श्री जयेश वर्मा
(श्री जयेश कुमार वर्मा जी बैंक ऑफ़ बरोडा (देना बैंक) से वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। हम अपने पाठकों से आपकी सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ समय समय पर साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर भावप्रवण कविता इतिहास…।)
☆ कविता ☆ इतिहास… ☆
इतिहास, मज़लूमों को
दिवारों में चिनवा देता है,
गलत, सही, नहीँ, देखता,
वज़ीरों का साथ देता है,
क्यों सदियों, हम ही इस देश
में मज़लूम गुलाम रहे,
कहते रहे कि ये आये वो आये,
हम लड़े गुलाम हुए, बकवास है,
वो हमीं हम हमसे,
लडाते रहे, हमको,
यूँ ही, गुलाम रखे,
हम पर किये राज,
सब कुछ, लूट गये,
वो चंद लोग थे, चंद सिक्कों पे,
हम, वतन बेचते रहे,
लोग वही है, मुखोटे नए हैं,
हम फिर भरमाये गये हैं,
धरम बेचो, वतन बेचो,
सनम बेचो, खरीददार, वही हैं,
मगर, इस बार, याद रखना,
चल पड़ा है, वतन, नई बयार में,
लोगों के कारवां के साथ,
अबके, उनके तेवर नये हैं…
© जयेश वर्मा
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