आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताeह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित ‘त्रिपदिक मुक्तिका.’। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 42 ☆
☆ त्रिपदिक मुक्तिका ☆
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निर्झर कलकल बहता
किलकिल न करो मानव
कहता, न तनिक सुनता।
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नाहक ही सिर धुनता
सच बात न कह मानव
मिथ्या सपने बुनता।
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जो सुन नहीं माना
सच कल ने बतलाया
जो आज नहीं गुनता।
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जिसकी जैसी क्षमता
वह लूट खा रहा है
कह कैसे हो समता?
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बढ़ता न कभी कमता
बिन मिल मिल रहा है
माँ का दुलार-ममता।
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© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
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