हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #50 ☆ #  रामराज्य  # ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी नवरात्रि पर्व पर विशेष कविता “#  रामराज्य  #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 50 ☆

☆ #  रामराज्य  # ☆ 

हमने लोगों का अनुकरण किया

दशहरे के पर्व में साथ दिया

हर्ष और उल्लास से

दशानन का दहन किया

 

सोना बांटा, हाथ मिलाया

सबको अपने गले लगाया

चेहरे पर मुखौटा लगाए

कृत्रिम हंसी से दिल बहलाया

 

रात को सोये, सुबह को जागे

दौड़ में शामिल भागे भागे

भूल गये सब ज्ञान की बातें

“अर्थ” ही है सबसे आगे

 

जीवन में जरूरी है दाम

पद, प्रतिष्ठा, ऊंचा नाम

जीवन-मूल्य गौण हो गये

ना कोई रावण, ना कोई राम

 

सत्य-असत्य में द्वंद है

सत्य पिंजरे में बंद है

असत्य का है बोलबाला

सत्य के नाम पर पाखंड है

 

ना हम राम सा बन पायें

ना हम रावण को भूल पायें

दोनों हममे विद्यमान है

देश में,

फिर रामराज्य कैसे आये?

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 5 (61-65)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #5 (61-65) ॥ ☆

 

ज्यों चंद्र को देख हर्षित उदधि उर्मिमाला उठा करता सत्कार विधु का

वैसे ही अज आगमन से मुदित भोज ने स्वतः बढ किया स्वागत अतिथि का॥ 61।

 

अगवानी कर पथ दिखा अज को जिसने विनत भाव से सच समर्पित किया जब

उस भोज की देख के भावना उसके समझे अतिथि अज को गृहस्वामी सा सब 62।

 

जहाँ पूर्व द्वारे की बेरी पै जल से भरे घट रखे गये थे भृत्यों के द्वारा

वहाँ नये भवन में था रघुपुत्र अज का मदन सदृश यौवन में आवास प्यारा ॥ 63॥

 

उसी रूपसी की प्रबल लालसा ले थे जिसके स्वयंवर में कई नृपति आये

नवोढ़ा वधू सी बड़ी देर में रात्रि, निद्रा नयन अज के सायास पाये ॥ 64॥

 

कुण्डल औं अंगराग जिसके थे घर्षित वे अज सुबह गान से गये जगाये

चारण तरूण जो थे अति वाक्पटु, उननें विरूदावली में मधुर गीत गाये ॥ 65॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 62 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 62 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 62) ☆

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 62 ☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

इल्जाम तो हर हाल में

काँटों  पर  ही  लगेगा…

ये सोचकर कुछ फूल भी

चुपचाप ज़ख्म दे जाते हैं…!

 

As such, blame will always be

there on the thorns only….

Considering this even some flowers

quietly inflict the wounds….!

  ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

रहने दो कि अब तुम भी

मुझे पढ़ न सकोगे

बरसात में काग़ज़ की

तरह भीग गया हूँ  मैं ..!

 

Let it be, now even

you can’t read me

I’m like the paper

drenched in the rain…!

  ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

मैं हूँ दिल है,

तन्हाई भी है

तुम भी होते,

तो अच्छा होता…

 

I’m there, heart is there,

loneliness is also there

It would have been nice,

If you were there too..!

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

अगर कभी फ़ुर्सत मिले तो

पानी की लहरों को पढ़ लेना,

हर इक दरिया हज़ारों साल

का अफसाना लिखता है…

 

If you ever get time, then

read the waves of water,

Every single river writes

tales of many of eras…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 62 ☆ हाइकु सलिला ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित भावप्रवण  ‘हाइकु सलिला। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 62 ☆ 

☆ हाइकु सलिला ☆ 

*

हाइकु करे

शब्द-शब्द जीवंत

छवि भी दिखे।

*

सलिल धार

निर्मल निनादित

हरे थकान।

*

मेघ गरजा

टप टप मृदंग

बजने लगा।

*

किया प्रयास

शाबाशी इसरो को

न हो हताश

*

जब भी लिखो

हमेशा अपना हो

अलग दिखो।

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य #92 ☆ # क्या रावण जल गया? # ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है  श्री सूबेदार पाण्डेय जी की  एक भावप्रवण कविता  “#क्या रावण जल गया?#। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# #92 ☆ # क्या रावण जल गया? # ☆

