हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 10 ☆ वीर शहीद जसवंत सिंह का जीवंत शौर्य ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

( आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  की  1962 के भारत चीन युद्ध की एक वीरगाथा पर आधारित  कविता  वीर शहीद जसवंत सिंह का जीवंत शौर्य  एवं उनसे सम्बंधित आलेख।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।  ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 10☆

☆ वीर शहीद जसवंत सिंह का जीवंत शौर्य ☆

 हैं हिंद की सेना में कई वीर यों महान

सुन जिनका पराक्रम सभी रह जाते हैरान

 

मन में उमड़ता जोश आता खून में उबाल

बांहें फड़कती खींच लेने दुश्मनों की खाल

 

अरुणाचल में जसवंतगढ़ नूरा तांग के पास

ऐसे ही वीर जसवंत का जीवंत है इतिहास

 

उनकी ही याद में वहां उनका मंदिर बना हुआ

जिसमें सुरक्षित आज भी उनका सभी सामान

 

गहरा था उन्हें  देश प्रेम घने आस्था विश्वास

लड़ते रहे वे तीन दिनों तज भूख और प्यास

 

शैला और नूरा बहनों ने दे भोजन किया उपकार

जिससे बढा था हौसला दुश्मन को सके  मार

 

उनने अकेले तीन सौ चीनियों को मारा

पकड़ा उन्हें जब वे  थे थके अकेला बेसहारा

 

यह महावीर योद्धा थे जसवंत सिंह रावत

जो सच में सिंह से निडर थे जैसी है कहावत

 

गढ़वाल देवभूमि के थे वे मूल निवासी

कर्तव्य ऐसा प्यारा कि मरकर भी करें ड्यूटी

वीर वे अब भी हैं वहां अशरीर  निगहवान

भारत महान धन्य जिसे ऐसे वीरों का वरदान

 

देवभूमि उत्तराखंड ना केवल अपने देवी-देवताओं और उनके मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है बल्कि यह अपनी वीरता के लिए भी मशहूर है। देवभूमि का एक ऐसा ही महान वीर था जसवंत सिंह रावत। भारत और चीन के बीच 1962 की लड़ाई में वीर जसवंत सिंह रावत ने चीनी सेना को नाको चने चबवा दिया था। उन्होंने अकेले ही 72 घंटो तक चीनी सेना के 300 जवानों को मौत के घाट उतारा दिया। जानकार कहते हैं कि जसवंत सिंह एक की वीरता का लोहा चीनी सेना ने भी माना था। उनके अदम्य साहस और वीरता के लिए देश और पूरा उत्तराखंड हमेशा उन्हें याद रखेगा। आइए जानते हैं कि कैसे जसवंत सिंह ने तीन दिन तक चीनी सेना की नाक में दम करके रखा।

जसवसंत सिंह रावत हैं कौन

वीर जसवंत सिंह रावत का जन्म 19 अगस्त 1941 को उत्तराखंड के ग्राम-बाड्यूं ,पट्टी-खाटली,ब्लाक-बीरोखाल, जिला-पौड़ी गढ़वाल में हुआ था। आपको बता दें कि जिस समय जसवंत सिंह सेना में भर्ती होने गए थे उस समय उनकी उम्र महज 17 साल थी। जिस कारण उन्हें सेना में भर्ती होने से रोक दिया गया था। इसके बाद फिर उनकी उम्र होने पर ही उन्हें सेना में भर्ती किया गया। वह 1962 की लड़ाई में चीनी सेना के खिलाफ युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए थे।

नूरानांग युद्ध

चीन ने 17 नवंबर 1962 को अरुणाचल प्रदेश पर पर कब्जा करने के लिए चौथा व आखिरी हमला किया। जिस समय चीन ने अरुणाचल प्रदेश पर हमला किया उस समय अरुणाचल की सीमा पर भारतीय सेना की तैनाती नहीं थी। जिसका फायदा उठाकर चीन ने भारत पर हमला बोल दिया। चीन ने अरुणाचल पर हमला कर काफी तबाही मचाई और महात्मा बुद्ध की मूर्ति के हाथों को काटकर ले गए। चीनी सेना ने वहां औरतों की इज्जत भी लूटी।

