हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 38 ☆ नवगीत – सड़क पर ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताeह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी  द्वारा रचित  ‘नवगीत – सड़क पर ’। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 38 ☆ 

☆ नवगीत – सड़क पर ☆ 

फ़िर सड़क पर

भीड़ ने दंगे किए

.

आ गए पग

भटकते-थकते यहाँ

छा गए पग

अटकते-चलते यहाँ

जाति, मजहब,

दल, प्रदर्शन, सभाएँ,

सियासी नेता

ललच नंगे हुए

.

सो रहे कुछ

थके सपने मौन हो

पूछ्ते खुद

खुदी से, तुम कौन हो?

गए रौंदते जो,

कहो क्यों चंगे हुए?

.

ज़िन्दगी भागी

सड़क पर जा रही

आरियाँ ले

हाँफ़ती, पछ्ता रही

तरु न बाकी

खत्म हैं आशा कुंए

.

झूमती-गा

सड़क पर बारात जो

रोक ट्रेफ़िक

कर रही आघात वो

माँग कन्यादान

भिखमंगे हुए

.

नेकियों को

बदी नेइज्जत करे

भेडि.यों से

शेरनी काहे डरे?

सूर देखें

चक्षु ही अंधे हुए

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

 

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ग़ज़ल – मुहब्बत ☆ सुश्री शुभदा बाजपेयी

सुश्री शुभदा बाजपेयी

(सुश्री शुभदा बाजपेई जी  हिंदी साहित्य  की गीत ,गज़ल, मुक्तक,छन्द,दोहे विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं। सुश्री शुभदा जी कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं एवं आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर  कई प्रस्तुतियां। आज प्रस्तुत है आपकी  एक  बेहतरीन ग़ज़ल  “मुहब्बत ”. )

☆  ग़ज़ल – मुहब्बत  ☆

भयानक था हरिक मंज़र अभी तक डर नहीं जाता

हमारे शह्र से क्यूं दूर ये मंज़र नहीं जाता

 

मुझे मालूम है वो हाले दिल मेरा समझ लेंगे

करूं क्या, हाले दिल उन तक कभी खुलकर नहीं जाता

 

मुहब्बत है मुझे उनसे मगर ज़ाहिर करूं कैसे

झिझक, शर्मो हया का दिल से डर क्यों कर नहीं जाता

 

कभी ज़ख़्मे मुहब्बत से मिली है जीते जी राहत

तडपना पडता है इन्सां को जब तक मर नहीं जाता

 

मुहब्वत करने वाले का न पूछो हाल ऐ ‘शुभदा’

कभी वो घर नहीं जाता कभी दफ्तर नहीं जाता

 

© सुश्री शुभदा बाजपेयी

कानपुर, उत्तर प्रदेश

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य – ये उत्सव है लोकतंत्र का ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है  श्री सूबेदार पाण्डेय जी की श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी के जन्मदिवस पर एक भावप्रवण कविता “ये उत्सव है लोकतंत्र का। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य –  ये उत्सव है लोकतंत्र का ☆

ये उत्सव है लोकतंत्र का,

मतदाता का दिन आया।

 

रणभेरी दुंदुभी बज उठी,

सबने लालच का जाल बिछाया।

अपना अपना मतलब साधे,

देखो उनका अनर्गल प्रलाप।

जाति पांति मजहब भाषा के,

ले मुद्दे करते विलाप।

।। ये उत्सव है लोकतंत्र का ।।1।।

 

ये विकास का ख्वाब दिखाते,

नारों से भरमाते हैं।

जनता की सुधि ले न सके,

बस इसी लिए घबराते हैं।

जाति धर्म से ऊपर उठकर,

राष्ट्र धर्म का गान करो।

लोकतंत्र के उत्सव में

निर्भय हो मतदान करों।

।। ये उत्सव है लोकतंत्र का ।।2।।

 

सजग नागरिक बन करके,

देश के पहरेदार बनो।

मत घायल होने दो भारत मां को,

पीड़ा सह लो दिलदार बनो।

लघु प्रयास मतदाता का ,

अपना रंग दिखायेगा ।

जब प्रत्याशी योग्य चुनोगे तुम

फिर लोकतंत्र जी जायेगा।

।। ये उत्सव है लोकतंत्र का ।।3।।

 

उदासीनता यदि बरती तो,

नहीं किया गर तुमने मतदान ।

फिर चोटिल होगी भारत मां

फिर से सिसकेगा हिंदुस्तान।

मत सोओ आलस निद्रा त्यागो ,

लोकतंत्र में जोश भरो।

रक्षा करो वतन की अपने,

एक नहीं सौ बार‌ मरो ।

।। ये उत्सव है लोकतंत्र का ।।4।।

 

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.२२॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.२२॥ ☆

 

अम्भोबिन्दुग्रहणचतुरांश चातकान वीक्षमाणाः

श्रेणीभूताः परिगणनया निर्दिशन्तो बलाकाः

त्वाम आसाद्य स्तनितसमये मानयिष्यन्ति सिद्धाः

सोत्कम्पानि प्रियसहचरीसंभ्रमालिङ्गितानि॥१.२२॥

 

