हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #262 ☆ भावना के दोहे – कोहरा☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 262 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे – कोहरा ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

राह चले हम देखते,  कोहरे की मुस्कान।

रात घनी अब दिख रही,  दिनकर से  अंजान।।

*

नाम धूप का है नहीं,   थर थर काँपे लोग।

लहर शीत की पड़ रही,    कुहरे  का संयोग।।

*

सुबह अभी दिखती नहीं,   दिन   में  जैसे  रात।

कुहरे   की   चादर  बड़ी,   ठिठुरा अभी प्रभात।।

*

बढ़ी शीत की लहर है,   कुहरा है घनघोर।

ओढ़ रजाई दुबकते,   हुई  नहीं है भोर।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #244 ☆ मन पर दोहे… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपके – मन पर दोहे आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 244 ☆

☆ मन पर दोहे… ☆ श्री संतोष नेमा ☆

तन का राजा मन सदा, जिसके हैं नवरंग

उसके ही आदेश से, करें काम सब अंग

*

मन टूटा तो टूटता, अंदर का विश्वास

रखें सुद्रण मन को सदा, मन से बंधती आस

*

मन चंचल मन वाबरा, मन की गति अंनत

पल में ही वह तय करे, जमी-गगन का अंत

*

जो अंकुश मन पर रखे, मन पर हो असवार

उसका जीवन है सफल, रखे शुद्ध आचार

*

रखें साथ तन के सदा, मन को भी हम साफ

तभी बढेगा जगत में, स्वयं साख का ग्राफ

*

ध्यान योग अभ्यास से, मन पर रखें लगाम

तभी मिलेगी सफलता, बनते बिगड़े काम

*

मन रमता संसार में, मन माया का दास

मन के घोड़े भागते, लेकर लालच, आस

*

दूर करें मन का तिमिर, मन में भरें उजास

रोशन हों सुख-दुख सभी, अंतस प्रभु का वास

*

मन को निर्मल राखिए, कभी जमे नहिं धूल

मन मैला तो कर्म भी, बनें राह के शूल

*

जीवन के सुख-दुख सभी, मन के हैं आधार

छिपे न मन से कुछ कभी, मन के नैन हजार

*

मन के पीछे भागकर, खोएं मत “संतोष”

तभी मिलेगी सफलता, रखें ज्ञान का कोष

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पसोपेश ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – पसोपेश ? ?

बहुत बोलते हो तुम..

उस रोज़ ज़िंदगी ने कहा था,

मैंने ख़ामोशी ओढ़ ली

और चुप हो गया…,

 

अर्से बाद फिर

किसी मोड़ पर मिली ज़िंदगी,

कहने लगी-

तुम्हारी ख़ामोशी

बतियाती बहुत है…,

 

पसोपेश में हूँ,

कुछ कहूँ या चुप रहूँ…!

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मकर संक्रांति मंगलवार 14 जनवरी 2025 से शिव पुराण का पारायण महाशिवरात्रि तदनुसार बुधवार 26 फरवरी को सम्पन्न होगा 💥

 🕉️ इस वृहद ग्रंथ के लगभग 18 से 20 पृष्ठ दैनिक पढ़ने का क्रम रखें 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 234 ☆ बाल गीत – ज्ञानवर्धक कविता पहेली –  बूझो तो जानें… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मानबाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंतउत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 234 ☆ 

☆ बाल गीत – ज्ञानवर्धक कविता पहेली –  बूझो तो जानें…  ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

दक्षिण ध्रुव की बर्फ में रहता

सागर में खाता गोता।

पंख नहीं वह न उड़ सकता

पक्षी है सबको मोहता।

 *

बर्फ पर चलता अंडे देता

कूद-फाँद वह कर सकता।

सागर की तलहटी चूमे

मित्र मनुज का बन सकता।

 *

दाँत नहीं हैं इसके होते

चोंच से करता सदा शिकार।

आधा धवल , शेष है काला

रोचक है इसका संसार।

 *

कई प्रजाति इसकी होतीं

अन्टार्कटिका है मुख्य स्थान।

बर्फ है इसकी जीवन साथी

पूँछ , पैर है इसकी शान।

 *

दुर्गम क्षेत्र ढके बर्फ से

वहीं बसाता सदा बस्तियाँ।

अधिक ठंड में झुंड में रहता

करता रहता खूब मस्तियाँ ।

 *

पच्चीस अप्रैल दिवस संरक्षण

अंतिम अक्षर उसके इन।

रोचक है पेंगु की दुनिया

जलवायु परिवर्तन से खिन।

 *

उत्तर – पेंगुइन पक्षी।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #262 – कविता – ☆ भ्रम में हैं हम, रचते हैं कविताओं को… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

 

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी द्वारा गीत-नवगीत, बाल कविता, दोहे, हाइकु, लघुकथा आदि विधाओं में सतत लेखन। प्रकाशित कृतियाँ – एक लोकभाषा निमाड़ी काव्य संग्रह 3 हिंदी गीत संग्रह, 2 बाल कविता संग्रह, 1 लघुकथा संग्रह, 1 कारगिल शहीद राजेन्द्र यादव पर खंडकाव्य, तथा 1 दोहा संग्रह सहित 9 साहित्यिक पुस्तकें प्रकाशित। प्रकाशनार्थ पांडुलिपि – गीत व हाइकु संग्रह। विभिन्न साझा संग्रहों सहित पत्र पत्रिकाओं में रचना तथा आकाशवाणी / दूरदर्शन भोपाल से हिंदी एवं लोकभाषा निमाड़ी में प्रकाशन-प्रसारण, संवेदना (पथिकृत मानव सेवा संघ की पत्रिका का संपादन), साहित्य संपादक- रंग संस्कृति त्रैमासिक, भोपाल, 3 वर्ष पूर्व तक साहित्य संपादक- रुचिर संस्कार मासिक, जबलपुर, विशेष—  सन 2017 से महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9th की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में एक लघुकथा ” रात का चौकीदार” सम्मिलित। सम्मान : विद्या वाचस्पति सम्मान, कादम्बिनी सम्मान, कादम्बरी सम्मान, निमाड़ी लोक साहित्य सम्मान एवं लघुकथा यश अर्चन, दोहा रत्न अलंकरण, प्रज्ञा रत्न सम्मान, पद्य कृति पवैया सम्मान, साहित्य भूषण सहित अर्ध शताधिक सम्मान। संप्रति : भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स प्रतिष्ठान भोपाल के नगर प्रशासन विभाग से जनवरी 2010 में सेवा निवृत्ति। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता भ्रम में हैं हम, रचते हैं कविताओं को…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #262 ☆

☆ भ्रम में हैं हम, रचते हैं कविताओं को… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

भ्रम में हैं हम, रचते हैं कविताओं को

सच तो यह है, रचती रही हमें कविताएँ।

*

सदा प्रयोजन रख समक्ष संयोजन किया अक्षरों का

भाव जगत से शब्द लिए, फिर बुनते रहे बुनकरों सा

देखा-सीखा-लिखा लगी जुड़ने

 फिर सँग में कईं विधाएँ

सच तो यह है, रचती रही हमें कविताएँ।

*

जीना सिखा दिया सँग में, जिज्ञासा के वरदान मिले

प्रश्न खड़े करती कविता, उत्तर भी तो इससे ही मिले

सुख-दुख हर्षोल्लास विषाद,

विषमता,जन-मन की विपदाएँ

सच तो यह है, रचती रही हमें कविताएँ।

*

एक नई पहचान इसी से मिली अमूल्य सुनहरी सी

मिली सोच को नई उड़ानें सम्बल बन कर प्रहरी सी

विविध भाव धाराएँ बन कर

 बहती रहती दाएँ-बाएँ

सच तो यह है, रचती रही हमें कविताएँ।

*

खड़े धरातल पर यथार्थ से, परिचय होने रोज लगा

नित्य-अनित्य झूठ-सच, कौन पराया अपना कौन सगा

समताबोध मिला अनुभव से

कैसे सुखमय जीवन पाएँ

सच तो यह है, रचती रही हमें कविताएँ।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 86 ☆ नहीं आए तुम… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “नहीं आए तुम…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 86 ☆ नहीं आए तुम… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

