हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 8 (76-80)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #8 (76-80) ॥ ☆

कहा अधूरा है अभी यज्ञ अतः सब जान

यह दुराह्रा दुख घटाने आ न सके धीमान ॥ 76॥

 

उनका लघु संदेश कुछ मुझसे सुन सम्राट

घैर्य हृदय में धारिये हे विख्यात विराट ॥ 77॥

 

हैं त्रिकालदर्शी गुरू, ज्ञात उन्हें है त्रिकाल

सदा ज्ञानमय नयन से लखते सब तत्काल ॥ 78॥

 

करते तप, तृण बिन्दु ऋषि से शंकित देवेश

ने भेजी तपभंग हित ‘हरिणी’ परी सुवेश ॥ 79॥

 

मुनि ने उसको, शांति में जो थी प्रलय समान

क्रोधित हो शापित किया बनने नारि अजान ॥ 80॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 69 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 69 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 69) ☆

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 69☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

कितना मुश्किल है, इस अंदाज़

में जिंदगी बसर करना

तुम्हीं से फ़ासला रखना

और तुम्हीं से इश्क़ करना…

 

How difficult it is to

live in this manner

To keep distance from

you and love you too…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

तेरे  वजूद  में  मैं

काश यूँ उतर जाऊँ

तू  देखे आईना और

मैं  तुझे  नज़र  आऊँ…

 

Wish if I could merge in

your existence so much

That you see the mirror

and I should  appear..!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

कभी परखना नहीं अपनों को,

परखने से कोई अपना नहीं रहता

वैसे भी देर तलक किसी आईने में

कभी कोई चेहरा नहीं रहा करता …..

 

Never put your loved ones to test,

if done, no one remains your own

As such, a face never stays

for a long time in a mirror…..!

 

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

चली आती है तेरी याद

अक्सर  मेरे  ज़ेहन में

तुझे हो ना हो तेरी यादों को

जरूर मुझसे मोहब्बत है…!

 

Your memories often knock

at the door of my mind

You may or may not but

your memories do love me…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 69 ☆ दोहा सलिला ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  ‘दोहा सलिला … ।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 69 ☆ 

☆ दोहा सलिला ☆

भौजी सरसों खिल रही, छेड़े नंद बयार।

भैया गेंदा रीझता, नाम पुकार पुकार।।

समय नहीं; हर किसी पर, करें भरोसा आप।

अपना बनकर जब छले, दुख हो मन में व्याप।।

उसकी आए याद जब, मन जा यमुना-तीर।

बिन देखे देखे उसे, होकर विकल अधीर।।

दाँत दिए तब थे नहीं, चने हमारे पास।

चने मिले तो दाँत खो, हँसते हम सायास।।

पावन रेवा घाट पर, निर्मल सलिल प्रवाह।

मन को शीतलता मिले, सलिला भले अथाह।।

हर काया में बसा है, चित्रगुप्त बन जान।

सबसे मिलिए स्नेह से, हम सब एक समान।।

*

मुझमें बैठा लिख रहा, दोहे कौन सुजान?

लिखता कोई और है, पाता कोई मान।।

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 8 (71-75)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #8 (71-75) ॥ ☆

तब उतार अज गोद से, स्वजनों ने सायास

सौंपी सज्जित देह वह अगरू अग्नि के हाथ ॥ 71॥

 

‘‘ज्ञानी अज भी जल मरे इन्दुमती के साथ ” –

राजा जीवित रहे डर हो न यही अपवाद ॥ 72॥

 

रूप – गुणों से श्शेष बस, रही प्रिया की याद

राजा ने जिसकी किया यथा रीति मृत श्राद्ध ॥ 73॥

 

प्रातः निष्प्रभ चंद्र सा अजकर नगर प्रवेश

देखे श्शोक प्रवाह से अश्रु बहाते गेह ॥ 74॥

 

गुरू वशिष्ठ यज्ञार्थी ने घटना यह जान

भेजा अपने शिष्य को अज का दुख रख ध्यान ॥ 75॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ #122 – आतिश का तरकश – ग़ज़ल – 6 – “हबीब” ☆ श्री सुरेश पटवा

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।  आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “हबीब”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश – ग़ज़ल # 6 – “हबीब” ☆ श्री सुरेश पटवा ☆

हम पर जान लुटाता ऐसा नहीं कोई हबीब,

दिलोजान से चाहता ऐसा नहीं कोई हबीब।

 

भरी जवानी गेसुओं की छांव छिनी जिससे,

दिखता हो जमाने में ऐसा नहीं कोई गरीब।

 

ज़हर पीने की क़ाबलियत नहीं किसी में,

दर्द कुछ पी सके ऐसा नहीं कोई दरीब।

 

आह से बर्फ पिघलती दर्दीले पहाड़ों की,

हमारे रोने से बदलेगा नहीं कोई नसीब।

 

बरसते आंसुओं से ही तो समंदर भरा है,

समझ कर खारा आता नहीं कोई करीब।

 

उदू की क़ैद में छटपटाए बुलबुल बेतहाशा,

जाकर छुड़ा ले उसे ऐसा नहीं कोई रक़ीब।

 

मुहब्बत में ज़ख़्म मिले ‘आतिश’  बेशुमार,

उसके घाव सहलाता ऐसा नहीं कोई तबीब।

 

हबीब-प्यारा

दरीब-प्रशिक्षित

तबीब-वैद्य

 

© श्री सुरेश पटवा

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – चुप्पी…. ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – चुप्पी…. ??

