हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 6 – दीप पर्व विशेष – दीपावली का पर्व यह …☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  दीप पर्व पर विशेष कविता  “दीपावली का पर्व यह …”। अब आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 6 – दीप पर्व विशेष – दीपावली का पर्व यह … ☆ 

 

मातु लक्ष्मी कृपा कर, सरस्वती दे ज्ञान ।

गणपति से आशीष ले, सभी बने विद्वान ।।

 

फुलझड़ियां मुस्कान की, जगमग जलते दीप।

खुशियों के बम फूटते, पाकर मोती सीप।।

 

दीपक घर घर में जलें, दूर हटे अज्ञान ।

तमस सभी मन के मिटें, सबका हो कल्यान।।

 

रंग बिरंगी रोशनी, झूम उठेगी शाम।

राम अयोध्या आ गए, सँबरे सबके काम।।

 

दीपावली का पर्व यह, फिर आया इस बार ।

हंसी-खुशी सब साथ में, सुखमय हो संसार।।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

 

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 6 (61-65)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #6 (61-65) ॥ ☆

 

विन्ध्याद्रि की उच्चता जिनने रोकी औं जिसने महोदधि को फिर से छोड़ा

उन महामुनि अगस्तय से पाण्ड्य नृप ने कर अश्वमेध स्नेह संबंध जोड़ा ॥ 61॥

 

पुराकाल में तृप्त लंकाधिपति ने, जन स्थान सीमा सुरक्षित बनाने

शिव से विशेषास्त्र पाये इसी पाण्ड्य से संधि की इन्द्र को भी हराने ॥ 62॥

 

पाणिग्रहण कर इसी योग्य नृप का पृथ्वी सा सागर की करधन जो धारे

दक्षिण दिशा को सपत्नी बना जो सुखद रत्नाकर की है रसना सँवारे ॥ 63॥

 

ताम्बूल वल्ली घिरे सुपारी वृक्ष, ऐला विचुम्बित अगरू तरू जहाँ हैं

वहाँ केलि हित बिछाये आस्तरण हैं तमालों की मंजुल मलय वीथिकायें ॥ 64॥

 

ये नील नीरज से श्याम नृप, तुम हो रोचना गौर शरीर वाली

बढ़ाने आपस की रूप श्शोभा, है योग धन – दामिनी का सा आली ॥ 65॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 62 – दोहे ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 62 –  दोहे 

 

रोई ब्रज की गोपिका, रोए थे नंदलाल।

चुप्पी साधे राधिका, आंसू करे सवाल।

 

आंसू का इतिहास है आशु का भूगोल ।

आंसू का विज्ञान अब, रहस्य रहा है खोल।।

 

आंसू है संवेदना आंसू, मन की पीर।

यशोधरा का रूप है ,जसोदा की जंजीर।।

 

जनक दुलारी चल पड़ी ,ओढ़ अश्रु का चीर ।

आंसू डूबी अयोध्या, राम मौन गंभीर ।।

 

घनानंद का अश्रुधन ,अर्पित कृष्ण सुजान।

उसी अश्रु की धार में ,डूबे थे रसखान ।।

 

आंसू डूबी सांस से, रचित ईश्वरी फाग।

रजउ ब्रह्म थी ,जीव थी ,ऐसा था अनुराग।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 62 – खबर तो यह भी जरूरी ….. ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “खबर तो यह भी जरूरी ….. । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 62 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || खबर तो यह भी जरूरी ….. || ☆

 

खबर तो यह भी जरूरी

है, नई

फर्श से दीवार आकर

सट गई

 

शून्य पसरा भवन के

सद विचारों में

दिख रहे ध्वंश के बादल

दरारों में

 

ईंट की अपनी व्यथा

सहकर्मियों से

दूसरी एक ईंट आकर

कह गई

 

शुरू झड़ना हुआ

चूना समय का

बचा न अस्तित्व

जैसे विनय का

 

लोक प्रचलित कहावत

सी चेतना

डाक में आये खतों

सी बँट गई

 

अस्तव्यस्तस्थितियाँ

सिंहद्वारों की

भूख में डूबी

बस्ती कहारों की

 

कमर से आ झुकी

नाइन पूछती

जल रही वो आग

कैसे बुझ गई ?

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

24-10-2019

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सापेक्ष ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – सापेक्ष ?

(कल प्रकाशित हुए कवितासंग्रह क्रौंच से)

भारी भीड़ के बीच

कर्णहीन नीरव,

घोर नीरव के बीच

कोलाहल मचाती मूक भीड़,

जाने स्थितियाँ आक्षेप उठाती हैं

या परिभाषाएँ सापेक्ष हो जाती हैं,

कुछ भी हो पर हर बार

मन हो जाता है क्वारंटीन,

क्या कहते हो आइंस्टिन..?

©  संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता # 108 ☆ जीतने वाले…. ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता  ‘जीतने वाले….’).   

