हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 3 (11-15)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #3 (11-15) ॥ ☆

 

आसन्न प्रसवा चपल सुनयना, सुदक्षिणा को अशक्त पाकर

दिलीप खुश थे यदिपि न रानी नमन थी करती भुजा उठाकर ॥ 11॥

 

सफल चिकित्सा की वैद्यवर ने, प्रसव की तिथि देख समीप राजा

प्रसन्न थे, ग्रीष्म के बाद जैसे समेध नभ देख उभरती आशा ॥ 12॥

 

शची सदृश तेज सुदक्षिणा ने सौभाग्यशाली सुपुत्र जाया

असूर्य पंचग्रहों ने जिसके भविष्य का पथ सुगम बनाया ॥ 13॥

 

दिशायें निर्मल, पवन सुगंधित हुताग्नि दक्षिणमुखी गई हो

सभी शकुल शुभ हुये  महातमांओ के जनम संग जनमते हैं जो ॥ 14॥

 

जनम से बालक के तेज से सब निशीथ दीपक हुये मलिन से

लगा कि जैसे सब सूतिका गृह के दीप केवल हैं चित्र जैसे ॥ 15॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 56 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 56 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 56) ☆

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 56 ☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

परिंदे  शुक्रगुजार  हैं

पतझड़ के भी , दोस्तों

तिनके कहाँ  से  लाते,

अगर सदा, बहार रहती…

 

Birds are grateful to

the autumn too,

Where else from would

they bring straws,

if spring remained

there  forever…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

दिखाई कब दिया करते हैं

बुनियाद के पत्थर…

जमीं में जो दब गए, इमारत

उन्हीं पे तो क़ायम है…

 

When have the foundation

stones ever been seen…

Buried in the ground, they

only hold the building…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

नए  रिश्ते  बने  ना  बनें

इसका मलाल मत करना

कहीं पुराने  टूट ना जाएँ

बस इसका ख़्याल रखना…

 

Don’t regret whether new

relations are made or not

Just  make  sure  that

old ones aren’t broken!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

होगी तुमको लाख

समझ  इश्क़  की,

हमारी  इश्क़  में

नादानी ही अच्छी…

 

You may have a deep

understanding of love,

But my imprudence in

love, only is all fine..!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 57 ☆ जबलपुर में शुभ प्रभात ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताeह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा  रचित  भावप्रवण रचना ‘जबलपुर में शुभ प्रभात । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 57 ☆ 

