हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 6 – नव वर्ष मुबारक हो — ☆ डॉ. सलमा जमाल

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 22 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक लगभग 72 राष्ट्रीय एवं 3 अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।  

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है। 

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है नव वर्ष के आगमन पर आपकी एक भावप्रवण रचना “नव वर्ष मुबारक हो –” 

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 6 ✒️

? गीत – नव वर्ष मुबारक हो —  डॉ. सलमा जमाल ?

पाहुने नव वर्ष ,

तुम आते हो प्रति वर्ष ।

बारह माह रहकर ,

सदा चले जाते हो सहर्ष ।।

 

फिर मानव वर्ष भर का ,

करता है लेखा-जोखा ।

कितना पाया सत्य और ,

कितना पाया धोखा ।।

 

पिछले वर्ष ने हमें ,

झकझोर कर रख दिया ।

एक के बाद एक क्षति ,

करोना ने क्रियान्वित कर दिया ।।

 

जाओ अतिथि अब ,

बहुत हो गया अहित ।

अतीत के क्रूर दृश्यों से ,

हृदय अब तक है व्यथित ।।

 

स्थान करो रिक्त ताकि ,

नवागंतुक के स्वागत का ।

पांव पखार, टीका वन्दन ,

करें सब तथागत का ।।

 

हे बटोही आगामी वर्ष के ,

तुम कर्मयोगी बन कर आओ।

देश की मां बहनों की ,

अस्मत लुटने से बचाओ ।।

 

छोटी दूध मुहीं बच्चियां ,

ना हो तार – तार ।

निरीह माताएं ना रोए ,

अब ज़ार – ज़ार ।।

 

सृजन कर्ता हो सके तो ,

यमदूत बन कर आओ ।

अन्याय, अपराध, भ्रष्टाचार,

बलात्कार को लील जाओ ।।

 

आतंकवाद, भाषावाद, धर्म वाद ,

सांप्रदायिकता का करो अन्त।

ऐसा सुदर्शन चलाओ ,

मिटें सारे पाखंडी संत ।।

 

भारत में बहे पुनः ,

दूध की नदियां ।

युवाओं में हों संस्कार ,

और निर्भीक हो बेटियां ।।

 

शिक्षा , संस्कार , मूल्य ,

ईमानदारी की हो स्थापना ।

हर युवा करे माता-पिता ,

एवं बुजुर्गों की उपासना ।।

 

जनता मिटा दे राजनीतिज्ञों ,

के झूठे व गन्दे खेल ।

हिंदू मुस्लिम सभी धर्मों की,

संस्कृतियों का हो जाए मेल।।

 

भारत माँ  का रक्त से ,

करो श्रंगार टीका वंदन ।

कन्याओं के जन्म पर हो ,

उनका शत्- शत् अभिनंदन।।

 

 है प्रिय  नवागन्तुक ,

तब लगेगा नव वर्ष आया ।

तुम्हारे स्वागत में हमने ,

पलक पांवड़ों को है बिछाया।।

 

‘सलमा’ सभी को मुबारक ,

आया हुआ यह नूतन वर्ष ।

अंधेरों से निकलो दोस्तो ,

प्रकाश में नहाकर मनाओ हर्ष।।

 

© डा. सलमा जमाल 

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 10 (16-20)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #10 (16-20) ॥ ☆

जग की रचना, भरण औं है कर्त्ता – संहार

त्रिविध देन हम सबों का नमन तुम्हें कई बार ॥ 16॥

 

ज्यों नभ का जल एक है, स्थान स्थान पै भिन्न

त्यों सत – रज – तम गुण सहित है कई आप अभिन्न ॥ 17॥

 

सतत सर्वपरिव्याप्त प्रभु अक्षर, अर्जित, असीम

सूक्ष्म रूप इस विश्व के कारण व्यक्त ससीम ॥ 18॥

 

हे प्रभु होते हृदय में भी रहते हो दूर

अजर, अनघ, तप, दयामय, ममता से भरपूर ॥ 19॥

 

हे प्रभु तुम सर्वज्ञ हो, तुम सबके आधार

स्वयंभूत सर्वेश तुम, सबमें सभी प्रहार ॥ 20॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 13 – युग युगांतर से पले संस्कार को… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है सजल “युग युगांतर से पले संस्कार को… । अब आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 13 – युग युगांतर से पले संस्कार को…  ☆ 

समांत-ईत

पदांत- हैं

मात्राभार- 19

 

