हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – होली ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? ‘एक भिखारिन की मौत’ के अंग्रेज़ी संस्करण का विमोचन ?

Book Launch of English Version of Ek Bhikharin ki Maut (Death of a Beggar Woman).

Authored By- Sanjay Bhardwaj

Translated by-Dr Meenakshi Pawha,

Chief Guest- Dr Ashutosh Misal,

Guest of Honour- Dhanashree Heblikar,

Part of play narrated by- Aashish Tripathi and Ankita Narvanekar,

Participation- Veenu Jamuar, Ritesh Anand,

Anchored By-Kritika Bhardwaj.

विगत दिवस सम्पन्न हुए ‘एक भिखारिन की मौत’ के अंग्रेज़ी संस्करण के विमोचन का आयोजन उपरोक्त यूट्युब लिंक पर अपलोड किया है। देखियेगा, सुनियेगा, मित्रों और परिचितों से अवश्य शेयर कीजिएगा। इस सन्दर्भ में हम अलग से एक विशेष लेख देने का प्रयत्न करेंगे।  

ई- अभिव्यक्ति की ओर से  श्री संजय भारद्वाज जी को हार्दिक शुभकामनाएं

? संजय दृष्टि – होली ?

रंग मत लगाना

मुझे रंगों से परहेज़ है

उसने कहा था,

अलबत्ता

उसका चेहरा

चुगली खाता रहा

आते-जाते

चढ़ते-उतरते

फिकियाते-गहराते

खीझ, गुस्से,

झूठ, दंभ,

कूपमंडूकता,

दिवालिया संभ्रांतपन के

अनगिनत रंग

जताता रहा,

और रँग दे,

और.., और,

इंद्रधनुष से सरोबार तन

पहाड़ी झरने-सा कोरा मन

बढ़ चली बच्चों की टोली

होली है भाई होली !

? शुभ होली। ?

©  संजय भारद्वाज

(कवितासंग्रह ‘योंही’ से।)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 43 – कई धनक रंगों में… ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत “घाटी से उतरी नदी कोई … । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 43 ।। अभिनव गीत ।।

कई धनक रंगों में …  ☆

लिये हुये

मत सम्मत

आ गया

तुम्हारा खत

 

देह की विनीता

पथरीली सी भू पर

फुदके हैं रह रह कर

दूधिया कबूतर

 

पूछती

पड़ौसी छत

भूल गये

शक सम्वत?

 

हंस निकल आये

सहमकर अँधेरों से

दूँढते रहे जिनको

कई कई सबेरों से

 

जिसकी लय

उस की गत

रागदार

स्वर सम्मत

 

ऐसे आ गूँजा है

ध्वनि की तरंगों में

और दिखा मुझे स्वतः

कई धनक रंगों में

 

खोजा किया

परबत

भूल गया

शत प्रतिशत

 

लिये हुये

मत सम्मत

आ गया

तुम्हारा खत

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

28-12-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 89 ☆ होली पर्व विशेष – होली के उड़े रंग ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं 9साहित्य में  सँजो रखा है। हमारा विनम्र अनुरोध है कि  प्रत्येक व्यंग्य  को हिंदी साहित्य की व्यंग्य विधा की गंभीरता को समझते हुए सकारात्मक दृष्टिकोण से आत्मसात करें। आज प्रस्तुत है होली पर्व पर एक विचारणीय कविता होली के उड़े रंग। )  

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 89

☆ होली पर्व विशेष – होली के उड़े रंग☆

टेसू के फूल,

मुरझाए हुए हैं,

फागुनी हवा,

शरमाई हुई है,

कोरोना की अंगड़ाई से,

होली बदरंग हो गई है,

स्थगित हुईं यात्राएं,

राख कर गईं दिशाएं,

सांसों में सुलगता अलाव,

नाक में मास्क का तनाव,

कुतर रहा हर क्षण संशय,

सांसों में घर करता भय,

घुटी घुटी दिन दुपहरिया,

लुटा लुटा सा बंजर मौसम,

डरती लुटती जिंदगी,

ढल रही इक्कीसवीं सदी

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ होली पर्व विशेष – माँ, मैं कैसे होली मनाऊँ? ☆ हेमन्त बावनकर

हेमन्त बावनकर

☆ कविता ☆ होली पर्व विशेष – माँ, मैं कैसे होली मनाऊँ? ☆ हेमन्त बावनकर 

जिस बेटे ने बचपन में

तिरंगे में लिपटे पिता को

अग्नि दिया हो

अपने जख्मों को

जिंदगी भर सिया हो

तीन रंगों को ही जिया हो

तुमने अपनाया सफ़ेद रंग

हमें हरा और केसरिया

ही दिया हो

बाकी रंग फीके से लगते हैं

दीवाली के बुझे दिये से लगते हैं

माँ अब तुम्हीं बताओ

बापू प्रतिमा को कौन सा रंग लगाऊँ

माँ मैं कैसे होली मनाऊँ?

