हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 9 ☆ कैसा होने लगा अब संसद में व्यवहार? ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

( आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  की एक  समसामयिककविता कैसा होने लगा अब संसद में व्यवहार? हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।  ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 9☆

☆ कैसा होने लगा अब संसद में व्यवहार ?☆

कैसा होने लगा अब संसद में व्यवहार

लगता है संसद नहीं मछली का बाजार

दिन दिन बढ़ता जा रहा गुंडों का अधिकार

नासमझो के सामने समझदार की हार

जहां नियम संयम बिना चलता कारोबार

मारपीट धरपकड़ से होता गलत प्रचार

बल के आगे बुद्धि जब हो जाती लाचार

चल पाएगी किस तरह वहां कोई सरकार

समझ ना आता कुछ  क्यों बदल गया संसार

जहां नेह सद्भाव गुण जो जीवन आधार

खोते जाते मान नित जैसे हो बेकार

तानाशाही जीतती लोकतंत्र की हार

ऐसे में संभव कहां जनता का उद्धार

हरएक सदन में आए दिन मची हुई तकरार

दुख वर्धक होता सदा ही हिंसक व्यवहार

नीति पूर्ण संवाद ही है वास्तविक उपचार

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry (भावानुवाद) ☆ नन्ही गौरैया सी खुद को दीखती हूँ मैं/ I’m Like A Little Sparrow Myself… – सुश्री निर्देश निधि ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present an English Version of Ms. Nirdesh Nidhi’s  Classical Poem नन्ही गौरैया सी खुद को दीखती हूँ मैं with title  “I’m Like A Little Sparrow Myself… ” .  We extend our heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this beautiful translation.)

आपसे अनुरोध है कि आप इस रचना को हिंदी और अंग्रेज़ी में  आत्मसात करें। इस कविता को अपने प्रबुद्ध मित्र पाठकों को पढ़ने के लिए प्रेरित करें और उनकी प्रतिक्रिया से  इस कविता की मूल लेखिका सुश्री निर्देश निधि जी एवं अनुवादक कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी को अवश्य अवगत कराएँ.

सुश्री निर्देश निधि

 ☆ नन्ही गौरैया सी खुद को दीखती हूँ मैं ☆ 

 

बरसों पहले गाँव के जो नाते

मैं भूल आई थी,

बरसों तक जिनपर

उपेक्षा की धूल मैंने खुद उड़ाई थी

इस बड़े शहर में

खोई हुई पहचान के संग, खोजती हूँ मैं

मरकरी रौशनी की सुन्न सरहदों में

गंवई चाँदनी की चादरें क्यों चाहती हूँ मैं

इस शहर के बुझे – बुझे से अलावों में

ऊष्मा अंगार की क्यों ढूंढती हूँ मैं

भीड़ के रेलों ठुंस – ठुंस कर भी

सब के सब चेहरे अपरिचित देखती हूँ मैं

इस शहर की आधुनिक बूढ़ियों में

माँ का झुर्रियों वाला चेहरा सलौना, ढूंढती हूँ मैं

अविराम से इस शहर के तेज़ कदमों के तले से

नीम की छाया तले के विश्राम वाले कुछ पहर खींचती हूँ मैं

ज्ञान के भंडार से इस शहर में

गाँव की ड्यौड़ी से छिटके कुछ निरक्षर से अक्षर

खूब चीन्हती हूँ मैं

तरण तालों के बदन पर थरथराती लड़कियों में

पोखरों की बत्तखेँ देखती हूँ मैं

सुनहरे बाज के सख्त पंजों में फंसी

नन्ही गौरैया सी खुद को दीखती हूँ मैं

आसमानों ने दिये कब पंछियों को आसरे

उम्र के इस आखिरी पड़ाव पर

चलूँ अपनी धरतियों से अब गले मिलती हूँ मैं…

 

© निर्देश निधि

संपर्क – निर्देश निधि , द्वारा – डॉ प्रमोद निधि , विद्या भवन , कचहरी रोड , बुलंदशहर , (उप्र) पिन – 203001

ईमेल – [email protected]

 ☆ I’m Like A Little Sparrow Myself… ☆

 

The age-old, long forgotten

relations of my village,

whom I’d buried myself

with the dust of neglect

I desperately search for

them in this big city,

with a lost identity…

 

