English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 11 ☆ गुमनाम साहित्यकारों की कालजयी रचनाओं का भावानुवाद ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।

स्मरणीय हो कि विगत 9-11 जनवरी  2020 को  आयोजित अंतरराष्ट्रीय  हिंदी सम्मलेन,नई दिल्ली  में  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी  को  “भाषा और अनुवाद पर केंद्रित सत्र “की अध्यक्षता  का अवसर भी प्राप्त हुआ। यह सम्मलेन इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, दक्षिण एशियाई भाषा कार्यक्रम तथा कोलंबिया विश्वविद्यालय, हिंदी उर्दू भाषा के कार्यक्रम के सहयोग से आयोजित  किया गया था। इस  सम्बन्ध में आप विस्तार से निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं :

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 11/सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 11 ☆ 

आज सोशल मीडिया गुमनाम साहित्यकारों के अतिसुन्दर साहित्य से भरा हुआ है। प्रतिदिन हमें अपने व्हाट्सप्प / फेसबुक / ट्विटर / यूअर कोट्स / इंस्टाग्राम आदि पर हमारे मित्र न जाने कितने गुमनाम साहित्यकारों के साहित्य की विभिन्न विधाओं की ख़ूबसूरत रचनाएँ साझा करते हैं। कई  रचनाओं के साथ मूल साहित्यकार का नाम होता है और अक्सर अधिकतर रचनाओं के साथ में उनके मूल साहित्यकार का नाम ही नहीं होता। कुछ साहित्यकार ऐसी रचनाओं को अपने नाम से प्रकाशित करते हैं जो कि उन साहित्यकारों के श्रम एवं कार्य के साथ अन्याय है। हम ऐसे साहित्यकारों  के श्रम एवं कार्य का सम्मान करते हैं और उनके कार्य को उनका नाम देना चाहते हैं।

सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार तथा हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने  ऐसे अनाम साहित्यकारों की  असंख्य रचनाओं  का कठिन परिश्रम कर अंग्रेजी भावानुवाद  किया है। यह एक विशद शोध कार्य है  जिसमें उन्होंने अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी है। 

इन्हें हम अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास कर रहे हैं । उन्होंने पाठकों एवं उन अनाम साहित्यकारों से अनुरोध किया है कि कृपया सामने आएं और ऐसे अनाम रचनाकारों की रचनाओं को उनका अपना नाम दें। 

कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने भगीरथ परिश्रम किया है और इसके लिए उन्हें साधुवाद। वे इस अनुष्ठान का श्रेय  वे अपने फौजी मित्रों को दे रहे हैं।  जहाँ नौसेना मैडल से सम्मानित कैप्टन प्रवीण रघुवंशी सूत्रधार हैं, वहीं कर्नल हर्ष वर्धन शर्मा, कर्नल अखिल साह, कर्नल दिलीप शर्मा और कर्नल जयंत खड़लीकर के योगदान से यह अनुष्ठान अंकुरित व पल्लवित हो रहा है। ये सभी हमारे देश के तीनों सेनाध्यक्षों के कोर्स मेट हैं। जो ना सिर्फ देश के प्रति समर्पित हैं अपितु स्वयं में उच्च कोटि के लेखक व कवि भी हैं। वे स्वान्तः सुखाय लेखन तो करते ही हैं और साथ में रचनायें भी साझा करते हैं।

☆ गुमनाम साहित्यकार की कालजयी  रचनाओं का अंग्रेजी भावानुवाद ☆

(अनाम साहित्यकारों  के शेर / शायरियां / मुक्तकों का अंग्रेजी भावानुवाद)

बस इतना सा असर होगा

हमारी यादों का

कि कभी कभी तुम बिना

बात मुस्कुराओगे…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

The only effect of my

Memories will be that

  Sometimes without any

Reason you will smile…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

काश मिल जाये हमें भी

कोई किसी आईने की तरह

जो हँसे भी साथ साथ

और रोये भी साथ साथ…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

Wish I could also have

 Someone like a mirror

  Who could laugh together

    And  even  cry together …

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

उन्हें  ठहरे…

समुंदर  ने  डुबोया

जिन्हें  तूफ़ाँ  का…

अंदाज़ा  बहुत  था…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

Calm seas…

drowned them only…

Who claimed to have great 

experience of braving the storms

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ पितृ दिवस विशेष – पिता ही कर पाए ☆ सुश्री दीपिका गहलोत “मुस्कान”

सुश्री दीपिका गहलोत “मुस्कान”

सुश्री दीपिका गहलोत ” मुस्कान “ जी  मानव संसाधन में वरिष्ठ प्रबंधक हैं। एच आर में कई प्रमाणपत्रों के अतिरिक्त एच. आर.  प्रोफेशनल लीडर ऑफ द ईयर-2017 से सम्मानित । आपने बचपन में ही स्कूली शिक्षा के समय से लिखना प्रारम्भ किया था। आपकी रचनाएँ सकाळ एवं अन्य प्रतिष्ठित समाचार पत्रों / पत्रिकाओं तथा मानव संसाधन की पत्रिकाओं  में  भी समय समय पर प्रकाशित होते रहते हैं। हाल ही में आपकी कविता पुणे के प्रतिष्ठित काव्य संग्रह  “Sahyadri Echoes” में प्रकाशित हुई है। पितृ दिवस पर आज प्रस्तुत है उनकी विशेष रचना – पिता ही कर पाए )

? पितृ दिवस विशेष – पिता ही कर पाए ?

 

छाव बनकर जो छा जाए ,

पग-पग पर पथ दर्शाए ,

चोट लगे तो दवा बन जाए,

ये तो केवल इक पिता ही कर पाए ,

**

ऊँगली पकड़ जो चलना सिखाये ,

हार कर भी हमसे जो हर्षाए ,

हर दुःख से जो हमको बचाए,

ये तो केवल इक पिता ही कर पाए ,

**

हमारी ख़ुशी में जो खुद मुस्कुराए,

हर तूफ़ां के लिए चट्टान बन जाए,

हर ज़िद्द हमारी सर-आँखोँ से लगाए,

ये तो केवल इक पिता ही कर पाए ,

**

अपनी इच्छाओं को दबा हमारी खुशी परवान चढ़ाए,

इक मुस्कान के लिए हमारी कर जाए सौ उपाए,

हर परिस्तिथि में जो जीने की कला सिखलाए,

ये तो केवल इक पिता ही कर पाए ,

**

सख्त बनकर-बुरा बनकर भी प्यार जताए,

कठोर बनकर अनुशासन में रहना सिखाए,

माँ की तुलना में कम कहलाना अपनाए,

ये तो केवल इक पिता ही कर पाए ,

**

प्यार ना जता कर निष्ठुर कहलाए,

बच्चो की नज़रो में निर्दयी बन जाए,

ऊंचा दर्जा ना पा कर भी प्यार जताए,

ये तो केवल इक पिता ही कर पाए .

 

© सुश्री दीपिका गहलोत  “मुस्कान ”  

पुणे, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य – वो वीर तिरंगे का वारिस था ☆ – श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज आपके “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण , समसामयिक एवं ओजस्वी रचना  – वो वीर तिरंगे का वारिस था।  

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य –  वो वीर तिरंगे का वारिस था ☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

जलाया होगा खुद का जिस्म बारूद गोलों से,

और फिर अनेकों गोलीयां सीनें पर खाई होगी।

दुश्मन के खून से खेली होगी सीमा पर होली,

इस तरह वतन परस्ती की रस्म निभाई होगी।।1।।

हिम्मत से मारा होगा दुश्मन को सरहद पे,

इस तरह मां की आबरू उसने बचाई होगी।

पहना होगा तिरंगे का कफन हमारी खातिर,

इस तरह अपनी‌ पूंजी वतन पे लुटाई होगी।।2।।

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

घर बार वतन वो छोड़ चला,चमन चहकता छोड़ चला ।

दुश्मन की कमर तोड़ने वह,अंधी मां को घर छोड़ चला।

गलियों में गांव के पला बढ़ा, सबका राज दुलारा था।

अंधी की कोख से पैदा था, उसके जीवन का सहारा था।।1।।

आंखों से देख सकी न उसे, खुशबू  से पहचानती थी।

पदचापों की आहट से, वह अपने लाल को जानती थी।

जब लाल सामने होता तो, उसको छू कर दुलराती थी।

मुख माथा चूम चूम उसका, उसको गले लगाती थी।।2।।

वह पढ़ा लिखा जवान हुआ, सेना का दामन थाम लिया था ।

उस दिन टटोल वर्दी हाथों से,  मां ने उसको सहलाया था।

अब वतन लाज तेरे हाथों, वर्दी  का मतलब बतलाया था।

उसको गले लगा करके,अपनी ममता से नहलाया था।।3।।

 

वतन पे मरने का मकसद ले, सरहद की तरफ बढ़ा था वह।

अपने ही वतन के गद्दारों की,  नजरों में आज चढ़ा था वह।

जम्मू कश्मीर जल रहा था, थे नौजवान बहके बहके।

आगे दुश्मन की गोली थी, पीछे हाथों में पत्थर थे।।4।।

 

वह अभिमन्यु बन चक्रव्यूह में,खड़ा खड़ा बस सोच रहा।

समझाउं उसको या मारूं,  ना समझ पड़ा बस देख रहा।

क्या करें वो कैसे समझाये, कानून के हाथों बंधा हुआ।

सीने में गोली सिर पे पत्थर,खाता फिर भी तना हुआ ।।5।।

पीछे अपनों के पत्थर है, आगे दुश्मन की ‌गोली है।

मेरे शौर्य उठती उंगली है कुछ लोगों की कड़वी  बोली है।

इस तरह खड़ा कुछ सोच रहा, उसको बस समझ नहीं आया।

अपनों से बच गैरों से निपट यह सूत्र काम उसके आया।।6।।

अपनों की मार सही उसने,उफ़ ना किया ना हाथ उठा,

अंतहीन लक्ष्य साथ ले सरहद पे चला वह क़दम बढ़ा।

अपनी तोपों के गोलों से दुश्मन का हौसला तोड़ दिया। ।

पीछे को दुश्मन भाग चलाउनके रुख को वह मोड़ दिया ।।7।।

 

धोखे से बारूद पे पांव पड़े तब उसमें विस्फोट  हुआ।

मरते मरते जय हिन्द बोला सरहद पे उसकी जली चिता।

सरहद पे जिसकी चिता जली वो असली हिंदुस्तानी था।

जो जाति धर्म से ऊपर उठकर मातृभूमि बलिदानी था ।।8।।

कर्मों से इतिहास ‌लिखा इक अंधी मां का बेटा है।

उसने भी अपने सीने में इक हिंदुस्तान ‌समेटा है।

अपनों के नफरत‌ से वह  घायल था बेहाल था।

वो वीर तिरंगे का वारिस था भारत मां का लाल था ।।9 ।।

 

© सुबेदार पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208

मोबा—6387407266

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English Literature – Poetry (भावानुवाद) ☆ आ गए तुम ?/Is that you? – सुश्री निधि सक्सेना ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(We are extremely thankful to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for sharing his literary and artworks with e-abhivyakti.  An alumnus of IIM Ahmedabad, Capt. Pravin has served the country at national as well international level in various fronts. Presently, working as Senior Advisor, C-DAC in Artificial Intelligence and HPC Group; and involved in various national-level projects.

Captain Pravin Raghuvanshi ji  is not only proficient in Hindi and English, but also has a strong presence in Urdu and Sanskrit.   We present an English Version of renoknowned author  Ms. Nidhi Saxena ji’s  Classical Poetry आ गए तुम ? with title  “Is that you?”   We extend our heartiest thanks to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for this beautiful translation.)

त्रुटि  सुधार: इंटरनेट पर यह सुप्रसिद्ध कविता कई नामों से चल रही है। उसी क्रम में हमने इसे परम आदरणीया स्व. महाश्वेता देवी जी के नाम से प्रकाशित कर दिया था। बाद में हमें प्रबुद्ध पाठक मित्रों द्वारा ज्ञात हुआ कि यह रचना सुश्री निधि सक्सेना जी की है जिसे हम ससम्मान प्रकाशित कर रहे हैं एवं इस अज्ञातवाश हुई त्रुटि के लिए हम हार्दिक खेद प्रकट करते हैं। हम आदरणीया सुश्री निधि सक्सेना जी की ऐसी ही उत्कृष्ट रचनाएँ भविष्य में प्रकाशित करने का प्रयास करेंगे। 

आपसे अनुरोध है कि आप इस रचना को हिंदी और अंग्रेज़ी में आत्मसात करें। इस कविता को अपने प्रबुद्ध मित्र पाठकों को पढ़ने के लिए प्रेरित करें और उनकी प्रतिक्रिया से  इस कविता केअनुवादक कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी को अवश्य अवगत कराएँ.