☆ जबलपुर में शुभ प्रभात ☆ 

*

रेवा जल में चमकतीं, रवि-किरणें हँस प्रात।

कहतीं गौरीघाट से, शुभ हो तुम्हें प्रभात।।१।।

*

सिद्धघाट पर तप करें, ध्यान लगाकर संत।

शुभप्रभात कर सूर्य ने, कहा साधना-तंत।।२।।

*

खारी घाट करा रहा, भवसागर से पार।

सुप्रभात परमात्म से, आत्मा कहे पुकार।।३।

*

साबुन बिना नहाइए, करें नर्मदा साफ़।

कचरा करना पाप है, मैया करें न माफ़।।४।।

*

मिलें लम्हेटा घाट में, अनगिन शिला-प्रकार।

देख, समझ पढ़िये विगत, आ आगत के द्वार।।५।।

*

है तिलवारा घाट पर, एक्वाडक्ट निहार।

नदी-पाट चीरे नहर, सेतु कराए पार।।६।।

*

शंकर उमा गणेश सँग, पवनपुत्र हनुमान।

देख न झुकना भूलना, हाथ जोड़ मति मान।।७।।

*

पोहा-गरम जलेबियाँ, दूध मलाईदार।

सुप्रभात कह खाइए, कवि हो साझीदार।।८।।

*

धुआँधार-सौन्दर्य को, देखें भाव-विभोर।

सावधान रहिए सतत, फिसल कटे भव-डोर।।९।।

*

गौरीशंकर पूजिए, चौंसठ योगिन सँग।

भोग-योग संयोग ने, कभी बिखेरे रंग।।१०।।

*

नौकायन कर देखिये, संगमरमरी रूप।

शिखर भुज भरे नदी को, है सौन्दर्य अनूप।११।।

*

बहुरंगी चट्टान में, हैं अगणित आकार।

भूलभुलैयाँ भुला दे, कहाँ गई जलधार?।१२।।

*

बंदरकूदनी देख हो, लघुता की अनुभूति।

जब गहराई हो अधिक, करिए शांति प्रतीति।।१३।।

*

कमल, मगर, गज, शेर भी, नहीं रहे अब शेष।

ध्वंस कर रहा है मनुज, सचमुच शोक अशेष।।१४।।

*

मदनमहल अवलोकिए, गा बम्बुलिया आप।

थके? करें विश्राम चल, सुख जाए मन-व्याप।।१५।।

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य #86 ☆ भोजपुरी कविता – इहै प्लास्टिक सबके मारी ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है  श्री सूबेदार पाण्डेय जी की  एक भावप्रवण रचना  “# इहै प्लास्टिक सबके मारी#। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 86 ☆ # इहै प्लास्टिक सबके मारी# ☆

आज का मानव समाज सुविधा भोगी हो चला है साधन और सुविधाओं के चक्कर में मानव समाज मौत के मुहाने पर खड़ा है, गाहे-बगाहे न सड़ने वाले बजबजाते प्लास्टिक कचरे के तथा उसकी दुर्गंध से हर व्यक्ति परिचित हैं, ऐसे में आने वाले भयावह खतरे से सावधान रहने का संदेश यह भोजपुरी रचना देती है। उम्मीद है सभी इस भोजपुरी भाषा की रचना को आत्मसात कर समसामयिक रचना का संदेश लोकहित में प्रसारित करेंगे। – श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

 

पोलिएथ्रिन* के आयल जमाना,

साधन आ सुविधा के खुलल खजाना।

पोलीथीन प्लास्टिक नाम बा एकर,

सड़वले से कचरा बड़े नाही जेकर।

साधन आ सुविधा इ केतना बनवलस,

केतना गिनाई नाम बहुतै कमइलस।

कपड़ा अ लत्ता दवाई मिठाई,

गाड़ी मोटर टीवी अ गद्दा रजाई

।।1।।इहै प्लास्टिक एकदिन।।

प्लास्टिक क पत्तल अ प्लास्टिक क दोना,

वोही क ओढ़ना वोही क बिछौना।

वो से छुटल नाहीं कौनो कोना।

प्लस्टिक से सुविधा मिलै ढ़ेर सारी,

मिलै वाले दुख से ना केहू उबारी।

।।इहै प्लस्टिक एक दिन सबके मारी।।2।।

 

इ बाताबरन में प्रदूषण बढ़ाई,

न कौनों बिधि ओकर कचरा ओराइ।

ऐसी खातिर आदत तूं आपन सुधारा,

दूसर विकल्प खोजा कइला किनारा।

समझा अ बूझा सब कर जीवन संवारा,

नाहीं त कवनो दिन बनबा बेचारा।

देखा इ सुरसा जस मुंह बवलस भारी,

धरती हुलिया कबौ ई बिगारी।

।।इहै प्लास्टिक एक दिन सबके मारी।।

 

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

1–09–21

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 3 (6-10)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 3 (6-10) ॥ ☆

जो गर्भिणी रानी चाहती थी वही था प्रस्तुत उपभोग के हित

न कुछ भी अप्राप्त था धनुर्धर को, था स्वर्ग सुख की सुलभ्य निश्चित ॥ 6॥

 

कर पार प्रारंभिक गर्भ के दुख, हुई सृदक्षिणा मनोरमा यों

बसंत में होती है सुशोभित हरी भरी हो कोई लता ज्यों ॥ 7॥

 