गढ़वाल राइफल की तैनाती

चीनी सेना को रोकने के लिए वहां गढ़वाल रायफल की 4ह्लद्ध बटालियन को वहां भेजा गया। वीर जसवंत सिंह रावत इस बटालियन के एक सिपाही थ, लेकिन सेना के जवानों के पास चीनी सेना का भरपूर जवाब देने के लिए पर्याप्त हथियार और गोला बारूद उपलब्ध नहीं था। जिस कारण चीनी सेना अरुणाचल से सेना के जवानों को वापस बुलाने का फैसला किया गया। सरकार के आदेश के बाद पूरी गढ़वाल बटालियन वापस लौट आई। लेकिन गढ़वाल राइफल के तीन जवान रायफल मैन जसवंत सिंह रावत, लांस नाइक त्रिलोक सिंह नेगी, रायफल मैन गोपाल सिंह गुसाईं वापस नहीं लौटे। वीर जसवंत सिंह ने अपने दोनों साथियों लांस नाइक त्रिलोक सिंह नेगी और रायफल मैन गोपाल सिंह गुसाईं को वापस भेज दिया और खुद नूरानांग की पोस्ट पर तैनात होकर चीनी सेना को आगे बढऩे से रोकने का फैसला किया।

जसवसंत सिंह रावत ने 300 चीनी सैनिकों को उतारा मौत के घाट

वीर जसवंत सिंह ने अकेले ही 72 घंटो तक लड़ते हुए चीनी सेना के 300 जवानों को मौत के घाट उतार दिया और किसी को भी आगे नहीं बढऩे दिया गया। वीर जसवंत सिंह जितने बहादुर थे उतने ही वह चालाक भी थे। उन्होंने अपनी चतुराई और बहादुरी के बल पर चीनी सेना को 3 घंटों तक रोके रखा। इसके लिए उन्होंने पोस्ट की अलग अलग जगहों पर रायफल तैनात कर दी थी और कुछ इस तरह से फायरिंग कर रहे थे जिससे की चीन की सेना को लगा यहां एक अकेला जवान नहीं बल्कि पूरी की पूरी बटालियन मौजूद हैं।

शैला और नूरा ने क्या किया

इस बीच रावत के लिए खाने पीने का सामान और उनकी रसद आपूर्ति वहां की दो बहनों शैला और नूरा ने की जिनकी शहादत को भी कम नहीं आंका जा सकता। 72 घंटे तक चीन की सेना ये नहीं समझ पाई की उनके साथ लडऩे वाला एक अकेला सैनिक है। फिर 3 दिन के बाद जब नूरा को चीनी सैनिको ने पकड़ दिया तो उन्होंने इधर से रसद आपूर्ति करने वाली शैला पर ग्रेनेड से हमला किया और वीरांगना शैला शहीद हो गई। उसके बाद उन्होंने नूरा को भी मार दिया दिया और इनकी इतनी बड़ी शहादत को हमेशा के लिए जिंदा रखने के लिए आज भी नूरनाग में भारत की अंतिम सीमा पर दो पहाडिय़ा है जिनको नूरा और शैला के नाम से जाना जाता है।

चीनी सेना ने जसवंत सिंह की बहादुरी को किया सम्मानित

नूरा और शैला की शहादत के बाद वीर जसवंत सिंह को मिलने वाली रसद आपर्ति कमजोर पडऩे लगी। बावजूद इसके वह दुश्मनों से लड़ते रहे, लेकिन रसद आपूर्ति की कमी के चलते आखिरकार उन्होंने 17 नवम्बर 1962 को खुद को गोली मार ली। चीनी सैनिको को जब पता चला कि वह 3 दिन से एक ही सिपाही के साथ लड़ रहे थे तो वो भी हैरान रह गए। चीनी सेना जसवंत सिंह रावत का सर काटकर अपने देश ले गई। अंत में 20 नवम्बर 1962 को युद्ध विराम की घोषणा कर दी गई। जिसके बाद चीनी कमांडर ने जसवंत सिंह की इस साहसिक बहादुरी को देखते हुए न सिर्फ जसवंत सिंह का शीश वापस लौटाया बल्कि सम्मान स्वरुप एक कांस की बनी हुई उनकी मूर्ति भी भेंट की।

