सुश्री दीपिका गहलोत “मुस्कान”
( सुश्री दीपिका गहलोत ” मुस्कान “ जी मानव संसाधन में वरिष्ठ प्रबंधक हैं। एच आर में कई प्रमाणपत्रों के अतिरिक्त एच. आर. प्रोफेशनल लीडर ऑफ द ईयर-2017 से सम्मानित । आपने बचपन में ही स्कूली शिक्षा के समय से लिखना प्रारम्भ किया था। आपकी रचनाएँ सकाळ एवं अन्य प्रतिष्ठित समाचार पत्रों / पत्रिकाओं तथा मानव संसाधन की पत्रिकाओं में भी समय समय पर प्रकाशित होते रहते हैं। आपकी कविता पुणे के प्रतिष्ठित काव्य संग्रह “Sahyadri Echoes” सहित और कई संग्रहों में प्रकाशित हुई है। आज प्रस्तुत है वैश्विक माता-पिता दिवस – 1 जून पर उनकी विशेष कविता – निस्वार्थ समर्पण )
वैश्विक माता-पिता दिवस विशेष – निस्वार्थ समर्पण
रूठकर जा बैठा मैं नानी के गांव,
न देख आव न ताव बस कर दी चढ़ाई,
देख मेरे मिजाज का उछाल ,
नानी ने भाप लिया सब हाल,
आया हूँ मैं माँ- बाबा से होकर नाराज़,
कुछ तो है गड़बड़ जिससे मैं हूँ बेहाल,
नानी ने जब खूब कुरेदा,
तब मेरा गुस्सा भी निकला,
मेरी बात को माँ- बाबा नहीं देते है मान,
छोटी सी ख्वाहिश को भी नहीं चढ़ाते परवान,
कैसे है ये मेरे माँ- बाबा ना जाने भगवान,
नहीं देते जो मुझ पर बिलकुल भी ध्यान,
इक स्कूटर की ही तो अर्ज़ी थी लगाई,
नहीं माँगा था कोई बंगला मेरे भाई,
राजू के माँ-बाबा कितने अच्छे करते उसकी सुनवाई,
करते इक पल की भी ना देरी समझ आई,
नानी के अब पूरी बात समझ थी आई,
किसने है ये आग लगाई,
तेरी माँ साल में कितनी साड़ियाँ,
और कितने गहने खरीद लाई,
तूने कभी ये हिसाब लगाया ,
बाबा ने फटे जूते का क्या कभी हाल बतलाया ,
जितना कमाते है सब तुझ पर लुटाते है,
तेरी हर इच्छा पूरी कर जाते है ,
अपनी इच्छा दोनों कितना दबाते है,
तेरी परवरिश को पहला दर्जा बतलाते है ,
तुझे सिर्फ कमियाँ नज़र आई ,
क्या तूने कभी उन पर नज़र घुमाई,
सोनू ने स्मरण कर माँ- बाबा की,
उनकी छवि मन में दोहराई ,
माँ की चार साल पुरानी साड़ी,
बाबा की रफ़ू की शर्ट ही नज़र आई ,
उसको नित नयी चीज़ उपलब्ध करवाई,
कभी ना शिकायत की ना की सुनवाई,
सोनू की नज़र शर्म से झुक आई ,
पलकें भी आँसू से नम हो आई ,
माता- पिता का निस्वार्थ समर्पण,
अब उसे समझ में पूरी तरह से आई ,
उनके त्याग का कोई मोल नहीं ,
उनके चरणों से बड़ा कोई स्वर्ग नहीं है भाई ,
सोनू ने झट से भीगी पलकों से,
माँ-बाबा को फ़ोन पर पुकार लगाई ,
मार्मिक आवाज़ सुन, माँ-बाबा की एक ही आवाज़ थी आई ,
“बेटा तू ठीक तो है ना, नहीं है ना तुझे कोई कठिनाई “.
© सुश्री दीपिका गहलोत “मुस्कान ”
पुणे, महाराष्ट्र
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