हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 38 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है  समसामयिक  “ भावना के दोहे ।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 38 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे  

 

मुझको फागुन में सरस, आती प्रिय की गंध।

गाल गुलाबी देखकर ,कर लेती अनुबंध।

 

होली के हर रंग में, मिला प्यार का रंग।

रंग बिरंगी हो गई, लगी पिया के अंग।

 

पिचकारी में भर रहा, पल पल का ये प्यार।

निकलेगी हर रंग से,  खुशियों की बौछार।

 

साजन से खुशियाँ सभी, साजन से हर रंग

डूबे रंग गुलाल में, सजनी साजन संग

 

फगुआ गाये फाग जब, बजे नगाडे ढोल।

झूम झूम सब गा रहे, मीठे तीखे बोल।

 

फगुहारे  मस्ती करें, हमजोली के संग।

होली की अनुभूति से, फड़क रहे सब अंग।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अभिव्यक्ति ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – अभिव्यक्ति ☆

 

ऐसी लबालब

क्यों भर दी

अभिव्यक्ति तूने..?

बोलता हूँ तो

चर्चा होती है,

चुप रहता हूँ तो

और अधिक चर्चा होती है..!

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य☆ साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 29 ☆ कविता लाती चेतना ……… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत है  श्री संतोष नेमा जी की काव्य विधा में निहित शक्ति पर आधारित  सशक्त कविता   “कविता लाती चेतना ………”। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार पढ़  सकते हैं . ) 

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 29 ☆

☆ कविता लाती चेतना ………  ☆

 

कविता आँखे खोलती,कविता लड़ती जंग

कविता लाती चेतना,भरती हृदय उमंग

 

अंतस् में कविता उतर ,करती मार-प्रहार

दिल में जोश उभारती,कविता की तलवार

 

शस्त्र अकेले कर सकें,तन पर कड़क प्रहार

अंतर्मन झकझोरती,पर कविता की धार

 

जब जब कविता ने भरी,प्रबल प्रखर हुंकार

अर्जुन भी उठकर खड़ा ,करता है ललकार

 

दिला याद इतिहास की,फूँक रही उल्लास

कविता ही रण भूमि में,सदा जगाती आस

 

आजादी की जंग में,जब भी फूँकी जान

थर्राए अंग्रेज भी,सुन कविता की तान।।

 

लड़ती भ्रष्टाचार से,रह जन-जन के साथ

अनाचार से लड़ रही,थाम सत्य का हाथ

 

कविता ने ही देश को,दिया गर्व- सम्मान

कविता की फुफकार को,जाने सकल जहान

 

झुकी नहीं कविता कभी,हुआ नहीं अवसान

कविता से “संतोष” को,मिला सुखद सम्मान

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मोबा 9300101799

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मराठी साहित्य ☆ कविता ☆ क्रांतीज्योतीची गौरवगाथा. . . . ! ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ रचनाये सदैव सामयिक होती हैं। आज प्रस्तुत है अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर  आदरणीय महात्मा ज्योतिबा फुले जी पर आधारित आपकी एक भावप्रवण कविता  “क्रांतीज्योतीची गौरवगाथा. . . . !” )

 ☆ क्रांतीज्योतीची गौरवगाथा . . . . ! ☆

समाज नारी साक्षर करण्या

झटली माता साऊ रे .

क्रांतीज्योतीची गौरवगाथा

खुल्या दिलाने गाऊ रे . . . !

 

सक्षम व्हावी,  अबला नारी

म्हणून झिजली साऊ रे

ज्योतिबाची समता यात्रा

पैलतीराला नेऊ रे . . . . !

 

कर्मठतेचे बंधन तोडून

शिकली माता साऊ रे

शिक्षण, समता,  आणि बंधुता

मोल तयाचे जाणू रे. . . . !

 

कधी  आंदोलन, कधी प्रबोधन

काव्यफुलांची गाथा रे

गृहिणी मधली तिची लेखणी

वसा क्रांतीचा घेऊ रे. . . . !

 

दीन दलितांसाठी जगली

यशवंतांची आऊ रे

दुष्काळात धावून गेली

हाती घेऊन खाऊ रे . . . . !

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ कृष्णा के दोहे ☆ श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि‘

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’  

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी  एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू,  हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है होली पर्व पर विशेष  “कृष्णा के दोहे ।  इन अतिसुन्दर विशेष दोहों के लिए श्रीमती कृष्णा जी बधाई की पात्र हैं।)

☆ कृष्णा के दोहे ☆

 

अबीर

हुरियारे के वेश में , कान्हा जमुना तीर।

सखियों के सँग चल पड़ीं, राधा लिए अबीर।

 

रंग

लाल, हरा, पीला हुआ, मौसम का परिवेश।

रँग होली के रंग में, हँसे समूचा देश।

 

गुलाल

हुरियारे चारों तरफ, करते फिरें बवाल।

गालों पर हैं मल रहे, मोहक लाल गुलाल।

 

बरसाना

बरसाना, गोकुल गया, होकर भाव – विभोर।

भीगें पावन प्रेम में, राधा सँग चितचोर।

 

फाग

हुरियारे गाते फिरें, गली-अटारी फाग।

ढोल मंँजीरा साज ले, गावें रसिया राग।

 

© श्रीमती कृष्णा राजपूत  ‘भूमि ‘

अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #17 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के ह्रदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #17 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

धर्म न हिन्दू बौद्ध है, धर्म न मुस्लिम जैन । 

धर्म चित्त की शुद्धता, धर्म शांति सुख चैन ।। 

– आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

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The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga.  We conduct talks, seminars, workshops, retreats, and training.

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Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ होली की हुड़दंग मेरे देश मे….. ☆ डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आज प्रस्तुत है अग्रज डॉ सुरेश  कुशवाहा जी  की  एक समसामयिक कविता  “होली की हुड़दंग मेरे देश मे…..। )

☆ कविता – होली की हुड़दंग मेरे देश मे….. ☆ 

बड़ी जोर से मची हुई है, होली की हुड़दंग

मेरे देश में ।

वैमनस्य, अलगाव, मज़हबी, राजनीति के रंग

मेरे देश में।।

 

कोरोना के कहर से ज्यादा

राजनीति जहरीली

कुर्सी के कीड़े ने कर दी

सबकी पतलुन ढीली,

कभी इधर औ कभी उधर से

फुट रहे गुब्बारे

गुमसुम जनता मन ही मन में

हो रही काली-पीली

आवक-जावक खेल सियासी

खा कर भ्रम की भंङ्ग

मेरे देश में।।

 

विविध रंग परिधानों में

देखो प्रगति की बातें

आश्वासनी पुलावों की है

जनता को सौगातें,

भाषण औ’आश्वासन सुन कर

दूर करो गम अपने

इधर विरोधी अलग अलग,

संसद में राग सुनाते,

लोकतंत्र या शोकतंत्र के, कैसे-कैसे ढंग

मेरे देश में

भूख गरीबी वैमनस्य के भ्रष्टाचारी रंग

मेरे देश में।

 

रक्तचाप बढ़ गए,

धरोहर मौन मीनारों के

सिमट गई पावन गंगा,

अपने ही किनारों से,

झांक रहे शिवलिंग,

बिल्व फल फूल नहीं मिलते

झुलस रहा आकाश

फरेबी झूठे नारों से,

बैठ कुर्सियों पर अगुआ, लड़ रहे परस्पर जंग

मेरे देश में

भूख गरीबी, वैमनस्य के भ्रष्टाचारी रंग

मेरे देश में।

 

ये भी वही औ’ वे भी वही

किस पर विश्वास करें

होली पर कैसे, किससे

क्योंकर, परिहास करें,

कहने को जनसेवक

लेकिन मालिक बन बैठे हैं

इन सफेदपोशों पर

कैसे हम विश्वास करें,

मुंह खोलें या बंद रखें, पर पेट रहेगा तंग

मेरे देश में

भूख गरीबी वैमनस्य के भ्रष्टाचारी रंग

मेरे देश में।।

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर, मध्यप्रदेश

मो. 989326601

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English Literature – Poetry (भावानुवाद) ☆ त्रिकाल /Trikaal – श्री संजय भारद्वाज ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।)

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी  द्वारा श्री संजय भारद्वाज जी की कविता “त्रिकाल ”  का अंग्रेजी भावानुवाद  “Trikaal” ई-अभिव्यक्ति  के प्रबुद्ध पाठकों तक पहुँचाने का अवसर एक संयोग है। 

भावनुवादों में ऐसे  प्रयोगों के लिए हम हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी के ह्रदय से आभारी हैं। 

आइए…हम लोग भी इस कविता के मूल हिंदी  रचना के साथ-साथ अंग्रेजी में भी आत्मसात करें और अपनी प्रतिक्रियाओं से कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी  को परिचित कराएँ।

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – त्रिकाल  ☆

☆ श्री संजय भरद्वाज जी  की मूल रचना – त्रिकाल ☆

 

कालजयी होने की लिप्सा में

बूँद भर अमृत के लिए

वे लड़ते-मरते रहे,

उधर हलाहल पीकर

महादेव, त्रिकाल हो गए!


©  संजय भारद्वाज

रात्रि 10:55 बजे, 11 मार्च 2020

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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☆  English Version  of  Poem of  Shri Sanjay Bhardwaj ☆ 

☆  “Trikal – by Captain Pravin  Raghuwanshi 

In the lust of

being immortal

They kept fighting

and perishing

for a drop of nectar…

 

While, the Mahadev

became Trikal,

the timeless entity

After consuming

Halahal, the poison!

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र # 17 ☆ कविता – ये अपना  नूतन वर्ष है ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। अब आप डॉ राकेश ‘चक्र’ जी का साहित्य प्रत्येक गुरुवार को  उनके  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं  ये अपना  नूतन वर्ष है.)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 17 ☆

☆ ये अपना  नूतन वर्ष है ☆ 

 

शस्य श्यामला धरती पर

हरषे नर्तन की शहनाई

तब अपना नूतन वर्ष है

मंद-सुगंध चले पुरवाई

तब अपना नूतन वर्ष है

 

ये सर्द कुहासा छँटने दो

रातों का पहरा हटने दो

धरती का रूप निखरने दो

फागों के गीत थिरकने दो

 

कुछ करो प्रतीक्षा और अभी

प्रकृति को दुल्हन बनने दो

खुशियों में गाए अमराई

तब अपना नूतन वर्ष है

मंद-सुगंध चले पुरवाई

तब अपना नूतन वर्ष है

 

प्रतिप्रदा चैत की आने दो

धरती को सुधा लुटाने दो

चहुँदिश को ही महकाने दो

तन-मन में फाग सुनाने दो

 

ये कीर्ति सदा है आर्यों की

ये आर्यावर्त की प्रीत रही

जब धरा दुल्हन-सी मुस्काई

तब अपना नूतन वर्ष है

मंद-सुगन्ध बहे पुरवाई

तब अपना नूतन वर्ष है

 

युक्ति प्रमाण से स्वयंसिद्ध

नव वर्ष हमारा है प्रसिद्ध

ब्रह्माण्ड रचे कुछ नव नूतन

तब होती जग में रिद्धि-सिद्धि

 

तितली फूलों पर मँडराएँ

भौंरे फागों को गुंजाएँ

उल्लास उमंगें मन भाईं

तब अपना नूतन वर्ष है

मंद-सुगंध बहे पुरवाई

तब अपना नूतन वर्ष है

 

डॉ राकेश चक्र ( एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001

उ.प्र .  9456201857

[email protected]

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #16 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के ह्रदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

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Shri Jagat Singh Bisht

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☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #16 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

काया कर्म सुधार ले, वाणी कर्म सुधार ।

मन के कर्म सुधार ले, यही धर्म का सार ।।

– आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

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