होंगे ॠणी , सिद्धगण चिर तुम्हारे

कि नभ में पपीहा , बकुल शुभ्रमाला

निरखते सहज नाद सुन तव , भ्रमित भीत

कान्ता की पा नेहमय बाहुमाला

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 25 ☆ किसी पावन तत्व से है भरा यह ब्रह्मांड सारा ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  की एक भावप्रवण कविता  “किसी पावन तत्व से है भरा यह ब्रह्मांड सारा।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।  ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 25 ☆

☆ किसी पावन तत्व से है भरा यह ब्रह्मांड सारा ☆

किसी पावन तत्व से है भरा यह ब्रह्मांड सारा

इसी की नियमित कृपा से चल रहा जीवन हमारा

 

आज पर बढ़ते करोना कष्ट से सब डर रहे हैं

लोग कितने विश्व में उपचार के बिन मर रहे हैं

 

स्वार्थी संसार का जनहित विरोधी आचरण है

विचारों और कर्म से दूषित सकल वातावरण है

 

नाम सेवा का बताकर हो रहा है स्वार्थ साधन

इसी अनुचित नीति कर रखा तन मन धन अपावन

 

शुद्धता शुचिता सरलता का अनादर दिख रहा है

इसी से दुख से भरा इतिहास यह युग लिख रहा है

 

आज जग को प्रेम और विश्वास का व्यवहार चहिए

त्रस्त जीवन को परस्पर शांति सुख हित प्यार चहिए

 

किंतु सीधी राह को तज हर एक बढ़ता जा रहा है

इसी से जाता जहां भी वहां पर टकरा रहा है

 

आए दिन जाता उलझता दुखों से यह जग अकारण

प्रदूषित मन बन गया है सब दुखों का प्रमुख कारण

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ पानी ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ पानी ☆

आदमी की आँख का

जब मर जाता है पानी,

खतरे का निशान

पार कर जाता है।

आदमी की आँख में

जब भर आता है पानी,

खतरे के निशान से

उतर जाता है पानी।

©  संजय भारद्वाज

(कवितासंग्रह चेहरे से)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.२१॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.२१॥ ☆

नीपं दृष्ट्वा हरितकपिशं केसरैर अर्धरूढैर

आविर्भूतप्रथममुकुलाः कन्दलीश चानुकच्चम

जग्ध्वारण्येष्व अधिकसुरभिं गन्धम आघ्राय चोर्व्याः

सारङ्गास ते जललवमुचः सूचयिष्यन्ति मार्गम॥१.२१॥

वहां अर्ध मुकुलित हरित नीप तरु देख

कुसुमित कदलि भक्ष , पा गंध प्यारा

हाथी,हरिण,भ्रमर,चातक सभी मुग्ध

घन , पथ प्रदर्शन करेंगे तुम्हारा

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ है और था ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ है और था ☆

वर्तमान इक रोज़

अतीत हो जाएगा,

अतीत रूप बदल कर

इक रोज़ लौट आएगा,

बहुरूपिया समय

नाना स्वांग रचता है,

‘है’ और ‘था’ बन कर

मनुष्य को ठगता है।

 

©  संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

मोबाइल– 9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 77 ☆ मकर संक्रांति – भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  मकरणक्रान्ति पर्व पर “भावना के दोहे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 77 – साहित्य निकुंज ☆

☆ मकर संक्रांति – भावना के दोहे ☆

उत्तरायणी पर्व का, होता है आगाज।

मकर राशि पर आ गए, सूर्य प्रभाकर आज ।।

 

आसमान को घेरकर, उड़ने लगी पतंग।

कनकौयें भी भिड़ गये, लड़ते जैसे जंग ।।

 

लहर-लहर आकाश में,उ ड़ने लगी पतंग।

छलक रहा उल्लास अति, बाल सखा के संग।।

 

अलग-अलग त्योहार है, रंग अनेकों भ्रांति।

कहीं पर्व पोंगल कहीं, मने मकर संक्रांति।।

 

पर्व मकर संक्रांति का, तिल-गुड़ का त्यौहार।

मिलजुल कर सब रहे, दावत का व्यवहार।।

 

गंगा में डुबकी लगा, करें आचमन नीर

महिमा है संक्रांति की, निर्मल करे शरीर

 

बीत गया पतझड़ अभी, आने लगा बसंत।

अच्छे दिन अब आ गए, हुआ शीत का अंत।।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 67 ☆ स्वामी विवेकानंद जयंती – संतोष के दोहे☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं  “संतोष के दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 67 ☆

☆ स्वामी विवेकानंद जयंती – संतोष के दोहे  ☆

विवेक और आनन्द का, जिनमें अद्भुत कोष

सत्य,संस्कृति के लिए, किया बहुत जय घोष

 

नव युवकों को जगा कर, दिया नया उत्साह

उठो चलो आगे बढ़ो, उनकी थी यह चाह

 

जिनके तन-मन में रचा, राष्ट्र प्रेम महान

चले साथ लेकर सदा, धर्म और विज्ञान

 

संस्कारी सनातनी, जप-तप और ध्यान

सकल सृष्टि में गूंजता,उ नका ही जय गान

 

कर राष्ट्र आराधना, पाया जीवन-साध्य

राष्ट्र ही जिनके लिए, एकमेव आराध्य

 

सत्य न्याय की राह पर, चले निडर भर जोश

अटल इरादों से सदा, उनको था “संतोष”

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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