वीर जसवंत के नाम का स्मारक

जसवंत सिंह ने जिस जगह पर चीनी सेना के दांत खट्टे किए थे उस जगह पर उनके नाम का एक मंदिर बनाया गया है। जहां पर चीनी कमांडर द्वारा सौंपी गई जसवंत सिंह की मूर्ति को भी रखा गया है। भारतीय सेना का हर जवान उनको शीश झुकाने के बाद ड्यूटी करता है। वहां तैनात कई जवानों का कहना है कि जब भी कोई जवान ड्यूटी पर सोता है जसवंत सिंह रावत उनको थप्पड़ मारकर जगाते हैं। मानो वह उनके कानों में कहते हो की मुस्तैदी से अपनी ड्यूटी करो क्योंकि देश की सुरक्षा तुम्हारे हाथो में है।

इनके नाम से नुरानांग में जसवंत गढ़ के नाम से एक जगह भी है। जहां इनका बहुत बड़ा स्मारक है। बता दें कि इस स्मारक में उनकी हर चीज को संभाल कर रखा गया है। आपको जानकर हैरानी होगी कि आज भी यहां इनके कपड़ो पर रोज प्रेस की जाती है। साथ ही रोज इनके बूटो पर पोलिश भी की जाती है। यही नहीं रोज सुबह दिन और रात की भोजन की पहली थाली जसवंत सिंह रावत जी को ही परोसी जाती ह। जसवंत सिंह रावत जी  भारतीय सेना के ऐसे पहले जवान है जिनको मरणोपरांत भी पदोन्नति दी जाती है। रायफल मैन जसवंत सिंह आज कैप्टेन की पोस्ट पर हैं और उनके परिवार वालो को उनकी पूरी सैलरी दी जाती है।

 

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ असमंजस ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ असमंजस

कविताएँ

लिखने-पढ़ने का

दौर आजकल

खत्म हो गया क्या…?

नहीं तो,

पर तुम्हें ऐसा क्यों लगा…?

फिर रोज़ाना

ये अनगिनत

विकृत,

वीभत्स,

नृशंस काण्ड

कैसे हो रहे हैं?

 

©  संजय भारद्वाज 

कामना करता हूँ कि 17 जून 2013 को लिखी यह रचना जाने सदा-सर्वदा के लिए अप्रासंगिक हो जाए।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry (भावानुवाद) ☆ कितने ईश्वर रह जाओगे?/How much of a God will you remain…? – सुश्री निर्देश निधि ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present an English Version of Ms. Nirdesh Nidhi’s  Classical Poem कितने ईश्वर रह जाओगे? with title  “How much of a God will you remain…?” .  We extend our heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this beautiful translation.)

आपसे अनुरोध है कि आप इस रचना को हिंदी और अंग्रेज़ी में  आत्मसात करें। इस कविता को अपने प्रबुद्ध मित्र पाठकों को पढ़ने के लिए प्रेरित करें और उनकी प्रतिक्रिया से  इस कविता की मूल लेखिका सुश्री निर्देश निधि जी एवं अनुवादक कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी को अवश्य अवगत कराएँ.

सुश्री निर्देश निधि

 ☆ कितने ईश्वर रह जाओगे? ☆ 

तुम मेरे पिता,

मेरे ईश्वर

पर मुझ धरा पुत्र को

वसीयत नहीं की ज़रा सी संवेदना

फिर भी तुम मेरे पिता

मेरे ईश्वर

 

गेहूं की खरे स्वर्ण सी पकी बालियों पर,

हर बरस गिराते हो बरसात का पारा

भोगते नहीं पीड़ा मेरी तुम ज़रा

फिर भी तो तुम मेरे पिता,

मेरे ईश्वर

 

फसल के कटते ही

उड़ेलने लगते हो आग आसमान से

ताकि बादलों की फूट पड़े नकसीर

और जड़ देते हो मेरे पैरों में गरीबी की अतिरिक्त नाल

फिर भी तुम मेरे पिता,

मेरे ईश्वर

 

धान की अनबुझ प्यासें जब मांगती हैं पानी

करता हूँ दिन की रात

रात को देता हूँ चकमा दिन का

रखता हूँ कैद, धैर्य मुट्ठियों में

पर तुम खुलवा देते हो जबरन

मेरी बंधी मुट्ठियां

अकाल की छड़ से

फिर भी तुम मेरे पिता

मेरे ईश्वर

 

फिर – फिर फेंट देते हो मेरी कड़ी मेहनतें

दलदल सी लिजलिजी कीच में

नहीं देते हो महादान किसी एक बूंद का

फिर भी तुम मेरे पिता

मेरे ईश्वर

 

अगर मैं मानना छोड़ दूँ तुम्हें,

और मुझे देख – देख सब भी

ज़रा सोचना कि तुम

कितने पिता

कितने ईश्वर रह जाओगे ?

 

© निर्देश निधि

संपर्क – निर्देश निधि , द्वारा – डॉ प्रमोद निधि , विद्या भवन , कचहरी रोड , बुलंदशहर , (उप्र) पिन – 203001

ईमेल – [email protected]

 

☆ How much of a God will you remain…? ☆

You are the father

O’ God…!,

But you haven’t bequeathed any will to your son,

Still you’re my father…

O’ my beloved God…!

 

On pure golden earrings

of wheat,

Every year you shower the

mercury droplets

of rains

But you never endure

my sufferings,

Still you’re my father

O’ my  loving God…!

 

At the time of harvest

You keep pouring infernos

from the sky

So that cloudbursts

befall on us

But you tie fetters

to my feet

Worsening my

poverty stricken state

Still you  remain my father

O’ my  dear God…!

 

When the unquenchable

thirst of paddy longs for water

I toil day and night

with dogged perseverance

I keep my fists

clenched patiently

But you open them forcibly

with the iron rod of famine

Still you’re my father

My only God…!

 

Again, You render my hard work futile

Like in the quagmire of swamp

You never give

an alm of droplet

neverthless you remain my father

My  loving God…!

 

What if I stop believing in you,

If I disown you

And seeing me do this

Others start following me

Just think

How much of father

How much of  a God

will you  remain…!

 

© Captain (IN) Pravin Raghuanshi, NM (Retd),

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गांधीजी के जन्मोत्सव पर विशेष – गांधी-150 (गांधी वादी मित्रों का आत्म चिंतन) ☆ श्री राकेश कुमार पालीवाल

श्री राकेश कुमार पालीवाल

(सुप्रसिद्ध गांधीवादी चिंतक श्री राकेश कुमार पालीवाल जी  वर्तमान में  प्रधान मुख्या आयकर आयुक्त ( प्रिंसिपल  चीफ कमिश्नर) मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के पद पर पदासीन हैं। गांधीवादी चिंतन के अतिरिक्त कई सुदूरवर्ती आदिवासी ग्रामों को आदर्श गांधीग्राम बनाने में आपका महत्वपूर्ण योगदान है। आपने कई पुस्तकें लिखी हैं जिनमें  ‘कस्तूरबा और गाँधी की चार्जशीट’ तथा ‘गांधी : जीवन और विचार’ प्रमुख हैं।

हम आदरणीय श्री राकेश कुमार पालीवाल जी की  फेसबुक वाल से  गांधीजी के जन्मोत्सव पर एक सार्थक  एवं विचारणीय कविता प्रस्तुत कर रहे हैं – गांधी – 150 (गांधी वादी मित्रों का आत्म चिंतन))

☆ गांधीजी के जन्मोत्सव पर विशेष ☆ 

☆ गांधी – 150 (गांधी वादी मित्रों का आत्म चिंतन)  ☆

 

बीत गया गांधी – एक सौ पचास भी

अब दो अक्तूबर दो हजार बीस में

दी जा रही है उसे अंतिम श्रद्धांजलि

 

इसकी शुरुआत में

गांधी वादी संस्थाओं ने

की थी बड़ी बड़ी घोषणाएं

मसलन एक सौ पचास गांवों को

बनाएंगे आदर्श गांधी गांव गांधी के सपनों के

और, और भी न जाने बनाई थी

कितनी भारी भरकम महत्वाकांक्षी योजनाएं

ठीक उसी तरह जैसे बनाते हैं बड़े बड़े घोषणापत्र

राजनीतिक दलों के बडबोले नेतागण

 

पदों की भूल भुलैया में

गांधी की संस्थाओं में जमे लोग

भूल गए हैं सहज सरल गांधी मार्ग

जिसमें कथनी करनी में अंतर नहीं होता

और कहने से पहले किए जाते हैं काम निस्वार्थ

 

