प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
( आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी की एक ओजस्वी कविता राजा रघुनाथ शाह एवं शंकरशाह की बलिदान गाथा। यह कविता राजा रघुनाथ शाह एवं शंकरशाह जी को समर्पित है जिनका कल दिनांक 18 सितम्बर को बलिदान दिवस था। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 8☆
☆ राजा रघुनाथ शाह एवं शंकरशाह की बलिदान गाथा ☆
जानते इतिहास जो वे जानते यह भी सभी
राजधानी गौड राजाओ की थी त्रिुपरी कभी
उस समय मे गौडवाना एक समृद्ध राज्य था
था बडा भूभाग कृषि, वन क्षेत्र पर अविभाज्य था
सदियों तक शासन रहा कई पीढ़ियों के हाथ में
अनेको उपलब्धियाॅ भी रही जिनके साथ में
रायसेन, भोपाल, हटा, सिंगौरगढ मे थे किले
सीमा में थे आज के छत्तीसगढ के भी जिले
खंडहर नर्मदा तट मंडला मे हैं अब भी खड़े
आज भी हैं महल मंदिर रामनगर मे कई बड़े
कृषि की उन्नति, वन की सम्पत्ति, राज्य में धन धान्य था।
स्वाभिमानी वीर राजाओं का समुचित मान था
दलपति शाह की छवि-कीर्ति जब मनभायी थी
दुर्गा चंदेलोें की बेटी बहू बनकर आई थी।
बादशाह अकबर से भी लड़ते ना जिसका डर लगा
उसी दुर्गावती रानी- माँ की फैली यशकथा
एक सा रहता कहाँ है समय इस संसार में
उठती गिरती हैं बदलती लहरें हर व्यवहार में
आए थे अंग्रेज जो इस देश मे व्यापार को
क्या पता था बन वही बैठेंगे कल सरकार हो
सोने की चिड़िया था भारत आपस की पर फूट से
विवश हो पिटता रहा कई नई विदेशी लूट से
उनके मायाजाल से इस देश का सब खो गया
धीरे धीरे बढ़ यहाँ उनका ही शासन हो गया
पल हमारी रोटियों पर हमें ही लाचार कर
मिटा डाले घर हमारे, गहरे अत्याचार कर
जुल्म से आ तंग उनके देश में जो अशांति हुई
अठारह सौ छप्पन में उससे ही भारी क्रांति हुई
झांसी, लखनऊ, दिल्ली, मेरठ में जो भड़की आग थी
उसकी चिंगारी और लपटों में जगा यह भाग भी
तब गढा मंडला में दुर्गावती के परिवार से
दो जो आगे आए वे रघुनाथशाह शंकरशाह थे
बीच चैराहे में उनकी ली गई तब जान थी
क्रूरतम घटना है वह तब के ब्रिटिश इतिहास की
बांध उनको बारूद के मुंह से चलाई तोप थी
पर चेहरों मे दिखी न वीरों के छाया खौफ की
देश के हित निडर मन में दोनों अपनी जान दे
बन गए तारे चमकते अनोखे बलिदान से
सुन कहानी उनकी भर आता है मन, उनको नमन
प्राण से ज्यादा रहा प्यारा जिन्हें अपना वतन
आती है आवाज अब भी नर्मदा के नीर से
मनोबल के धनी कम होते हैें ऐसे वीर से
जिनने की ये क्रूरता वे मिट गए संसार से
नमन पर करते शहीदों को सदा सब प्यार से
यातनाएं कुछ भी दें पर हारती है क्रूरता
विजय पाती आई है इतिहास मे नित शूरता
गाता है जग यश हमेशा वीरता बलिदान के
याद सब करते शहीदों को सदा सम्मान से
जबलपुर से जुड़ा त्रिपुरी नर्मदा का नाम है
उन शहीदों को जबलपुर का विनम्र प्रणाम है।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
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≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