English Literature – Poetry (भावानुवाद) ☆ लिखावट…/Mystical walls … – Ms. Neelam Saxena Chandra ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present an English Version of Ms. Neelam Saxena Chandra’s mesmerizing poem  “लिखावट.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this awesome translation.)

Ms Neelam Saxena Chandra

(Ms. Neelam Saxena Chandra ji is a well-known author. She has been honoured with many international/national/ regional level awards. Ms. Neelam Saxena Chandra ji is  an Additional Divisional Railway Manager, Indian Railways, Pune Division.

☆ लिखावट … ☆

क्या लिखा है इन तिलस्मी दीवारों पर?

 

क्या है वो जिसे चाहकर भी

इंसान खोज ही नहीं पाता?

 

क्या यह ज़िंदगी के गाम हैं

जो क़ुदरत हमसे छुपाकर रखना चाहती है?

या यह किस्मत की लकीरें हैं

जिसे हम जानकार भी बदल नहीं सकते

और उसकी मौजूदगी को नकारते फिरते हैं?

या यह कोई ऐसा अमीक़ रहस्य है

जिसे न जानना ही अच्छा है?

 

कुछ तो लिखा होगा इन सदियों से

तनहा खड़ी इन दीवारों पर

जो वो कहना तो चाहती हैं

और हम समझ नहीं पाते

लफ़्ज़ों की नामौज़ूदगी में?

 

शायर मन कहाँ मानता है हार?

 

जबसे पता चला है कि यह रहस्य

अभी तक कोई जान नहीं पाया है,

मैंने बस उस दीवार को हौले से छू दिया-

न जाने क्यों रूह को महसूस हुआ

कि इन पत्थरों ने मुझे भी गले लगा लिया

और हम दोनों अपनी भीगी पलकों से

एक रिश्ता बना बैठे!

 

गाम = steps

अमीक़ = profound

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

☆ Mystical Wall…

What is it written on

these mystical walls…

What is that even after desiring mankind cannot

ever find it…

Are these the enigmatic

trails of the life

Which nature wants to

keep hiding from us; or,

Are these the streaks of luck

That we cannot even change despite wishing desperately

And, move around denying

its intriguing presence…

Or, is it such an abyssal secret that is coercively prohibitive to know…

Something must have been written for centuries on these lonely standing walls

Which they want to burst reveal desperately

That we’re unable to comprehend in the

absence of the words…

But, would the poet-mind ever accept the defeat…

Ever since I learnt that the secrets have yet not been revealed to anyone,

I curiously touched the wall, deftly; But knoweth not,

why did I have this soul-stirring experience of

these stones embracing me,

And we both,

-with our soulfully saddened eyes, developed an everlasting inseparable bond…!

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.१०॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.१०॥ ☆

 

त्वां चावश्यं दिवसगणनातत्पराम एकपत्नीम

अव्यापन्नाम अविहतगतिर द्रक्ष्यसि भ्रातृजायाम

आशाबन्धः कुसुमसदृशं प्रायशो ह्य अङ्गनानां

सद्यः पाति प्रणयि हृदयं विप्रयोगे रुणद्धि॥१.१०॥

लखोगे सुनिश्चित विवश जीवशेषा

तो गिनते दिवस भ्रात की भामिनी को

आशा ही आधार , पति के विरह में

सुमन सम सुकोमल सुनारी हृदय को

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की – दोहे ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम दोहे । )

✍  लेखनी सुमित्र की – दोहे  ✍

याद  कदाचित कहीं पर, आई होगी खूब ।

इसलिए तो मन यहां, उतर आया है डूब।।

 

बंधन में बांध तुझे, क्या मेरा अधिकार।

यही अनुग्रह है बहुत, जतलाते हो प्यार ।।

 

कोई बंदिश कब रखी, रक्खा पूजा भाव ।

पूजन भी बंधन लगे, फूलों से भी घाव।।

 

मन पर भारी बोझ है, वातावरण मलीन।

अवश विवश – सा हो रहा, तन जैसे तटहीन ।।

 

डूब रहा हूं बिंदु में, दहक रही है देह।

नाग नहीं  दिखते कहीं, फन काढ़े संदेह ।।

 

