोहन को ढूंढो मैं हॉट बजरिया ।

टेढ़ी-मेढ़ी ———————–।।

 

दही और माखन का भोग लगाऊं ,

सोलह सिंगार ,कृष्ण को रिझाऊं,

वंशीधर ले लो “सलमा” की खबरिया ।

टेढ़ी-मेढ़ी ———————–।।

 

© डा. सलमा जमाल 

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 11 (1-5)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #11 (1-5) ॥ ☆

आये विश्वामित्र तब नृप दशरथ के पास।

लेने को श्री राम दो मख रक्षा ही आश।।1।।

 

मुनि सेवी उस नृपति ने बड़े दुष्ट के साथ।

राम-लखन मुनि को दिये विनत, यक्ष रथार्थ।। 2।।

 

नृप ने आदेशित किया मार्ग शुद्धि संस्कार।

पर मिल बादल-वायु ने स्वयं किया उपचार।। 3।।

 

जाने उद्यत धनुर्धर दोनों राजकुमार।

झुके चरण में पिता के बही अश्रुकी धार।।4।।

 

सिंचे पिता-प्रेमाश्र से चले मुनी के संग।

लोक-नयन-अरविंद से सजे दिखे सब पंथ।।5।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 15 – सजल – कैसी यह लाचारी है… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है सजल “कैसी यह लाचारी है… । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 15 – सजल – कैसी यह लाचारी है…  ☆ 

समांत- आरी

पदांत- है

मात्राभार- 14

 

कैसी यह लाचारी है।

विकट समस्या भारी है।।

 

फिदा पड़ोसी पर होते ,

मजहब से ही यारी है।

 

आतंकी सब सखा बने,

मानवता भी हारी है ।

 

काश्मीर में शांति आई,

खिली वहांँ फुलवारी है।

 

लोकतंत्र में भ्रष्टाचार,

जनता से मक्कारी है।

 

गहरी जड़ें वंशवाद की,

नेता की बलिहारी है।

 

जन सेवक कहलाते जो,

गाड़ी-घर सरकारी है।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

01-01- 2022

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – वह ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – वह  ??

‘वह’ शृंखला की एक और कविता प्रसूत हुई। पाठकों के साथ साझा कर रहा हूँ।

 

उसके भीतर

बसती है एक बतक्कड़,

बहुत कुछ, सब कुछ

उससे कहना चाहती है वह,

किस्से-कहानी, आपबीती-जगबीती

सिर्फ उसे सुनाना चाहती है वह,

फिर सुनकर उसका रूखापन

अनमनी-सी चुप हो जाती है वह !

 

©  संजय भारद्वाज

अपराह्न 1:48 बजे, 9.1.20 2 2

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 
मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 10 (81-86)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #10 (81-86) ॥ ☆

था सौहाद्र समान पर, राम – लखन थे साथ

तथा भरत – शत्रुघ्न का था स्नेह विख्यात ॥ 81॥

 

वायु – अग्नि में प्रेम ज्यों, चंदा और समुद्र

वैसे ही द्वय युग्म का था सनेह अति उग्र ॥ 82॥

 

चारों की तेजस्विता औं विनम्रता साथ

जनप्रिय मन मोहक थी ज्यों ग्रीष्म बाद बरसात ॥ 83॥

 

दशरथ के वे पुत्र थे शोभित, चार उदार

अर्थ कर्म काम मोक्ष के साक्षात अवतार ॥ 84॥

 

सागर पाता रत्नों से दिय स्वामी का ध्यान

त्यों प्रसन्न सुत गुणों से दशरथ पिता महान ॥ 85॥

 

भंजक दैत्य असि दन्त से ऐरावत गजराज

फलदायी गुणचार से राजनीति के काज ॥ 86॥ अ

 

चतुर्युगो के भार से ज्यों श्शोभित भगवान

विष्णु अंश चारों सुतों से त्यों नृपति महान ॥ 86॥ ब

 

दसवॉ सर्ग समाप्त

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 72 – दोहे ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 72 –  दोहे ✍

सत्ताधारी जब रहे, सूजी उनकी डाढ़,

फिर जिनका कब्जा हुआ, डाढें रहे उखाड़।।

 

शिक्षा मंत्री बन गए, बाप पढ़ें  ना पूत ।

पढ़े-लिखे की हैसियत, हैंडलूम का सूत।।

 

क्या है उनकी कुंडली, क्या है उनका ज्ञान ।

अरे अरे मत पूछिए, सुनिए सिर्फ बयान।।

 

महंगाई की मार से, सभी लोग बेहाल ।

ढेर ढेर भूसा दिखे, खिंचे हमारी खाल।।

 