हर साल जलाते हैं रावण को,

फिर भी अब-तक जिंदा है।

वो लंका छोड़ बसा हर मन में,

मानवता शर्मिंदा हैं।

हर साल जलाते रहे उसे,

फिर भी वो ना जल पाया।

जब हम लौटे अपने घर को,

वो पीछे पीछे घर आया।

शहर गांव ना छूटा उससे,

सबके मन में समाया।

मर्यादाओं की चीर हरे वो,

मानवता चित्कार उठी।

कहां गये श्री राम प्रभु,

सीतायें  उन्हें पुकार उठी।

अब हनुमत भी लाचार हुए,

निशिचरों ने उनको  फिर बांधा।

निशिचर  घूम रहे गलियों में,

है कपट वेष अपना‌ साधा।,

कामातुर जग में घूम रहे,

आधुनिक बने ये  नर-नारी।

फिर किसे दोष दे हम अब,

है फैशन से सबकी यारी।

आधुनिक बनी जग की नारी

कुल की मर्यादा लांघेगी।

फैशन परस्त बन घूमेगी,

लज्जा खूंटी पर टांगेगी।

जब लक्ष्मण रेखा लांघेगी,

तब संकट से घिर जायेगी।

फिर हर लेगा कोई रावण,

कुल में दाग लगायेगी।

कलयुग के  लड़के राम नहीं,

निशिचर,बन सड़क पे ‌घूम रहे।

अपनी मर्यादा ‌भूल गये,

नित नशे में वह अब झूम रहे।

रावण तो फिर भी अच्छा था,

राम नाम अपनाया था।

दुश्मनी के चलते ही उसने,

चिंतन में राम बसाया था।

श्री रामने अंत में इसी लिए,

शिक्षार्थ लखन को भेजा था।

सम्मान किया था रावण का,

अपने निज धाम को भेजा था।

अपने चिंतन में हमने क्यों,

अवगुण रावण का बसाया है।

झूठी हमदर्दी दिखा दिखा,

हमने अब तक क्या पाया है।

उसके रहते  अपने मन में ,

क्या राम दरस हम पायेंगे।

फिर कैसे पीड़ित मानवता को

न्याय दिला हम पायेंगे।

इसी लिए फिर ‌बार‌ बार ,

मन के रावण को मरना होगा।

उसकी पूरी सेना का,

शक्तिहरण अब करना ‌होगा।

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

18-8-2021

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 5 (56-60)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #5 (56-60) ॥ ☆

 

चिरकाल से प्रतीक्षारत था जिसकी मैं उस आप से हुआ अब शापमोचित –

तो यदि न उपकार मानू मैं प्रभु का, तो होगा मेरे लिये यह बड़ा अनुचित॥ 56॥

 

मेरा अस्त्र ‘सम्मोहन’ नाम का यह इसे लें सखे यह दिलाता विजय श्री

यह सिद्ध गाँधर्वमन्त्रित जिताता है होता नहीं शत्रु हिंसा का भय भी ॥ 57॥

 

मुझ पर दया पूर्ण प्रहार करके, जो कुछ किया उस पै करें न लज्जा

मेरी प्रार्थना पर न बरतें रूखाई, ग्रहण कर इसे करें नव साज सज्जा ॥ 58॥

 

अज अस्त्र विद्या विशारद ने उससे – ‘ऐसी ही हों – कहके पी नर्मदाजल

उत्तर दिशा ओर मुख कर प्रियवंद से धारण किया अस्त्र का मंत्र निश्चल॥ 59॥

 

इस भांति संयोग से असंभव संख्य को प्राप्तकर दोनों बढ़े लक्ष्य की ओर आगे

एक प्रियवंद कुबेर उद्यान चित्ररथ ‘अज’ विदर्भ की ओर झट मन बना के॥ 60॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 50 ☆ गीत – मुझे नही आता है ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण कविता “बहा ले जाती नदी अपना ही किनारा”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा # 49 ☆गीत – मुझे नही आता है ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध ☆