 

लोग चौराहे पर शहीदों की

प्रतिमा को लगाते हैं

फिर दिवंगत आत्मा के साथ ही

प्रतिमा को भूल जाते हैं

गाहे बगाहे राष्ट्रीय पर्व पर

फूल माला चढ़ा जाते हैं

तुम पूछती हो न

मैं कहाँ जाता हूँ

रात के अंधेरे में

बापू प्रतिमा तक जाता हूँ

दूर से चुपचाप देख आता हूँ

नहीं जानता बापू को

कौन सा रंग भाता है

कैसे पूछूं तुमसे

उन्हें कौन सा रंग लगाऊँ

माँ मैं कैसे होली मनाऊँ?

 

बापू ने तो बताया था कि

संविधान हमें देता है

सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय,

विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास

धर्म और उपासना की स्वतन्त्रता,

प्रतिष्ठा और अवसर की समता

सब में व्यक्ति की गरिमा

राष्ट्र की एकता और अखंडता

सुनिश्चित करने वाली बंधुता

यदि यह सच है

तो

जाति, धर्म और भीड़तन्त्र

का रंग क्या है?

राजनीति का रंग

देश की मिट्टी और मानवता

से भी क्या कुछ नया है?

माँ अब तुम्हीं बताओ

मैं इन अनजान रंगों से

किस रंग का मास्क लगाकर

खुद को कैसे बचाऊँ?

माँ मैं कैसे होली मनाऊँ?

माँ मैं कैसे होली मनाऊँ?

 

© हेमन्त बावनकर, पुणे 

29 मार्च 2021

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #36 ☆ होली पर्व विशेष – साजन-सजनी की होली ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है होली पर्व पर एक अतिसुन्दर भावप्रवण कविता “साजन-सजनी की होली”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 36 ☆

☆ होली पर्व विशेष  – साजन-सजनी की होली ☆ 

रंगों की बौछार है

पिचकारीं में प्यार है

सजनी का इनकार है

तो, साजन बेकरार है

पिचकारी डाल रही रंगों को

भिगो रही सजनी के अंगों को

भीगी चोली, भीगी साड़ी

दिल में बढ़ा रही उमंगों को

हाथों से मुखड़ा ढाप रही हैं

सजनी इत उत भाग रहीं हैं

छुपके बैठा है उसका साजन

साजन से लाज उसे लाग रही है

पकड़ी गई जब उन्मुक्त हिरणी

साजन करने लगा मनकी अपनी

भिगो दिया अंग अंग सजनी का

सजनी की देह लगी है तपनी

सजनी ने भी कहां हार है मानी

वो भी तो है शैतान की नानी

डुबों दिया ड्रम में साजन को

करने लगी साजन संग मनमानी

साजन ने सजनी को खींचा

उसकी देह को बाहों में भींचा

रंगों में डूब गये वो दोनों

रंगीन अधेरों को चुंबन से सींचा

रंगों का खेल वो खेल रहे हैं

एक दूसरे का वार वो झेल रहे हैं

झूम रहीं हैं सारी कायनात

मस्ती में एक दूजे को ठेल रहे हैं

आओ,

हम तुम भी यह त्योहार मनायें

शालीनता से रंग लगाये

भूल जायें सारी कड़वाहट

भांग पियें, खुशियां मनायें /

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत…. उत्तर मेघः ॥२.२८॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.२८॥ ☆

 

आधिक्षामां विरहशयने संनिषण्णैकपार्श्वां

प्राचीमूले तनुम इव कलामात्रशेषां हिमांशोः

नीता रात्रिः क्षण इव मया सार्धम इच्चारतैर या

ताम एवोष्णैर विरहमहतीम अश्रुभिर यापयन्तीम॥२.२८॥

व्यथा से कृषांगी , विरह के शयन में

पड़ी एक करवट दिखेगी मलीना

क्षितिज पूर्व के अंक में हो पड़ी ज्यों

अमावस रजनि चंद्र की कोर क्षीणा

वही रात जो साथ मेरे यथेच्छा

प्रणय केलि में एक क्षण सम बिताती

होगी विरह में महारात्री के सम

बिताती उसे उष्ण आंसू बहाती

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 47 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 47 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 47) ☆ 

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 47☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

अब जुदाई के सफ़र को

मेरे आसान करो…

तुम मुझे ख़्वाब में आ कर

परेशान  ना  किया करो…

 

Now make my journey of

separation easy…

Do not disturb me by

coming in the dreams..

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

अकेले हम ही शामिल

नहीं  है  इस  जुर्म  में,

नजरें जब भी मिलती थी

मुस्कुराये तो तुम भी थे…

 

I  alone  was  not

involved in this crime,

Whenever our eyes met,

you too equally smiled!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

खुदा के घर से चंद

फरिश्ते फरार हो गये,

कुछ  पकड़े  गये,

कुछ हमारे यार हो गये..

 

A  few  angels escaped

 from the God’s abode,

While some were caught,

Others became my friends

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

तुम मुझसे दोस्ती का

मोल ना पूछना कभी

तुम्हें किसने कहा कि

पेड़  छाँव  बेचते  हैं…

 

Never ask me about the

price of the friendship

Who has told you that

trees sell the shades..!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 48 ☆ होली पर्व विशेष –होली के रंग छंदों के संग ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताeह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी  द्वारा रचित होली पर्व पर एक रचना   ‘होली के रंग छंदों के संग’। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 48 ☆ 

☆ होली पर्व विशेष –होली के रंग छंदों के संग ☆ 

*

 हुरियारों पे शारद मात सदय हों, जाग्रत सदा विवेक रहे

हैं चित्र जो गुप्त रहे मन में, साकार हों कवि की टेक रहे

हर भाल पे, गाल पे लाल गुलाल हो शोभित अंग अनंग बसे

मुॅंह काला हो नापाकों का, जो राहें खुशी की छेंक रहे

0

चले आओ गले मिल लो, पुलक इस साल होली में

भुला शिकवे-शिकायत, लाल कर दें गाल होली में

बहाकर छंद की सलिला, भिगा दें स्नेह से तुमको

खिला लें मन कमल अपने, हुलस इस साल होली में

0

करो जब कल्पना कवि जी रॅंगीली ध्यान यह रखना

पियो ठंडाई, खा गुझिया नशीली होश मत तजना

सखी, साली, सहेली या कि कवयित्री सुना कविता

बुलाती लाख हो, सॅंग सजनि के साजन सदा सजना

0

नहीं माया की गल पाई है अबकी दाल होली में

नहीं अखिलेश-राहुल का सजा है भाल होली में

अमित पा जन-समर्थन, ले कमल खिल रहे हैं मोदी

लिखो कविता बने जो प्रेम की टकसाल होली में

0

ईंट पर ईंट हो सहयोग की इस बार होली में

लगा सरिए सुदृढ़ कुछ स्नेह के मिल यार होली में

मिला सीमेंट सद्भावों की, बिजली प्रीत की देना

रचे निर्माण हर, सुख का नया संसार होली में

0

न छीनो चैन मन का ऐ मेरी सरकार होली में

न रूठो यार! लगने दो कवित-दरबार होली में

मिलाकर नैन सारी रैन मन बेचैन फागुन में

गले मिल, बाॅंह में भरकर करो सत्कार होली में

0

नैन पिचकारी तान-तान बान मार रही, देख पिचकारी मोहे बरजो न राधिका

आस-प्यास रास की न फागुन में पूरी हो तो मुॅंह ही न फेर ले साॅंसों की साधिका

गोरी-गोरी देह लाल-लाल हो गुलाल सी, बाॅंवरे से साॅंवरे की कामना भी बाॅंवरी

बैन से मना करे, सैन से न ना कहे, नायक के आस-पास घूम-घूम नायिका

मीरा की मुस्कान बन सके

बंसी-ध्वनि सी बानी दे दो

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 80 – होली पर्व विशेष – होली आई रे…. ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है  श्री सूबेदार पाण्डेय जी की  होली पर्व पर एक होली के रंगों से सराबोर रचना  “होली आई रे….। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 80 ☆ होली पर्व विशेष – होली आई रे…. ☆

