हिन्दी साहित्य – कविता ☆ प्यारी हिन्दी… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कविता ?

☆  प्यारी हिंदी☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

बहुत ही मधूर है हमारी हिंदी भाषा ,

हिंदी है भारत की राष्ट्रभाषा,

*

जबसे सिखी हिंदी मैंने,

अपने स्कूल के दिनों में,

मातृभाषा नही है फिर भी,

छा गयी दिल और दिमाग पर।

*

रेडिओ सिलोन के गीतों में सुनी,

सुनी आमीन सायानी जी की बातों में,

पढ़ी मुन्शी प्रेमचंद के पाठ में,

और सुभद्राकुमारी चौहान की कविता में,

गुलशन नंदा के उपन्यासों में….

राजेंद्र यादव के ‘सारा आकाश’ में।

*

देखी हिंदी अनगिनत फिल्मों में,

कवी प्रदीप,

नीरज, आनंद बक्षी, योगेश,

माया गोविंद के गीतों में  से,

उतर गयी सीधे दिल में।

*

हिंदी है बहुत ही मीठी,

हिंदी का अलग है लहजा,

मेरी प्यारी हिंदी, मुझको,

तेरा वह अंदाज दे जा…

© प्रभा सोनवणे

१६ जून २०२४

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 70 – तो सुख सारे मिल जायें… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना –तो सुख सारे मिल जायें।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 70 – तो सुख सारे मिल जायें… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

हृदय हमारे मिल जायें 

तो सुख सारे मिल जायें

*

दाह बुझे, जो अधरों के 

ये अंगारे मिल जायें

*

तुम चाहो, तो दोनों के

दिल बेचारे मिल जायें

*

जलूँ शौक से, यदि छूने 

रूप शरारे, मिल जायें

*

डूबूं तेरे संग, भले 

मुझे किनारे मिल जायें

*

तू न मिले तो, व्यर्थ मुझे 

चाँद-सितारे मिल जायें

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 143 – मौन  छा गया घर-आँगन में… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “मौन  छा गया घर-आँगन में…। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 143 – मौन  छा गया घर-आँगन में… ☆

मौन  छा गया घर-आँगन में।

जीवन फँसा कठिन उलझन में।।

*

आई संध्या-काल घड़ी जब।

किसकी नजर लगी उपवन में?

*

राह देखती रही हमारी,

प्रिय बहना रक्षाबंधन में।

*

कैसी भगवन हुई परीक्षा,

विश्वासों के उत्पीड़न में!

*

मात-पिता की याद आ गई,

चिंता-मुक्त खेल-बचपन में।

*

अधिकारी नेता की चाहत,

धनसंचय के आराधन में।

*

मानवता के शत्रु बन गए,

धर्म-पताका आरोहण में।

*

आजादी की बिछी बिछायत,

सत्ता पाने की अनबन में।

*

भरा पेट हो या खाली हो,

देखो बैठ रहे अनशन में।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – हरापन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – हरापन ? ?

बहुत कठिनाई से

रुकता है बहता जल,

अथक संघर्ष के बाद

स्थिर होता है मन,

उसका फिर उछालना

छोटा-सा एक कंकड़,

प्रवाह को बांधे रखने की

असाध्य अभीप्सा,

अप्सरा के मदनोत्सव से

तिरोहित होती तपस्या,

तरंगों का अट्टहास

उसकी खिलखिलाहट,

थमे पानी का

धीरे-धीरे रिसना,

सूखे घाव का

हर बार कुछ हरा होना,

लाख जतन कर लो

वेदना का शमन नहीं होता,

कितने ही दिलासे दे लो

हरापन हमेशा सुखद नहीं होता!

© संजय भारद्वाज  

10:28 बजे, 30.11.2020

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 27 अगस्त से 9 दिवसीय श्रीकृष्ण साधना होगी। इस साधना में ध्यान एवं आत्म-परिष्कार भी साथ साथ चलेंगे।💥

🕉️ इस साधना का मंत्र है ॐ कृष्णाय नमः 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ कान्हा… इस युग में भी आना… ☆ डॉ सुमन शर्मा ☆

डॉ. सुमन शर्मा 

(ई-अभिव्यक्ति मे सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं शिक्षाविद डॉ सुमन शर्मा जी का हार्दिक स्वागत। आपने “यशपाल साहित्य में नारी चित्रण” विषय पर पी एच डी। की है। पाँच पुस्तकें (सैलाब (कविता संग्रह), मन की पाती (कविता संग्रह), रहोगी तुम वही (कहानी संग्रह), आहटें (कविता संग्रह) एवं यशपाल के उपन्यासों में नारी के विविध रूप) प्रकाशित। इसके अतिरिक्त पत्र पत्रिकाओं में विविध विषयों पर आलेख, शोध पत्र, कविताएँ प्रकाशित, आकाशवाणी से अनेक वार्तालाप, कविताएँ प्रसारित। अखिल भारतीय कवयित्री सम्मेलन तथा पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी द्वारा सम्मानित। संप्रति – सेवानिवृत्त प्राध्यापिका (हिन्दी), श्रीमती वी पी कापडिया महिला आर्ट्स कॉलेज, भावनगर)। आज प्रस्तुत है 78वें स्वतन्त्रता दिवस पर आपकी भावप्रवण कविता कान्हा… इस युग में भी आना…।)

☆ कान्हा… इस युग में भी आना… ☆ डॉ सुमन शर्मा ☆

इस युग में भी आना कान्हा…,

इस युग में भी आना …

नहीं चाहिए मयुर पंख,

न धुन बंसी मधुर बजाना …

कान्हा… इस युग में भी आना…।

*

जगह जगह बिसात बिछाये,

बैठे शकुनि घात लगाये,

हाथ सुदर्शन चक्र लिए

तुम चमत्कार दिखलाना…,

कान्हा… साथ सुदर्शन लाना…,

कान्हा… इस युग में भी आना…. ।

*

दुःशाासन मिलते हर चौराहे,

कैसे नारी खुद को बचाये?

