हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 59 ☆ भारत गणतंत्र है प्यारा ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण कविता  “भारत गणतंत्र है प्यारा.)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 59 ☆

☆ भारत गणतंत्र है प्यारा ☆ 

भारत का गणतंत्र है प्यारा

आओ सभी मनाएँ हम

संविधान पावन है लाया

वंदेमातरम गाएँ हम।।

 

इसकी माटी सोना चंदन

हर कोना है वंदित नन्दन

हम सब करते हैं अभिनंदन

 

शक्ति अदम्य , शौर्य, साहस का

आओ दीप जलाएँ हम।।

 

सागर इसके पाँव पखारे

अडिग हिमालय मुकुट सँवारे

झरने , नदियाँ कल- कल प्यारे

 

गाँव, खेत, खलियान धरोहर

हरियाली लहराएँ हम।।

 

नई उमंगें, लक्ष्य अटल है

नूतन रस्ते सुंदर कल है

श्रम से शक्ति दिलाती बल है

 

सभी स्वस्थ हों, सभी सुखी हों

ऐसा देश बनाएँ हम।।

 

जय जवान हो, जय किसान हो

बच्चा – बच्चा ही महान हो

आन – वान हो सदा शान हो

 

रूढ़ि मिटे विज्ञान विजय हो

ऐसी नीति चलाएँ हम।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य #91 ☆ मास्क☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी  की एक अतिसुन्दर कविता  ‘मास्क’ इस सार्थकअतिसुन्दर कविता के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 91 ☆

☆ कविता – मास्क ☆

बचपन में मेरे खिलौनों में शामिल थी

एक रूसी गुड़िया

जिसके भीतर से निकल आती थी

एक के अंदर एक समाई हुई हमशकल

एक और गुड़िया।

बस थोड़ी सी छोटी आकार में !

सातवीं सबसे छोटी गुड़िया भी

बिलकुल वैसी ही

जैसे बौनी हो गई हो

पहली सबसे बड़ी वाली गुड़िया

सब के सब एक से मुखौटौ में !

 

बचपन में माँ को और अब पत्नी को

जब भी देखता हूँ

प्याज छीलते हुये

या काटते हुये

पत्ता गोभी परत दर परत ,

मुखौटों सी हमशकल

बरबस ही मुझे याद आ जाती है

अपनी उस रूसी गुड़िया की !

बचपन जीवन भर याद रहता है !

 

मेरे बगीचे में प्रायः दिखता है एक गिरगिटान

हर बार एक अलग पौधे पर ,

कभी मिट्टी तो कभी सूखे पत्तों पर

बिलकुल उस रंग के चेहरे में

जहाँ वह होता है

मानो लगा रखा हो उसने

अपने ही चेहरे का मुखौटा

हर बार एक अलग रँग का !

 

मेरा बेटा लगा लेता है

कभी कभी रबर का कोई मास्क

और डराता है हमें ,

या हँसाता है कभी जोकर का

मुखौटा लगा कर !

 

मैँ जब कभी शीशे के सामने खड़े होकर

खुद को देखता हूँ

तो सोचता हूँ

अपने ही बारे में

बिना कोई आकार बदले

बिना मास्क लगाये या रंग बदले ही

मैं नजर आता हूँ खुद को

अवसर के अनुरूप हर बार नए चेहरे मे ।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.३३॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.३३॥ ☆

 

हारांस तारांस तरलगुटिकान कोटिशः शङ्कशुक्तीः

शष्पश्यामान मरकतमणीन उन्मयूखप्ररोहान

दृष्ट्वा यस्यां विपणिरचितान विद्रुमाणां च भङ्गान

संलक्ष्यन्ते सलिलनिधयस तोयमात्रावशेषाः॥१.३३॥

जहां विपणि में हार अगणित अनेकों

सुखद शंख , सीपी , हरित मणि विनिर्मित

प्रभा पूर्ण मूंगों , तरल मोतियों से

भरेलख , जलधि भास होते प्रवंचित

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 80 – समय धागे… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

वरिष्ठ साहित्यकार एवं अग्रज श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी स्वास्थ्य की जटिल समस्याओं से उबर रहे हैं। इस बीच आपकी अमूल्य रचनाएँ सकारात्मक शीतलता का आभास देती हैं। इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना समय धागे)