(प्रस्तुति –  होली आई रे, मतलब उत्साह तथा उमंगों का त्यौहार जो मानव जीवन में रंग भर देते हैं। छेड़-छाड़ एवं मस्ती का त्योहार, लोगों के दिल में उतर कर एक अमिट छाप छोड़ देने का त्योहार, खुशियों के सागर में उतर कर गोते लगाने का त्योहार।

इन्हीं सपतरंगी छटाओं तथा खट्टे मीठे अनुभवों का चित्रण है ये रचना जो बनारस की सबसे पुरानी हिन्दी साहित्यिक संस्था नागरी प्रचारिणी सभा की नागरी पत्रिका के नव० २०१७ के अंक में पूर्व प्रकाशित है जो आप लोगों के समीक्षार्थ  प्रस्तुत है पढ़ें और अपने आशीर्वाद से अभिसिंचित करें। – सूबेदार पाण्डेय

 

रंग बिरंगी होली आई,

हर कोई मतवाला है।

किसी का चेहरा नीला पीला,

किसी का चेहरा काला है।

हर छोरी बृषभानु किशोरी,

हर छोरा नंदलाला है।

चंचल नटखट अल्हड़ है सब,

आंखों  में का प्याला है।

मृगशावक सी भरें कुलांचे,

ना कोई रोकने वाला है।

।। रंग-बिरंगी होली आई।।१।।

 

किसी की भींगे पाग पितांबर,

किसी की चूनर धानी।

किसी की भीगे लहंगा चोली,

सबकी एक कहानी।

धरो धरो पकड़ो पकड़ो,

हर तरफ मची आपाधापी।

हर कोई है गुत्थमगुत्था,

हरतरफ मची चांपा चांपी।

गुत्थमगुत्था छीना झपटी में,

मसकी अंगिया चोली।

फटी मिर्जयी, गिरा अंगरखा,

(पगड़ी वाल साफा)

घरवालों की मांग चली टोली।

छाई है इक अजब सी मसलती,

हर कोई दिलवाला है।

।। रंग-बिरंगी होली आई।।०२।।

 

तानें है कोई पिचकारी,

जैसे तीर कमान लिए है।

कोई लिए गुलाल खड़ा,

जैसे हाथों में तोप लिए है।

धोखे से कोई गोपी,

मोहन को पास बुलाती है।

गालों में रंग-गुलाल लगा,

गाल लाल कर जाती है।

ग्वालों की टोली बीच कोई,

गोपी जब फंस जाती है।

भर भर पिचकारी रंगों से,

टोलियां उसे नहलाती है।

।। रंग बिरंगी होली आई।।०३।।

 

कोई किसी बहाने से,

नवयौवन को छू जाता है।

कोई लेता पप्पी झप्पी,

दिल❤️ अपना कोई दे जाता है।

कोई तकरार मचाता है,

दिल किसी का कोई चुराता है।

हर तरफ शोर है गीतों का,

हर तरफ जोर है होली का।

खुशियों से सना हर लम्हा है,

हर कोई हिम्मत वाला है।

।। रंग-बिरंगी होली आई।।०४।।

 

होली का त्यौहार है भइया,

खुशियों से जश्न मनाने का।

जीवन में रंग भरने का,

सबके दिल में बस जाने का।

अपना प्यार लुटाने का,

सबके प्यार को पाने का।

भूल के सारे शिकवों गिलों को,

सबको गले लगानें का।

सबको दिल से अपनाने का,

और सबका बन जाने का।

।। रंग बिरंगी होली आई।।०५।।

 

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत…. उत्तर मेघः ॥२.२७॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.२७॥ ☆

 

सव्यापारम अहनि न तथा पीडयेद विप्रयोगः

शङ्के रात्रौ गुरुतरशुचं निर्विनोदां सखीं ते

मत्सन्देशः सुखयितुम अलं पश्य साध्वीं निशीथे

ताम उन्निद्राम अवनिशयनां सौधवातायनस्थः॥२.२७॥

 

दिन में विरह की व्यथा व्यस्तता से

है संभव न होगी निशा में यथा हो

मैं अनुमानता हूं गहन शोक मन का

जो निशि में सताता मेरी प्रियतमा को

तो साध्वी तव सखी को रजनि में

पड़ी भूमि पर देख उन्निद्र साथी

उचित है कि संदेश मेरा सुनाकर

दो सुख बैठ गृह गवाक्ष पर प्रवासी

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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