हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 14 – वक्त कभी रुकता नहीं ☆ श्री प्रह्लाद नारायण माथुर

श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता वक्त कभी रुकता  नहीं ) 

 

Amazon India(paperback and Kindle) Link: >>>  मृग  तृष्णा  

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 14 – वक्त कभी रुकता नहीं

 

जीवन वक्त के पीछे चलता है, वक्त कभी रुकता नहीं,

हम वक्त को नजरअंदाज करते है वक्त कभी नजरअंदाज करता नही ||

 

जीवन-चक्र वक्त का गुलाम है, वक्त कभी टूटता नही,

मत करो नजरअंदाज वक्त को,वक्त कभी वापिस लौट कर आता नहीं ||

 

दिन रात चलता है वक्त, वक्त घड़ी देखकर चलता नहीं,

चकते-चलते जीवन रुक जाता है मगर वक्त कभी रुकता नहीं ||

 

हिम्मत हारने से कुछ नहीं होता, वक्त के साथ हम चलते नहीं,

ये हमारी फिदरत है वक्त के भरोसे रह जिंदगी में कुछ करते नही ||

 

हम भले बुरे में वक्त का बंटवारा करते, वक्त कभी कुछ कहता नहीं,

अच्छा बुरा वक्त हमारी सोच है, वक्त अपना बंटवारा करता  नहीं ||

 

वक्त के संग जिंदगी गुजार ले, वक्त जिंदगी के लिए रुकता नहीं,

जिंदगी झुक जाएगी वक्त के आगे, वक्त जिंदगी के आगे कभी झुकता नहीं ||

 

©  प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की – दोहे ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  राजभाषा दिवस के अवसर पर आपके अप्रतिम दोहे । )

  ✍  लेखनी सुमित्र की – दोहे  ✍

 

मन की मन को पढ़ सके, हुआ कौन विद्वान।

परिभाषा निस्सीम, है असीम अनुमान।।

 

कितने तल है बताये, मन के कितने कोण।

कृष्ण कभी, अर्जुन कभी, अश्वत्थामा द्रोण।।

 

मन दुर्योधन द्रौपदी, कंस,यशोदा नंद।

मन राधा गोपी का मन है मुरली छंद।।

 

ओर छोर मन का नहीं, छोड़ा है आकाश ।

लघुतम निर्मल रूप है, जैसे किरण उजास।।

 

गति को गति देते रहे, मारुति पुत्र हनुमंत।

मन की गति जानी नहीं, पतझड़ कभी बसंत।।

 

मन भेाैर, मन काग है, मन है शिखी  मराल।

मन ही कड़वी नीम है, मन ही मिष्ठ रसाल।।

 

बेजा कब्जा भूमि पर,अनाधिकार है  यत्न ।

मन मनुष्य का डोलता, जहां पड़े हो रत्न।।

 

मन का मोती बिंध गया, गया चित्त का चीर।

मन के हाथों बिक गए, इतने ग़ालिब मीर ।।

 

जो कुछ मन को जोड़ता, क्या है उसका नाम ।

निर्मल धारा प्रेम की, मधुता भरे  प्रणाम।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 51 ☆  सबको जाना ही है ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  एक भावप्रवण रचना “ सबको जाना ही है”। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 51 ☆

☆  सबको जाना ही है ☆

 

हरदम का साथ कहाँ, सबको जाना ही है

ज़िंदगी की रस्में हैं, उन्हें निभाना ही है

 

मंज़र पल में बदलता, कहीं भी मुकाम नहीं

बादल हों चाहें ग़म के, हमें मुस्कुराना ही है

 

आसमान में उड़ते परिंदे, हार मानते कहाँ

पतंगों सा ख़्वाबों को, हमें उडाना ही है

 

सूखता शजर गर्मियों में, बारिश में खिल उठता

कितनी भी मुश्किलें हों, गीत गुनगुनाना ही है

 

मिटटी में जिस्म होगा, रह जायेंगे मीठे बोल

जो सरगम अमर हो जाए, वो तो गाना ही है

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ विदेह ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ विदेह ☆

 

निचोड़ता रहा

उम्रभर देह,

कभी छू न सका

कोरा बचा रहा मन..,

जग में रहकर

जग का न होने का,

देह में रहकर

विदेह रहने का

जागृत उदाहरण है मन..!

 

©  संजय भारद्वाज 

प्रात: 9:15 बजे, 6.9.20

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रंजना जी का साहित्य # 52 – आँगन की तेरी मैं गुड़िया बनूँगी ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आज  प्रस्तुत है आपकी हिंदी रचना   “आँगन की तेरी मैं गुड़िया बनूँगी”।  कन्या / भ्रूण हत्या  जैसे विषय पर आपके इस अभिनव प्रयास के लिए  हार्दिकअभिनन्दन। )

☆ रंजना जी का साहित्य # 52 ☆

☆ आँगन की तेरी मैं गुड़िया बनूँगी ☆

 

आँगन की तेरी मैं गुड़िया बनूँगी

खुशियों से तेरा मैं जीवन भरूंगी।।धृ।।

 