ओ मन मेरे देख रे, मत हिम्मत तू हार ।

बुला रहा है राजपथ, छोड़ गली गलहार।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 31 – कई चित्र बादल के …☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत “कई चित्र बादल के … । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 30– ।। अभिनव गीत ।। 

☆ कई चित्र बादल के … ☆

सूरज की किरनों को

ऐसे मत टाँक री

फिसल रहा आँखों से

इन्द्र का पिनाक* री

 

खुद की परछाई जो

दुविधा में छोटी है

उसको इतना छोटा

ऐसे मत आँक री

 

ऐंठ रही धूप तनिक

खड़ी कमर हाथ धरे

देखती दुपहरी को

ऊँची कर नाक री

(रेखाचित्र  – श्री राघवेंद्र तिवारी ) 

कई चित्र बादल के

बनते- बिगड़ते हैं

लगे दबा दशानन

बाली की काँख री

 

छाया छत से छूटी

टंगी दिखी छींके पर

लगा छींट छप्पर की

जा गिरी छमाक री

 

घिर आई शाम धूप

फुनगी पर पहुँच गई

पीली उम्मीद बची

एक-दो छटाँक री

 

हौले-हौले नभ में

उतर रहा चन्द्रमा

लगता है लटक रही

मैदा की गाँकरी

* पिनाक= धनुष, शिव जी का धनुष, यहाँ आशय सिर्फ धनुष से है!

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

26-12-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ ‘है’ और ‘था’ ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ ‘है’ और ‘था’ ☆

‘है’ और ‘था’

देखें तो

दोनों के बीच

केवल एक पल थमा है,

‘है’ और ‘था’

सोचें तो एक पल में

जीवन और मृत्यु का

अंतर कटा है।

 

©  संजय भारद्वाज

(रात्रि 3:22 बजे, 22 मई19)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

मोबाइल– 9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ निधि की कलम से # 29 ☆ मोम का गुड्डा ☆ डॉ निधि जैन

डॉ निधि जैन 

डॉ निधि जैन जी  भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे  आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण  कविता  “मोम का गुड्डा”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆निधि की कलम से # 29 ☆ 

☆ मोम का गुड्डा ☆

मेरे मोम के गुड्डे की बात क्या कहूँ,

उसकी फूलों जैसी मुस्कान क्या कहूँ,

दिन में सूरज जैसा रूप क्या कहूँ,

रात की चाँदनी जैसी कोमलता क्या कहूँ,

सुन्दर सजीला रूप क्या कहूँ।

 

मेरे मोम के गुड्डे की बात क्या कहूँ,

उसकी फूलों जैसी मुस्कान क्या कहूँ,

वर्षों किया इंतज़ार क्या कहूँ,

हर दिन हर पल रो-रो कर काटे क्या कहूँ,

इतनी खुशियों की सौगात लेकर आया है क्या कहूँ।

 

मेरे मोम के गुड्डे की बात क्या कहूँ,

उसकी फूलों जैसी मुस्कान क्या कहूँ,

इतना प्यार मुझे दिया है क्या कहूँ,

मेरे मोम के गुड्डे में प्यार करने वाला दिल है,

मेरे मोम के गुड्डे में खेलने, कूदने वाला नटखट मन है।

 

मेरे मोम के गुड्डे की बात क्या कहूँ,

उसकी फूलों जैसी मुस्कान क्या कहूँ,

पल में हँसने, पल में रोने वाला मासूम मन है,

हर्ष उल्लास से भरता सुन्दर तन है,

वो मोम का गुड्डा कोई और नहीं मेरा प्यारा बेटा आरुष है।

 

मेरे मोम के गुड्डे की बात क्या कहूँ,

उसकी फूलों जैसी मुस्कान क्या कहूँ,

इस सौगात के लिए भगवान् का धन्यवाद क्या कहूँ,

न जाने कितने जन्मों से कितने रिश्तों में हमसाथ था वो आरुष है क्या कहूँ,

कभी वो मेरा बेटा, भाई, बहन के रिश्तों में बंधा था, सूरज की पहली किरण (आरुष) क्या कहूँ।

 

मेरे मोम के गुड्डे की बात क्या कहूँ,

उसकी फूलों जैसी मुस्कान क्या कहूँ।

 

©  डॉ निधि जैन,

पुणे

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #24 ☆ नयी सदी का सूरज ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है जिंदगी की हकीकत बयां करती एकअतिसुन्दर कविता “नयी सदी का सूरज”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 24 ☆ 

☆ नयी सदी का सूरज ☆ 

नयी सदी का सूरज निकला

दूर हुआ है अंधेरा

कली कली बन फूल खिल गई

महकें है उपवन सारा

पंछी कैसे चहक रहे हैं

भ्रमर रस पीकर बहक रहे हैं

यौवन के मद में डूबे

दो प्रेमी देखों

लहक रहे हैं

नयी उमंगे हैं

नयी तरंगें हैं

नयी सोच है

सपनें रंग बिरंगे हैं

आंखों में एक उम्मीद बंधी है

दिल में एक आशा जगी है

फूल ही फूल खिलेंगे अब तो

सपनों की झड़ी लगी है

घनघोर अंधेरे से निकले है

हिमखंड अभी नहीं पिघले है

दूषित हवायें बह रही है

भयभीत करती कह रही है

खतरा अभी टला नहीं है

मास्क के बिना भला नहीं है

दो फीट की दूरी है जरूरी

‘कोविड’ ने कौन है जिसको

छला नहीं है

मित्रों,

यह ऐसा नववर्ष हो

सबके चेहरे पर हर्ष हो

सच हो जाये सबके सपने

हम सबका उत्कर्ष हो

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.९॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.९॥ ☆

 

मन्दं मन्दं नुदति पवनश चानुकूलो यथा त्वां

वामश चायं नदति मधुरं चातकस ते सगन्धः

गर्भाधानक्षणपरिचयान नूनम आबद्धमालाः

सेविष्यन्ते नयनसुभगं खे भवन्तं बलाकाः॥१.९॥

 

अतिमंद अनुकूल शीतल पवन दोल

पर जब बढ़ोगे स्वपथ पर प्रवासी

तो वामांग में तब मधुर कूक स्वन से

सुमानी पपीहा हरेगा उदासी

आबद्ध माला उड़ेंगी बलाका

समय इष्ट लख गर्भ के हित, गगन में

करेंगी सुस्वागत तुम्हारा वहां पर

स्व अभिराम दर्शन दे भर मोद मन में

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ पराकाष्ठा ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ अन्यमनस्क ☆

वह नहीं लिख पाया

आज कुछ भी,

आश्चर्य!

उसके लेखन पर

आती रहीं

प्रतिक्रियाएँ तब भी,

शब्दों की भवभूति में

दोनों की अगाध

आस्था होती है,

अ-लिखा बाँच लेना

सर्जक-पाठक

के सम्बंधों की

पराकाष्ठा होती है!

 

©  संजय भारद्वाज

(संध्या 6:30 बजे, 11 अप्रैल 2019)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

मोबाइल– 9890122603

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 35 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 35 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 35) ☆ 

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 35☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

हम तो खयाल

रखेँगे अपना…

तुम हमें खयालों

में बनाये रखना…!

 

I’ll surely take

care of myself…

You just keep me

in your thoughts…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

सुकून की तलाश

तो हमेशा सब को है….

जिसे तलाश नहीं

वो ही सुकून से है…!

 

Everyone is in quest

of the eternal peace…

One who isn’t indulged in

search is already relaxed!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

तेरी  धड़कनों  में

अगर  मैं  नहीं…

तो  यकीं  कर…

मै  कहीं  नहीं…!

 

If I am not there

in your heartbeats

Then  believe  me,

I don’t exist anywhere!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

दोस्तों के नाम का एक ख़त

जेब में  रख  कर  क्या चला

क़रीब से गुज़रने वाले पूछते हैं,

यार, तेरे इत्र  का  नाम  क्या है…!!

 

When I moved with a letter

with friends names in pocket

Passerby kept asking me,

Dear, what’s the name of the

perfume you’re wearing…!!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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