हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अभी अभी # 549 ⇒ चैनसिंह का बगीचा ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता  – “चैनसिंह का बगीचा ।)

?अभी अभी # 549 ⇒ चैनसिंह का बगीचा ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

नदी हमें नहीं बांटती
हम नदी को बांटते हैं
पानी में लकीर खींचते हैं
सरहद बनाते हैं ;
हमने धरती बांटी
अम्बर बांटा
समंदर बांटा
कभी मंदर तो कभी
हरमंदर बांटा ।
बस प्यार नहीं बांटा
नफरत और गुस्सा बांटा
थप्पड़ का जवाब चांटा
पत्थर का जवाब भाटा ;
भूल गए इंसानियत
फैलाई सिर्फ दहशत
नहीं सहमत,तो सह मत
जहां नहीं चैन,वहां रह मत ।।
हम इस पार और उस पार
को नहीं मानते
बस,आरपार को मानते हैं,
कभी खुद को खुदा और
गधे को रहनुमा मानते हैं;
वैसे तो हम बहुत जानते हैं
लेकिन सयानों की कभी,
बात नहीं मानते,
स्वार्थ,खुदगर्जी,अवसरवाद और मस्ती को ही
अपना आदर्श मानते हैं।
फिर भी हम इतने अच्छे
और लोग इतने बुरे क्यों हैं
यह भ्रम पालते हैं,
गाय तो पाल सकते नहीं
लेकिन इतने बड़े भक्त हैं कि,
स्वामिभक्ति के लिए कुत्ता पालते हैं ;
शासन ही अनुशासन
जिसकी लाठी,उसकी भैंस
पैसा फेंक,तमाशा देख,
दु:शासन गिन रहा अंतिम सांसें,सुशासन में चैन
फिर भी मूढ़मति
तेरा क्यूं मन बैचेन ।।
♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #259 ☆ भावना के दोहे – – दुष्यन्त उवाच☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे दुष्यन्त उवाच )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 259 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे – दुष्यन्त उवाच ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

आओ बैठो पास तुम, सुन लो मेरी बात।

कहना तुमको है बहुत, बड़ी सुहानी रात।।

शकुन्तले! तुम रूपसी, तुमको रहा निहार।

तुम हो मेरी प्रेमिका, दिल में प्यार अपार।।

प्रेम कुंज ऐसे सजा, अनुपम लगे विहार।

करता हूँ तुमसे शुभे, भाव भरी मनुहार।।

जड़ित अँगूठी देखकर, होता हर्ष अपार।

सुध तुम इतनी भूलती, डूबी जल की धार।।

परिणय मेरे के साथ में, देखो निज शृंगार।

नैन तुम्हारे कह रहे, झलक रहा है प्यार।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #241 ☆ एक बुंदेली गीत – भइया  उल्टी  चले  बयार… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी – एक बुंदेली गीत – भइया  उल्टी  चले  बयार आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 241 ☆

☆ एक बुंदेली गीत – भइया  उल्टी  चले  बयार☆ श्री संतोष नेमा ☆

कोऊ   नइयां  कोऊ  को यार।

भइया  उल्टी  चले  बयार।

धन – दौलत के पीछू भैया

छोड़  दए बापू  उर  मैया

भए   रिश्ते   सबै   बेकार

भइया  उल्टी  चले  बयार

दीनो – धर्म  बिसर खेँ  सारे,

बने   फिरें  ज्यूं हों मतवारे

कैसे  लग   है   नैया   पार

भइया  उल्टी  चले  बयार

पइसों  से पहचान रखत हैं।

 मन में लालच लोभ धरत हैं

आये  न कोनउं  उनके  द्वार।

भइया  उल्टी  चले   बयार

मतलब के सब रिश्ते – नाते

मतलब  सें  मीठे  बतियाते

यहां सब मतलब को संसार।

भइया  उल्टी   चले   बयार

हिरा गओ आंखों को पानी

खोज  रहे  ज्ञानी – विज्ञानी

अब   न कोऊ     ताबेदार।

भइया  उल्टी   चले   बयार।

चार  दिनन  के  लाने  भैया

कितनो  जोड़ खें  रखो  रुपैया।

“संतोष”  वो  ही  पालनहार

भइया  उल्टी   चले   बयार

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – प्याऊ ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – प्याऊ ? ?

खारा पानी था

उनके पास,

मीठे पानी का

सोता रहा

तुम्हारे पास,

तब भी, उनके

खड़े होते रहे

महल-चौबारे,

और तुम, उसी

कुटिया के सहारे..,

सुनो..!