गांधीवादी संस्थाओं के पदाधिकारियों को

अब इंतजार रहेगा गांधी एक सौ पचहत्तर का

तब तक बर्फ सा जमे रहना है गांधीवादी संस्थाओं में

भले ही शरीर साथ नहीं दे उम्र के नवें दशक में पहुंचकर

पद से गोंद सा चिपके रहना है हर हालत में हर मौसम में

 

गांधी एक सौ पचहत्तर में बनेंगी

और बड़ी योजनाएं गांधीवादी संस्थाओं में

भले ही उनका अंतिम हस्र भी

वैसा ही होगा जैसा हुआ है

गांधी एक सौ पच्चीस और एक सौ पचास में !

 

© श्री राकेश कुमार पालीवाल

भोपाल

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गांधीजी के जन्मोत्सव पर विशेष – गांधी लौट आया है ☆ श्री संजय भारद्वाज 

श्री संजय भारद्वाज 

गांधीजी को हमारी पीढ़ी ने देखा नहीं। अलबत्ता गांधी-दर्शन और सत्याग्रह का प्रत्यक्ष दर्शन अप्रैल 2011 में अण्णा हजारे के लोकपाल आंदोलन के दौरान हुआ। बाद में आंदोलन के फलित के रूप में राजनीतिक दल बनाने के एक समूह के निर्णय पर सहमति या असहमति हो सकती है। तथापि देश में अभूतपूर्व चेतना और लोकमानस में अण्णा हजारे के रूप में नये गांधी के दर्शन उस समय का सत्य है। 7 अप्रैल 2011 को लिखी इस रचना का पुणे में जुलूस में पोस्टर और बैनर के रूप में भी उपयोग हुआ। यह रचना उस समय बेहद चर्चित रही।

गांधी जयंती पर आँखों देखे गांधी दर्शन को शब्दबद्ध करने का प्रयास है यह कविता। साथ ही महात्मा गांधी को विनम्र श्रद्धांजलि भी।

☆ गांधीजी के जन्मोत्सव पर विशेष ☆

 ☆  गांधी लौट आया है ☆ 

आज पहली बार-

मंत्रालय के आगे

चाय के ठेले पर काम करता अधनंगा

सरकारी गाड़ी देखकर भी अनदेखी कर गया,

अंगूठाछाप मंत्री की अध्यक्षता वाली

शिक्षा सुधार समिति में

शामिल होने से प्राइमरी का शिक्षक मुकर गया,

मृतक का शरीर देने के लिए

रिश्वत मांगता अस्पताल का कर्मचारी

ज़िंदा आदमी से डर गया,

काग़ज़ पर वज़न रखने के खिलाफ

सरकारी दफ्तर के वज़नी बाबू से

अदना-सा आदमी लड़ गया,

सब्जी बेचनेवाली ने भी

पुलिसिया रंगरूट को

मुफ्त सब्जी देने से कर दिया इंकार,

फुटपाथ पर सोनेवाले ने

निर्वाचित गुंडे का

हफ्ता अदा करने को दिया नकार,

न 26 जनवरी, न 15 अगस्त,

झण्डा बेचनेवाले बच्चे का हाथ

झण्डे के आगे सैल्युट की मुद्रा में

खुद-ब-खुद तन गया,

लोक का सिर गर्व से उठा

तंत्र का बेढब बदन डगमग गया,

व्यवस्था सहमी-सहमी, भ्रष्टाचार आशंकित

हवाओं में परिवर्तन के सुभाषित,

कौन है इस बयार का जनक

निडर-निर्भीक चेहरों का सर्जक,

पुनर्जन्म का मिथक

यथार्थ बना जिसके तेज से,

मुनादी करा दो देश में-

गांधी लौट आया है

अन्ना के भेष में।

 

©  संजय भारद्वाज 

7 अप्रैल 2011

☆ संस्थापक- अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गांधीजी के जन्मोत्सव पर विशेष – हे बापू ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

( आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  की  एक  समसामयिककविता कैसा होने लगा अब संसद में व्यवहार? हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।  ) 

☆ गांधीजी के जन्मोत्सव पर विशेष ☆ 

☆ हे बापू ☆

 