लिखता तो हूँ । पर विवाद में पड़ना मुझे नही आता है

सीधी सच्ची बाते आती, गढ़ना मुझे नही आता है।

देखा है बहुतों को मैने पल-पल रंग बदलते फिर भी

मुझे प्यार अच्छा लगता है, लड़ना मुझे नहीं आता है।।

 

लगातार चलना आता है, अड़ना मुझे नही आता है

फल पाने औरो के तरू पर चढ़ना मुझे नही आता है।

देखा औरो की टांगे खीच स्वयं बढ़ते बहुतों को।

पर धक्के दे गिरा किसी को बढ़ना मुझे नहीं आता है।।

 

अपने सुख हित औरों के सुख हरना मुझे नही आता है

अपना भाग्य सजाने श्रम से डरना मुझे नहीं आता है।

देखा है देते औरों को दोष स्वयं अपनी गल्ती को

पर अपनी भूले औरों पर गढ़ना मुझे नही आता है।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – ग्लोब ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – ग्लोब ?

ढूँढ़ो, तलाशो,

अपना पता लगाओ,

ग्लोब में तुम जहाँ हो,

एक बिंदु लगाकर बताओ,

अस्तित्व की प्यास जगी,

खोज में ऊहापोह बढ़ी,

कौन बूँद है, कौन सिंधु है..?

ग्लोब में वह एक बिंदु है

या

ग्लोब उसके भीतर

एक बिंदु है..?

©  संजय भारद्वाज

(रात्रि 10.11 बजे, 25.9.19)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 5 (51-55)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #5 (51-55) ॥ ☆

 

आघात लगते ही उस वन्य हाथी ने रख रूप मनहरण आकाश चारी

जिसकी प्रभा दिव्यतापूर्ण शोभा साश्चर्य गई सैनिको से निहारी ॥ 51॥

 

तब कल्प द्रुम – पुष्प पा दिव्यता से उसने सुमन कुँवर अज पर चढ़ाये

निज रदन प्रभा से बढ़ा हार श्शोभा, उस वाक्पटु ने वचन ये सुनाये ॥ 52॥

 

गंधर्वपति प्रियदर्शन का आत्मज मैं हूँ प्रियवंद था राजरूप शापित

मतंगमुनि ने दिया शाप था मुझ घमण्डी को जिससे था अब तक प्रभावित॥ 53॥

 

मेरी प्रार्थना पर व्यथित कुपित मुनि ने तजक्षोभ सब क्रोध अपना भुलाया

होता है जल अग्नि या धूप से उष्ण प्रकृति ने उसे तो है शीतल बनाया ॥ 54॥

 

लोहा लगे फाल के बाण से जब भेदेंगे ‘अज’ कभी मस्तक तुम्हारा

कहा था उन्होंने तभी मुक्त होगें निपट जायेगा शाप मेरा ये सारा॥ 55॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विश्व दृष्टि दिव्यांग दिवस विशेष – चेतन, यह तुम्हारे लिए है! ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

?️ विजयादशमी ?️

देह में विराजता है परमात्मा का पावन अंश। देहधारी पर निर्भर करता है कि वह परमात्मा के इस अंश का सद्कर्मों से विस्तार करे या दुष्कृत्यों से मलीन करे। परमात्मा से परमात्मा की यात्रा का प्रतीक हैं श्रीराम। परमात्मा से पापात्मा की यात्रा का प्रतीक है रावण।

आज के दिन श्रीराम ने रावण पर विजय पाई थी। माँ दुर्गा ने महिषासुर का मर्दन किया था।भीतर की दुष्प्रवृत्तियों के मर्दन और सद्प्रवृत्तियों के विजयी गर्जन के लिए मनाएँ विजयादशमी।

त्योहारों में पारंपरिकता, सादगी और पर्यावरणस्नेही भाव का आविर्भाव रहे। अगली पीढ़ी को त्योहार का महत्व बताएँ, त्योहार सपरिवार मनाएँ।

विजयादशमी की हृदय से बधाई।

संजय भारद्वाज ?

? संजय दृष्टि – विश्व दृष्टि दिव्यांग दिवस विशेष – चेतन, यह तुम्हारे लिए है! ?