☆  तन्मय साहित्य  #  80 ☆ समय धागे ☆ 

उम्मीदों के सुनहरे

शुभ पंख होते हैं

दुर्दिनों में राहतों के

बीज बोते हैं

टूटते मन शिथिल तन में

शक्ति का संचार कर

‘समय धागे’

बिखरते ‘मनके’ संजोते हैं।।

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश0

मो. 9893266014

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पैसा ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि – पैसा ☆

पैसा कमाता है आदमी,

पैसे के पहियों पर

दौड़ने लगता है आदमी,

आदमी और पैसा कमाता है,

पैसे को लग जाते हैं पंख

उड़ने लगता है आदमी,

आदमी बहुत पैसा कमाता है,

आदमी ढेर पैसा कमाता है,

निगाहों में चढ़ने लगता है आदमी!

अब पैसा खाता है आदमी,

अब पैसा पीता है आदमी,

पर  पैसे की सवारी अब

नहीं कर नहीं पाता थुलथुला आदमी !

ज्यों-ज्यों ज़बान पर चढ़ता है पैसा

त्यों-त्यों निगाहों से उतरता है आदमी !

इससे उस तक,

आदि से इति तक,

न कहानी बदलती है,

न नादानी बदलती है,

पैसा, आदमी की

नादानी पर हँसता है,

कवि, पैसे और आदमी की

कहानी पर हँसता है!

 

©  संजय भारद्वाज

(प्रात: 9:06 बजे, 2.11.20)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 31 ☆ फितरत ☆ श्री प्रह्लाद नारायण माथुर

श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता फितरत। ) 

 

Amazon India(paperback and Kindle) Link: >>>  मृग  तृष्णा  

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 31 ☆ फितरत

यह  मेरी  फितरत है,

जिससे धोखा खाता हूं भरोसा फिर भी उसी पर करता हूँ ||

 मेरा नसीब कुछ ऐसा है,

रोज जहां ठोकर खाता हूँ खुद को फिर वहीं पाता हूँ ||

दिल की अजीब दास्ताँ है,

जो दिल तोड़ता है  फिर भी उसे ही पाना चाहता हूँ ||

अपनों से बेतहाशा मोहब्बत है,

चाहे कोई नफरत करे फिर भी उन पर भरोसा रखता हूँ ||

अपनों का भरोसा नहीं तोड़ता,

चाहे अपने भरोसा तोड़ दे फिर भी अपनों पर विश्वास करता हूँ||

अपनों पर से कभी विश्वास ना उठे,

इसलिए सब कुछ जानते हुए भी अपनों पर यकीन रखता हूँ ||

ड़र है अजनबियों की भीड़ में कहीं,

अपनों को खो ना दूँ इसीलिए अपनों  पर एतबार करता हूँ ||

©  प्रह्लाद नारायण माथुर 

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≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.३२॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.३२॥ ☆

 

दीर्घीकुर्वन पटु मदकलं कूजितं सारसानां

प्रत्यूषेषु स्फुटितकमलामोदमैत्रीकषायः

यत्र स्त्रीणां हरति सुरतग्लानिम अङ्गानुकूलः

शिप्रावातः प्रियतम इव प्रार्थनाचाटुकारः॥१.३२॥

 

जहां सारसों का कलित नादवर्धक

सदा प्रात प्रमुदित कमल गंधवाही

कि शिप्रा समीरण सुखद, तरुणियों के

मिटाता सुरति खेद प्रिय सम सदा ही

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 68 ☆ फ़कीरी ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं ।  सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता “फ़कीरी”। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 68 ☆

☆ फ़कीरी

कदम बोझिल भी नहीं, न ही उन्माद है

ये दिल उदास भी नहीं, न ही वो शाद है

 

नज़्म लिख रही हूँ कई, बिना रुके हुए

मांग रहा हर हर्फ़, कौन सी मुराद है?

 

साज़ से मन भर चुका, लगता है शोर सा

चटनी-अचार में भी, कहाँ अब स्वाद है?