☆ कविता # 108 ☆ जीतने वाले.... ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

जीत के

अक्षर में

शब्द हंसते हैं,

 

शब्द हमेशा

टटोलते हैं

जीत का मतलब,

 

जीतने वाले

शब्दों से

खेलते नहीं,

 

जीतने वाले

शब्दों को

मान देते हैं,

 

जीतने वाले

शब्दों को

मधुर बनाते हैं,

 

जीतने वाले

शब्दों को

हंसी देते हैं,

 

जीतने वाले

शब्दों को

नये अर्थ देते हैं,

 

जीतने वाले

शब्दों को

आत्मसात करते हैं,

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #52 ☆ # दीपोत्सव मनाएं # ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी नवरात्रि पर्व पर विशेष कविता “# दीपोत्सव मनाएं #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 52 ☆

☆ # दीपोत्सव मनाएं # ☆ 

जगमग जगमग दीप जले हैं

दीपों की सजी है माला

दुल्हन सी सजी है धरती

चारों तरफ है उजाला

 

आकाश में चमकते तारें

ओढ़नी में सजे जैसे सितारे

अमावस्या की काली रात में

बिखरे हैं रंगीन नजारें

 

चारों तरफ है बेरोजगारी

जनता है त्रस्त महंगाई की मारी

जीना है दूभर गरीब का

कौन दूर करें लाचारी

 

महामारी में सबकुछ लुट गया हो

परिवार राह में छूट गया हो

जनम जनम के जो थे साथी

उनसें बंधन टूट गया हो

 

कैसे जिएं वो मन को मारें

व्यर्थ है उसके लिए नजारें

कैसा दीया और कैसी बाती

जख्म है ताजा

लहू की बहती हैं धारें

 

आओ सब कुछ भूल जाएँ 

घर घर में हम खुशियां लाएं 

कोई ना हो किस्मत का मारा

दीप जलायें, दीपोत्सव मनाएं  

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 6 (56-60)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #6 (56-60) ॥ ☆

 

प्रासाद में सोये हुये नृपति को जगाती सागर की उर्मिध्वनियाँ

उदधि जो वातायनों से दिखता औं मंद हुई जिससे तूर्य ध्वनियाँ ॥ 56॥

 

समुद्र तट के जो अन्य द्वीपों से देवपुष्पों की गंध लाती

उस स्वेदशोषक समीर वन में इस साथ विचारों खुशी मनाती ॥ 57॥

 

विदर्भनृप अनुजा रूपसी इन्दु, पुरूषार्थ से लाई लक्ष्मी सी

अभागे को छोड़ के बढ़ गई जो थी दासी के लोभ में आई हुई सी ॥ 58॥

 

ये उरगपुर के हैं स्वामी, देखो चकोर नयने ! जो है सुशोभन

इस भांति बोली भोजानुजा से, सुनंदा कर फिर से प्रिय सम्बोधन ॥ 59॥

 

चंदन लगे माल, मुक्ताओं की माल से पाण्ड्य नृप की श्शोभा थी ऐसी

सूरजकिरण से दमकते शिखरों औं झरनों से हिमगिरि की हो जैसी ॥ 60॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ राष्ट्रीय एकता दिवस विशेष – राष्ट्र के लिये समर्पण ही, उनका अभिमान था ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं। आज प्रस्तुत है भारत रत्न लौह पुरुष सरदार  वल्लभ भाई पटेल की जयंती पर आपके द्वारा श्रद्धांजलि स्वरुप रचित एक विशेष रचना  ।।राष्ट्र के लिये समर्पण   ही, उनका अभिमान था।।)      

☆ राष्ट्रीय एकता दिवस विशेष – राष्ट्र के लिये समर्पण ही, उनका अभिमान था। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆ 

।।भारत रत्न लौह पुरुष सरदार  वल्लभ भाई पटेल की जयंती 31 अक्टूबर 2021( राष्ट्रीय एकता दिवस) को उनको शत शत नमन।।

।। 1।।

भारत   के    लौह   पुरुष

सरदार   पटेल  नाम   था।

भारत में  रियासतों    को

मिलाना उनका काम  था।।

भारत   प्रथम उप  प्रधान

मंत्री भारत रत्न थे    वह।

राष्ट्र के लिये समर्पण   ही

उनका       अभिमान  था।।

 

।। 2 ।।

केवडिया गुजरात में  बनी

मूर्ति विश्व की सबसे  बड़ी।

सरदार वल्लभभाई के दम

पर भारत की इमारत खड़ी।।

उस लौह पुरुष की  जयंती

पर उनको शत शत   नमन।

जिसने भारत की  आज़ादी

के लिए थी    लड़ाई   लड़ी।।

 

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 64 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 64 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 64) ☆

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 64 ☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

सियासतों की तरह है

मोहब्बतों का मिजाज,

जिसे भी सौंपी हुकूमत

बस उसी ने लूट लिया….

 

The temperament of love

is just like politics only

Whomever we hand over

the rule he only robs us!

  ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

इतनी सी है बस असलियत इन

हमेशा हँसते मुसकुराते लोगों की

बस ज़रा सा ज़ोर से गले लगाओ

तो बस दिल खोलकर रो देते हैं….!

 

This much only is the reality

of these always-smiling people ….

Just a little tight hug, and

Lo! They open their heart to cry ….

  ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

अब तुम हमें समझाया न करो

कि अब जो हुआ सो हुआ,

अगर मोहब्बत मशवरा होती

तो हम भी पूछ कर करते…

 

Now don’t explain it to me that

what’s happened has happened,

If love was done with consultation

I’d have also done it by asking you….

  ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

अहमियत यहाँ सिर्फ

हैसियत को मिलती है,

और हम हैं कि अपने

जज़्बात लिए फिरते हैं …..

 

Importance is accorded

only to the status here

And here I’m just wandering

around with the emotions ….!

  ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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