बोतलबंद पानी बेचना

उनकी प्रवृत्ति रही,

प्याऊ लगना

मेरी प्रकृति रही,

जीवन के आयामों का

अनुसंधान, अपना-अपना,

जीवन के अर्थ पर

संधान, अपना-अपना…!

?

© संजय भारद्वाज  

(प्रात: 9:07 बजे, 8 दिसम्बर 2024)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  मार्गशीर्ष साधना 16 नवम्बर से 15 दिसम्बर तक चलेगी। साथ ही आत्म-परिष्कार एवं ध्यान-साधना भी चलेंगी💥

 🕉️ इस माह के संदर्भ में गीता में स्वयं भगवान ने कहा है, मासानां मार्गशीर्षो अहम्! अर्थात मासों में मैं मार्गशीर्ष हूँ। इस साधना के लिए मंत्र होगा-

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

  इस माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा को दत्त जयंती मनाई जाती है। 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 319 ☆ कविता – “बड़ी कालोनी का ग्राफिक्स…” ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 319 ☆

?  कविता – बड़ी कालोनी का ग्राफिक्स…  ? श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

शहर की बड़ी कालोनी में

ए टाईप बंगलो की श्रृंखला के सामने ही

एफ टाइप मकान भी हैं

अधिकांश ए टाईप बंगलों में

दो बुजुर्ग , एक कुत्ता और

बंगले के अहाते के कोने में बने आऊट हाउस में

एक नौकर रहता मिलता है

एक बड़ी सी चमचमाती गाड़ी खड़ी होती है,

पोर्च में

जिसे ड्राइवर रोज

साफ करता है

इन बंगलों में

वीडियो काल पर रोज आते हैं विदेशों में बसे बच्चे

दिसंबर में जब विदेशों में होती हैं

क्रिसमस की छुट्टियां

तब ये बच्चे यहां आते हैं

और तब दीवाली होती है इन बंगलों में

 

दूसरी ओर

एफ टाइप घरों में जिनमें

एक ही बेड रुम है

जाने कैसे समा जाते हैं

पति पत्नी , बेटे बहू और नाती पोते

सामने टीन की चादरें तानकर, बना ली गई हैं परछी ज्यादातर घरों में

आवासीय परिसर बढ़ाने के लिए

साईकिल, बाइक, और स्कूटियां खड़ी हो जाती हैं रोज शाम उनमें

ए टाईप और एफ टाइप की इन्हीं रो के समानांतर बी, सी , डी और ई टाइप के घरों की भीड़ भी है

जिनमें भी जिंदगियां गुजर रही हैं

इन्हीं आवासों के साथ

चंद सुपर डीलक्स भव्य भवन भी हैं, कोने में

जिनमें ड्रेस पहने दरबान बैठते हैं गेट पर

इन भव्य भवनों में

रहते हैं

सफेद हैट वाले शोफर की गाड़ी में सवार

टैक्स पेयर्स के धन का

बजट बनाने वाले

एफ टाइप और उससे छोटे तबके में

उसे लुटाने वाले

व्हाइट कॉलर्ड, या खादीधारी

नीति नियंता

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #50 ☆ कविता – “फकीर…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 50 ☆

☆ कविता ☆ “फकीर…☆ श्री आशिष मुळे ☆

क्या अमीरी क्या गरीबी

क्या दूरी क्या करीबी

आज जिंदा कल मुर्दा

खूबसरत बेफ़िक्र ये फकीरी

 *

क्या तालियां क्या गालियां

रंगीन ये काँटों की गद्दीया

कभी गुल कभी छुरी

हमारे गालों पर लाली गुलाबी

 *

क्या हार क्या कामयाबी

बस खेल ये कायनाती

रश्के कमर नूरे ख़ुदा

इंसान तूही इंसान तूही

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 230 ☆ ज्ञानवर्धक कविता पहेली —- बूझो तो जानें… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मानबाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंतउत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 230 ☆ 

ज्ञानवर्धक कविता पहेली —- बूझो तो जानें ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