 

वह अबाध

बह रहा है,

लहरों का कंपन

भीतर ही भीतर

साँस ले रहा है,

उसके प्रवाह को

बाधा मत पहुँचाना,

समुद्र की शांति होती है;

सच्चे आदमी की चुप्पी..!

 

©  संजय भारद्वाज

प्रात: 9:37 बजे, 26 नवम्बर 2021

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

 

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 57 ☆ गजल – समय ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण  “गजल”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा # 57 ☆ गजल – समय ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध ☆

जग में सबको हँसाता है औ’ रूलाता है समय।

सुख औ’ दुख के चित्र रचता औ’ मिटाता है समय।

है चितेरा समय ही संसार के श्रृंगार का

नई खबरों का सतत संवाददाता है समय।

बदलती रहती ये दुनियाँ समय के सहयोग से

आशा की पैगों पै सबको नित झुलाता है समय।

नियति को, श्रम को, प्रगति को है इसी का आसरा

तपस्वी को तपस्या का फल प्रदाता है समय।

भावना मय कामना को दिखाता है रास्ता

हर गुणी साधक को शुभ अवसर दिलाता है समय।

सखा है विश्वास का, व्यवसाय का, व्यापार का

व्यक्ति की पद-प्रतिष्ठा का अधिष्ठाता है समय।

नियंता है विष्व का, पालक प्रकृति परिवेश का

सखा है परमात्मा का, युग-विधाता है समय।

शक्तिशाली है, सदा रचता नया इतिहास है

किन्तु जाकर फिर कभी वापस न आता है समय।

सिखाता संसार को सब समय का आदर करें

सोने वालों को हमेशा छोड़ जाता है समय।

है अनादि अनंत फिर भी है बहुत सीमित सदा

जो समय को पूजते उनको बनाता है समय।

हर सजग श्रम करने वाले को है इसका वायदा

एक बार ’विदग्ध’ उसको यश दिलाता है समय।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ।।प्रेम,आशा और विश्वास यह अनमोल मोती हैं  जीवन के।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण एवं विचारणीय रचना ।।प्रेम,आशा और विश्वास यह अनमोल मोती हैं  जीवन के।।)

☆ कविता – ।।प्रेम,आशा और विश्वास यह अनमोल मोती हैं  जीवन के।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆ 

।।विधा।। मुक्तक।।

[1]

कतरा कतरा मरकर नहीं खुशी से भरपूर जीना  है।

बन कर    हमें   हर  दिल का नूर      जीना         है।।

एक ही मिली है   जिंदगी फिर मिलेगी न      दुबारा।

जोशो जनून में   हमें   हो कर    चूर      जीना     है।।

 

[2]

आदमी प्रभु    की     एक अनमोल      अमानत   है।

जब तक खुद पे   विश्वास जिंदगी    सलामत       है।।

आशाऔर विश्वास जीवन के हैं दो अनमोल    मोती।

उम्मीद   मानो    जैसे  कि जिंदगी की जमानत     है।।

 

[3]

कभी  हँसाती तो    कभी रुलाती है यह      जिंदगी।

सुख दुःख      दोनों     ही मंजर दिखाती है  जिंदगी।।

है प्रभु की  इस  अनमोल धरोहर का कर्ज   चुकाना।

अपना बना कर देखो  तो ही अपनाती है     जिंदगी।।

 

[4]

हर क्षण घट रहा   जीवन पल पल जीना है  हमको।

घोल कर वाणी में  अमृत इसे     पीना है     हमको।।

अनजाने में भी  हम    से किसी का अनर्थ न     हो।

बन कर इंसा किसी   का जख्म सीना   है    हमको।।

 

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 8 (66-70)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #8 (66-70) ॥ ☆

प्रेमगान सब खो गये, धैर्य खो गया आज

भूषण, शैय्या निरर्थक, सुख विहीन ऋतुराज ॥ 66॥

 

तुम थीं गृहणी, सचिव सखि कला सृजन में साथ

कुटिल मुत्यु ने हर तुम्हें तोड़ा मेरा हाथ ॥ 67॥

 

हे मदिराक्षी  किया जब मेरे सँग मधुपान

अश्रुभरी अंजलि से मम करोगी क्या जलपान ? ॥ 68॥

 

होते वैभव राज्य सब, अजन सुखी अब आज

लाभ वही, सुख थ वही – जो भेागा तब साथ ॥ 69॥

 

करूणा सिंचित, प्रियाहित करते गहन विलाप

अज को लख सब वुक्ष भी तज मधु रोये आप ॥ 70॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पैमाना ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – पैमाना ??

कुछ को वेदना

नचाती है,

कुछ से

वेदना रचाती है,

अब इतना रच चुके हो;

कितना और रचोगे,

तनिक संकेत

कर सको तो करो..,

मेरा मौन,

मेरी वेदना का

पैमाना है,

किंचित

माप सको तो माप लो!

©  संजय भारद्वाज

प्रात: 9:53 बजे, 30.11.21

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares