हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 215 ☆ बाल गीत – तितली रानी,  तितली रानी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मानबाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंतउत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 215 ☆

बाल गीत – तितली रानी,  तितली रानी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

तितली रानी,  तितली रानी

चली घूमने धरती जंगल।

पेड़ कटें,  कंकरीट उग रही

उसे डराता आज और कल।।

पंख सलोने,  रंग – बिरंगे

फूलों से वह करे दोस्ती।

घोर प्रदूषण जब से फैला

फूलों को वह रही खोजती।

 *

उलझें बच्चे मोबाइल में

तितली के सँग कब बीतें पल।

 *

घर उपवन आतीं थीं तितली

अब तो जानें कहाँ छिप गईं।

गौरैयाँ भी याद कर रहीं

ऐसा लगता सभी डर गईं।।

 *

बढ़ता मानव भाग रहा बस

जीवन नकली,  बढ़ी अकल।।

 *

पौधे रोपें घर और पार्कों

एसी,  वाहन करें नियंत्रित।

कपड़े के थैले प्रयोग हों

थैली प्लास्टिक हों प्रतिबंधित।।

 *

कीट,  तितलियां पक्षी सब ही

पर्यावरण को करें सबल।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #241 – कविता – ☆ मछलियों को तैरना सिखला रहे हैं… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता मछलियों को तैरना सिखला रहे हैं…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #241 ☆

☆ मछलियों को तैरना सिखला रहे हैं… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

आजकल वे सेमिनारों में, हुनर दिखला रहे हैं

मछलियों को कायदे से, तैरना सिखला रहे हैं।

 

अकर्मण्य उछाल भरते मेंढकों से

जम्प कैसे लें इसे सब जान लें

और कछुओं से रहे अंतर्मुखी तो

आहटें खतरों की, तब पहचान ले,

मगरमच्छ नृशंस, लक्षित प्राणियों को मार कर

हर्षित हृदय से निडर हो, जो खा रहे हैं

मछलियों को कायदे से तैरना सिखला रहे हैं।

 

वे सतह पर, अंगवश्त्रों से सुसज्जित

किंतु गहरे में, रहे बिन आवरण है

वे बगूलों से, सफेदी में छिपाए 

कालिखें-कल्मष, कुटेवी आचरण है,

साधनों के बीच में, लेकर हिलोरें झूमते वे

 साधना औ” सादगी के भक्ति गान सुना रहे हैं

मछलियों को कायदे से तैरना सिखला रहे हैं।

 

कर रहे हैं मंत्रणा, मक्कार मिलकर

हवा-पानी पेड़-पौधे, खेत फसलें

हो नियंत्रण में सभी, उनके रहम पर

बेबसी लाचारियों से, ग्रसित नस्लें,

योजनाएँ योजनों है दूर, अंतिम आदमी से

चोर अब आयोजनों में नीति शास्त्र पढ़ा रहे हैं

मछलियों को कायदे से तैरना सिखला रहे हैं।

 

ये करोड़ीमल कथित सेवक

बिना ही बीज के पनपे कहाँ से

दाँव पर है देश की जनता

शकुनि से रोज चलते कुटिल पाँसे,

मिटाने रेखा गरीबी की, अमीरी के सपन

ये कागजी आयोग अंकों से हमें बहला रहे हैं।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 65 ☆ प्रेमचंद की खोज… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “तुमसे हारी हर चतुराई…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 65 ☆ प्रेमचंद की खोज… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

धनपतराय कहाँ हो तुम

प्रेमचंद को खोज रहे क्या?

*

प्रगतिशीलता के दोराहे

असमंजस उपजाते

अँग्रेजी के गुण गाते है

हिन्दी को गरियाते

*

धनपतराय कहाँ हो तुम

कर्मभूमि में खेत रहे क्या ।

*

मान सरोवर कथा-कहानी

ईदगाह का हामिद

रात पूस की किसने काटी

कफ़न ओढ़ता ज़ाहिद

*

धनपतराय कहाँ हो तुम

अलगू-जुम्मन नहीं रहे क्या।

*

फटे हुए जूतों में फ़ोटू

खिचवाते डरते हो

होरी धनिया वाली करुणा

जी भरकर सहते हो

*

धनपतराय कहाँ हो तुम

अब गोदान नहीं लिखते क्या ।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 69 ☆ भले इंसान का जीना है मुश्किल… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “भले इंसान का जीना है मुश्किल“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 69 ☆

✍ भले इंसान का जीना है मुश्किल… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