 देवनदी वह कौन है बच्चो

जिसको माँ कहते हैं।

मंदाकिनी भी कहें उसे हम

जीव अनेकों रहते हैं।

 *

अमरतरंगिनी, भागीरथी है

जिसका जल अमृत कहलाता।

देवपगा स्नान जो करते

उनका मन पावन हो जाता।

 *

स्वर्गापगा, जाह्नवी कहते

जिसे भगीरथ धरा पर लाए।

सुरसरिता कहे जिसे हम

पूर्वज जिसमें तर जाएँ।

 *

ध्रुवनंदा है वही विक्षुपगा

वही पूज्य है नदीश्वरी।

सत्य, सनातन वही संस्कृति

वही है बच्चो सुरसरि।

 *

सुरधुनि है भारत की माता

गंदा इसको कभी न करना।

पाप जो लेते अपने सिर पर

उनको दंड पड़ेगा भरना।

उत्तर- माँ गंगा नदी।

 डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #258 – कविता – ☆ चलो गुनगुनाएँ हम… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम बाल गीत चलो गुनगुनाएँ हम” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #258 ☆

चलो गुनगुनाएँ हम☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

एक गीत गाएँ हम

जीवन की बगिया में

चलो खिलखिलाएँ हम।

*

भिन्न-भिन्न जाति पंथ

है अनेक धर्म ग्रंथ

सबका है एक मंत्र

प्रेम प्यार पाएँ हम।

एक गीत गाएँ हम।।

*

मातृभूमि का वंदन

माटी इसकी चंदन

इसका सम्मान करें

शीश पर लगाएँ हम।

एक गीत गाएँ हम।।

*

तुलसी मीरा कबीर

गाई दीनन की पीर

संतो के पावन पद

सबको सुनाएँ हम।

एक गीत गाएँ हम।।

*

हम सब मिल खूब पढ़ें

आपस में नहीं लड़ें

भेदभाव भूल,

ऊंच-नीच को मिटाएँ हम

एक गीत गाएँ हम

*

सीमा पर है जवान

खेतों में है किसान

योगदान को इनके

नहीं भूल पाएँ हम।

एक गीत गाएँ हम।।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 82 ☆ क्या है जीवन… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “क्या है जीवन…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 82 ☆ क्या है जीवन… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

   क्या है जीवन

   जैसे उड़ता हुआ परिन्दा

   खोज रहा है नीड़।

 

   रिश्ते टूटी डाल

   घोंसलों का अपनापन

   बुनता रहा भरोसा

   सन्नाटों में आँगन

 

   लुटता जीवन

   झुका हुआ होकर शर्मिंदा

   टूट चुकी है रीढ़।

 

   वक्त कँटीले ख्वाब

   आँख राहें पथरीली

   मोड़ हादसे पढ़ें

   हवा भाषा जहरीली

 

   कटता जीवन

   कोलाहल पीकर है जिंदा

   उगा रहा है भीड़।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ हमने तो… ☆ डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक ☆

डॉ जसप्रीत कौर फ़लक

☆ कविता ☆ हमने तो… ☆ डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक 

हमने कुछ और ढूँढा था तुझमें

     हमने  समझा था 

प्यार का समन्दर हो तुम

    ख़बर नहीं  थी 

उजड़े सहरा का मंज़र हो तुम

    हम  तो   समझे   थे 

कि दिल   के   ख़ला को  भर जाओगे तुम

      यह   ख़बर  नहीं   थी

कि  और   भी तन्हा कर जाओगे तुम

 हमने तो कुछ और ढूँढा था तुझमें

        

हम  तो  समझे   थे

 कि इश्क़ की हक़ीक़त   हो   तुम

      यह   ख़बर  नहीं   थी 

  कि  रेत  पे लिखी इबारत हो तुम

 

हमने तो कुछ और ढूँढा था तुझमें

     हम तो समझे  थे 

कि प्यार पहली की शबनम हो तुम

     यह  ख़बर  नहीं  थी 

कि  पतझड़ का मौसम  हो  तुम

हमने तो कुछ और ढूँढा था तुझमें

 

हम  तो  समझे  थे 

कि प्यार में भीगा अहसास हो तुम

     यह ख़बर नहीं थी

कि नदी नहीं सिर्फ़ प्यास  हो  तुम

हमने तो कुछ और ढूँढा था तुझमें

 

हम तो समझे थे

कि तेरी  आँखों  में

कशिश, प्यार का काजल होगा

यह  ख़बर  नहीं   थी 

कि  तेरा  दिल

अतीत के दुखों से बोझल होगा

हमने तो कुछ और ढूँढा था तुझमें

 

हम  तो  समझे  थे 

कि  तुम्हें   सिर्फ़ एक  तारे  से   मुहब्बत  है

यह    ख़बर  नहीं   थी 

कि  तुम्हें  तो फ़लक सारे से मुहब्बत है।

 डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक

संपर्क – मकान न.-11 सैक्टर 1-A गुरू ग्यान विहार, डुगरी, लुधियाना, पंजाब – 141003 फोन नं – 9646863733 ई मेल – [email protected]

≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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