हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 72 ☆ मज़हब न जाँत पाँत का हो ज़िक्र भी जरा… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “मज़हब न जाँत पाँत का हो ज़िक्र भी जरा“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 72 ☆

✍ मज़हब न जाँत पाँत का हो ज़िक्र भी जरा… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

जिसमें सबक हो प्यार का ऐसी किताब दे

इंसानियत का करने मुझे इंतखाब दे

 *

मज़हब न जाँत पाँत का हो ज़िक्र भी जरा

काज़ी न पादरी न पुजारी खिताब दे

 *

दुश्वार जिनको ज़ीस्त है टूटे है ज़ोम से

मुरझा गए जो चहरे है उन पर शबाब दे

 *

पर्वत शज़र की दावतें  वर्षा कबूल ले

तेरा है रब निज़ाम तो सहरा को आब दे

 *

अपने लिए ही रोटी नहीं माँगता ख़ुदा

देने ज़कात मुझको मुक़म्मल निसाब दे

 *

तक़लीफ़ टूटने की सताती है उम्र भर

ताबीर जिनकी हो सके बस ऐसे ख्वाब दे

 *

इंसान आज का नहीं वंदा रहा तेरा

दुनिया का नाश करने क़यामत शिताब दे

 *

सुननी है बात प्रेम से हमको बुज़ुर्गों की

उल्टी हो बात फिर भी न उनको जबाब दे

 *

गुलशन को मेरे ख़ार अता तू करें भले

मुफ़लिस को ज़िन्दगी में महकते गुलाब दे

 *

मग़रूर आदमी की निशानी है ये बड़ी

मुझको न ज़िन्दगी में जरा भी इताब दे

 *

वो बेवफा कहें नहीं इनकार है मुझे

अपनी अरुण वफ़ा का मुझे भी हिसाब दे

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष – कृष्ण… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कविता ?

☆  कृष्ण☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

कृष्ण मेरा प्यार है

कृष्ण ही आराधना

कृष्ण मेरे जिंदगी की

एकमेव साधना

*

मैं न राधा, ना ही मीरा,

और नही हूँ कुब्जा भी

कृष्ण मेरा है युगों से

यह सत्य जाना है अभी

*

कृष्ण को देखा पहले

घर मैं लगी तस्वीर में

काली आँखे, अंग नीला,

बंसुरी थी हाथ में 

*

कृष्ण पढा , कृष्ण देखा

अनगिनत अध्यायों में 

कृष्ण ही पिछे खड़ा था

जीवन के हर संघर्ष में 

*

कृष्ण बेड़ा पार कराये,

जिंदा रखे संसार में 

जीवन मैं है ,मौत में है

कृष्ण ही है मोक्ष में !

🌹 जन्माष्टमी की शुभकामनाएँ 🌹

© प्रभा सोनवणे

१६ जून २०२४

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 69 – पता मुझे है जन्नत का… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – पता मुझे है जन्नत का।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 69 – पता मुझे है जन्नत का… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

हूँ बीमार, मुहब्बत का 

पता, मुझे है जन्नत का

*

सूरत, भोली-भाली है 

दीवाना हूँ, सीरत का

*

याद करूँ, दिन-रात तुम्हें 

समय कहाँ है, फुर्सत का

*

कैसे भूलूँ तुम्हें भला 

तुम हो हिस्सा, फितरत का

*

तेरे दर पर, आ न सका

डर है, तेरी इज्जत का

*

दर से खाली गया, तो क्या 

होगा, तेरी शोहरत का

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आत्ममुग्ध ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – आत्ममुग्ध ? ?

हवा से फूलकर

गुब्बारा  कुप्पा हुआ,

पिन चुभने भर की देर थी

किया धरा धराशायी हुआ,

आत्ममुग्धता की हवा भरती है

तब सच की पिन चुभती है,

फूटा गुब्बारा बिना दाम का

आत्मघाती मोह किस काम का?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 27 अगस्त से 9 दिवसीय श्रीकृष्ण साधना होगी। इस साधना में ध्यान एवं आत्म-परिष्कार भी साथ साथ चलेंगे।💥

🕉️ इस साधना का मंत्र है ॐ कृष्णाय नमः 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 142 – मनोज के दोहे ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे ”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 142 – मनोज के दोहे ☆

अच्युत प्रभु परमात्मा, सबका पालन हार।

जगत नियंता है वही, यह वेदों का सार।।

*

अलंकार से अलंकृत, करें यशश्वी गान।

गुणवर्धन यश अर्चना, मिले सदा सम्मान।।

*

सूर्यसुता में गंदगी, नाग-कालिया दाह।

उगल रही है झाग फिर, नहीं सूझती राह।।

*

द्वापरयुग में कृष्ण जी, गोरक्षक बलराम।

गोवर्द्धन संकल्प ले, किए विविध हैं काम।।

*

भाद्रमाह जन्माष्टमी, मुरलीधर घनश्याम।

दुख को हरने अवतरित, जय पावन ब्रज-धाम।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 204 – रेखाएँ मिटा दो !… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – रेखाएँ मिटा दो !।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 204 – रेखाएँ मिटा दो !… ✍

मिटा दो

रेखाएँ मिटा दो।

जमीन, आसमान या

समुंदर की सतह पर

खींची गई रेखाएँ

मिटा दो।

जमीन सबकी है।

आसमान सबका है। 

समुंदर सबका है।

और रेखाएँ?

वे किसी की नहीं हैं,

मगर सब कहीं हैं।

 

और –

रेखाओं के पार जो है

वो आसानी से

नहीं लिया जा सकता,

इसलिए

रेखाएँ खींचने का ‘श्रेय’

किसी को नहीं दिया जा सकता।

 

जरा सोचिए –

कृपणता के परिवेश में

क्या हो सकता है?

क्या आदमी

अपनी परछाईं धो सकता है?

 

मैं जानता हूँ

दुनिया नकारेगी,

वो यहीं हारेगी।

 

रेखाएँ विस्तार पा रही हैं,

वे गहरा रही हैं।

और आदमी

दिन ब दिन

छोटा होता जा रहा है।

सोचता हूँ-

ये क्या होता जा रहा है।

 

अरे, कोई है

जो रोक दे इस मनमानी को,

आखिर कोई कब तक बाँधेगा

हवा, धूप, पानी को!

इसीलिए काहता हूँ

जमीन, आसमान या

समुंदर कि सतह

पर खींची गई

रेखाएँ मिटा दो।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 204 – “मौन रह कर हर तरफ…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत मौन रह कर हर तरफ...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 205 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “मौन रह कर हर तरफ...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी 

 सालते है बहुत

हर दिन दर्द घुटनो के

टूटते रिश्ते लगें

जैसे कि अपनों के

 *

सुबह उठ कर खाट

से चलते नही बनता

है जगत व्यवहार जो

कहते नहीं बनता

 *

पीर जो उतरी पिंड –

लियों से यहाँ तक

आ लगी है सालने

कमजोर टखनों के

 *

इस मोहल्ले में सभी

के दर्द पहचाने

तैरते हैं सभी शक्लों

पर न जाने

 *

क्यों लिये परछा –

इयाँ हैं चले आते

बताकर हम आ गये

हैं शहर सपनो के

 *

मौन रह कर हर तरफ

है बेबसी पसरी

लगा करता समस्या

की हर परत उघरी

 *

कसमसाहट है मगर

कुछ कर नहीं पाते

हम बचे हैं क्षीण से

परिमाप .नपनों के

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

25-8-2024

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 191 ☆ # “भागीदार” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता भागीदार