मसर्रत का यहाँ सूखा रहा है

ग़मों का कब ये थमना सिलसिला है

 *

भले इंसान का जीना है मुश्किल

लफंगों को यहाँ पूरा मज़ा है

 *

नचाती ज़िन्दगी दिन रात सबको

किसी कठपुतली सा आदम हुआ है

 *

पकड़ ले हाथ  तो फिर ये न छोड़े

क़ज़ा कब ज़िन्दगी सी बेवफ़ा है

 *

लगा इंसान मतलब साधने में

किसी का अब नहीं कोई सगा है

 *

गुनहगारों सियासत दाँ में यारी

नहीं डर तब कोई  कानून का है

 *

ग़मों का साथ रहना उम्र भर फिर

मुहब्बत का मेरा ये तर्ज़ुबा है

 *

जिसे आया है हालातों से लड़ना

शज़र सहरा में भी फूला फला है

 *

अरुण जो बाद तेरे भी हो ज़िंदा

नहीं वो शेर तू अब तक कहा है

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ बरसात… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कविता ?

बरसात☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

खिडकी के बाहर लगातार,

बारिश हो रही है,

रूकने का नाम ही नहीं लेती!

*

बचपन से मुझे बारिश

बहुत पसंद है ,

घर के सामने एक,

बडा सा पेड था पीपल का ,

बरसात के दिनों में वो पेड़

मुझे बहुत अच्छा लगता था…..

मानो  नहा रहा हो ,

*

ओहरे का पानी झरझर बहकर,

न जाने कहाँ पहुँचता था,

पनघट पे पानी लेने,

आती थी औरतें… भीगती भागती!

बहुत सुंदर लगती थी !

*

बारिश तो हर साल

आती है ….बार बार !

लेकिन वो बचपन वाली,

बरसात,

पीपल का पेड़,

पनघट की चहल पहल,

अब वहाँ नहीं रही…

*

बदले है गाँव और शहर भी,

बरसात तो वही है ,

कल वाली परसो वाली… 

पीपल के पेड़ वाली !

*

इतने सालों के बाद ….

मुझे वो गाँव वाली

बरसात ही याद आती है,

इस बारिश का, उस बरसात से,

बहुत दूर का रिश्ता,

बताती  है !

☆  

© प्रभा सोनवणे

१६ जून २०२४

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 66 – पास, अधर अंगार करो… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – पास, अधर अंगार करो।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 66 – पास, अधर अंगार करो… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

मन्मथ का उपचार करो 

प्रिये आज सहकार करो

*

पावक से, यह आग बुझे 

पास, अधर अंगार करो

*

बड़े कीमती ये पल हैं 

अब न, मुहूर्त विचार करो

*

वर्षों से जो सजा रखे 

वे सपने, साकार करो

*

नया गीत अनमोल रचें 

सृजन पंथ स्वीकार करो

*

प्रेम, सृष्टि का सर्जक है 

प्यार, प्यार बस प्यार करो

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 139 – मित्र मेरे मत रूलाओ… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “मित्र मेरे मत रूलाओ…। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 139 – मित्र मेरे मत रूलाओ… ☆

मित्र मेरे मत रूलाओ, और रो सकता नहीं हूँ ।

आँख से अब और आँसू, मैं बहा सकता नहीं हूँ ।।

*

जिनको अब तक मानते थे, ये हमारे अपने हैं ।

इनके हाथों में हमारे, हर सुनहरे सपने हैं ।।

*

स्वराज की खातिर न जाने, कितनों ने जिंदगानी दी ।

गोलियाँ सीने में खाईं, फाँसी चढ़ कुरबानी दी ।।

*

कितनी श्रम बूदें बहाकर, निर्माण का सागर बनाया ।

कितनों ने मेघों की खातिर,सूर्य में हर तन तपाया ।।

*

धरती की सूखी परत ने, विश्वासों को चौंका दिया ।

कारवाँ वह बादलों का, सरहदों से मुड़ गया ।।

*

काँच के दर्पण -से सपने, टूट कर कुछ यों गिरे ।

पैरों में नस्तर चुभाते, खूँ से धरा को रंग गये ।।

*

मित्र मेरे मत रुलाओ, और रो सकता नहीं हूँ ।

आँखों से अब और आँसू , मैं बहा सकता नहीं हूँ ।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – चुप्पी – 35 ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि –  चुप्पी – 35 ? ?

(लघु कविता संग्रह – चुप्पियाँ से)

चुप हो जाना चाहता हूँ

जाना ही इनकी नियति है

सो चुप्पियों को

विदा कहना चाहता हूँ,

पर जाने क्या हो गया है

वे निरंतर आ रही हैं

मायके आई बेटी की तरह

लगातार बतिया रही हैं,

भरी आँखों में

भरता हूँ इनका चेहरा

क्या करुँ

इनका पिता जो ठहरा!

