हिन्दी साहित्य – कविता ☆ सकारात्मक कविता – ब्रेस्ट मिल्क डोनर – माँ! ☆ श्री हेमन्त बावनकर

हेमन्त बावनकर

☆ सकारात्मक कविता – ब्रेस्ट मिल्क डोनर – माँ! ☆ हेमन्त बावनकर

( एक सच्ची घटना से प्रेरित )

सोशल मीडिया पर अनुरोध आया

आवश्यकता है

ब्रेस्ट मिल्क डोनर की

एक नवजात बच्ची को

जिसने खो दिया है

अपनी माँ – कोरोना महामारी में।

 

अगले ही क्षण

उत्तर आता है एक माँ का –

हाँ, मैं दे सकती हूँ।

 

सारा सोशल मीडिया

नतमस्तक हो गया

अश्रुपूर्ण नेत्रों से

उस माँ के प्रति।

 

अगले ही क्षण

उस प्यारी बच्ची को

एक निःसंतान युगल ने

गोद लेने की पेशकश भी कर दी

धर्म, जाति और रंगभेद

को दरकिनार कर।

 

सारा सोशल मीडिया

पुनः नतमस्तक हो गया

अश्रुपूर्ण नेत्रों से

उस युगल के प्रति।

 

मानवीय संवेदनाओं को नमन!

 

© हेमन्त बावनकर, पुणे 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ वैश्विक माता-पिता दिवस विशेष – निःस्वार्थ समर्पण ☆ सुश्री दीपिका गहलोत “मुस्कान”

सुश्री दीपिका गहलोत “मुस्कान”

सुश्री दीपिका गहलोत ” मुस्कान “ जी  मानव संसाधन में वरिष्ठ प्रबंधक हैं। एच आर में कई प्रमाणपत्रों के अतिरिक्त एच. आर.  प्रोफेशनल लीडर ऑफ द ईयर-2017 से सम्मानित । आपने बचपन में ही स्कूली शिक्षा के समय से लिखना प्रारम्भ किया था। आपकी रचनाएँ सकाळ एवं अन्य प्रतिष्ठित समाचार पत्रों / पत्रिकाओं तथा मानव संसाधन की पत्रिकाओं  में  भी समय समय पर प्रकाशित होते रहते हैं। आपकी कविता पुणे के प्रतिष्ठित काव्य संग्रह  “Sahyadri Echoes” सहित और कई संग्रहों में प्रकाशित हुई है।  आज प्रस्तुत है वैश्विक माता-पिता दिवस – 1 जून पर उनकी विशेष कविता  – निस्वार्थ समर्पण )

?  वैश्विक माता-पिता दिवस विशेष – निस्वार्थ समर्पण ?

रूठकर जा बैठा मैं नानी के गांव,

न देख आव न ताव बस कर दी चढ़ाई,

 

देख मेरे मिजाज का उछाल ,

नानी ने भाप लिया सब हाल,

आया हूँ मैं माँ- बाबा से होकर नाराज़,

कुछ तो है गड़बड़ जिससे मैं हूँ बेहाल,

 

नानी ने जब खूब कुरेदा,

तब मेरा गुस्सा भी निकला,

मेरी बात को माँ- बाबा नहीं देते है मान,

छोटी सी ख्वाहिश को भी नहीं चढ़ाते परवान,

कैसे है ये मेरे माँ- बाबा ना जाने भगवान,

नहीं देते जो मुझ पर बिलकुल भी ध्यान,

 

इक स्कूटर की ही तो अर्ज़ी थी लगाई,

नहीं माँगा था कोई बंगला मेरे भाई,

राजू के माँ-बाबा कितने अच्छे करते उसकी सुनवाई,

करते इक पल की भी ना देरी समझ आई,

 

नानी के अब पूरी बात समझ थी आई,

किसने है ये आग लगाई,

तेरी माँ साल में कितनी साड़ियाँ,

और कितने गहने खरीद लाई,

तूने कभी ये हिसाब लगाया ,

बाबा ने फटे जूते का क्या कभी हाल बतलाया ,  

 

जितना कमाते है सब तुझ पर लुटाते है,

तेरी हर इच्छा पूरी कर जाते है ,

अपनी इच्छा दोनों कितना दबाते है,

तेरी परवरिश को पहला दर्जा बतलाते है ,

तुझे सिर्फ कमियाँ नज़र आई ,

क्या तूने कभी उन पर नज़र घुमाई,

 