दिन बीतते पा विकास नी लाभ – मुख हो गये दो बड़े पयोधर

ज्यों कि सुविकसित कमल कली शिखर पर आ बैठते है स्वतः भ्रमरवर ॥ 8॥

 

सुसिंधुवसना सरत्नगर्भा, सभी तथा सरस्वती सी पावन

दिलीप ने गर्भिणी में देखा निहित अतुलतेज परम सुहावन ॥ 9॥

 

सुदक्षिणा के सनेह में सन पराक्रमार्जित दिगन्त श्री सम –

विश्वास से पुत्र के जन्म का ही, कोई भी उत्सव किये नही कम ॥ 10॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 44 ☆ एक चित्र की चित्रकार से प्रार्थना ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा  रचित भावप्रवण कविता  एक चित्र की चित्रकार से प्रार्थना।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा # 44 ☆ एक चित्र की चित्रकार से प्रार्थना ☆

तुम्हारे ही हाथो बनाया गया, तुम्ही से मगर अब भुलाया गया हॅू।

कई साल पहले बना रूप रेखा, मुझे सौ निगाहों से तुमने था देखा।

कभी कुछ हॅंसे थे कभी मुस्कुराये कभी भौं सिकोडी कभी मुॅह था फेरा

मगर फिर मधुर गुनगुनाते हुये चित्र जिसमें कि तुम थे लगे रंग भरने

वही हॅू उपेक्षित सा बिसरा हुआ सा, चपेटो के बीचों दबाया गया हॅू।

 

सजग कल्पना के चटक रंग कई मिल लगे थे मेरा यह कलेवर सजाने

या जिन जिनने देखा सभी ने कहा था मुझे अपने गृह का सुषोभक बनाने

तुम्हें भी खुषी थी, मगर तूलिका से टपक एक कणिका गई अश्रुकण बन

तभी से मेरा हास्य रोदन बना पर मेै रोया नही हॅू रूलाया गया हॅू।

 

बनने के पहले ही बिगडा नया और होने के पहले पुराना हुआ जो

उठा शुष्क को आर्द्र कर अश्रुजल से कि जिस तूूलिका ने सजाया है मुझको

उसी की कृपाकर लगाचार कूचे ये आंसू मिटा दो औं मुस्कान भर दो

तुम्हारे ही हाथो है निर्माण मेरा तुम्ही से अधूरा बनाया गया हॅू।

 

प्रकृति के पटल पर समय धूल से क्यो परिवृत होते दिया त्याग तुमने

हुये रंग फीके मेरे किंतु तब से हुये नित नये किंतु निर्माण कितने

मैं आषा लिये ही पडा सह चुका सब प्रखर ग्रीष्म वर्षा के झोके जकोरे

बनाया है मुझको तो पूरा बना दो मिटाओ न क्योंकि भुलाया गया हॅू।

तुम्हारे ही हाथों है निर्माण मेरा, न जाने कि क्यों यो भुलाया गया हॅू।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ सैनिक की आत्मा.. ☆ श्री जयेश वर्मा

श्री जयेश वर्मा

 

(श्री जयेश कुमार वर्मा जी  बैंक ऑफ़ बरोडा (देना बैंक) से वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। हम अपने पाठकों से आपकी सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ समय समय पर साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता सैनिक की आत्मा..)