बहिन बेटियों समझ लो, समय-सांड  बिगड़ैल ।

सोच समझकर निकलिए, राजनीति की गैल।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 72 – घाट की निश्छल … ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – घाट की निश्छल।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 72 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || घाट की निश्छल … || ☆

पूछता है अब

नदी का कुल ।

अकड़ कर जर्जर

पुराना पुल ।।

 

बाढ़ है उतरी

लगा अनुमान।

कह रहा, हूँ ले

रहा संज्ञान ।

 

पानी-पानी थी

नहीं पूछा कभी ।

आज परिचय

पूछने ब्याकुल ।।

 

संधियाँ छुट-पुट

किनारों की ।

स्मृतियाँ जल के

प्रहारों की ।

 

खिला जिन पर

मुस्कुराता अकिंचन

वनस्पतियों का

हरित संकुल ।।

 

घाट की निश्छल

टिटहरी जो ।

रह चुकी हैअडिग

प्रहरी वो ।

 

कह रही सबसे

जरा सीखो ।

जिस तरह रहती

यहाँ बुलबुल ।।

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

05-01-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सृजन ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

सभी मित्रों को विश्व हिन्दी दिवस की शुभकामनाएँ।

साथ ही यह आकलन करने का अनुरोध कि निजी स्तर पर अपने जीवन में हम हिन्दी / भारतीय भाषाओं को कितना स्थान देते हैं?

135 करोड़ का देश अपने आप में भूमंडल है। यह भूमंडल, शेष भूमंडल को परिवर्तित करने की क्षमता रखता है। परिवर्तन की कुँजी इकाई के हाथ में है। हम सब इसकी इकाई हैं।…विचार कीजिएगा।

संजय भारद्वाज

अध्यक्ष, हिन्दी आंदोलन परिवार

? संजय दृष्टि – सृजन  ??

कठिन परीक्षाएँ सिर पर हैं,

तुम्हें कभी तैयारी करते नहीं देखा..?

समस्या क्रमांक दो (क) के

तीसरे उपप्रश्न ने पूछा,

जटिल प्रश्नपत्र बने जीवन को

सांगोपांग निहारा,

पारंपरिक उत्तरों को

निकासी का द्वार दिखाया,

कलम स्याही में डुबोई

और मैं हँस पड़ा…!

 

©  संजय भारद्वाज

प्रात: 9:10 बजे, गुडी पाडवा, संवत 2076

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 
मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #62 ☆ # वैचारिक क्रांति # ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# वैचारिक क्रांति #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 62 ☆

☆ # वैचारिक क्रांति # ☆ 

बड़ी बेखौफ हवा चल रही है

धूप भी छांव में ढल रही है

सुलग रहे हैं आशियाने

आग अंदर ही अंदर जल रही है

 

मुस्कुराते हुए चेहरे है

अंदर घाव बड़े गहरे हैं

कशमकश में डूबे हुए

सैलाब किनारे पर ठहरे हैं

 

यह कैसा अजीब खेल है

दो विपरीत ध्रुवों का

अनोखा मेल है

सिंह और हिरण 

एक नाव में सवार है

जंगल के सभी प्राणी

नाव को रहे ठेल है

 

दंगल में यह कौन

नया खिलाड़ी उतरा है

उसके पास कौनसा

नया पैंतरा है

विश्व विजेता पहलवान

डर कर कह रहा है

उसकी जान को खतरा है

 

जन आक्रोश के आगे

तानाशाह भी झुकते ही है

प्रबल विरोध के आगे

दमन चक्र रूकते ही है

वैचारिक क्रांति

कोई रोक नहीं पाया है

उग्र हुए लोग

राजसिंहासन फूंकते ही है/

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 10 (76-80)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #10 (76-80) ॥ ☆

पुत्र – जन्म की खुशी में दशरथ नृप घर वाद्य

बजवाने की शुरू हुई सुर दुन्दिभियों के साथ ॥ 76॥

 

राजभवन में बरसे तब कल्पवृक्ष के फूल

प्रथम मंगलचार के ही थे वे अनुकूल ॥ 77॥

 

जातकर्म संस्कारयृत कर धात्री पयपान

बढ़े बड़े भाई सहित पितृ आनन्द समान ॥ 78॥

 

शिक्षा पा उनका विनय बढ़ा सहज ही और

जैसे हवि का भोग पा बढ़े अग्नि का जोर ॥ 79॥

 

रघुकुल अतिशोभित हुआ देख भ्रातृ सद्भाव

ज्यों नन्दन वन सजाता मधुमय पवन प्रवाह ॥ 80॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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