हे सत्य अहिंसा आराधक गंभीर विचारक व्याख्याता

हे कर्मवीर कृषकाय वृति क्या ग्रह के सत्याग्रह के उद्गगाता

हे सबल आत्मविश्वासी निर्भय युगदृष्टा युग निर्माता

कर याद तुम्हारी बार-बार आंखें रोती मन भर आता

तुमने दी जग को नई दृष्टि मानव को एक जीवन दर्शन

तुम बने रहे सारे जीवन नई राजनीति के आकर्षण

तुमने की मानव से ममता , पर दुराचार का तिरस्कार

संयमी तपस्वी किया सदा तुमने संशोधन परिष्कार

एक आंधी सी बन आये तुम सारे जग को झकझोर गए

बापू तुम तो भारत ही क्या दुनिया का  रुख मोड़ गए

तुम थे भारत के प्राण तुम्हारी वाणी भारत की वाणी

तुमको पा भारत धन्य हुआ हे संत तत्वदर्शी ज्ञानी

कुछ समझ ना पाए लोग कि तुम थे मानव या अवतारी

जो भी थे पर यह तो सच है तुम हो पूजा के अधिकारी

तुम नवल शक्ति लेकर आए आजादी देकर चले गए

सब रहे देखते ठगे हुए मानो जादू से हों छले गए

तुम तो दे गए वरदान मगर हमने कि तुमसे नादानी

है अभी सीखना बहुत हमें हम जो अज्ञानी अभिमानी

है ऋणी तुम्हारी यह दुनिया जिसको तुमने पथ दिखलाया

जिसको थी ममता सिखलाई बन्धुत्व प्रेम था सिखलाया

करती है बापू याद तुम्हें हर रोज तुम्हारी वह वाणी

जो आग बुझाकर चंदन लेप  लगा जाती थी कल्याणी

हम क्षमा प्रार्थी अभिलाषी तव कृपा करो हे सिद्धकाम

हैं विनत तुम्हारे चरणों में शत-शत वंदन शत-शत प्रणाम

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 63 ☆ गांधीजी के जन्मोत्सव पर विशेष – दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  महात्मा गाँधी जी के जन्मदिवस पर “गांधी जी के संदर्भ  – दोहे । ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 63– साहित्य निकुंज ☆

☆ गांधीजी के जन्मोत्सव पर विशेष  – दोहे ☆

 

बलिदानों के बाद ही, आया नवल विहान।

तिमिर पाश को चीरकर, निकला हिंदुस्तान।

*

संत महात्मा आदमी, राजा रंक फकीर।

गांधी जी के रूप में, पाई एक नजीर।।

*

 आने वाली पीढ़ियाँ, भले करें संदेह ।

किंतु कभी यह देश था, गांधीजी का गेह ।

*

बापू, गांधी, महात्मा, जन के मुक्ति मुकाम।

मुक्ति मंत्र तुमने दिया, तुमको विनत प्रणाम।

*

देश कहाँ पर जा रहा, जाएगा किस ओर।

आशाओं के धनुष की, खींची हुई है डोर।

*

संकल्पों की साधना, कब होती आसान।

बलिवेदी पर देश की, करो समर्पित प्राण।

*

जय भारत जय हिंद का, गूंज रहा जयघोष

जय बोलो जय मातरम, मन में भरकर जोश।

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गांधीजी के जन्मोत्सव पर विशेष – 2 अक्टूबर ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है।  सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग  स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आज प्रस्तुत है आपकी महात्मा गाँधी जयंती के अवसर पर एक कविता  “2 अक्टूबर ”। इस रचना में व्यक्त विचार साहित्यकार के व्यक्तिगत विचार हैं। )

श्री श्याम खापर्डे जी ने  इस कविता के माध्यम से लॉकडाउन की वर्तमान एवं सामाजिक व्याख्या की है जो विचारणीय है।) 

☆ गांधीजी के जन्मोत्सव पर विशेष – कविता – 2 अक्टूबर  ☆ 

पिछले वर्ष–

2 अक्टूबर के दिन

नेताओं को राजघाट पर

सत्य, अहिंसा और देशप्रेम के प्रति

कसमे खाते देखकर

हमारे एक मित्र ने

हमारे सामने  कसम खाई

नैतिक मूल्यों के प्रति

अपनी वचन बद्धता दोहराई

कि, आज से हम

शुध्द, सात्विक जीवन जियेंगे

इस कलमुंही शराब को

कभी नहीं पीयेंगे

 

