॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #9 (56-60) ॥ ☆
धनुर्धारी दशरथ के भय से बिखर, झुण्ड मृग को चकित अश्रुपूरित नयन से
हवा से प्रकम्पित कमल नील दल दल सा सुश्यामल छटा भर दी वातावरण में। 56
इन्द्र और विष्णु सदृश वीर दशरथ नेकर लक्ष्य मृग को धनुष तो चढ़ाया
पर सहचरी मृगी को देख मृदुमन हो चलाने से पहले ही शर को हटाया॥ 57॥
भय से चपल दीर्घ नेत्री प्रगल्भा प्रिया नेत्रों के ‘मधुर भावों की कर याद
अन्य मृगों पर भी प्रहारेच्छु दशरथ ने मारा न कोई बाण समझ जैसे फरयाद॥ 58।
पंकिल जलाशय से उठ भागते गीले कीचड़ भरे पैर चिन्हों से जाहिर
मोया के मुँह से गिरे कवलखण्डों से सुअरों की आखेट को हुआ हाजिर ॥ 59॥
घोड़े से झुक बाण संहार करते, उससे सुअर ने झपट चाहा भिड़ना
पर धनुर्धर के प्रखर बाण से विद्ध मर उसे तरू से ही आया लिपटना ॥ 60॥
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