श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं। आप प्रत्येक बुधवार को श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ “तन्मय साहित्य ” में प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर भावप्रवण रचना घी निकालना है तो…। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य # 65 ☆
☆ घी निकालना है तो… ☆
घी निकालना है तो प्यारे
उंगली टेढ़ी कर
या फिर श्री चरणों में उनके
अपना मस्तक धर।
नब्ज पकड़ कर इनकी
जमकर अपनी बात बता
चाहे तो पहले इसके
ले, जी भर इन्हें सता,
कुछ पिघलेगा, किंतु
दिखाएगा कुछ और असर
घी निकालना है तो …….।।
धूर्त चीन सी चालें
और चलेंगे ये बेशर्म
हमको भी ऊर्जस्वित हो
फिर हो जाना है गर्म
रखें पूँछ पर पांव, तभी
हलचल करते अजगर।
घी निकालना है तो……….।।
लंपट, धूर्त स्वार्थ में डूबे
इनका क्या है मोल
रहे बदलते सदा देश का
ये इतिहास भूगोल
दहन करें होली पर इनका
या की दशहरे पर।
घी निकालना है………..।।
सीधे-साधे लोगों की
क्या कीमत क्या है तोल
ऊपर से नीचे तक
नीचे से ऊपर तक पोल
किंतु जगा अब देश
ढहेंगे इनके छत्र-चँवर।
घी निकालना है तो प्यारे
उंगली टेढ़ी कर।।
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश
मो. 9893266014
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