इस वर्ष–

जब 2 अक्टूबर को

वह रास्ते मे मिला

उसे देख हमारा हृदय

अंदर तक हिला

वह हाथ में बोतल लिए

घूम रहा था

शराब के नशे में

झूम रहा था

हमे देख वह रुका

अभिवादन के लिए झुका

बोला–

मै वाकई तुम्हारा गुनहगार हूं

कसम तोड़ने को लाचार हूं

 

मैने उन सभी नेताऔं को

साल भर,

हर पल,

उन कसमों को तोड़ते देखा है

असत्य, हिंसा और पाखंड से

इस देश को जोड़ते देखा है

इनके अंदर की इंसानियत

मर गई है

इनके शरीर में शैतान की आत्मा

भर गई है

ये  किसी दिन

अपने स्वार्थ के लिए

बापू के आदर्शो को बेच डालेंगे

 

मित्र ,

आज प्रातःकाल मैने राजघाट पर

उन्हीं नेताऔं को फूल चढ़ाते देखा है

फिर वही कसमें खाते देखा है

तब से मै बड़ी बेचैनी मे जी रहा हूं

यार,

मजबूरी मे कसम तोड़कर

शराब पी रहा हूं .

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़)

मो  9425592588

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 54 ☆ संतोष के दोहे ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं  “संतोष के दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 54☆

☆ संतोष के दोहे ☆

 

गुलाब

होरी मन महुआ हुआ, महका बदन गुलाब

पिया मिलन की लालसा, पल पल पलते ख्वाब

 

प्रफुल्लित

हृदय प्रफुल्लित देख कर, मन माँ का हर्षाय

बच्चों से माँ की खुशी, दुख में बने सहाय

 

कमान

बच्चों के हाथों लगे, अक्सर हाथ कमान

देख बुढ़ापे में यही, जीवन की पहिचान

 

क्वाँर

क्वाँर माह जस गाइये, माँ का कर गुणगान

माँ की महिमा जगत में, अजब निराली शान

 

करार

प्रियतम को देखे बिना, दिल में नहीं करार

जैसे चाँद-चकोर बिन, पाता नहीं करार

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ माझ्या राजा हास रगड ☆ श्री प्रकाश लावंड

 ☆ कवितेचा उत्सव ☆ माझ्या राजा हास रगड ☆ श्री प्रकाश लावंड ☆ 

( ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेते कविवर्य विंदा करंदीकर यांच्या “माझ्या मनात बन दगड” या कवितेचा आधार घेऊन केलेली ही रचना.)

 

हे रान खडकाळ आहे

नांगरटी शिवाय मेहनती शिवाय

पावसा शिवाय खतपाण्या शिवाय

गाड माजणारं हे कुसळ

उचल नांगर लाव फाळ

 

घेऊ नकोस मागं पाय

नांगरून काढ काळी माय

ऐन उन्हाळ्यात लागंल धाप

मुक्या जीवांना ही होईल ताप

तोड झुडपं उचल दगड

 

हा रस्ता साधा सरळ आहे

पण उटी लागली तर करळ आहे

करू नकोस आक्रोश

घशाला पडेल शोष

चाड्यावर मूठ धर

बियाण्याची सोड धार

म्हणून म्हणतो जुंप औत

सांभाळ सांभाळ आपली पत

 

राबणाऱ्या राबशील जरी

कष्टताना दमशील जरी

पेरणाऱ्या पेरशील जरी

धान्याच्या राशी येतील घरी

मान डोलवित म्हणू नको हो हो

आसूड फरकारीत तयार हो

 

हा धंदा सरळ आहे

पिकेल खंडोगणती माल

आढ्यापर्यंत जाईल पोत्यांची ठेल

तुझा माल तुझा तू वाली

तुझ्या कष्टाची लाव बोली

मध्यस्थांचा होऊन काळ

हुसकावून लाव सारे दलाल

कस कंबर लाव लंगोट

झगड आता झगड झगड

यश मिळेल तुला रगड

बळीराजा बन धगड

 

© श्री प्रकाश लावंड

करमाळा जि.सोलापूर.

मोबा 9021497977

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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