नही हूँ जो बेटा कहाँ कम  हूँ मै भी।

माँ ऊँची उड़ाने भर लूँगी  मैं भी।

तेरा सर हमेशा मैं उन्नत करूंगी।।1।।

आँगन की तेरी मैं गुड़िया बनूँगी  ……

 

आने दो जीवन की बगिया में मुझको।

खुशबू की सौगात दे दूँगी सबको।

तोड़ो ना मैय्या मैं अनखिल रहूँगी।।2।।

आँगन की तेरी मैं गुड़िया बनूँगी  ……

 

मानो ना मुझको तुम तो परायी।

मैय्या को अपनी कहाँ भूल पायी।

दोनो घरों की मैं छाया बनूँगी ।।3।।

आँगन की तेरी मैं गुड़िया बनूँगी  ……

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 16 – पीली महकती यह सुबह …. ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत  “पीली महकती यह सुबह …..। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 16– ।। अभिनव गीत ।।

☆ पीली महकती यह सुबह  ….☆

 

जून की

पीली महकती

यह सुबह

 

गंध से भीगे

करोंदों की

उमर पर

तरस खाती

सी हवा लगती

मगर पर

 

उभर आती

है हरी

गीली सतह

 

बाँह पर रखे

हुये सिर

पड़ी कल से

ऊँघती है

स्मृति में जो

अतल -तल सी

 

स्वप्न में

कोई चुनिंदा

सी बजह

 

इधर करवट

लिये धूमिल

है निबौरी

पान की मुँह

में दबाये

सी गिलौरी

 

गुमशुदा कोई

गिलहरी

की तरह

 

© राघवेन्द्र तिवारी

22-06-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #9 ☆ कोरोना का कहर ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है।  सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग  स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण रचना कोरोना का कहर

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #9 ☆ 

☆ कोरोना का कहर ☆ 

 

ये कैसा मंजर है

दिल में चुभता खंजर है

आंखें पथरा सी गई है

शरीर जैसे बंजर है

अस्पतालों में जगह नहीं है

बचने कीं कोई वजह नहीं है

दम तोड़ रहे मरीज अंदर

बाहर घर वालों को खबर नहीं है

श्मशानो की हालत बदतर है

जगह की भारी कमतर से

लाईन में लगीं है लाशें ही लाशें

श्मशान बन गया लाशों का घर है

अखबारों में छाया है कोरोना

आंकड़े देख आ रहा है रोना

कैसी महामारी आयी हुई हैं

मनुष्य बना,मौत के हाथ का खिलौना

अब तो संक्रमण तेजी

से बढ़ रहा है

निहत्था इन्सान बिना

टीका के लड़ रहा है

कहां जाकर रूकेगी

यह महामारी

कोरोना नित नए

किर्तीमान है गढ़ रहा है

कोरोना वालेंटियर्स

को सलाम

इतिहास में दर्ज होगा

उनका नाम

जान देकर दूसरे को बचाया

खुद रह गये वो गुमनाम

आओ मित्रों,

हम खुद को संभालें

प्रतिबंधों को

सख्तीसे पाले

जीवन है

बहुमुल्य हम सबका

सुरक्षित घर में रहकर

इसे बचाले

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़)

मो  9425592588

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 21 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 21 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 21) ☆ 

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 21 ☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

मुख़्तसर सा गुरूर भी

ज़रूरी है जीने के लिए

ज़्यादा  झुक  के मिलो

तो  दुनिया पीठ को ही

पायदान  बना लेती है…

 

Some arrogance, too,  is

Necessary to live, if you

bend too much to meet

Then  the  world makes

your back a footmat only…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

माना  तेरी  उलझन हूँ  मैं

पर तेरी सुलझन भी हूँ  मैं…

थोड़ा दीवाना ही सही मैं

मगर  बड़ा दिलदार हूँ  मैं…

 

Agreed I’m your riddle only…

But I’m your solution too…

Though I am  bit crazy

But a large-hearted one!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

क्या करोगे अब तुम

मेरे पास आकर भी..

खो दिया है तुमने मुझे

बार-बार आजमा कर…

 

What will you do now

By coming close to me…

You’ve lost me for good

By trying again and again

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 20 ☆ कहो जीवन की जय ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है  एक भावप्रवण कविता कहो जीवन की जय )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 20 ☆ 

☆ कहो जीवन की जय ☆ 

 

धरती माता विपदाओं से डरी नहीं

मुस्काती है जीत उन्हें यह मरी नहीं

आसमान ने नीली छत सिर पर तानी

तूफां-बिजली हार गये यह फटी नहीं

अग्नि पचाती भोजन, जला रही अब भी

बुझ-बुझ जलती लेकिन किंचित् थकी नहीं

पवन बह रहा, साँस भले थम जाती हो

प्रात समीरण प्राण फूँकते थमी नहीं

सलिल प्रवाहित कलकल निर्मल तृषा बुझा

नेह नर्मदा प्रवहित किंचित् रुकी नहीं

पंचतत्व निर्मित मानव भयभीत हुआ?

अमृत पुत्र के जीते जी यम जीत गया?