सोनू ने स्मरण कर माँ- बाबा की,

उनकी छवि मन में दोहराई ,

माँ की चार साल पुरानी साड़ी,

बाबा की रफ़ू की शर्ट ही नज़र आई ,

उसको नित नयी चीज़ उपलब्ध करवाई,

कभी ना शिकायत की ना की सुनवाई,

 

सोनू की नज़र शर्म से झुक आई ,

पलकें भी आँसू से नम हो आई ,

माता- पिता का निस्वार्थ समर्पण,

अब उसे  समझ में पूरी तरह से आई ,

उनके त्याग का कोई मोल नहीं ,

उनके चरणों से बड़ा कोई स्वर्ग नहीं है भाई ,

 

सोनू ने झट से भीगी पलकों से,

माँ-बाबा को फ़ोन पर पुकार लगाई ,

मार्मिक आवाज़ सुन, माँ-बाबा की एक ही आवाज़ थी आई ,

“बेटा तू  ठीक तो है ना, नहीं है ना तुझे कोई कठिनाई “.

 

© सुश्री दीपिका गहलोत  “मुस्कान ”  

पुणे, महाराष्ट्र

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत…. उत्तर मेघः ॥२.५४॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.५४॥ ☆

एतत्कृत्वा प्रियमनुचितप्रार्थनावर्तिनो मे

सौहार्दाद्वा विधुर इति वा मय्यनुक्रोशबुद्ध्या ।

इष्टान्देशाञ्जलद विचर प्रावृषा संभृतश्रीर्मा

भूदेवं क्षणमपि च ते विद्युता विप्रयोगः॥२.५४॥

अतः मित्र के भाव से या तरस से

या यह सोच यह जन वियोगी विकल है

क्रके कृपा इस मेरी प्रार्थना पर

जो अनुचित भले पर विनत है सबल है

प्रिय कार्य को पूर्ण करके जलद तुम

करो स्वय संचार इच्छा जहाँ हो

वर्षा विवर्धित लखो देख संपूर्ण

तुम दामिनी से कभी दूर न हो।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की#48 – दोहे – ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  लेखनी सुमित्र की #48 –  दोहे  ✍

 

नील वसन तन आवरित,सितवर्णी छविधाम।

कहां प्राण घन राधिके, अश्रु अश्रु घनश्याम।।

 

मौसम की गाली सुने ,मन का मौन मजूर ।

और आप ऐसे हुए ,जैसे पेड़ खजूर।।

 

जंगल जंगल घूम कर ,मचा रहे हो धूम ।

पंछी को पिंजरा नहीं, ऐसे निकले सूम।।

 

क्या मेरा संबल मिला, बस तेरा अनुराग ।

मन मगहर को कर दिया, तूने पुण्य प्रयाग।

 

सांस सदा सुमिरन करें, आंखें रही अगोर।

 अहो प्रतीक्षा हो गई, दौपदि वस्त्र अछोर।।

 

 बरस बीत कर यो गया , मेघ गया हो रीत।

कालिदास के अधर पर, यक्ष प्रिया का गीत।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 47 – वह विदुषी वीर  कुड़ी  … ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत “वह विदुषी वीर  कुड़ी  …  । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 47 ।। अभिनव गीत ।।

☆ वह विदुषी वीर  कुड़ी   …  ☆

जाने किस उधेड़बुन में

वह बैठी मुड़ी- तुड़ी |

ठीक उस जगह जिससे यों

चिड़िया तक नहीं उडी  ||

 

था गन्तव्य विरानेपन का

देहरी पर बैठा

जो सारे सिद्धांत धरम में

है सबसे जेठा 

 

जिसके क्षमतावान पक्ष का

मर्म समझने को 

कलिंगपोंग से जा पहुंँचा

सुख जैसे सिलीगुड़ी  ||

 

कैसा अन्तर्बोध, समय के परे विराट  लगा

जिसके सपनों का सूनापन

कैसे लगे सगा 

 

बाहर भीतर के प्रमाण

ले आये दुविधा में

जिनके सतत  प्रयास आँकते

प्रतिभा तक निचुड़ी  ||

 

घर की सीमाओं में फैली

एक विकट कटुता

जिसके बाह्य  कलेवर  में

जीवित अफ़सोस पुता

 

उसे दर्द में डूबी प्रतिमा

विवश कहें बेशक,

किन्तु युद्ध पर विजय प्राप्त

वह विदुषी वीर  कुड़ी  ||

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

10-03-2019

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सहोदर ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – सहोदर ?