In the mercury light,

with its insensitive limits

I keep seeking the

sheets of moonlight

of my rustic village…

 

In this town’s

blown-out bonfire

I do keep seeking

hot embers…

In the crowded

surge of humanity

I keep seeing only

the unfamiliar faces…

 

Among the stylish

gammers of this city

I keep searching for

my adorable

mother’s wrinkled face…

 

In midst of ever ceaseless,

fast-paced life of the city

I keep longing for the cool

shadow of my neem tree…

 

In this city, replete with

overflowing knowledge,

I do recognize the

unschooled characters

of my village

strewn across all-over…

 

In the bunch of damsels,

jiving rhythmically

at the glitzy floor

of swimming pools,

I envision the ducks

of rustic ponds…

 

Clutched in the

golden eagle’s talons

I see myself as a

hapless little sparrow…

But then,

when did sky ever

give shelter to the birds…

 

At this terminal stage of life

It’s the time for me to

nostalgically embrace

my own land…!

 

© Captain (IN) Pravin Raghuanshi, NM (Retd),

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ पराकाष्ठा ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

पुनर्पाठ – 

☆ संजय दृष्टि  ☆ पराकाष्ठा

 

अच्छा हुआ

नहीं रची गई

और छूट गई

एक कविता,

कविता होती है

आदमी का अपना आप

छूटी रचना के विरह में

आदमी करने लगता है

खुद से संवाद,

सारी प्रक्रिया में

महत्त्वपूर्ण है

मुखौटों का गलन

कविता से मिलन

और उत्कर्ष है

आदमी का

शनैः-शनैः

खुद कविता होते जाना,

मुझे लगता है

आदमी का कविता हो जाना

आदमियत की पराकाष्ठा है!

 

©  संजय भारद्वाज 

(सोमवार दि. 30 .05 .2016, संध्या 7:15 बजे )

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 62 ☆ मेघ ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं आपका एक भावप्रवण गीत  “मेघ । ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 62 – साहित्य निकुंज ☆

☆ गीत – मेघ ☆

मेघा छाए काले काले

क्यों नहीं बरस जाते हो।

हर पल वो तो प्यास बुझाते।

क्यों नहीं दरस दिखाते हो।

मेघा..

 

उमड़ घुमड़ कर आते वे तो

सबकी खुशियां लाते है।

उदास किसान करते दुआएं

गीत बारिश के गाते है।

मेघा…

 

रस्ता देखे हम भी इनका

गरज गरज के जाते हो।

कब आओगे तरसे नयना

दुख ही दुख दे जाते हो।

मेघा..

 

ताल तलैया झील भी सूखी

नदिया सूखी जाती है।

नहीं बची है इनकी सांसे

क्यों नहीं  बरस  तुम जाते हो।

मेघा..

 

आस लगाए कब से बैठे

पानी कब बरसाओगे।

धरती को तर्पण कर दो

आकार कब हर्षाओगे।

मेघा छाए….

 

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 53 ☆ संतोष के दोहे ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं  “संतोष के दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 53☆

☆ संतोष के दोहे ☆

 

चिंतन पहले सब करें, बाद करें सब काम

तभी सफलता भी मिले, कभी न हों नाकाम

 

झूम उठा मन देख कर, निरखि नियति का रूप

उत्सव सा मौसम लगे, नित नव रंग स्वरूप

 

गली बगीचों में दिखें, नव युगलों की भीर

अब विस्मय क्या कीजिये, रखिये बस मन धीर

 

बिना चाह के हमें खुद, मिलता मान यथेष्ट

कर्मों की खातिर सदा, रहिये तनिक सचेष्ट

 

राह ताकती कौमुदी, पावस पूनम रात

पाकर मधु वो खिल उठी, पुलकित सब जज्बात

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ राष्ट्रकवि दिनकर स्मृति विशेष – साहित्य के सूर्य दिनकर ☆ श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी” जी  विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी  एवं दूरदर्शन में  सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है। आज प्रस्तुत है श्रीमती  हेमलता मिश्रा जी  की  राष्ट्रकवि दिनकर  जी की स्मृति में  विशेष रचना – साहित्य के सूर्य दिनकर)

☆ राष्ट्रकवि दिनकर स्मृति विशेष – साहित्य के सूर्य दिनकर ☆   

दिनकरजी की प्रसिद्ध पंक्तियां

क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो

उसको क्या जो दंत हीन विषरहित विनीत सरल हो।।

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी को समर्पित मेरी चंद पंक्तियाँ