आज 15 अक्टूबर अर्थात विश्व दृष्टि दिव्यांग दिवस है। इस संदर्भ में सितम्बर 2018 की एक घटना याद आती है। अहमदनगर के न्यू आर्टस्-साइंस-कॉमर्स कॉलेज में हिंदी दिवस के अतिथि के रूप में आमंत्रित था। व्याख्यान के साथ काव्यपाठ भी हुआ।

कार्यक्रम के बाद एक दृष्टि दिव्यांग छात्र चेतन और उसका मित्र मिलने आए। चेतन ने जानना चाहा कि क्या मेरी कविताएँ ऑडियो बुक के रूप में उपलब्ध हैं? उसके एक वाक्य ने बींध दिया, “सर बहुत पढ़ना चाहता हूँ पर हम लोगों के लिए बहुत कम ऑडियो बुक उपलब्ध हैं। ऑडियो के माध्यम से गुलज़ार साहब की कविताएँ सुनी-पढ़ी। …..आपकी कविताएँ सुनना-पढ़ना चाहता हूँ।”

तभी मन बनाया कि यथासंभव इस पर काम करुँगा। पहले चरण के रूप में 23 सितम्बर 2018 को दृष्टि दिव्यांगों पर एक कविता रेकॉर्ड की। बाद में तो सिलसिला चल पड़ा। कविता, अध्यात्म एवं अन्यान्य विषयों पर अनेक ऑडियो-वीडियो रेकॉर्ड किए।

‘दिव्यांग’ शीर्षक की कविता मित्रों के साथ साझा कर रहा हूँ। इस कविता के कुछ अंश सातवीं कक्षा की ‘बालभारती’ की में सम्मिलित किये गये हैं।

विशेष उल्लेख इसलिए कि इसे जारी करते समय कलम ने लिखा था, चेतन, यह तुम्हारे लिए है।…आज दोहराता हूँ, चेतन यह तुम्हारे लिए था, है और रहेगा।

यूट्यूब लिंक – >> चेतन, यह तुम्हारे लिए है! कविता – ‘दिव्यांग’

साथ ही विनम्रता से कहना चाहता हूँ, हम आँखवालों का कर्तव्य है कि अपनी दृष्टि की परिधि में दृष्टि दिव्यांगों को भी सम्मिलित करें।

– संजय भारद्वाज

? दिव्यांग ?

आँखें,

जिन्होंने देखे नहीं

कभी उजाले,

कैसे बुनती होंगी

आकृतियाँ-

भवन, झोपड़ी,

सड़क, फुटपाथ,

कार, दुपहिया,

चूल्हा, आग,

बादल, बारिश,

पेड़, घास,

धरती, आकाश

दैहिक या

प्राकृतिक सौंदर्य की?

 

‘रंग’ शब्द से

कौनसे चित्र

बनते होंगे

मन के दृष्टिपटल पर?

भूकम्प से

कैसा विनाश चितरता होगा?

बाढ़ की परिभाषा क्या होगी?

इंजेक्शन लगने के पूर्व,

भय से आँखें मूँदने का

विकल्प क्या होगा?

आवाज़ को

घटना में बदलने का

पैमाना क्या होगा?

चूल्हे की आँच

और चिता की आग में

अंतर कैसे खोजा जाता होगा?

दृश्य या अदृश्य का

सिद्धांत कैसे समझा जाता होगा?

 

और तो और

ऐसी दो जोड़ी आँखें,

जब मिलती होंगी

तो भला आँखें

मिलती कैसे होंगी..?

 

और उनकी दुनिया में

वस्त्र पहनने के मायने,

केवल लज्जा ढकने भर के

तो नहीं होंगे…!

 

कुछ भी हो

इतना निश्चित है,

ये आँखें

बुन लेती हैं

अद्वैत भाव,

समरस हो जाती हैं

प्रकृति के साथ..,

 

सोचता हूँ

काश!

हो पाती वे आँखें भी

अद्वैत और

समरस,

जो देखती तो हैं उजाले

पर बुनती रहती हैं अँधेरे..!

©  संजय भारद्वाज

(शुक्रवार 5 अगस्त 2016, प्रातः 7: 50 बजे)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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