सुश्री निधि सक्सेना जी की मूल कविता  – आ गए तुम ? ☆

आ गए तुम,

द्वार खुला है अंदर आओ…!

पर तनिक ठहरो,

ड्योढ़ी पर पड़े पाएदान पर

अपना अहं झाड़ आना…!

 

मधुमालती लिपटी हुई है मुंडेर से,

अपनी नाराज़गी वहीं

उँडेल आना…!

 

तुलसी के क्यारे में,

मन की चटकन चढ़ा आना…!

 

अपनी व्यस्तताएँ,

बाहर खूँटी पर ही टाँग आना।

जूतों संग हर नकारात्मकता

उतार आना…!

 

बाहर किलोलते बच्चों से

थोड़ी शरारत माँग लाना…!

 

वो गुलाब के गमले में मुस्कान लगी है,

तोड़ कर पहन आना…!

 

लाओ अपनी उलझनें

मुझे थमा दो,

तुम्हारी थकान पर

मनुहारों का पंखा झुला दूँ…!

 

देखो शाम बिछाई है मैंने,

सूरज क्षितिज पर बाँधा है,

लाली छिड़की है नभ पर…!

 

प्रेम और विश्वास की मद्धम आँच पर

चाय चढ़ाई है,

घूँट घूँट पीना,

 

सुनो, इतना मुश्किल भी नहीं है जीना…!

 

महाश्वेता देवी

❃❃❃❃❃❃❃❃❃❃

☆ Is that you? ☆

 

Is that you?

Come on in,

the door is open.

 

Just hold on!

There is a  doormat

lying outside the door,

Please drop

your ego there!

 

Madhu Malti creeper

is wrapped

around the parapet,

Pour all your

heartburns on it!

 

Offer the grudges

of your mind

Outside,

In the basil-bed!

 

Please hang

all your preoccupations

On the peg

outside!

 

Kindly remove

all your negativity

along with your shoes

at the door!

 

Bring a little mischief

from the naughty children

playing  out there!

 

With the rose,

are grown the smiles,

Pluck

and garland yourself!

 

Look!

I’ve laid out the evening,

Tied the sun

on the horizon,

Sprayed the carnation

on the sky!

 

Making the tea

on the slow flame of

love and faith,

Savour it, sip by sip!

 

Listen friend,

Ever pondered,

Even, life is not

so difficult to live!

 

© Captain (IN) Pravin Raghuanshi, NM (Retd),

Pune

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ विकल्प ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ विकल्प 

यात्रा में संचित

होते जाते हैं शून्य,

कभी छोटे, कभी विशाल,

कभी स्मित, कभी विकराल..,

विकल्प लागू होते हैं

सिक्के के दो पहलू होते हैं-

सारे शून्य मिलकर

ब्लैकहोल हो जाएँ

और गड़प जाएँ अस्तित्व

या मथे जा सकें

सभी निर्वात एकसाथ

पाये गर्भाधान नव कल्पित,

स्मरण रहे-

शून्य मथने से ही

उमगा था ब्रह्मांड

और सिरजा था

ब्रह्मा का अस्तित्व,

आदि या इति

स्रष्टा या सृष्टि

अपना निर्णय, अपने हाथ

अपना अस्तित्व, अपने साथ,

समझ रहे हो न मनुज..!

©  संजय भारद्वाज, पुणे

[email protected]

( प्रात: 8.44 बजे, 12 जून 2019)

#हरेक के भीतर बसे ब्रह्मा को नमन। आपका दिन सार्थक हो।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ एकता ☆ डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ जी  बेंगलुरु के जैन महाविद्यालय में सह प्राध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं एवं  साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में मन्नू भंडारी के कथा साहित्य में मनोवैज्ञानिकता, स्वर्ण मुक्तावली- कविता संग्रह, स्पर्श – कहानी संग्रह, कशिश-कहानी संग्रह विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त आपकी एक लम्बी कविता को इंडियन बुक ऑफ़ रिकार्ड्स 2020 में स्थान दिया गया है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आज ससम्मान  प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण एवं सार्थक कविता एकता।  इस बेबाक कविता के लिए डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ जी की लेखनी को सादर नमन।)  

☆ कविता – एकता ☆ 

दंगा हो रहा शहर में

लहू के प्यासे हुए लोग

लगाई आग चंद सियासतखोरोंने

जल गए घर अनेक

हुए कत्ल अनेक

न इंसान बचा न इंसानियत

हो रही हत्या आम इन्सान की

एक चिंगारी ने बृहद आकार लिया

आग बनकर ले चली इन्सान को

भाई-भाई पर जान न्यौछावर करते

धरती मां पर मर मिटते साथ-साथ

आज भडक उठी आग दुश्मनी की

फैल रही दंगे की आग

इन्सान बना भस्मासुर

खत्म कर रहा अपनों को

काट रहा गला दोस्त का

खत्म हो चली उसकी आत्मा

खेल रहा लहू से

खून कर अट्टहास कर रहा वह

इस बार खेलेंगे खून की होली

लहू की हो रही बारिश

न तो उगी फसल, न सब्जी

इन्सान पी रहा लहू इंसान का

सब हुए मांसाहारी

फैली दहशत समाज में

धर्म और सियासत के कारण किए खून

जिजीविषा की चाह में

हुआ हलाक  हर इंसान

जल गई अनेक दुकानें

हुआ ऐलाने जंग अपनों से

हुआ नरसंहार रो रहा आसमां

बह गई खून की नदियां

कौन हो तुम की पुकार

हिन्दू, मुसलमान, सिखम ईसाई

बंट गया इंसान स्वयं

दरिंदे बन गये इंसान

मारकर बच्चो को भी

बने ब्रह्म हत्या के भागी

फैला जाति-धर्म का जहर

कहर मचा है संसार में

दोस्त-दुश्मन की पहचान

भुलाकर कर रहा कत्ल

खुले आम आदम

मार दिया सबको

न बचा कोई भी

किस पर करेगा राज?

हो गया वीरान समाज

रोने के लिए भी न बचा

क्या सही क्या गलत

न समझ आ रहा है

जानवर से भी बदतर

इंसान हुआ पागल

आदमखोर इंसान

खा रहा,

अनाज नहीं खून

दोस्त को मारकर

दुनिया हुई बदहाल

रौंदकर अपनों को

पैरों तले कुचलकर

अत्याचार किए अनेक

भूखी शोषित जनता पर

असहाय अनजान जनता पर

समय बन गया काल

हो रहा मृत्यु का तांडव

बना आदमखोर आदमी

धज्जियां उड गई देश की

आदमी ने खत्म कर दी

जडे खुद की ही

नेस्तानाबूद कर

क्या पाना चाहा?

मात्र क्रौंच चीख

न समझ पाया सियासती खेल

चंद सियासतदारों का…

कर्फ्यू लगा शहर में

ठहरते हुए वक्त में

लगा रुक गया है

जीवन समाप्त हुआ

दंगा भी टल गया ।

वो चिंगारी आज भी

धधक रही इन्सान में

कब फिर से लेगी वह

आग का रुप नहीं पता

आ्दमी में समाया डर

समझ इन्सान…समझ

मन से डर को भगाकर

अल्लाह कहो या ईश्वर

गुरुद्वारे जाओ या मंदिर

चर्च जाओ या फिर मस्जिद

मिलेंगे तुम्हें एक ही ईश्वर

परवरदिगार के नाम अलग

कई रुपों में आया खुदा

बुराई को खत्म करने

लगाए नारे एकता के

अगर हम एक हुए

न टिकेगा दुश्मन

हमारे सामने

हम मात्र कठपुतलियाँ

ईश्वर के हाथों की

न कि चंद सियासतदारों की

समझना है इंसान

सब है हमारे बंधु

फिर क्यों कर रहे हो?

दंगल हर जगह पर

क्यों दोहरा रहे हो

महाभारत ?

क्यों हर गली में है द्रौपदी?

क्यों मांग रही सहारा?

घर- घर में क्यों बसी

कैकेयी और मंथरा ?

अपने फायदे के लिए

मत कर हत्या अनुज-मनुज की

रहना हमें  मिलजुलकर

हम  एक माँ की संतान

क्यों कर रहे हो फर्क?

लहू सबका एक

आवाज़ सबकी एक

मत कर खंडित माँ को

माँ के हज़ार टुकडे

धर्म या जाति के नाम पर

मत बाँट माँ को

मत कर अहंकार

मत कर युद्ध अपनोंसे

गीता का सूत्र अनोखा

मत ले दुहाई कृष्ण की

मत बन पापी इंसान

जन्म लेता विरला आदमी

सुंदर रचना है ब्रह्मा की

नष्ट मत कर इंसान को

खुदा की देन है  इंसान

 

©  डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

लेखिका, सहप्राध्यापिका, हिन्दी विभाग, जैन कॉलेज-सीजीएस, वीवी पुरम्‌, वासवी मंदिर रास्ता, बेंगलूरु।

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ शिलालेख ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ शिलालेख 

अतीत हो रही हैं

तुम्हारी कविताएँ

बिना किसी चर्चा के,

मैं आश्वस्ति से

हँस पड़ा..,

शिलालेख,

एक दिन में तो

नहीं बना करते!

संजय भारद्वाज

# सजग रहें, सतर्क रहें, स्वस्थ रहें।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

[email protected]

(11 जून, 2016 संध्या 5:04 बजे)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 42 ☆ संतोष के दोहे ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत है  भावप्रवण  “ संतोष के दोहे ”। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर सकते हैं।) 

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 42 ☆

☆ संतोष के दोहे ☆

विपदा

विपदा जब हो सामने, डरिये कभी न मित्र

धीरज धरम न छोड़िए, खीचें ऐसा चित्र

 

पक्षपात

पक्षपात जब भी हुआ, बढ़ा आपसी द्वंद

अगर भलाई चाहिए, छोड़ें सब छल छंद

 

मायावी

दुनिया मायावी लगे, बहुरूपी इंसान

रहें संभलकर जगत में, बनें नहीं नादान

 

आहत

दिल को आहत कर गया, सीमा चीन विवाद

इसे जल्द सुलझाइए, करें सघन संवाद

 

विभोर

सुन वर्षा का आगमन, वन में नाचे मोर

छटा सुहानी देख कर, मन हो गया विभोर

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मो 9300101799

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ त्रिलोक ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ त्रिलोक

सुर,

असुर,

भूसुर,

एक मूल शब्द,

दो उपसर्ग,

मिलकर

तीन लोक रचते हैं,

सुर दिखने की चाह

असुर होने की राह,

भूसुर में

तीन लोक बसते हैं।

 

# सजग रहें, सतर्क रहें, स्वस्थ रहें।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

(प्रातः 6:24 बजे, 25.5.19)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ बज़्म में ज़िक्र…. ☆ सुश्री भारती शर्मा

सुश्री भारती शर्मा

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री भारती शर्मा जी का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। आप हिंदी साहित्य की गीत, ग़ज़ल, लघुकथाएँ विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। संक्षिप्त साहित्यिक यात्रा – प्रबंध सम्पादक : ‘अभिनव प्रयास’ (त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका)।  विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में गीत, ग़ज़ल, लघुकथाएँ प्रकाशित। दैनिक जागरण द्वारा लघुकथा प्रतियोगिता के अंतर्गत (613 प्रतिभागियों में से) लघुकथा संग्रह के प्रकाशनार्थ अलीगढ़ से चयनित ।आगरा आकाशवाणी से समय समय पर गीत, ग़ज़ल का नियमित  प्रसारण। आज प्रस्तुत है आपकी रचना “बज़्म में ज़िक्र….। “
☆ बज़्म में ज़िक्र…. ☆
सुर्ख़ आँखों में जब नमी देखी

बुझती-बुझती-सी रोशनी देखी

 

अश्क ढलके जो दो किनारों से

मैंने ख़्वाबों की खुदकुशी देखी

 

बज़्म में ज़िक्र आपका आया

फिर से ज़ख़्मों पे ताज़गी देखी

 

जाने क्यू उसने फेर ली नज़रें

कशमकश उसकी बेबसी देखी

 

बिन तेरे और क्या बताऊँ मैं

आग बरसाती चाँदनी देखी

 

देके आवाज़ छुप गये हो कहाँ

ये शरारत नयी-नयी देखी

 

सारी दुनिया में तू मिला मुझको

मैंने ख़ुद में तेरी कमी देखी

 

© भारती शर्मा

आगरा उत्तर प्रदेश

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