© संजय भारद्वाज  

1:16 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्रवण मास साधना में जपमाला, रुद्राष्टकम्, आत्मपरिष्कार मूल्याकंन एवं ध्यानसाधना करना है 💥 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 294 ☆ आलेख – कम उम्र का आदमी… ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 294 ☆

? कविता – कम उम्र का आदमी… ? श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

कल

कचरे के ढेर पर अपनी निकर संभालता,

नाक पोंछता

मुझे मिला एक

कम उम्र का आदमी.

 

वह, बटोर रहा था पालिथींन की थैलियाँ ,

नहीं,

शायद अपने परिवार के लिये शाम की रोटियाँ

 

मैं उसे बच्चा नहीं कहूंगा, क्योंकि बच्चे तो आश्रित होते हैं, परिवार पर.

वे चिल्ला चिल्ला कर सवारियाँ नहीं जुटाते,

वे औरों के जूतों पर पालिश नहीं करते,

वे फुग्गे खेलते हैं,

बेचते नहीं।

चाय की गुमटी पर

छोटू बनकर, झूठे गिलास नहीं धोते

और जो यह सब करने पर मजबूर हो,

उन्हें अगर आप बच्चा कहे

तो मुझे दिखायें,

साफ सुथरी यूनीफार्म में उनकी मुस्कराती तस्वीर.

 

कहाँ है उनकी थोडी सी खरोंच पर चिंता करती माँ,

कहाँ है, उन्हें मेले में घुमाता जिम्मेदार बाप ।

 

उनके सतरंगे सपने, दिखलाइये मुझे या

कहने दीजीये मुझे

उन्हें कम उम्र का आदमी।

 

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ मित्रता दिवस = मित्र – एक ऐसा रिश्ता जो सभी रिश्तों से बढ़कर… ☆ सुश्री रुचिता तुषार नीमा ☆

सुश्री रुचिता तुषार नीमा

☆ कविता ☆ मित्रता दिवस = मित्र – एक ऐसा रिश्ता जो सभी रिश्तों से बढ़कर ☆ सुश्री रुचिता तुषार नीमा ☆

युग युगांतर से मनुष्य के जीवन में मित्र, दोस्त, सखा का एक विशेष स्थान रहा है। प्रभु श्री राम की निषादराज और सुग्रीव से मित्रता हो या श्री कृष्ण की सुदामा, उद्धव, अर्जुन और द्रोपदी से। ये दोस्ती की वो खुबसूरत मिसाल है,जिनके उदाहरण आज भी दिए जाते हैं ।युग बदलते रहे, लेकिन इस रिश्ते की खूबसूरती हमेशा वैसे ही बरकरार रही। एक ऐसा रिश्ता जो खून के संबंधों से भी बढ़कर ,दिल के करीब रहा हमेशा। जिसमें कभी जात पात, ऊंच नीच, स्त्री पुरुष का भेद नहीं हुआ। बस मित्र, सदा मित्र ही रहा।जिससे मन की हर अच्छी बुरी बात निसंकोच पूर्ण विश्वास के साथ कही जा सके। जो आपको सही राह बताए, संबल प्रदान कर सके।एक ऐसा रिश्ता जो हर स्वार्थ, हर सीमा से परे रहा।

लेकिन आज के भौतिक युग में जब सभी रिश्ते व्यापारिक तौर पर एक दूसरे से जुड़े होते हैं। सच्ची मित्रता का सौंदर्य खतम होता जा रहा। सोशल प्लेटफार्म पर कहने को तो आपके हजारों मित्र मिल जाते हैं, लेकिन जो दिल से साथ निभाए, ऐसा शायद ही कोई होता हैं।

इसलिए आपके सच्चे मित्र, जो बचपन से आपके साथ है, हर परिस्थिति में जिन्होंने प्रत्यक्ष, या अप्रत्यक्ष आपको सहयोग दिया है, ऐसे मित्रों को सहेज कर रखें।

मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। 

ऐसे ही मित्रों के नाम ये कुछ पंक्तियां;

 

मित्र शब्द है जाना पहचाना सा,

दिल के क़रीब कोई अपना सा,

जिससे नहीं हो कोई भी सम्बन्ध,

पर हो दिल के गहरे बंधन

तो वह है मित्र..

 

जो बिन कहे सब समझ जाएं

जिसे देख दर्द भी सिमट जाए,

जिसे देखकर ही आ जाये सुकून

और सब तनाव हो जाये गुम.

तो वह है मित्र ….

 

जब मुश्किलों से हो रहा हो सामना,

और लगे कि अब किसी को है थामना

उस वक्त जो सबसे पहले आए

बिन कहे जो हाथ बढ़ाये

तो वह है मित्र……

 

निःस्वार्थ, निश्छल, सब सीमाओं से पार

जैसे हो कृष्ण और सुदामा,

जहाँ बीच में न आए कोई भाषा,

 न कोई उम्मीद, न कोई आशा

बस यही है मित्रता की परिभाषा

© सुश्री रुचिता तुषार नीमा

इंदौर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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