अमृत से हलाहल तक

कंठ में लिए बहती धारा,

भीतर थपेड़े मारती लहरें

बाहर सहज शांत किनारा,

उसकी-मेरी वेदना में

सहोदर अपनापा निकला,

मेरा और समुद्र का दुख

एकदम एक-सा निकला..!

# घर में रहें। सुरक्षित रहें, स्वस्थ रहें। #

©  संजय भारद्वाज

सुबह 10.25 बजे, 17.6.19

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #38 ☆ # खुशी जीवन में लाईये # ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है महामारी कोरोना से ग्रसित होने के पश्चात मनोभावों पर आधारित एक अविस्मरणीय भावप्रवण कविता “# खुशी जीवन में लाईये #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 38 ☆

☆ # खुशी जीवन में लाईये # ☆ 

रंज-ओ-गम छोड़कर

खुशी जीवन में लाईये

जो बित गया उसे भूलकर

जरा मुस्कुराइए

 

कौन साथ देता है

मंजिल के आखिरी छोर तक

जो दो कदम भी साथ चला

उसे अपना बनाईये

 

जीवन की गलियों में

स्याह अंधेरा बहुत है

दीये की लौ बनकर

खूब जगमगाईये

 

इस लहर में जो छूट गए

मुँह मोड़कर जो रूठ गए

अब वो नहीं आयेंगे

चाहे आप कितना भी बुलाइए

 

अच्छा हो या बुरा

कल हो या आज

समय है बलवान

आप मान भी जाइए

 

आंखों में आंखें डालकर

कहाँ डूबे हुए हो “श्याम”

सागर है बहुत गहरा

कहीं डूब ना जाइए

 

© श्याम खापर्डे 

27/5/2021

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत…. उत्तर मेघः ॥२.५३॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.५३॥ ☆

 

कच्चित सौम्य व्यवसितम इदं बन्धुकृत्यं त्वया मे

प्रत्यादेशान न खलु भवतो धीरतां कल्पयामि

निःशब्दो ऽपि प्रदिशसि जलं याचितश चातकेभ्यः

प्रत्युक्तं हि प्रणयिषु सताम ईप्सितार्थक्रियैव॥२.५३॥

तो सौम्य इतना मेरा बंधु ! उपकार

तुमसे बनेगा यही याचना है

तुम धीर हो है मुझे मेघ विश्वास

तव प्रतिवचन की नहीं कामना है

बिना कुछ कहे याचको चातको को

सदा नीर देते मधुर प्राणदायी

होती बडो की है गंभीर प्रत्युक्ति

निज प्रेम भाजन जनो हित क्रिया हो

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 51 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 51 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 51) ☆ 

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 51 ☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

इस सफ़र में नींद

ऐसी खो गई…

हम तो न सोये,

रात थक कर सो गई..!

 

During this journey, the sleep

was  lost in  such  a way

That I could  not  sleep,

but the tired night slept off!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

ले चल ऐ ज़िंदगी फिर से

बचपन की उन गलियों में

जहाँ ना कोई ज़रूरी था

ना ही कोई जरूरत थी….

 

O’life! Take me once again

In those streets of childhood

Where no one was needed

And, there used to be no need!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

मैं इतनी छोटी

कहानी भी न था,

तुम्हें ही जल्दी थी

किताब बदलने की…

 

I  was  not  even

such a short story,

You were only in hurry

to change the book…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

कभी रंगों से इक नज़्म लिखो

कभी अल्फाज़ों से तस्वीर गढ़ो

कभी खामोशी की आवाज़ सुनो

कभी चुप्पी की इबारत भी पढ़ो

 

Sometime write a

poem with colours

Try ever making a 

picture with the words

Sometime listen to

the voice of reticence

Once in a while read

the narrative of silence..!

 

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 52 ☆ बुंदेली ग़ज़ल – बात नें करियो ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताeह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित बुंदेली ग़ज़ल    ‘बखत बदल गओ। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 52 ☆ 

☆ बुंदेली ग़ज़ल – बखत बदल गओ ☆ 

बखत बदल गओ, आँख चुरा रए।

सगे पीठ में भोंक छुरा रए।।

 

लतियाउत तें कल लों जिनखों

बे नेतन सें हात जुरा रए।।

 

पाँव  कबर मां लटकाए हैं

कुर्सी पा खें चना मुरा रए।।

 

पान तमाखू गुटका खा खें

भरी जवानी गाल झुरा रए।।

 

झूठ प्रसंसा सुन जी हुमसें

सांच कई तेन अश्रु ढुरा रए।।

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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