हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.४५॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.४५॥ ☆

 

तस्याः किंचित करधृतम इव प्राप्त्वाईरशाखं

हृत्वा नीलं सलिलवसनं मुक्तरोधोनितम्बम

प्रस्थानं ते कथम अपि सखे लम्बमानस्य भावि

ज्ञातास्वादो विवृतजघनां को विहातुं समर्था॥१.४५॥

 

उस क्षीण सलिला नदी को निरखकर

लगेगा तुम्हें  ज्यों कोई कामिनी हो

जो वानीर रूपी झुकी उंगलियों से

सम्भाले सलिल नील रूपी वसन को

वसन तुम  जिसे हर , अनावृत जघन कर

कठिन पाओगे मित्र , प्रस्थान पाना

विवृत जघन कामिनी को भला

ज्ञातरस किस रसिक से बना छोड़ जाना

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की – दोहे ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम दोहे।)

✍  लेखनी सुमित्र की – दोहे  ✍

मुझ तक आकर फिर गए, कुसुमासुध के बाण।

लेकिन स्वर की सुरभि से, सुरभित हैं मन प्राण।।

 

अंगुलियों की छुअन से, उठी एक झंकार ।

तन मन शीतल हो गया, ऐसी चली बयार ।।

 

सुरसरि सा देखा तुम्हें, सौम्य शिष्ट शालीन ।

शरण खोजता आ गया, अनुरागी मन-मीन।।

 

यार बना जाएं कहां, तुमने किया अनंग।

डोर तुम्हारे हाथ है, हम तो बने पतंग ।।

 

मृग ने किससे कब कहा, मुझे लगी है प्यास।

उत्कटता यह मिलन की, जल दिखता है पास ।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 36 – सिर्फ घड़ी की सुइयों सा … ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत “सिर्फ घड़ी की सुइयों सा । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 36 ।। अभिनव गीत ।।

☆ सिर्फ घड़ी की सुइयों सा …  ☆

वैसे थी बेचैन

और अब मुझे पड़े थिर ना

घर के चारों ओर सखी

यह बादल का घिरना

 

वह पड़ौस की खिड़की

पीड़ा आँका करती है

शायद इसीलिये रह-रह कर

झाँका करती है

 

मेरा मुझ में जो कुछ था

वह छूट गया है बस

सिर्फ घड़ी की सुइयों सा

घर में ही है फिरना

 

आँखों में धुँधला-धुँधला सा

चित्र उभरता है

सीढ़ी-दर- सीढ़ी अनजाना

दर्द उतरता है

 

जिसकी आहट लेते-लेते

थकी हेमगर्भा

पता नहीं कब मुड़ कर आये

सोने का हिरना

 

लाज-शरम अनदेखा करती

हुलसी पुनर्नवा

पेड़ों के झुरमुट से गुजरे

जैसे सर्द हवा

 

लोगों से ऐसा होना

है सगुन सुना मैंने-

“बार-बार चोली पर –

आकर, चोटी का गिरना”

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

16-12-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – एकमेव ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि – एकमेव ☆

यह अलां-सा लिखता है,

वह फलां-सा दिखता है,

यह उस नायिका-सी थिरकती है,

वह उस गायिका-सी गाती है,

तुलनाओं की अथाह लहरों में

आशाओं की कसौटी पर

अपनी तरह और

अपना-सा जो डटा रहा,

समय साक्षी है,

उस-सा फिर

वही एकमेव बना रहा!

 

©  संजय भारद्वाज

( शुक्रवार 3.11.17, प्रातः 7:52 बजे)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #29 ☆ इन्सान बनिये ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है जिंदगी की हकीकत बयां करती एक भावप्रवण कविता “इन्सान बनिये”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 29 ☆ इन्सान बनिये ☆ 

हजारों वर्षों पहले

एक महात्मा ने कहा है

जब उसने देखा और सहा है

सबकी होती है

दो आंखें, दो हाथ

दो पांव, दो कान

एक नाक, एक सर है

वही जन्म की खुशी

और मृत्यु का डर है

हर व्यक्ति समान है

हम सब इंसान हैं

कुछ लोगों ने

पैदा किया है

लिंग, जाति, धर्म, देव

का भेद

विचारों में वैमनस्यता

और मतभेद

इसमें उन लोगों का

स्वार्थ है

इससे नहीं मिलनेवाला

परमार्थ है

अनेक महापुरुषों ने यह जाना

कठोर तपस्या से पहचाना

तब, जनमानस को समझाया

बार बार बतलाया

हम सब एक ही

ईश्वर की संतान हैं

हम सब का एक ही

भगवान है

बस-

उसको पाने के रास्ते

अलग अलग है

लक्ष्य एक है

पंथ अलग-अलग हैं

दीन दुखियों की पीड़ा

व्यथा, कष्ट दूर

कीजिये

निर्बल, पीड़ितों, शोषितों का

उत्कर्ष कर दुआएँ

लीजिये

इनकी आँखों में वो

झिलमिलाता है

इनके होंठों पें

वो मुस्कुराता है

गर, चुनना ही है तो

सत्य का मार्ग चुनिए

पाखंड को छोड़िये

बस, सच्चे इंसान बनिए।

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.४४॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.४४॥ ☆