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 191 ☆

☆ # “भागीदार” #

आंखें नम है

वाणी लड़खड़ा रही है

शब्द घायल  हैं 

खामोशी कुछ कह रही है

 

मुरझाई हुई कलियां हैं 

खाली फूलों की डलिया हैं 

सहमी सहमी गलियां हैं 

वक्त कैसा छलिया है

उपवन मे कैसी

जंगली हवा बह रही है

शब्द घायल हैं 

खामोशी कुछ कह रही है

 

पालक डर से पेशोपेश में हैं 

बालक-बालिकाएं कहां होश में हैं 

किस पर भरोसा करें यहां पर

ना जाने कौन किस भेष में हैं 

अविश्वास की खाई

दिन-ब-दिन बढ़ रही है

शब्द घायल हैं 

खामोशी कुछ कह रही है

 

सरमायेंदारों का सर पर हाथ है

फिर डर की क्या बात है ?

कानून कटघरे में खड़ा है

जब सत्ता का इनको साथ है

अहंकार की सुरा

धीरे धीरे चढ़ रही है

शब्द घायल हैं  

खामोशी कुछ कह रही है

 

हम सब भी इसके गुनहगार हैं  

इन विकृत घटनाओं के जिम्मेदार हैं  

जब हम महिमा मंडित

करते हैं इन वहशियों को

तो इस पाप के

हम सब भी भागीदार हैं  

यह नई परंपरा

अब नई पीढ़ी गढ़ रही है

शब्द घायल हैं  

ख़ामोशी कुछ कह रही है

आंखें नम हैं   

वाणी लड़खड़ा रही है/

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – दुनिया है रैन बसेरा… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

 

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय कविता दुनिया है रैन बसेरा…।)

☆ कविता  – दुनिया है रैन बसेरा… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

दुनिया है रैन बसेरा,

ना तेरा है, ना है मेरा,

नहीं जानता कोई कब,

उठ जाएगा डेरा,

दुनिया है…

मुट्ठी बांधे आए हैं,

उसमे सांसे लाए हैं,

मुट्ठी खुलती जाती है,

सांसे खोती जाती हैं,

जीवन चक्र है फेरा,

दुनिया है रैन बसेरा,

क्या हम लेकर आए,

क्या लेकर जाएंगे,

साथ नहीं लाए कुछ भी,

हाथ पसारे जाएंगे,

करते रहे जीवन भर,

ये तेरा ये मेरा,

दुनिया है रैन बसेरा,

दौलत पाई महल बनाए,

असली दौलत खोज न पाए,

जीवन है, अनबूझ पहेली,

जीवन को हम समझ न पाए

यूं ही चलता रहता है,

जीवन का हर एक फेरा,

दुनिया है ये, रैन बसेरा…

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 201 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 201 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 201) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..!

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 201 ?

☆☆☆☆☆

हो के मायूस यूँ ना

शाम से ढलते रहिए

ज़िंदगी आफ़ताब है

रौशन निकलते रहिए…

☆☆

Being  dejected don’t you

ever be the dusking Sun

Life is like the radiant Sun

Keep  rising  resplendently…!

☆☆☆☆☆

ना इलाज  है 

ना   है दवाई….

ए इश्क तेरे टक्कर 

की  बला  है आई…

☆☆

Neither  exists  any  cure

Nor is  there  any medicine

O’ love ailment matching you

Has  emerged on  the earth…!

☆☆☆☆☆

ये जब्र भी देखा है

तारीख की नज़रों ने

लम्हों ने खता की थी

सदियों ने  सजा पाई…!

☆☆

Have also seen such constraints

Through the eyes of the time

Moments had committed mistake

But the centuries got punished!

☆☆☆☆☆

हर बार उड़ जाता है

मेरा कागज़ का महल…!

फ़िर  भी  हवाओं  की

आवारगी पसंद है मुझे…

☆☆

Flies away every time

My cardboard palace …!

Still I adore  the winds

Loafing around freely…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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