हार गया क्या प्रलयंकर का भक्त कहो?

भीत हुई रणचंडी पुत्री? सत्य न हो

जान हथेली पर लेकर चलनेवाले

आन हेतु हँसकर मस्तक देनेवाले

हाय! तुच्छ कोरोना के आगे हारे

स्यापा करते हाथ हाथ पर धर सारे

धीरज-धर्म परखने का है समय यही

प्राण चेतना ज्योति अगर निष्कंप रही

सच मानो मावस में दीवाली होगी

श्वास आस की रास बिरजवाली होगी

बमभोले जयकार लगाओ, डरो नहीं

हो भयभीत बिना मारे ही मरो नहीं

जीव बनो संजीव, कहो जीवन की जय

गौरैया सँग उषा वंदना कर निर्भय

प्राची पर आलोक लिये है अरुण हँसो

पुष्पा के गालों पर अर्णव लाल लखो

मृत्युंजय बन जीवन की जयकार करो

महाकाल के वंशज, जीवन ज्वाल वरो।

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 8 ☆ राजा रघुनाथ शाह एवं शंकरशाह की बलिदान गाथा ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

( आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  की एक ओजस्वी कविता राजा रघुनाथ शाह एवं शंकरशाह की बलिदान गाथा। यह कविता  राजा रघुनाथ शाह एवं  शंकरशाह जी को  समर्पित है जिनका कल दिनांक 18 सितम्बर को बलिदान दिवस था।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।  ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 8☆

☆ राजा रघुनाथ शाह एवं शंकरशाह की बलिदान गाथा ☆

जानते इतिहास जो वे जानते यह भी सभी

राजधानी गौड राजाओ की थी त्रिुपरी कभी

 

उस समय मे गौडवाना एक समृद्ध राज्य था

था बडा भूभाग कृषि, वन क्षेत्र पर अविभाज्य था

 

सदियों तक शासन रहा कई पीढ़ियों के हाथ में

अनेको उपलब्धियाॅ भी रही जिनके साथ में

 

रायसेन, भोपाल, हटा, सिंगौरगढ मे थे किले

सीमा में थे आज के छत्तीसगढ के भी जिले

 

खंडहर नर्मदा तट मंडला मे हैं अब भी खड़े

आज भी हैं महल मंदिर रामनगर मे कई बड़े

 

कृषि की उन्नति, वन की सम्पत्ति, राज्य में धन धान्य था।

स्वाभिमानी वीर राजाओं का समुचित मान था

 

दलपति शाह की छवि-कीर्ति जब मनभायी थी

दुर्गा चंदेलोें की बेटी बहू बनकर आई थी।

 

बादशाह अकबर से भी लड़ते ना जिसका डर लगा

उसी दुर्गावती रानी- माँ की फैली यशकथा

 

एक सा रहता कहाँ है समय इस संसार में

उठती गिरती हैं बदलती लहरें हर व्यवहार में

 

आए थे अंग्रेज जो इस देश मे व्यापार को

क्या पता था बन वही बैठेंगे कल सरकार हो

 

सोने की चिड़िया था भारत आपस की पर फूट से

विवश हो पिटता रहा कई नई विदेशी लूट से

 

उनके मायाजाल से इस देश का सब खो गया

धीरे धीरे बढ़ यहाँ उनका ही शासन हो गया

 

पल हमारी रोटियों पर हमें ही लाचार कर

मिटा डाले घर हमारे, गहरे अत्याचार कर

 

जुल्म से आ तंग उनके देश में जो अशांति हुई

अठारह सौ छप्पन में उससे ही भारी क्रांति हुई

 

झांसी, लखनऊ, दिल्ली, मेरठ में जो भड़की आग थी

उसकी चिंगारी और लपटों में जगा यह भाग भी

 

तब गढा मंडला में दुर्गावती के परिवार से

दो जो आगे आए वे रघुनाथशाह शंकरशाह थे

 

बीच चैराहे में उनकी ली गई तब जान थी

क्रूरतम घटना है वह तब के ब्रिटिश इतिहास की

 

बांध उनको बारूद के मुंह से चलाई तोप थी

पर चेहरों मे दिखी न वीरों के छाया खौफ की

 

देश के हित निडर मन में दोनों अपनी जान दे

बन गए तारे चमकते अनोखे बलिदान से

 

सुन कहानी उनकी भर आता है मन, उनको नमन

प्राण से ज्यादा रहा प्यारा जिन्हें अपना वतन

 

आती है आवाज अब भी नर्मदा के नीर  से

मनोबल के धनी कम होते हैें ऐसे वीर से

 

जिनने की ये क्रूरता वे मिट गए संसार से

नमन पर करते शहीदों को सदा सब प्यार से

 

यातनाएं कुछ भी दें पर हारती है क्रूरता

विजय पाती आई है इतिहास मे नित शूरता

 

गाता है जग यश हमेशा वीरता बलिदान के

याद सब करते शहीदों को सदा सम्मान से

 

जबलपुर से जुड़ा त्रिपुरी नर्मदा का नाम है

उन शहीदों को जबलपुर का विनम्र प्रणाम है।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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