 

साहित्य के सूरज थे दिनकर नामधारी

रामधारी सिंह सिंह को भी मात करे थे

जंग छेडी़ कविता से जागरूकता फैलाई

देशभक्ति की मिसाल बने रचनाओं से थे

रेणुका की हुंकार से क्रांति का बिगुल फूँका

राष्ट्र कवि का वीरासन साहित्य-उद्गारक थे

पुत्र थे माँ धरती के कृषक के घर जन्मे

पढे लिखे कई पद औ पद्मविभूषण पाए थे

पुरस्कार ज्ञानपीठ पाया उर्वशी के लिए

साहित्य चूड़ामणि से वे सम्मानित हुए थे

रश्मि रथी के ये रथी कुरुक्षेत्र में न लडे़

कविता गंगा से वीर रस  प्रवाह किये थे

वीर को ही शोभती है दया क्षमा गुण कहा

भुजंग  भी वीर यदि परितोष क्षमा के थे

© हेमलता मिश्र “मानवी ” 

नागपुर, महाराष्ट्र 440010

(मनहरण घनाक्षरी)

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ राष्ट्रकवि दिनकर स्मृति विशेष –  ओ राष्ट्रकवि, हुँकार भरो  ☆ श्री अमरेंद्र नारायण

श्री अमरेंद्र नारायण

(आज प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं  देश की एकता अखण्डता के लिए समर्पित व्यक्तित्व श्री अमरेंद्र नारायण जी की राष्ट्रकवि  दिनकर जी की स्मृति में  एक भावप्रवण कविता ओ राष्ट्रकवि, हुँकार भरो )

☆ राष्ट्रकवि दिनकर स्मृति विशेष –  ओ राष्ट्रकवि, हुँकार भरो  

 

ओ राष्ट्रकवि, बुझती जाती चिनगारी है

हुँकार भरो, अब तो हुँकार की बारी है

 

अब सात  नहीं,साठोत्तर पन्ने उलट गए

समर शेष ही  नहीं,  जटिल होता जाता

जाने कब की मिट गयी आस शुभ उस दिन की

अब गहन निराशा से जन मानस भर जाता

 

जो सपना देखा था माता के बेटों ने

वह सपना ही रह गया देश के नयनों में

आदर्शों के पौधे तो कब के सूख गए

उनकी परिभाषा उड़ी समय के डैनों में

 

अपनी चिंता में लिप्त, व्यस्त  सम्पूर्ण  तंत्र

आगे बढ़ कर हम किसको दोषी ठहराएँ?

परिवेश समूचा निरुत्साह कहीं पर बेबस

किस से मंदिर की दीपशिखा हम जलवायें ?

 

क्या होगा उन बुझती आँखों के सपनों का

क्या होगा शैशव के खिलते उन फूलों का?

क्या होगा उन सूखी जाती धाराओं का?

क्या होगा उन विश्वास -आस के कूलों का?

 

यहाँ भूख गरीबी ख़त्म नहीं है हो पाई

राष्ट्र द्रोही उन्मुक्त रम्भाते  चलते हैं

जिन हाथों में पतवार देश की नौका की

रत्नाकर का वे कोष खुरचते रहते हैं

 

कोई संचय में है दिवस और निशि लिप्त ,व्यस्त

कोई  लूट रहा है राष्ट्र -सम्पदा  मुक्त हस्त

सीधे सच्चे सब देख रहे होकर तटस्थ

सहते जाते चुप-चाप और भयभीत त्रस्त

 

ओ राष्ट्रकवि तुमने तो कहा था उसी समय

है समर शेष, अब फिर उसको दुहराओ हे

जो हैं तटस्थ उनका अपराध करो निश्चित

हुंकार करो, हुंकार ज्योति बरसाओ हे

 

वह ज्योति जो अब भूख गरीबी दूर करे

वह ज्योति जो तोड़े रूढ़ि की  जंजीरें

वह ज्योति जो लाये समाज में समरसता

ज्योति जो खींचे नव भारत की तस्वीरें

 

अब भी अगाध   शक्ति है भारत के उर में

जागे  तो वह स्वर्णिम विहान ला  सकती है

संकल्प अगर दृढ़  हो तो नभ से खींच -खींच

गंगा की धारा अवनी तक ला सकती है

 

इसलिए चुनौती दो भारत की मूर्छा को

आलस्य और  इस हीन भाव को फटकारो

फिर एक बार हुंकार भरो प्यारे कविवर

सोई  उर्जा को राष्ट्रकवि फिर  ललकारो !