सब बिछुड़ते जा रहे मनमीत हैं।

चल रही अब आंँधियांँ विपरीत हैं।।

 

बैठकर खुशियांँ मनाते थे कभी,

आँगनों में खिच रहीं अब भीत हैं।

 

है समय बदला हुआ यह चल रहा,

धर्म और ईमान सब विक्रीत हैं।

 

युग युगांतर से पले संस्कार को,

नेह-रिश्तों में मिले नवनीत हैं।

 

खींच दीं लक्ष्मण रेखा द्वारों में,

पार करने पर हुए मुख-पीत हैं।

 

चुनावों की फिर गदर है मच रही,

शांति प्रिय ही लोग फिर भयभीत हैं।

 

देश के निर्माण में हैं जो लगे,

उनको संबल दें तभी सुनीत हैं।

 

मिल रही हैं धमकियां उस पार से,

फिर भी अपने भाव सब पुनीत हैं।

 

है बदलती जा रही तस्वीर अब,

विश्व में सारे हमारे मीत हैं।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

14 जून 2021

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विसंगति… ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

?संजय दृष्टि – विसंगति…  ??

मिलावट बीजों में है या

माटी ने रंग बदला है,

सचमुच नहीं जानता मैं…,

ताउम्र अपनापन बोकर भी

अकेलापन काटता रहा मैं…!

 

©  संजय भारद्वाज

प्रातः 8:43 बजे 25.12.18

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 10 (11-15)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #10 (11-15) ॥ ☆

विटपशाख सी भुजायें अलंकार – सम्पन्न

जल में नव परिजात से प्रभु थे परम प्रसन्न ॥ 11॥

 

दैत्यवधु सुख का सदा करते जो संहार

वे आयुध कर रहे ये उनका जय जयकार ॥ 12॥

 

वज्रघात चिन्हित गरूड़ ‘शेष’ से विगत विरोध

विष्णु प्रार्थना में विनत’ दिखे, सरल सानुरोध ॥ 13॥

 

योगनींद से जगे प्रभु फेर सुखद दुगकोर

भृगु आदिक मुनि पर कृपा करते दिखे समोद ॥ 14॥

 

सुरद्रोही असुरों का जिन प्रभुने किया था अंत

उन अनन्त प्रभु की विनती सबने करी तुरन्त ॥ 15॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ स्व डॉ गायत्री तिवारी जन्मस्मृति विशेष – लेखनी सुमित्र की # 70 –  दोहे ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

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✍  साप्ताहिक स्तम्भ – स्व डॉ गायत्री तिवारी जन्मस्मृति विशेष – लेखनी सुमित्र की # 70 –  दोहे ✍

मन मरुथल सा हो गया, बिखर गया संगीत ।

अश्रु -अश्रु अब गा रहा गायत्री का गीत।।

 

शब्द वहां बेमायने, जहां तीव्र अहसास ।

कितनी भी दूर ही रहे प्रिय लगता है पास।।

 

श्रद्धा बरसे आंख से, आँसू कहे जहान ।

आँसू में ही देख लो ,तुम अपना भगवान।।

 

जनक नंदिनी बंदिनी, व्याकुल हनुमत वीर ।

महावीर के नयन में, दिखा छलकता नीर।।

 

हाय कहां तुम चल दिए, ओ मेरे मनमीत।

बिना तुम्हारे लग रहा, आँसू भी भयभीत।।

 

सांस -सांस में अश्रु है, अश्रु -अश्रु में सांस ।

गैर हाज़िरी आपकी ,बनी याद की फांस।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

 

गुरुमाता स्व डॉ गायत्री तिवारी जी का आज जन्मस्मृति दिवस है। उन्हें ई- अभिव्यक्ति परिवार की और से विनम्र श्रद्धांजलि   ??

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 70 – :: सन्ध्या  :: निशीथ  :: प्रात:  :: ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – अब उन्हें कहो कि।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 70 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || :: सन्ध्या  :: निशीथ  :: प्रात:  :: || ☆

सन्ध्या  ::

 

एक ओर सूरज रख

कहती प्रियंवदा

साँझ बहिन मैंआती

रहूँगी यदा-कदा

 

अक्षयवट सी तेरी

केश राशि का विचलन

सुरमई पहाड़ों का

नतशेखर असन्तुलन

 

चाँद  किये मुँह टेढा

पूछता मुंडेरों से

कैसी- क्या कर ली है

तुमने यह संविदा

 

निशीथ  ::

 

सभी ओर बिखरे हैं

मोती से चमकीले

जुगनू लगते टिम-टिम

तारे नीले-नीले

 

मौसम कुछ अनमना

दबे छिपे देख रहा

ओसारे में ठिठकी

कनिष्ठा प्रशस्तिदा

 

प्रात:  ::

 

बहुत कुछ छिपाया था

गोरोचन अगरुगन्ध

प्राची ने पढ डाला है

यह सारा निबंध

 

अलसाये पेड़ लगे

जमुहाई लेते से

अरुण खड़ा दरवाजे

कहने को अलविदा

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

25-12-2021

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – भूमिका… ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

?संजय दृष्टि – भूमिका…  ??

उसने याद रखे काँटे,

पुष्प देते समय

अनायास जो

मुझसे, उसे चुभे थे,

मेरे नथुनों में

बसी रही

फूलों की गंध सदा

जो सायास

मुझे काँटे

चुभोते समय

उससे लिपट कर

चली आई थी,

फूल और काँटे का संग

आजीवन है

अपनी-अपनी भूमिका पर

दोनों कायम हैं।

©  संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #60 ☆ # बेटा # ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# लोग कुछ तो कहेंगे #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 60 ☆

☆ # बेटा # ☆ 

किसी दंपत्ति को जब

पुत्र की प्राप्ति होती है

उनके जीवन में

खुशियों कीं बहार

आती हैं

वें फूले नहीं समाते हैं

कितना मुस्कुराते हैं

बांटते हैं मिठाइयां

लोगों की लेते है बधाईयां

गद् गद् हो जातें हैं

सुंदर सपनों में

खो जातें हैं

मंदिर, मस्जिद, गिरिजा

स्तूप, गुरूद्वारों में

माथा टेकते हैं

गरीबों को दान देकर

उनमें ईश्वर खोजते है

उसे बड़े जतन से पालते हैं

उसे बड़े यतन से संभालते हैं

माता पिता निहाल हो जाते हैं

पुत्र रत्न पाकर

मालामाल हो जाते हैं

उन्हें लगता है कि

हमारा पुत्र वैतरणी पार करायेगा

अंतिम क्षण मोक्ष दिलायेगा

 

जब जीवन चक्र तरूणाई से

वृद्धावस्था में जाता है

गुजरा जमाना बहुत

याद आता है

तब सब साथ छोड़ जाते हैं

बुलाने पर भी

वापस नहीं आते है

जब अपना ही अपने से

रूठता है

सारा भ्रम अचानक टूटता है

संतानें निगाहें फेर लेती

बीमारियां घेर लेती हैं  

हर लम्हा टूटती हुई सांस है

हर पल बस एकांतवास है

 

जब प्राणों से प्यारा पुत्र

साथ छोड़ देता है

वो रिश्ता नाता

तोड़ देता है

पत्नी और बच्चे

बस उसका संसार है

मां-बाप के लिए

कहां बचा प्यार है

तब ममता चीख कर

पूछती है?

उसे कुछ नहीं सूझती है ?

तू नहीं तो कौन सहारा बनेगा ?

मेरे दूध का कर्ज

कैसे उतारेगा ?

बड़ी मिन्नतों के बाद

तू मुझे मिला है

मेरी ममता का

क्या यही सिला है ?

वृद्ध मां-बाप कहते हैं

किससे शिकायत करें

जब अपना ही सिक्का

खोटा है

बहू तो पराई है,

पर तू तो मेरा खून

मेरे जिगर का टुकड़ा

मेरा बेटा है /

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 10 (6-10)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #10 (6-10) ॥ ☆

पहुँचे जब सब देव गण क्षीर सिंधु के पास

कार्य सिद्धि हित उठे प्रभु योग नींद को त्याग ॥ 6॥

 

स्वर्ग निवासी देवों ने श्शेषा सीन द्युतिमान

मणि आभा भासित बदन लखे विष्णु भगवान ॥ 7॥

 

कमला सीना श्री वसन मे खलागात

की कर पल्लव गोद में चरण रखे श्रीनाथ ॥ 8॥

 

पीताम्बर धारी मुदित कमल नयन श्रीमान

शारदीय दिन से सुखद दर्शन ये भगवान ॥ 9॥

 

प्रभावान श्रीवत्स था, लक्ष्मी दर्पण ख्यात

कौस्तुभमणि था वक्ष पै शोभित सुविख्यात ॥ 10॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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