 

गम्भीरायाः पयसि सरितश चेतसीव प्रसन्ने

चायात्मापि प्रकृतिसुभगो लप्स्यते ते प्रवेशम

तस्माद अस्याः कुमुदविशदान्य अर्हसि त्वं न धैर्यान

मोघीकर्तुं चटुलशफोरोद्वर्तनप्रेक्षितानि॥१.४४॥

 

मन सम तरल स्वच्छ जल में गंभीरा

नदी धार लेगी प्रकृत छबि तुम्हारी

कुमुद शुभ्र चंचल चपल मीन प्लुति दृष्टि

उसकी उपेक्षा न हो धैर्य धारी

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 40 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 40 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 40) ☆ 

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 40☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

यूँ इंतज़ार करना

तो हमे आता नहीं,

पर  जब  बात  हो

किसी  अपने  की

तो इंतज़ार लफ्ज़ ही कुछ

मदहोश सा लगता है…

 

As such, I do not

know how to wait,

But when it comes

to  someone own,

The word waiting

appears  to  be  a

bit too inebriated…!

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

अपनी  पीठ  से  निकले…..

खंजरो को जब गिना मैंने

तो ठीक उतने ही निकले,

जितनों को गले लगाया था मैंने..!

 

When I counted the daggers

that came out of my back,

They  came  out  as many

people as I had embraced..!

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

हजार गम भी मेरी

फितरत नहीं बदल सकते

क्या करूँ मुझे…

आदत है मुस्कुराने की…

 

Even a thousand sorrows

cannot change my nature

What  to  do,  I  have

the  habit  of  smiling…

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

कोशिश  तो  कर  तू

इन  आँखों को पढ़ने की

हर सवाल का जवाब मिलेगा

जो तूने मुझसे किये हैं…

 

Atleast, give it a try

To read these eyes, every

Question will be answered

That you’ve posed to me!

 

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 41 ☆ दूरी से करो प्रणाम …. ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताeह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी  द्वारा रचित  ‘दूरी से करो प्रणाम ….’। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 41 ☆ 

☆ दूरी से करो प्रणाम …. ☆ 

*

आपन मूं

आपन तारीफें

करते सीताराम

*

जो औरों ने लिखा न भाया

जिसमें-तिसमें खोट बताया

खुद के खुदी प्रशंसक भारी

जब भी मौका मिला भुनाया

फोड़-फाड़

फिर जोड़-तोड़ कर

जपते हरि का नाम

*

खुद की खुद ही करें प्रशंसा

कहे और ने की अनुशंसा

गलत करें पर सही बतायें

निज किताब का तान तमंचा

नट-करतब

दिखलाते जब-तब

कहें सुबह को शाम

*

जिन्दा को स्वर्गीय बता दें

जिसका चाहें नाम हटा दें

काम न देखें किसका-कितना

सच को सचमुच धूल चटा  दें

दूर रहो

मत बाँह गहो

दूरी से करो प्रणाम

*

आपन मूं

आपन तारीफें

करते सीताराम

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य – मैं नारी नहीं पहेली हूँ ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है  श्री सूबेदार पाण्डेय जी की श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी के जन्मदिवस पर एक भावप्रवण कविता “मैं नारी नहीं पहेली हूँ। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य –  मैं नारी नहीं पहेली हूँ ☆

(नारी अर्धांगिनी है, वह बेटी,  बहन,  बहू,‌ पत्नी तथा मां के रूप में अपनी सामाजिक जिम्मेदारी ‌का‌ निर्वहन ‌करती‌ है। आज बेटियां डाक्टर, इंजीनियर,  वैज्ञानिक बन कर अंतरिक्ष की ऊंचाईयां नाप रही हैं, लेकिन सच्चाई तो यह भी है कि आज भी प्राचीन रूढ़ियों के चलते उसका जीवन एक पहेली ‌बन कर उलझ गया‌ है। वह समझ नहीं पा रही‌है कि आखिर क्यों यह समाज उसका दुश्मन ‌बन गया है।आज उसका‌ जन्म लेना क्यों समाज के माथे पर कलंक का प्रश्नचिन्ह बन टंकित है।)