☆ कविता  ☆ सैनिक की आत्मा.. ☆ श्री जयेश वर्मा☆

जाबांजो का जज्बा,

कभी खत्म होता नहीँ है,

ज़िन्दगी जब हारती है मौत से,

सैनिक शरीर,मरता नहीं,है,

असला शस्त्र छोड़ता नहीं है,

डालता नहीं है,

ज़िन्दगी शरीर छोड़ चुकी है,

मौत ले जा चुकी है,

दिमाग अब भी ढूंढता रहता है,

नया जज्बा,लड़ने का तरीका,

जिंदा है दिमाग़ देता है

शरीर को आदेश,मारो मारो मारो,

आंखे बंद हैं सर झुका है,

मग़र राइफल की नली,

दुश्मन की तरफ अब भी तनी है,

निश्चल शरीर सुनता है आदेश

औऱ एक स्वचालित हथियार सी,

उंगली ट्रिगर पर दबती जाती हैं,

गोलियां चलती रहती है,

ज़िन्दगी मौत से हारी ज़रूर है,

शरीर मानता नहीं है,

दिमाग भी सो गया मगर,

हिंदुस्तान का जाबांज़,

शहीद होने के बाद भी लड़ता है,

लड़ता है,क्योकि खून है हिंदुस्तानी,

माँ भारती के बेटों को

हर जन गण की सलामी,

हर जन गण की सलामी।।

 

©  जयेश वर्मा

संपर्क :  94 इंद्रपुरी कॉलोनी, ग्वारीघाट रोड, जबलपुर (मध्यप्रदेश)

वर्तमान में – खराड़ी,  पुणे (महाराष्ट्र)

मो 7746001236

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 3 (1-5)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 3 (1-5) ॥ ☆

करने नृपति की मनोकामना पूर्ण, सखियों का खुशियों से परिपूर्ण आनन

इक्क्षाकु कुल के लिये योग्य संतान – हित सुदक्षिणा ने किया गर्भधारण ॥ 1॥

 

प्रभारहित प्रातः चंद्रमा सम व लोध्र सी पांडु मुख कांति धारे

श्शरीर की कांति बढ़ाने वालें, अलंकरण उसने सभी उतारे ॥ 2॥

 

मृदा सुरभि युक्त अधर से जिसके अतृप्त से रहते नित्य राजन

कि जैसे आतप के बाद हल्के सिंचे से पल्लव से कोई गज बन / धन ॥ 3॥

 

नरेन्द्र होगा दिगन्त भू का कि पुत्र उसका सुरेन्द्र जैसा

इसी से भू रस की लालसा ने विवश किया उसको मन को ऐसा ॥ 4॥

 

न शायद मुझको बताती होगी शरम के कारण हृदय की इच्छा

यही समझ सखियों से निरन्तर की कोशलेश्वर ने रूचि की पृच्छत ॥ 5॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – संजय दृष्टि – अबूझ ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – अबूझ ?

अपनी ही तस्वीरों,

अपने ही प्रशंसागान से

दबे और भरे पड़े हैं

फेसबुक, ट्विटर,

वॉट्सएप, इन्स्टाग्राम

आदि, आदि…,

लेकिन-

इस भीड़ से परे

कोई छोटी कविता,

लघुकथा, टिप्पणी,

अथवा भावाभिव्यक्ति

भीतर तक उतर जाती है,

पत्थर पर रची तस्वीर-सी

मानस पर अंकित हो जाती है..,

पता नहीं,

ये दृष्टि विपन्नता है

या दृष्टि सम्पन्नता..!

©  संजय भारद्वाज

(बुधवार दि. 30 अगस्त 2017, अप. 12:56 बजे)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 96 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं   “भावना के दोहे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 96 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆

बिजली

कड़क कड़क कर चमकती, बिजली चारों ओर।

आसमान में छा रही, उड़े घटा घनघोर।।

 

बदरी

बदरी घन पर छा गई, मंगल है हर ओर

गरजे घन वर्षा हुई, नाच रहे है मोर।।

 

मेघ

मेघ गरजते दे रहे, प्यारा सा संदेश।

देखो साजन आ रहे, वापस अपने देश।।

 

चौमास

चौमासे की धूम है, हर दिन है त्यौहार।

संग सखी, भाई बहन, मिले पिया का प्यार।।

 

ताल

तपन बहुत ही बढ़ गई, सूखे नदिया ताल

वर्षा जाने कहां गई, बुरा फसल का  हाल।।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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