श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं। आप प्रत्येक बुधवार को श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ “तन्मय साहित्य ” में प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर भावप्रवण रचना पहले खुद को पाठ पढ़ायें .। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य # 68 ☆
☆ पहले खुद को पाठ पढ़ायें ☆
पर्व दशहरा तमस दहन का
करें सुधार, स्वयं के मन का।
पहले खुद को पाठ पढ़ाएं
फिर हम दूजों को समझायें।
पर्वोत्सव ये परम्पराएं
यही सीख तो हमें सिखाए।
खूब ज्ञान की, बातें कर ली
लिख-लिख कई पोथियाँ भर ली।
प्रवचन और उपदेश चले हैं
पर खुद स्वारथ के पुतले हैं।
“पर उपदेश कुशल बहुतेरे”
नहीं काम के हैं, ये मेरे।
रावण आज, जलेंगे काले
मन में व्यर्थ, भरम ये पाले।
कल से वही कृत्य फिर सारे
मिटे नहीं, मन के अंधियारे।।
शब्दों की कर रहे जुगाली
कल से फिर खाली के खाली।
चलो स्वयं को, पाठ पढ़ायें
रावण मन का आज जलाएं।
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश
मो. 9893266014
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