मैं बेहद बेबस लाचार हूँ , हाँ  मैं इस जग की नारी हूँ ।

सब लोगों ने मुझ पे जुल्म किये मैं क़िस्मत की मारी हूँ ।

हमने जन्माया इस जग को‌, लोगों ने अत्याचार किया।

जब जी‌ चाहा‌ दिल से खेला, जब चाहा दुत्कार दिया।

क्यों प्यार की खातिर मानव, ताज महल बनवाता है।

जब भी नारी प्यार करे तो जग क्यों बैरी हो जाता है।

जिसने अग्नि‌ परीक्षा ली  वे गंभीर ‌पुरूष ही थे।

जो जो मुझे जुएं में हारे, वे सब महावीर ही थे।

अग्नि परीक्षा दी हमने‌, संतुष्ट उन्हें ना कर पाई।

चीर हरण का दृश्य देख, किसी को शर्म नहीं आई।

अपनी लिप्सा की खातिर ही बार बार मुझे त्रास दिया।

जब जी चाहा जुएं में हारा जब चाहा वनवास दिया।

क्यों कर्त्तव्यों की बलिवेदी पर, नारी ही चढ़ाई जाती है।

कभी जहर पिलाई जाती है कभी वन में भेजी  ‌जाती है।

मेरा अपराध बताओ लोगों, क्यों घर से ‌मुझे निकाला था?

क्याअपराध किया था मैंने, क्यो हिस्से में विष प्याला था?

इस मानव का दोहरा चरित्र, कुछ समझ न आता है।

मैं नारी नहीं पहेली हूँ ,जीवन में गमों से नाता है ।

अब भी दहेज की बलिवेदी पर ,मुझे चढ़ाया जाता है।

अग्नि में जलाया जाता है, फाँसी पे झुलाया जाता है।

दुर्गा काली का रूप समझ, मेरा पाँव पखारा जाता है।

फिर क्यो दहेज के डर से, मुझे कोख में मारा जाता है

जब मैं दुर्गा मैं ही काली, मुझमें ही शक्ति बसती है।

फिर क्यो अबला कह कर, ये दुनिया हम पे  हँसती है?

अब तक तो नर ही दुश्मन था, नारी‌भी उसी की राह चली।

ये बैरी हुआ जमाना अपना,ना ममता की छाँव मिली।

सदियों से शोषित पीड़ित थी, पर आज समस्या बदतर है।

अब तो जीवन ही खतरे में, क्या ‌बुरा कहें क्या बेहतर है?

मेरा अस्तित्व मिटा जग से, नर का जीवन नीरस होगा।

फिर कैसे वंश वृद्धि होगी, किस‌ कोख में तू पैदा होगा।

मैं हाथ जोड़ विनती करती हूँ,मुझको इस जग में आने दो।

मेरा वजूद मत खत्म करो, कुछ करके मुझे दिखाने दो।

यदि मैं  आई इस दुनिया में तो कुलों का मान बढ़ाऊंगी।

अपनी मेहनत प्रतिभा के बल पे, ऊंचा पद मैं पाऊंगी।

बेटी, पत्नी, माता बन कर,  जीवन भर साथ निभाउंगी।

करूंगी सेवा रात दिवस,    बेटे का फर्ज निभाउंगी।

सबका जीवन सुखमय होगा, खुशियों के फूल खिलाऊंगी

सारे समाज की सेवा कर, मैं नाम अमर कर जाऊंगी।

मैं इस जग की बेटी हूँ, मेरी बस यही कहानी है।

ये दिल  है भावों से भरा हुआ, आंखों में पानी है।

जब कर्मों के पथ चलती हूं, लिप्सा की आग से जलती हूं।

अपने ‌जीवन की आहुति दे, मैं कुंदन बन के निखरती हूं।

 

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.४३॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.४३॥ ☆

 

तस्मिन काले नयनसलिअं योषितां खण्डितानां

शान्तिं नेयं प्रणयिभिर अतो वर्त्म भानोस त्यजाशु

प्रालेयास्त्रं कमलवदनात सोऽपि हर्तुं नलिन्याः

प्रत्यावृत्तस्त्वयि कररुधि स्यादनल्पभ्यसूयः॥१.४३॥

तभी , सान्त्वना हेतु खण्डित प्रिया के

नयनवारि प्रेमी यथा पोंछते न !

हरे ओस आंसू ,  नलिन मुख कमल से

तरणि कर बढ़ा , तू अतः राह देना

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares