हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.६॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.६॥ ☆

जातं वंशे भुवनविदिते पुष्करावर्तकानां

जानामि त्वां प्रकृतिपुरुषं कामरूपं मघोनः

तेनार्थित्वं त्वयि विधिवशाद दूरबन्धुर गतो ऽहं

याच्ञा मोघा वरम अधिगुणे नाधमे लब्धकामा॥१.६॥

 

कहा पुष्करावर्त के वंश में जात ,

सुरपति सुसेवक मनोवेशधारी

मैं दुर्भाग्यवश दूर प्रिय से पड़ा हूं

हो तुम श्रेष्ठ इससे है विनती हमारी

संतप्त जन के हे आश्रय प्रदाता

जलद! मम प्रिया को संदेशा पठाना

भली है गुणी से विफल याचना पर

बुरी नीच से कामना पूर्ति पाना

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 34 ☆ हर विचार का स्वागत … ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताeह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी  द्वारा रचित  कविता हर विचार का स्वागत …। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 34☆ 

☆ हर विचार का स्वागत …☆ 

आकर भी तुम आ न सके हो

पाकर भी हम पा न सके हैं

जाकर भी तुम जा न सके हो

करें न शिकवा, हो न शिकायत

*

यही समय की बलिहारी है

घटनाओं की अय्यारी है

हिल-मिलकर हिल-मिल न सके तो

किसे दोष दे, करें बगावत

*

अपने-सपने आते-जाते

नपने खपने साथ निभाते

तपने की बारी आई तो

साये भी कर रहे अदावत

*

जो जैसा है स्वीकारो मन

गीत-छंद नव आकारो मन

लेना-देना रहे बराबर

इतनी ही है मात्र सलाहत

*

हर पल, हर विचार का स्वागत

भुज भेंटो जो दर पर आगत

जो न मिला उसका रोना क्यों?

कुछ पाया है यही गनीमत

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ मैं औऱ वो…. ☆ श्री जयेश वर्मा

श्री जयेश कुमार वर्मा

(श्री जयेश कुमार वर्मा जी  बैंक ऑफ़ बरोडा (देना बैंक) से वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। हम अपने पाठकों से आपकी सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ समय समय पर साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता मैं औऱ वो….।)

☆ कविता  ☆ मैं औऱ वो…. ☆

बार बार याद आते वो पल, थे हम दोनों साथ, जाने कहाँ थे,

हाथो में हाथ थे, बहते अश्क थे, हम दो दिल, एक एहसास से,

 

लम्हा लम्हा दिल भीगे, अश्कों से तर, नैन सजल हुए,

उसे ना थी कोई जल्दी, शिद्दत से पकड़े थी हाथ मेरे,

 

ज़िन्दगी चली बीतने, कुछ बीते, लम्हे आने लगे याद मुझे,

ज़िया वो पल, उसे जीना, थी वही ज़िन्दगी, सब याद मुझे,

 

कुछ तो, ना था बीच हमारे, हमसफ़र थे, सफर खत्म सा,

चुप चुप सी, उनकीआंखे,यादों का बस, एक एहसास सा,

 

©  जयेश वर्मा

संपर्क :  94 इंद्रपुरी कॉलोनी, ग्वारीघाट रोड, जबलपुर (मध्यप्रदेश)
वर्तमान में – खराड़ी,  पुणे (महाराष्ट्र)
मो 7746001236

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.५॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.५॥॥ ☆

धूमज्योतिःसलिलमरुतां संनिपातः क्व मेघः
सन्देशार्थाः क्व पटुकरणैः प्राणिभिः प्रापणीयाः
इत्य औत्सुक्याद अपरिगणयन गुह्यकस तं ययाचे
कामार्ता हि प्रकृतिकृपणाश चेतनाचेतएषु॥१.५॥

 

प्रकाश सलिल वायु धूम्र विनिर्मित

कहां घन , कहां योग्य संदेशहारी

पर भूल इस भेद को कामआतुर ने

जड़ और चेतन की सीमा बिसारी

प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ गणित, कविता, आदमी! ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ गणित, कविता, आदमी!

बचपन में पढ़ा था

X + X , 2X होता है,

X × X,  X² होता है,

Y + Y,  2Y होता है

Y × Y,  Y² होता है..,

X और Y साथ आएँ तो

X  + Y होते हैं,

एक-दूसरे से

गुणा किये जाएँ तो

XY होते हैं..,

X और Y चर राशि हैं

कोई भी हो सकता है X

कोई भी हो सकता है Y,

सूत्र हरेक पर, सब पर

समान रूप से लागू होता है..,

फिर कैसे बदल गया सूत्र

कैसे बदल गया चर का मान..?

X पुरुष हो गया

Y स्त्री हो गई,

कायदे से X और Y का योग

X + Y होना चाहिए

पर होने लगा X – Y,

सूत्र में Y – X भी होता है

पर जीवन में कभी नहीं होता,

(X + Y) ² = X² + 2 XY + Y²

का सूत्र जहाँ ठीक चला है,

वहाँ भी X का मूल्य

Y की अपेक्षा अधिक रहा है,

गणित का हर सूत्र

अपरिवर्तनीय है

फिर किताब से

ज़िंदगी तक आते- आते

परिवर्तित कैसे हो जाता है.. ?

जीवन की इस असमानता को

किसी तरह सुलझाओ मित्रो,

इस प्रमेय को हल करने का

कोई सूत्र पता हो तो बताओ मित्रो!