 

©  श्री अमरेन्द्र नारायण 

२७ अगस्त २०२०

शुभा आशर्वाद, १०५५ रिज़ रोड, साउथ सिविल लाइन्स,जबलपुर ४८२००१ मध्य प्रदेश

दूरभाष ९४२५८०७२००,ई मेल amarnar @gmail.com

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ स्त्रैण ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ स्त्रैण

दायित्व की

सांकलों से बांधकर

स्थितियों के कुंदों और

बटों से मारते रहे वे,

विवशता के दरवाज़े

की ओट में

असहमति के जूते तले

कुचलते रहे वे,

जाने क्या है,

बार-बार

उठ खड़ी हुई,

मेरी जिजीविषा,

हर बार

स्त्री सिद्ध हुई!

 

©  संजय भारद्वाज 

(आगामी कविता संग्रह ‘वह’ से एक कविता)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी के हाइबन# 64 – हाइबन – तोरणद्वार ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी के हाइबन ”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है एक हाइबन   “तोरणद्वार। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी के हाइबन  # 64 ☆

☆ तोरणद्वार ☆

खोर ग्राम स्थित बिरला सीमेंट फैक्ट्री तहसील-जावद, जिला- नीमच के पास0 ग्रेनाइट पत्थर पर नक्काशीदार यह तोरणद्वार का एक महत्वपूर्ण स्थान है। इसका महत्व देखते हुए इसे पुरातत्व महत्व का स्थान घोषित किया गया है । मगर इस तरुणद्वार पर स्थापित शिलालेख पर 11वीं शताब्दी के संग्रहणीय इमारत का उल्लेख मिलता है।

सीमेंट फैक्ट्री के नजदीक स्थित्व यह खूबसूरत स्थान नक्काशीदार नंदी और तोरणस्तंभ की बारीक कारीगरी देखने लायक है । अरावली श्रंखला के नजदीक बसे इस स्थान के बारे में कहा जाता है कि प्राचीन समय में यहां से चित्तौड़गढ़ किले तक जमीन में एक गुप्त रास्ता जाता था । इस रास्ते  से होकर राजा महाराजा, जासूस और उनकी सेनाएं गुप्त रूप से आतीजाती थी।

नीमच से चित्तौड़ या उदयपुर रास्ते में जाते समय राजस्थान सीमा से 8 किलोमीटर उत्तर में स्थित यह स्थान और बिरला फैक्ट्री के नजदीक स्थित है।  जहां पर यत्रतत्र नक्काशीदार पत्थर बिखरे पड़े हैं जो किसी विशेष कहानी को अपनी भाषा में बयान करते नजर आते हैं।

तोरणद्वार~

सेल्फी लेते फिसली

नवब्याहता।

~~~~~~~~~~~

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

21-08-20

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) मप्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 41 ☆ संकल्प मन में ठान ले ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। अब आप डॉ राकेश ‘चक्र’ जी का साहित्य प्रत्येक गुरुवार को  उनके  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं  एक नवगीत  “संकल्प मन में ठान ले .)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 41 ☆

☆ संकल्प मन में ठान ले  ☆ 

 

जिंदगी हर पल परीक्षा ले रही है मान ले।

आत्मा तो अंश है भगवान का यह जान ले।।

 

यह जरूरी है नहीं  मिल जाए सब आसानी से।

लक्ष्य पाने के लिए संकल्प मन में ठान ले।।

 

चाहता है, तू अगर जीना खुशी के साथ में।

वक्त कुछ अपने लिए भी कीमती पहचान ले।।

 

दुःख देता है न कोई और ना  ही सुख तुम्हें।

कर्म का प्रतिफल सुनिश्चित है यही संज्ञान ले।।

 

शोर कोलाहल अहम अभिमान भटकाता सदा।

मुक्ति पाना है अगर तो मुक्ति के अरमान ले।।

 

मिट नहीं सकती कभी हस्ती अगर प्रभु साथ हैं।

चक्र सो जा छोड़ चिंता और चादर तान ले।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001

उ.प्र .  9456201857

[email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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