हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 68 – पहले खुद को पाठ पढ़ायें  ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर भावप्रवण रचना  पहले खुद को पाठ पढ़ायें .। )

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य  # 68 ☆

☆ पहले खुद को पाठ पढ़ायें ☆  

 

पर्व दशहरा तमस दहन का

करें सुधार, स्वयं के मन का।

 

पहले खुद को पाठ पढ़ाएं

फिर हम दूजों को समझायें।

 

पर्वोत्सव ये परम्पराएं

यही सीख तो हमें सिखाए।

 

खूब ज्ञान की, बातें कर ली

लिख-लिख कई पोथियाँ भर ली।

 

प्रवचन और उपदेश चले हैं

पर खुद स्वारथ के पुतले हैं।

 

“पर उपदेश कुशल बहुतेरे”

नहीं काम के हैं, ये मेरे।

 

रावण आज, जलेंगे काले

मन में व्यर्थ, भरम ये पाले।

 

कल से वही कृत्य फिर सारे

मिटे नहीं, मन के अंधियारे।।

 

शब्दों की कर रहे जुगाली

कल से फिर खाली के खाली।

 

चलो स्वयं को, पाठ पढ़ायें

रावण मन का आज जलाएं।

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Legislations… ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi Poem  “विधान…”We extend our heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

विधान…

चाँदनी के आँचल से

चाँद को निरखते हैं,

इतने विधानों के साथ

कैसे लिखते हैं..?

सीधी-सादी कहन है मेरी

बिम्ब, प्रतीक,

उपमेय, उपमान

तुमको दिखते हैं..!

☆ Legislations… ☆ 

From Aanchal* of moonlight

You keep viewing the moon…

 

How d’you manage to write

despite so many dogmatic doctrines…

 

Oh! My stories are always simply straightforward…

 

But, the images,

reflections and symbols,

tenors and analogies

are only seen by you..!

 

 *Aanchal… the lap of saree or dupatta

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ कमाल ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ कमाल ☆

नाराज़ हो मुझसे,

उसने पूछा…,

मैं हँस पड़ा,

कमाल देखिए,

वह नाराज़ हो गई मुझसे!

 

# हँसी-खुशी बीते आपका दिन।

©  संजय भारद्वाज 

प्रात: 9.06 बजे, 27.10.20

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 19 ☆ जीवन तो कुछ ऐसे बह गया ☆ श्री प्रह्लाद नारायण माथुर

श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता जीवन तो कुछ ऐसे बह गया) 

 

Amazon India(paperback and Kindle) Link: >>>  मृग  तृष्णा  

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 19 ☆ जीवन तो कुछ ऐसे बह गया 

 

जीवन तो कुछ ऐसे बह गया,

जैसे झरने से बेतहाशा बहता पानी ||

 

कल-कल का शोर ऐसा हुआ,

कभी समझ में नही आयी जिंदगानी ||

 

बारिश का दौर भी अब थम गया,

बहते झरने का जोश भी कुछ कम कम होने लगा ||

 

सरद मौसम भी आ गया,

झरना भी अब बर्फ की मोटी चादर सा जमने लगा ||

 

फिर गर्म हवा कुछ ऐसी चली ,

कल-कल बहता झरना अब बूंद-बूंद को तरसने लगा ||

 

समझ नही पाया तुझे ए जिंदगी,

बचपन और जवानी के बाद अब बुढापा सामने दिखने लगा ||

 

©  प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 55 ☆ बेबसी ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  एक भावप्रवण रचना “बेबसी”। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 55 ☆

☆  बेबसी ☆

 

मालगाड़ी के उन डब्बों को

धीरे-धीरे पीछे की ओर जाते देख रही थी,

बिलकुल वैसे जैसे वो रेंग रहे हों…

 

रेंग तो सभी रहा है-

वो मजदूर, जो दो जून का खाना नहीं जुगाड़ पाते,

वो व्यापारी, जिनका व्यापार ठप्प सा पडा है,

देश की अर्थव्यवस्था, जो रुक सी गयी है,

वो डॉक्टर, जो थक गए हैं अब काम करते-करते-

कहीं भी तो किसी को कोई ऐसा स्टेशन आते नहीं दिखता

जहां बेंच पर लेटकर,

कुछ पल को आराम से पैर पसारकर

सुस्ता लें!