उनमें दुर्गा काली रूप जगाने,

शस्त्र शक्ति से परिचित करवाने

शंखनाद बजाना…

कान्हा… इस युग में भी आना…. ।

*

द्रोपदियों की लाज बचाने ,

समर्थवान उन्हें कर जाने,

गीता का ज्ञान बताना…,

कान्हा… इस युग में भी आना

हर युग में आने का अपना वादा तुम निभाना…,

कान्हा… इस युग में भी आना…. ।

*

भीड़ पड़ी तेरे भक्तों पर

आकर थाह लगाना कान्हा…

हर युग में आने का अपना वादा तुम निभाना..,

कान्हा… इस युग में भी आना…. ।

© डॉ सुमन शर्मा 

२६/८/२०२४

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 205 – कथा क्रम (स्वगत)… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 205 – कथा क्रम (स्वगत)… ✍

(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )

क्रमशः आगे…

भोजनगर नरेश

उशीनर से ।

उशीनर

को

संवाद मिल

‘चुका

था

वे उत्सुक और

आतुर थे

गालव का

प्रस्ताव सुनने

और

उसे

मानने के लिये ।

उन्होंने भी

दो सौ श्यामकर्ण अश्व

देने का वचन दिया।

कामदग्ध

उशीनर ने

माधवी को पाकर

स्वर्ग सुख पा लिया।

समय सीमा का

ध्यान रख

जी भर रमण किया।

फलतः

जन्मा पुत्र

शिवि ।

तीन नरेशों ने

किया सहवास

माधवी के साथ,

किया रमण

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 205 – “जुगनू कई बाँध बालों में…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत जुगनू कई बाँध बालों में ...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 205 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “जुगनू कई बाँध बालों में...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी 

साड़ी,

नई किनार की ।

जिसे देख शरमा जाती है

टहनी तक कचनार की ॥

 *

है जरूर सोने के तारों ।

बुना लगे आकाश सितारों i

लगे स्याह,

ऐयारी करती

रानी, चुर्क – चुनारकी ॥

 *

जुगनू कई बाँध बालों में ।

और प्रेम रख कर आलों में ।

लगता,

सोना पहिन निकलती

पत्नी किसी सुनार की ॥

 *

बहुत खिल खिला कर हँसती है ।

बार बार चोटी करती है ।

हँसते दाँत,

देख लगता है

पीढ़ी नई अनार की ॥

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

01-09-2024

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – दस्तक ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – दस्तक ? ?

 तकलीफदेह है

बार-बार दरवाज़ा खोलना

जानते हुए कि

कोई दस्तक नहीं दे रहा,

ज़्यादा तकलीफदेह है

हमेशा दरवाज़ा बंद रखना

जानते हुए कि

कोई दस्तक दे रहा है,

बार-बार; लगातार!

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 27 अगस्त से 9 दिवसीय श्रीकृष्ण साधना होगी। इस साधना में ध्यान एवं आत्म-परिष्कार भी साथ साथ चलेंगे।💥

🕉️ इस साधना का मंत्र है ॐ कृष्णाय नमः 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 191 ☆ # “क्या क्या नहीं कहा?” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता क्या क्या नहीं कहा?

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 191 ☆

☆ # “क्या क्या नहीं कहा?” #

जीने की आरजू में

क्या क्या नहीं सहा

किस किसने कब कब

क्या क्या नहीं कहा  

 

हम सदियों से अंधेरे में

ढूंढते रहे सूर्य किरण

सूरज के पहरेदारों ने

क्या क्या नहीं कहा  

 

गरीब की कुटिया में

खेलती है मुफलिसी

महल के धनवानों ने

क्या क्या नहीं कहा  

 

रोटी के लिए हम

लड़ते रहे रात-दिन

रोटी के ठेकेदारों ने

क्या क्या नहीं कहा  

 

मंदिर की सीढ़ियों पर

हम ढूंढते रहे ईश्वर

मंदिर के पुजारियों ने

क्या क्या नहीं कहा  

 

भरोसा नहीं रहा अब

जमाने पर दोस्तों

टूटते हुए रिश्तों ने

क्या क्या नहीं कहा  

 

मां-बाप बोझ बन गए हैं

बच्चों पर आजकल

बूढ़े हुए मां-बाप को

क्या क्या नहीं कहा  

 

हम दो हमारा एक

सिमटते परिवारों को देख

समझाने बहू-बेटों को

क्या क्या नहीं कहा  

 

आंखें खुली हुई हैं पर

बुद्धि गुलाम है

ऐसे मंद बुद्धियों को समझाने

क्या क्या नहीं कहा  

 

कौन सुनता है

तुम्हारी बातों को अब “श्याम”

क्या भूल गए,  तुम्हें दुनिया ने

क्या क्या नहीं कहा  /

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – कान्हा… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय कविता ‘कान्हा…‘।)

☆ कविता  – कान्हा… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

देखो ब्रज में आयो,

सांवरो प्यारो सो,

नेह, सुधा, बरसायो

सांवरो प्यारो सो,

मोहनी सूरत,

चंचल नैना,

नैनो में जग है समाओ,

सांवरो प्यारो सो,

 देखो ब्रज में, ..

बंशी बजाए,

 मन हर्षाए,

सारे जगत को नचाए,

सांवरो प्यारो सो,

देखो ब्रज में..

निधि वन जाए,

रास रचाए,

मुरली मधुर बजाए,

सांवरो प्यारो सो,

देखो ब्रज में..

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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