हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #21 ☆ जरा मुस्कुराइये ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर, अर्थपूर्ण, विचारणीय  एवं भावप्रवण  कविता “जरा मुस्कुराइये”। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 21 ☆ 

☆ जरा मुस्कुराइये ☆ 

फूलों की तरह खिलकें

खुशबू लुटाइये

जिंदगी खूबसूरत है

जरा मुस्कुराइये

जब सुनहरी किरणें चूमती है

शुभ्र हिमखंडो के भाल

आरक्त हो जातें हैं वे

जैसे गोरे गोरे गाल

जब पिघलती है बर्फ

बन जाता है जल

बहती है नदिया

कैसे कल-कल

इस पिघलती बर्फ सा

जरा पिघल जाईये

जिंदगी खूबसूरत है

जरा मुस्कुराइये

इन बहती हवाओं में

कैसी है उमंग

इन झरनों के जल में

कैसी है तरंग

शरद का आगमन

कितना मनोहारी है

बीत गई वर्षा

अब शरद ऋतु की

बारी है

इस सुहावने मौसम को

जरा और सुहावना बनाइयें

जिंदगी खूबसूरत है

जरा मुस्कुराइये

आकाश में जगमगा रही है

वो रंगीन कहकशां

धरती पर गुलाबी ठंड का

छाया है नशा

गुनगुनी रात कोई

बुन रही है कहानी

आगोश में चाँद के

खोई है चाँदनी

चाँद के हिंडोले पर

जरा आप झूल आइये

जिंदगी खूबसूरत है

जरा मुस्कुराइये

 

© श्याम खापर्डे 

भिलाई  05/12/20

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 33 ☆ आव्हान ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी  द्वारा रचित  कविता आव्हान। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 33☆ 

☆ कविता – आव्हान ☆ 

जीवन-पुस्तक बाँचकर,

चल कविता के गाँव.

गौरैया स्वागत करे,

बरगद देगा छाँव.

.

कोयल दे माधुर्य-लय,

देगी पीर जमीन.

काग घटाता मलिनता,

श्रमिक-कृषक क्यों दीन?

.

सोच बदल दे हवा, दे

अरुणचूर सी बाँग.

बीना बात मत तोड़ना,

रे! कूकुर ली टाँग.

.

सभ्य जानवर को करें,

मनुज जंगली तंग.

खून निबल का चूसते,

सबल महा मति मंद.

.

देख-परख कवि सत्य कह,

बन कबीर-रैदास.

मिटा न पाए, न्यून कर

पीडित का संत्रास.

.

श्वान भौंकता, जगाता,

बिना स्वार्थ लख चोर.

तू तो कवि है, मौन क्यों?

लिख-गा उषा अँजोर.

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 32 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 32 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 32) ☆ 

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 32☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

शाम  ख़ामोश  है,

पेड़ों  पे  उजाला  कम  है ..

लौट  आए  हैं  सभी,

पर  एक  परिंदा  कम  है।

 

Evening is somberly silent,

Light is also less on trees

All have returned, but one

Bird  is  less  in  the  flock!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

मुख़्तसर  सा  गुरूर  भी

ज़रूरी  है  जीने  के  लिए

ज़्यादा झुक के मिलो तो दुनिया

पीठ को पायदान बना लेती है

 

Little  bit  of  ego  is

also a must to survive…

If you bend too much,

World makes you a pedestal

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

जो बात…

पी गया था मैं,

वो बात ही…

खा गई मुझे…!

 

Whatever matter

I had digested,

That matter only

consumed  me…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

जब भी तुम मुझे ढूँढना

चाहो, तो  सुन  लो…

मेरी  पसंदीदा  जगहों में,

एक  तुम्हारा  दिल  है…

 

Listen, whenever you’re

desirous of finding me …

Among my most favorite

places, one is your heart..!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ औरतें… ☆ श्री जयेश वर्मा

श्री जयेश कुमार वर्मा

(श्री जयेश कुमार वर्मा जी  बैंक ऑफ़ बरोडा (देना बैंक) से वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। हम अपने पाठकों से आपकी सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ समय समय पर साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता औरतें…।)

☆ कविता  ☆ औरतें… ☆

छू रहीं,

अनन्त नभ, अंतरिक्ष,

दशों दिशाएँ,

 

बढ़ रहा विश्वास,

आत्मसम्मान, उनका,

हर क्षेत्र में,

स्थापित, उत्कृष्ट

आयाम, से,

 

पर

बहुत सी,

छीलती, रात दिन, घास,

लातीं पाताल से पानी,

अब भी, क्यों,

सींचती जाती

मन का रेगिस्तान

उम्र भर…

 