 

©  संजय भारद्वाज 

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

मोबाइल– 9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 20 ☆ किसके कैसे कर्म हैं देख रहे भगवान ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  की  संस्कारधानी जबलपुर शहर पर आधारित एक भावप्रवण कविता  “किसके कैसे कर्म हैं देख रहे भगवान।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।  ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 20 ☆

☆  किसके कैसे कर्म हैं देख रहे भगवान 

जन्म मरण के मध्य है जीवन एक प्रवाह

जिसे नहीं मालूम कहां उसकी जग में राह

 

मौसम और परिवेश का जिस पर प्रबल प्रभाव

अनजाने नये क्षेत्र में जिसका सतत बहाव

 

आने वाले कल का नित जिसको है ज्ञान

कई झंझट झंझाओं में उलझे रहते प्राण

 

कोई नहीं अनुमान कब मिले नया आदेश

जाना होगा कब कहां और कौन से देश

 

केवल उसके साथ है खुद अपना विश्वास

मन की दृढ़ता बांधती रहती नित नई आश

 

साहस संयम नियम ही जीवन के आधार

दिशा मार्ग शुभ दिखलाते खुद के सोच विचार

 

पाने अपने लक्ष्य को जिसको नित परवाह

जहां पहुंचना है वहां की पा जाता है राह

 

निश्चल निर्मल भावना ही पाती वरदान

किसके कैसे कर्म हैं देख रहे भगवान

 

साहस रख विश्वास से लड़ जीवन संग्राम

सतत साधना श्रम से सब पूरे होते काम

 

कर सकते जो निडर हो निर्णय युग अनुसार

वह ही पाते विजय नित कभी ना होती हार

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ एहसास ☆ सुश्री सुलक्षणा मिश्रा

सुश्री सुलक्षणा मिश्रा

(आज प्रस्तुत है युवा साहित्यकार सुश्री सुलक्षणा मिश्रा जी की एक भावप्रवण कविता “एहसास”। )

☆ कविता – एहसास ☆

इश्क़ है

तो एहसास हैं।

एहसासों की नुमाइश भी

कभी कभी ज़रूरी है।

बयां कर देती ज़ुबान सब कुछ

पर इसकी भी अपनी

कुछ मजबूरी है।

कर देते बयां हम नज़रों से

पर दोनों के दरम्यान

फासले बहुत हैं

बहुत दूरी है।

कभी कभी लगता कि

बोल दूँ सब कुछ

पर कभी कभी लगता कि

खामोशी भी ज़रूरी है।

निकले थे सड़कों पे

तलाशने सुकून,

डर के सन्नाटों से

वापस घर लौटे हैं ।

कभी कभी घर की

चार दिवारें और चौखट ही

सबसे ज़रूरी हैं।

जीत लिया जग सारा

और घर मे रह के जाना

कि दो कमरों की बीच में

मीलों की दूरी है।

 

© सुश्री सुलक्षणा मिश्रा 

संपर्क 5/241, विराम खंड, गोमतीनगर, लखनऊ – 226010 ( उप्र)

मो -9984634777

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥ १.४ ॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.४॥ ☆

प्रत्यासन्ने नभसि दयिताजीवितालम्बनार्थी

जीमूतेन स्वकुशलमयीं हारयिष्यन प्रवृत्तिम।

स प्रत्यग्रैः कुटजकुसुमैः कल्पितार्घाय तस्मै

प्रीतः प्रीतिप्रमुखवचनं स्वागतं व्याजहार॥१.४॥

 

पर धैर्य धारे शुभेच्छुक प्रिया का

कुशल वार्ता भेजने मेघ द्वारा

गिरि मल्लिका के नये पुष्प से पूजकर,

मेघ प्रति बोल, सस्मित निहारा

 

प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 73 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं   “भावना के दोहे । ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 73 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆

देखो अब तुम जिधर भी,

पनप रहा उद्योग।

यंत्रों के निर्माण कर,

लगे कमाने लोग।

 

तरह तरह के बिक रहे,

कितने ही परिधान।

साड़ी में ही हो रहा,

नारी का सम्मान।

 

हिंसा नफरत बैर नहीं,

करो सभी से प्यार।

रिश्तों को समझो अगर,

मिले तभी अधिकार।।

 

पाना है यदि लक्ष्य तो,

खूब करो संधान ।

मिलती है मंजिल अगर,

करो  नहीं अभिमान।।

 

कोरोना के काल में,

कितने हुए अनाथ।

मुश्किल की इस घड़ी में,

रहते कितने  साथ।।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 63 ☆ संतोष के दोहे☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं  “संतोष के दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 63 ☆

☆ संतोष के दोहे  ☆

राजनीति अब आज की, बनी एक उद्योग

मुश्किल से ही छूटता, सत्ता सुख का भोग

 

काम जाल फैला रहे, नव युग के परिधान

विज्ञापन की दौड़ में, नारी  से पहिचान

 

कलियुग में होने लगी, हिंसा की भरमार

सदाचार खोने लगा, हिंसक हुए विचार

 

नव पीढ़ी गर तय करे, अपना जीवन लक्ष्य

बढ़कर पा ले लक्ष्य तब, ऐसा सबका कथ्य

 

सेवा करें अनाथ की, यही नेक है काम

पर हित जो करते सदा, उनका है श्रीधाम

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

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