श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(आज दोपहर अचानक व्हाट्सएप्प पर अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी की जबलपुर मेट्रो अस्पताल के आई सी यू से प्राप्त कविता ने निःशब्द कर दिया। “जीवन के सांध्य काल “में “प्रकृति ले लेंगी सौगातें “ लिखने के लिए हृदय से लेखनी तक शब्दों के आने में कितनी वेदना हुई होगी। जिस प्रकार आपकी लेखनी से इस कालजयी कविता की रचना हुई है ,उसी प्रकार ईश्वर से कामना है कि आप कालजयी बन हमारा मार्गदर्शन करें। पुनः हम सभी ईश्वर से आपके शीघ्र स्वस्थ होकर घर आने की कामना करते हैं। )
जबलपुर मेट्रो अस्पताल के ICU. वार्ड से सुरेश तन्मय
☆ तन्मय साहित्य # ☆ जीवन का सांध्यकाल … ☆
जैसे-जैसे दिन बीते, बीतेगी रातें
चमक रहेगी नहीं
विवश, धुँधवाती आंखें
गाल पिचक जाएंगे, मुंह पीला होगा
प्रकृति वापस ले लेगी, सब सौगातें।
तृप्त-अतृप्त वासनाएं, झुर्रियां बनेगी
माथे पर होगी, चिंता की रेखाएं
जीवन का उल्लास,मंद तब हो जाएगा
भय ही भय होगा सम्मुख, दाएं बाएं,
एक एक दिन कल्प समान,लगेगा भारी
नहीं करेंगे कोई, मन की दो बातें
प्रकृति वापस………….।
भयाक्रांत सपने, दिन में भी आएंगे
यौवन के सौंदर्य, विलीन हो जाएंगे
हाथ-पैर कंपित कमजोर,निरर्थक से
अपना भार नहीं, खुद ही ढो पाएंगे,
चारों ओर, पराजय की प्रतिमाओं से
कैसे अपने रूग्ण हृदय को बहलाते
प्रकृति वापस…………….।
बचपन से अबतक के, कृत्य-सुकृत्य सभी
हृदय पटल पर, प्रगट लुप्त होंगे सारे
समझ बनेगी, किन्तु समय नहीं होगा तब
कष्ट अकथ,ज्यों गिनना हो नभ के तारे,
जीवन के सब भले बुरे, मनचाहे खेल
सांच-झूठ को नीर क्षीर कर दिखलाते
प्रकृति वापस……………।
मौसम से निसर्ग का,आत्मीय मेल सदा
इसीलिए मौसम, स्वच्छंद मुक्त रहता
पर जिसने खुद को ही श्रेष्ठ सदा समझा
यौवन की ऋतु बीते, बाद मिले जड़ता,
पतझड़ में बसंत की खुशियां वे पा लेते
जो बसन्त की खुशियां, दूजों को बांटे
प्रकृति वापस……………।
जिसने जीवन को, जी लिया सलीके से
आत्मनिष्ठ हो, जग के खेल किए सारे
अनुरक्ति, तनमन से मोह मिटा जिसका
जिसने बाहर, ढूंढे कोई नहीं सहारे,
अंतिम क्षण तक, वो आनंदित रहता है
जिसके प्राणिमात्र से है, निश्छल नाते
प्रकृति वापस ले लेगी, सब सौगातें।
4 दिसंबर 2020, 2.43 दोपहर
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश
मो. 9893266014
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