 

कहाँ सोचा था किसी ने कि प्रलय यूँ इस कदर

सारी दुनिया को निष्क्रिय कर देगी?

सब हताश से आसमान की ओर यूँ देख रहे हैं

जैसे कोई मसीहा आएगा और उनको कर देगा रिहा

उनकी सारी मुश्किलों से!

 

चलो, अच्छा ही है,

आदमी अब भी आकाश की ओर देख रहा है,

उसने बायीं ओर पलटकर अपनी आँख बंद नहीं कर ली-

वरना वो मान ही लेता कि मर चुका है वो

और उसे इंतज़ार भी नहीं रहता कि कोई उसे दफना ही दे

या फिर दे दे आग उसकी चिता को!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ दृष्टि ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ दृष्टि ☆

तुम्हारी आँख में भविष्य के सपने हैं।

…मैं आशान्वित हुआ।

 

तुम्हारी आँख में भविष्य का मानचित्र है।

…मैं उत्साहित हुआ।

 

तुम्हारी आँख में भविष्य के लिए संघर्ष और श्रम की ललक है।

…मैं आनंदित हुआ।

 

तुम्हारी आँख में तुम्हारा भविष्य साफ-साफ दिखता है।

…मैं धन्य हुआ।

 

©  संजय भारद्वाज 

7 अगस्त 2020, संध्या 6:13 बजे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिव्यक्ति # 25 ☆ कविता – आजमाइश ☆ हेमन्त बावनकर

हेमन्त बावनकर

(स्वांतःसुखाय लेखन को नियमित स्वरूप देने के प्रयास में इस स्तम्भ के माध्यम से आपसे संवाद भी कर सकूँगा और रचनाएँ भी साझा करने का प्रयास कर सकूँगा।  आज प्रस्तुत है  एक कविता  “आजमाइश”। )  

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अभिव्यक्ति # 25

☆ आजमाइश ☆

 

बचपन से मिली थी

कागज-स्याही की

बेशकीमती अमानत,

अब

कागज सदन में

स्याही चेहरों पे

उड़ाने लगे हैं लोग।

 

बचपन से पढ़ा था

मजहब नहीं सिखाता

आपस में बैर रखना,

अब

किससे बैर रखना है

सिखाने लगे हैं लोग।

 

गांधी के बंदरों में

कलम थामे

यह चौथा कौन है?

अब

उसकी आजमाइश को

आजमाने लगे हैं लोग।

 

बसी है देशभक्ति

हमारी रगों  में जन्म से

फिर क्यों

कौन भक्त, कौन देशभक्त है?

बताने लगे हैं लोग।

 

बेहद मुश्किल है लिखना

अब पैगाम अमन का,

गर लिख दिया

तो खामियाँ

दिखाने लगे हैं लोग।

 

© हेमन्त बावनकर, पुणे 

25 अक्टूबर  2020

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 21 – विदिशा ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत  “विदिशा। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 21– ।। अभिनव गीत ।।

☆ विदिशा

क्यों उदय  गिरि कंदरा में दिप  रहा हो

पुण्यधर्मा संत, विदिशा में अनावृत

खाम बाबा के व्यथित  कवि

 

कहाँ लहराकर  थकी है बेस#

सुलझाती लटों को

कहाँ व्याकुल बेतवा  है देखती

खुुद के तटों  को

 

सैन्य बल के साथ विरमित

थे अशोक

कहाँ ठहरे थे अमित  जय घोष

के द्युतिमान  शतदल

पर्वतों के शिखर पर

तेजस द्रवित रवि

 

कहाँ ध्वनियों ने पवन से

विजयकी सौगात  माँगी

कहाँ अपनी तलहटी से

उर्ध्वगामी थी  लुहाँगी€

 

कहाँ अपनी बाँह पर लेकर

सहज ही

राज्य का अनिवार्य  पौरुष  जो अयाचित

सम्पदा के यज्ञ को देता रहा  हवि

 

शांत शुंगों की वही नीहारिका  यह

तनी है इतिहास के होंठों अकेली

क्षिप्र है पर बहुत                          गहरेतकअनिश्चित

देश की जागृत अतीती यह पहेली

 

हरतरफ स्तब्ध  है वातावरण  तो

सरल मातुल    संघमित्रा के अनोखे

देखते पाषाण में क्या स्वयं  की छवि

 

000

 

#बेस=वेतवा  से संगम करने वाली नदी

€ लुहांगी =विदिशा की एक प्रस्तर  पहाड़ी

 

© राघवेन्द्र तिवारी

30-12-2018

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ अव्यक्त ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ अव्यक्त ☆

अंतहीन विवाद,

भीषण कलह,

एक-दूसरे के लिए आज से

मर चुका होने की घोषणा,

फिर भी जाने क्या था कि

खिड़की के कोने पर खड़ा वह

भाई को तब तक देखता रहा

जब तक सुरक्षित रूप से

पार नहीं कर ली उसने सड़क,

और ओझल नहीं हो गया आँखों से..,

 

आपसी सहमति से हुए

उनके संबंध विच्छेद पर

अब तो अदालती मोहर भी लग चुकी,

फिर भी जाने क्या है कि

हर रोज वह बनाती है अपने साथ

उसके भी नाम की रोटियाँ

और सुबह आँसुओं के नमक से

लगा-लगा कर खाती है

रोजाना उसे कोसते हुए…,

 

संपत्ति बीच में क्या आई

शत्रु हो गई अपनी ही जाई,

एक खुद का,दो बेटों का

और एक बेटी का हिस्सा करके भी

गुज़रने से पहले

माँ अपना हिस्सा भी कर गई

अबोला किए नाराज़ बेटी के नाम…,

 

“लव यू मॉम…”

“मेड फॉर इच अदर” “फारॅएवर…”

“ग्रेटेस्ट ब्रो!’

सेलेब्रेशन, विशिष्ट संबोधन

और फिर पढ़ता हूँ सुर्खियाँ-

भाई का भाई द्वारा खून,

पति निकला पत्नी का हत्यारा,

बूढ़ी माँ को बेटी ने दिया घर निकाला…,

 

सोचता हूँ

जो अभिव्यक्त नहीं होता था

संभवत: अधिक परिपक्व

अधिक सशक्त होता था!

 

©  संजय भारद्वाज 

( 2 जुलाई 2016, प्रात: 6:30 बजे, पुणे से मुंबई की यात्रा में)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #14 ☆ ऐ मेरे दोस्त ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है।  सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग  स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर रचना “ऐ मेरे दोस्त”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 14 ☆ 

☆ ऐ मेरे दोस्त ☆ 

ऐ मेरे दोस्त

चल कहीं और चले

जहाँ झूठ, पाखंड से

लोग ना जाते हो छले

जहाँ मनमोहक सुगंध हो

समीर बह रहा मंद मंद हो

भ्रमरों की प्रणय लीला हो

मौसम बड़ा रंगीला हो

हर कली, हर फूल में

जहाँ प्यार पले

ऐ मेरे दोस्त —

जहाँ चाँद तारों की

शीतल छाँव हो

दुधिया चाँदनी में

नहाया गांव हो

ताजमहल सा अनूठा पन हो

दो आत्माओं का

पुनर्मिलन हो

शीतल चांदनी में

प्रेम की दिवानगी में

जहाँ दो जिस्म ढले

ऐ मेरे दोस्त–

जहाँ भूख और प्यास बसती हो

जिंदगी मौत से भी सस्ती हो

दर्द, पीड़ा, बेकारी से त्रस्त हो

फिर भी अपनी

गरीबी में मस्त हो

दिलों में ना हो छल कपट

बस जहाँ  हृदय में

सत्य की ज्योत जले

ऐ मेरे दोस्त–

दोस्त,

तू मुझे भगवान ना बना

इन्सान ही रहने दें

जमाने के दिये घाव

हसके सहने दे

लोग कहते है दीवाना

तो कहने दे

दया, करूणा, प्रेम का झरना

यूँ ही बहने दे

क्या खोया, क्या पाया

मत सोच

जहाँ अब जिंदगी की

है शाम ढले

ऐ मेरे दोस्त–

 

© श्याम खापर्डे 

18/10/2020

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़)

मो  9425592588

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