तुम्हारी राह में

आँखें हुईं पत्थर

फिर भी नहीं आए तुम ।

 

तुम्हे मन में

नयन में

बसाया हमने

ढाल शब्दों में

तुमको गीत

सा गाया हमने

 

हृदय की कामनाएँ

रह गईं अक्सर

ख़ाली भर न पाए तुम ।

 

सदा उन्मुक्त हो

नभ में

उड़े बनकर के पाखी

क्षितिज के पार

घर की चाह

लेकर जिए एकाकी

 

हवा पर तैरते

निकले ज़रा छूकर

घटा से छा गए तुम ।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 90 ☆ किस तरह की रोशनी है शहर में… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “किस तरह की रोशनी है शहर में“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 90 ☆

✍ किस तरह की रोशनी है शहर में… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

सबको अपनी ही पड़ी है शहर में

हाय दिल की मुफ़लिसी है शहर में

*

रात पूनम सी कही पर तीरगी

किस तरह की रोशनी है शहर में

*

बिल्डिंगों के साथ फैलीं झोपडीं

साथ दौलत के कमी है शहर में

*

शानो-शौक़त का दिखावा बढ़ गया

सादगी बेहिस हुई है शहर में

*

हर गली में एक मयखाना खुला

मयकशी ही मयकशी है शहर में

*

जुत रहा दिन रात औसत आदमी

यूँ मशीनी ज़िंदगी है शहर में

*

नाम पर तालीम के सब लुट रहे

फीस आफ़त हो रही है शहर में

*

सभ्य वासी बन रहे पर सच यही

नाम की कब आज़ज़ी है शहर में

*

है अरुण सुविधा मयस्सर सब मगर

कब फ़ज़ा इक गाँव सी है शहर में

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 86 – यज्ञ-फल तो आप हैं… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – यज्ञ-फल तो आप हैं।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 86 – यज्ञ-फल तो आप हैं… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

हर जगह चर्चाओं में बस आजकल तो आप हैं

गुनगुना जिसको रहे सब, वह ग़ज़ल तो आप हैं

*

प्रेमसागर, सब पुराणों में सरस वह ग्रन्थ है

मैं प्रवाचक किन्तु चंदन की रहल तो आप हैं

*

हम सरीखे मिटने वाले, होंगे पत्थर और भी 

जिनके काँधों पर तने, कंचन महल तो आप हैं

*

आपकी चंचल अदाओं की बिसातें जादुई 

हारते जिनमें सभी, लेकिन सफल तो आप हैं

*

चाहते थे और भी, पर भाग्य से हमको मिला 

जिन्दगी की साधना का, यज्ञ-फल तो आप हैं

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – शब्द ही शब्द ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – शब्द ही शब्द   ? ?

जंजालों में उलझी

अपनी लघुता पर

जब कभी

लज्जित होता हूँ,

मेरे चारों ओर

उमगने लगते हैं

शब्द ही शब्द,

अपने विराट पर

चकित होता हूँ।

अपनी लघुता जानें, अपना विराट पहचानें।

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 159 – सकल विश्व में शांति हो…☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “सकल विश्व में शांति हो…। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 159 – सकल विश्व में शांति हो… ☆

नया वर्ष मंगल करे, दो हजार पच्चीस।

खुशियों की माला जपें,मिटे दिलों की टीस।।

 *

भारत-भू देती रही, अनुपम यह संदेश।

सकल विश्व में शांति हो, मंगलमय  परिवेश।।

 *

सुख वैभव की कामना, मानव-मन की चाह।

प्रगतिशील जब हम बनें, मिल ही जाती राह।।

 *

सत्य सनातन की विजय, दिखती फिर से आज।

दफन हुए जो निकल कर, उगल रहे हैं राज।।

 *

समृद्धि-मार्ग पर है बढ़ा, भारत अपना देश।

चलने वाला अब नहीं, छल प्रपंच परिवेश।।

 *

महाकुंभ का आगमन, कर गंगा इस्नान।

जात-पात से दूर रह, रख मानवता मान।।

 *

मंगलमय की कामना, हम सब करते आज।

सकल विश्व में हो खुशी, सुखद शांति सरताज।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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