सब यह, जो, उन पर,

अब भी, बीत, रहा,

मेटती खुद, लगन से,

सहतीं, परस्पर,

युगों की नारी पीर,

समाज की हेय, प्रताड़ना,

हो, या,

पुरुष की कुत्सित, भावना…

 

लड़ रहीं,

समय से, समाज से,

वे सब औरतें,

अपनी अपनी, तरह से

कभी, जीतती,

कभी हारती,

अकेली, बन, दुर्गा…

बनें वे दुर्गा…

 

©  जयेश वर्मा

संपर्क :  94 इंद्रपुरी कॉलोनी, ग्वारीघाट रोड, जबलपुर (मध्यप्रदेश)
वर्तमान में – खराड़ी,  पुणे (महाराष्ट्र)
मो 7746001236

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य – ‌अन्नदाता ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है  श्री सूबेदार पाण्डेय जी  की एक भावप्रवण कविता  “अन्नदाता। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य – अन्नदाता

मै‌ किसान ‌अन्नदाता हूँ, इस देश का भाग्य विधाता हूँ।

अपने कठिन परिश्रम से, मै सबकी भूख मिटाता हूँ।

 

वर्षा सर्दी‌ गर्मी सहकर, सब्जी फल फूल उगाता हूँ।

पर लूट‌खसोट के‌ चलते, भइया मै‌ भूखा‌ सो‌ जाता हूँ।

 

कभी आपदा के चलते, हम सब के सपने चूर  हुए।

कर्जे महंगाई के चलते, मरने पे‌ मजबूर हुए।

 

हम सबकी मेहनत  का फल, हर समय बिचौलिया खाता है।

सरकारी ‌राहत का सारा ‌धन, घपलेबाज की जेब में जाता है।

 

बेटी की‌ शादी पढ़ाई की चिंता, हम को खाये जाती‌ है।

रातें आंखों में कटती है, नींद न हमको आती है।

 

अपने छप्पर में मैं बैठा, खाली कोठारें तकता हूँ।

हाथों की लकीरें देख देख, अपनी क़िस्मत मैं पढता‌ हूँ।

 

अंधेरी काली रातों में  ,खाली बर्तन टटोलता हूँ मैं।

कर्जे खर्चे की डायरी के पन्ने, अब बार बार खोलता हूँ मैं।

 

अपने खेत में बैठा हूँ, पशुओं की रखवाली करता हूँ।

फसल चर रहे आवारा पशु, कुछ भी कहने से डरता हूँ।

 

आशा और निराशा ‌से, जब दिल मेरा घबराता है।

तब भूतकाल भविष्य बन‌कर, मुझको रोज डराता है।

 

फिर‌ भी उम्मीदों के दामन में, रंगीन नजारे दिखते हैं।

जीवन की अंधेरी रातों में, चांद सितारे दिखते हैं।

 

अब सूनी-सूनी आंखों से, उम्मीद की राहें तकता हूँ।

खेत की मेड़ पे बैठा हूँ, पगला दीवाना दिखता हूँ।

 

मैं नील‌कंठ बन बैठ गया, पीकर‌ के‌ विष का प्याला।

अपनी व्यथा‌ कहें किससे, है कौन उसे सुनने वाला।

 

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ सन्दर्भ: एकता शक्ति ☆ प्रातः वंदन ☆ श्री अमरेंद्र नारायण

श्री अमरेन्द्र नारायण 

(ई-अभिव्यक्ति पर एक अभियान की तरह समय-समय पर  “संदर्भ: एकता शक्ति” के अंतर्गत चुनिंदा रचनाएँ पाठकों से साझा करते रहते हैं। हमारा आग्रह  है कि इस विषय पर अपनी सकारात्मक एवं सार्थक रचनाएँ प्रेषित करें। आज प्रस्तुत है श्री अमरेन्द्र नारायण जी  की एक  भावप्रवण  कविता “प्रातः वंदन”।)

☆  सन्दर्भ: एकता शक्ति ☆ प्रातः वंदन☆

जब प्रकाश तम के हाथों बंधक बनता

वह अंतराल तो बस विराम का आता है

ऊषा अपना सौंदर्य बिखेरती वसुधा पर

आंगन,गलियों में नवोल्लास छा जाता है।

 

आशा का जो  संदेशा ऊषा लाती है

वह ईश्वर की महिमा का पुलकित वंदन है

शुभ कर्मों से अपनी कृतज्ञता हो अर्पित

वह मानव की कर्मठता का अभिनंदन है!

 

है कहां निराशा का कोई संदेश यहां?

जीवन को उत्सव का आदर दे  जीना है

दुःख  और निराशा से लड़ने की है क्षमता

अधिकार मनुज का नहीं निशा ने छीना है!

 

यह निशा भी है सम्मान मनुज के ही श्रम का

श्रम से श्लथ मानव तन थोड़ा आराम करे

नूतन ऊर्जा से भर कर फिर इस धरती का

सम्मान करे, आशीष मांग निज काम करे।

 

इसलिये नवल उत्साह भरे प्रातःवंदन

स्वर्णिम किरणें संदेश प्रेरणा लाती हैं

चाहे कितनी भी कठिन समस्या आये पर

वह समाधान की ओर हमें ले जाती हैं।

©  श्री अमरेन्द्र नारायण 

शुभा आशर्वाद, १०५५ रिज़ रोड, साउथ सिविल लाइन्स,जबलपुर ४८२००१ मध्य प्रदेश

दूरभाष ९४२५८०७२००,ई मेल amarnar @gmail.com

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 19 ☆ जबलपुर हमारा ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  की  संस्कारधानी जबलपुर शहर पर आधारित एक भावप्रवण कविता  “जबलपुर हमारा “।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।  ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 19 ☆

☆  जबलपुर हमारा 

रेवा तट पर बसा जबलपुर, शहर हमारा हमको प्यारा

इसकी मन भावन माटी ने, हमें सवारा हमें निखारा

 

इसके वातावरण, वायु, जल, नभ ने नित उत्साह बढाये

इसके शिष्ट समाज सरल, सदा नेह ममता बरसाये

 

दृश्य देख इसके बातें सुन, मन ने नये नये स्वप्न सजाये

इससे प्राप्त विशेष ज्ञान ने, पावन विविध विचार जगाये

 

मन भरती आल्हाद अनोखे, इसकी मंगल परंपराये

इसकी धार्मिक भावनाओ ने, आराधन के गीत गुंजाये

 

इससे ही बन सका आज मैं, जो हूं साहित्यिक अनुरागी

संवेदी मन ने ज्ञानार्जन की, उत्कंठा, प्रीति न त्यागी

 

इसकी हर हलचल में दिखता, मुझको एक संसार सुहाना

श्वेत श्याम चट्टानो में है, भरा प्रकृति का सुखद खजाना

 

दूर-दूर फैला दिखता है, विध्यांचल का हरित वनाचंल

छाया देता, प्यास बुझाता, सबकी मॉ रेवा का आंचल

 

जहॉ ज्ञान वैराग्य भक्ति तप, रत है सब शोभित तट वासी

मन वांछित सब सुख सुविधाये, पाते हैं साधू सन्यासी

 

शिक्षा और रक्षा के स्थित, कई एक संस्थान उजागर

धर्म प्राण हैं अधिक निवासी, रेल वायु सुविधाये यहाँ पर

 

लगता मेरा शहर मुझे प्रिय, अनुपम सब नगरो से ज्यादा

परिवारी स्वजनो से ज्यादा, ममतामय संबंध हमारा

 

इसकी स्वात्विक रूचि ने ही, संपोषित की मम जीवन धारा

यह ही है पालक पोषक,  पूज्य धरा प्रिय नगर हमारा

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ प्रसव ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ प्रसव ☆

सारी रात

बदलता हूँ करवट

अजीब बेचैनी से,

जैसे काटती है रात

प्रसव वेदना से

कराहती कोई स्त्री,

लगता है,

प्रसव की भोर आएगी

कुछ नया लिखा जाएगी!

©  संजय भारद्वाज 

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 72 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं   “भावना के दोहे । ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 72 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆

अन्न वस्त्र भी चाहिये,

थोड़ी बहुत जमीन ।

समाधान खोजें सभी,

किस पर करें यकीन ।।

 

कृषक देश की आन है,

कृषक देश की जान।

सबको वो ही पालता,

करें कृषक का मान।।

 

धरती सुत की आज तुम,

सुनो इतनी पुकार।

अनुशासन की बेड़ियां,

नहीं हमें स्वीकार।।

 

पास उनके समय बहुत,

व्यर्थ करें बरबाद।

चौराहे पर जाम है,

किसका करें हिसाब।।

 

राजनीति का शोरगुल

दिखे गलत व्यवहार।

बंद सफल होगा नहीं,

करते रहो प्रचार।।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 62 ☆ संतोष के दोहे☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं  “संतोष के दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 62 ☆

☆ संतोष के दोहे  ☆

अगहन में जलने लगे, नित नव खूब अलाव

प्रियतम से बढ़ने लगा, दिल से प्रेम लगाव

 

खूब उड़ें आकाश में, छोड़े नहीं जमीन

अपने सब बसते यहाँ, सपने यहीं हसीन

 

तन में सिहरन सी लगे, प्रेम पिपासे नैन

जलते प्रेम अलाव, जब,तब आता है चैन

 

खूब सुहानी हो चली, काशी की अब शाम

पावन गंगा आरती, अनुपम है शिवधाम

 

दिल द्रवित जिसका हुआ, देख पराई पीर

सच्चा वह इंसान है, वही धीर गम्भीर

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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