 

टटोलना है जुस्तजू, कहीं तो मिलेगी वो

मिटती नहीं कभी वो, वही बुनियाद है

 

बहुत धनी हैं यूँ भी हम, क्यूँ भाये फ़कीरी

अलफ़ाज़ की पास हमारे, हसीं जायदाद है

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य ☆ कविता ☆ गणतंत्र दिवस विशेष – सैनिक को हर पल नमन करते हैं ☆ डॉ अ कीर्तिवर्धन

डॉ अ कीर्तिवर्धन

 ☆ गणतंत्र दिवस विशेष – सैनिक को हर पल नमन करते हैं ☆ डॉ अ कीर्तिवर्धन ☆

सीमा पर खड़ा है, नींद अपनी गंवाकर,

सुरक्षा मे देश की, निज परिवार भुलाकर,

बल की है शान, कर्तव्य की बातें,

देखता है हर पल, जो शांति के सपने,

सैनिक को हर पल नमन करते हैं।

 

चट्टानों को काटकर, जो नहरें बना देता है,

बाढ़ और सूखे मे, सहायता हेतु आता है,

मृत्यु के मुख से भी, जीवन छीन लाता है,

सीमा पर प्रहरी, सुरक्षा बल कहलाता है,

सैनिक को हम नमन करते हैं।

 

धार्मिक उन्माद मे, इंसान बनकर आता है,

असत्य पर सत्य की, विजय गाथा गाता है,

जाति-धर्म, छुआ छूत के, सारे बंधन तोड़कर,

राष्ट्र धर्म जिसके लिए, सर्वोपरि बन जाता है,

सैनिक को हम नमन करते हैं।

 

दुश्मन के वार को,तार तार करता है,

देश की सुरक्षा मे, जीवन वार देता है,

माता को जिसकी, अपने लाल पर गर्व है,

भारत का जन-जन, जिसे प्यार करता है,

सैनिक को हम नमन करते हैं।

 

राणा सा शौर्य जिसकी, शिराओं मे दौड़ता है,

पाक के नापाक इरादे, बूटों तले रौंदता है,

हिमालय भी जिसकी, विजय गाथा गता है,

सम्मान मे जिसके, राष्ट्र ध्वज झुक जाता है,

सैनिक को हम नमन करते हैं।

 

सीमा के सैनिक का, आओ हम सम्मान करें,

सुरक्षा मे परिवार की, हाथ सब तान दें,

बल प्रहरी की पत्नी को, सैनिक सा मान दें,

मात पिता को सैनिक के, हम सब प्रणाम करें,

सैनिक को हम सब हर पल नमन करें।

 

© डॉ अ कीर्तिवर्धन

संपर्क – विद्यालक्ष्मी निकेतन, 53 -महालक्ष्मी एन्क्लेव, मुज़फ्फरनगर -251001 ( उत्तर प्रदेश )

8 2 6 5 8 2 1 8 0 0

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #27 ☆ गणतंत्र दिवस विशेष – आओ गणतंत्र दिवस मनाये ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है जिंदगी की हकीकत बयां करती एक भावप्रवण कविता “गणतंत्र दिवस”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 27 ☆ 

☆ गणतंत्र दिवस विशेष  – आओ गणतंत्र दिवस मनाये ☆ 

26 जनवरी हमारे महान

गणतंत्र का पावन पर्व है

हमें हमारें संविधान पर

अत्यंत गर्व है

इसी दिन लागू हुआ था

यह महान संविधान

जिसके सपने देख रहा था

हर इंसान

गणतंत्र का अर्थ ही है

जनता के लिए

जनता द्वारा शासन

जनता की भागीदारी से

प्रशासन

जब सबको मिला पूर्ण स्वराज

ना किसी धर्म ना

किसी समुदाय का राज

सबने खुशियाँ बांटी

मिठाईयां बांटी

नाच रहा था हर व्यक्ति

और हर समाज

सबको मिले अपने अधिकार

शिक्षा, स्वास्थ और रोजगार

कहीं भी कर सकते हो व्यापार

सारा देश बना एक घर-बार

मिली अभिव्यक्ति की आज़ादी

पढ़ने-लिखने की आज़ादी

सुनने की, कहने की आज़ादी

न्याय पाने की,

ना कहने की आज़ादी

अब यह कैसा काल है आया

उमंगों पर मातम है छाया

जिव्हा पर ताले लगे हैं

आंखों में है एक डर समाया

आलोचना अपराध हो गया

सत्य कहना पाप हो गया

यह बलिदानों से मिली आजादी

क्या हम सबके लिए

श्राप हो गया ?

मिलकर इन जंजीरों को तोड़े

दिग्भ्रमित है बस कुछ थोड़े

हम सब है भाई-भाई

चलो संविधान से नाता जोड़े

आओ गणतंत्र दिवस मनाये

हर दुःखी पिड़ीत को गले लगाये

प्यार बांटे, खुशीयां बांटे

हर चेहरे पर मुस्कान लाये ।

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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