हिन्दी साहित्य – कविता ☆ बने हैं एकत्व को ☆ श्री मच्छिंद्र बापू भिसे

श्री मच्छिंद्र बापू भिसे

(श्री मच्छिंद्र बापू भिसे जी की अभिरुचिअध्ययन-अध्यापन के साथ-साथ साहित्य वाचन, लेखन एवं समकालीन साहित्यकारों से सुसंवाद करना- कराना है। यह निश्चित ही एक उत्कृष्ट  एवं सर्वप्रिय व्याख्याता तथा एक विशिष्ट साहित्यकार की छवि है। आप विभिन्न विधाओं जैसे कविता, हाइकु, गीत, क्षणिकाएँ, आलेख, एकांकी, कहानी, समीक्षा आदि के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ प्रसिद्ध पत्र पत्रिकाओं एवं ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं।  आप महाराष्ट्र राज्य हिंदी शिक्षक महामंडल द्वारा प्रकाशित ‘हिंदी अध्यापक मित्र’ त्रैमासिक पत्रिका के सहसंपादक हैं। आज प्रस्तुत है उनकी  कविता “बने हैं एकत्व को।)

☆ बने हैं एकत्व को ☆

सृष्टि के निर्माता को वंदन हमारा

स्वीकार हो एक अनुनय प्यारा,

चाहत छोटी-सी है अपनी

बनें एक-दूजे का हम ही सहारा ।

 

बनें विशाल तन के कंकड़ हम,

हिमालयी चमकते ‘शूल’ बनों तुम।

बनें अथाह जलनिधि की बूंदें हम,

गरजती-इतराती ‘लहरें’ बनों तुम।

बनें उठती धूल के रजकण हम,

अंगार बरसे तूफानी ‘बयार’ बनों तुम।

बनें मिट्टी में ख़ुद समेटे जड़ें हम,

खुशबू बिखराए वो ‘फूल’ बनों तुम।

बनें मंडराते हल्के बादल हम,

असीम पथ ‘आसमान’ बनों तुम।

बनें धूप की हल्की-तेज किरण हम,

दे दुनिया को चमक ‘सूरज’ बनों तुम।

बनें शमशानी उठती लौ-राख हम,

जिंदगी को जिए हर ‘साँस’ बनो तुम।

कहोगे तुम,

माँगा तो क्या माँगा!

खिल्ली उडाएँगे फिर सभी,

दीन अरज पर हँसोगे तुम

हम निराश न होंगे कभी।

बने हैं एकत्व को हम और तुम,

न्योच्छावर जीवन तुमपर सभी ।

समझकर देखो बात को,

‘श्वर’ हैं हम और ‘क्षर’ हो तुम।

 

© मच्छिंद्र बापू भिसे

भिराडाचीवाडी, डाक भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा – ४१५ ५१५ (महाराष्ट्र)

मोबाईल नं.:9730491952 / 9545840063

ई-मेल[email protected] , [email protected]

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हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 17 ☆ लघुकथा – एक नारियल की खातिर ☆ श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि‘

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’  

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी  एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू,  हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है  एक अत्यंत विचारणीय , मार्मिक एवं भावुक लघुकथा  “एक नारियल की खातिर। श्रीमती कृष्णा जी की यह लघुकथा नर्मदा तट पर बसे  उन परिवारों के जीवन का कटु सत्य बताती है जो भुखमरी की कगार पर जी रहे हैं साथ ही बच्चे  जो  अपना जीवन दांव पर लगा कर  चन्द   सिक्कों या नारियल के लिए  गहरी  नदी  में कूद जाते हैं। इस अतिसुन्दर रचना के लिए श्रीमती कृष्णा जी बधाई की पात्र हैं।)

☆ साप्ताहक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य  # 17 ☆

☆ लघुकथा – एक नारियल की खातिर ☆

 

नर्मदा की यात्रा के लिए आसपास की खोज के अन्तर्गत  शाला के विद्यार्थी ले जाये गए। सभी ने आसपास की खोज की। बहुत बातें पढ़ी लिखी और कुछ जानी पहचानी।

बहुत सारे बच्चे नदी तट पर खड़े थे।  तट से या नाव से पानी मे कूदते बच्चे आसानी से देखे जा सकते हैं। उनके शरीर पर मैले कुचैले बदबूदार कपड़े थे। वे पानी में तब छलांग  लगाते  जब कोई सिक्के डालता। सिक्के निकालने की होड़ सी लग जाती। बहुत सारे ऐसे बच्चे वहाँ यही काम करते बल्कि यूँ कहे कि उनका घर इन्हीं पैसो से चल रहा था।

किसी ने नारियल  पानी में उछाल दिया।  अचानक बहुत सारे गरीब बच्चे एक साथ वहां नदी किनारे आ गए और उस नारियल को पकड़ने दौड़ पड़े। इस ऊहापोह मे नारियल एक पतले दुबले से लड़के के हाथ लग गया। सभी बच्चे उससे खींचा तानी करने लगे, पर उस बच्चे ने वह नारियल न छोड़ा और बडे़ बड़े कदमो को पानी में मार बाहर निकल दौड़ने लगा। वही बच्चे जो नदी में थे, बाहर उसे घेर कर बाँस के बड़े बड़े लटठ लेकर मारने खड़े हो गये। वहाँ  यह बात हर रोज होती थी। वे नारियल छीनने लगे पर बच्चे ने कसकर नारियल पकड़ रखा था।

सो वे सभी उसे मारने लगे।  वह बहुत  मार खाता रहा पर नारियल न छोड़ा। किसी ने पास के तम्बु मे रहने वाली उसकी माँ को खबर दी। माँ दौड़ी दौड़ी उन बच्चों से अपने बच्चे को  अलग ले आई और रो रोकर कहने लगी- “क्यों कूदा नदी मे नारियल की खातिर? क्या होता यदि हम आज और भूखे रहते?”

बच्चा पिटने के कारण दर्द से कराह रहा था।  उसनें फिर भी नजर उठा देखा, कही वह बच्चे तो नहीं और फिर उसने पानी से उठाया नारियल अपनी माँ को दे चैन की साँस ली और अचेत हो गया। पर उसके चेहरे पर चिंता के भाव की जगह शान्ति के भाव थे और माँ नारियल हाथ मे ले सोच रही थी, आज मेरे  बच्चे भूखे न सोयेंगे।  कुछ तो पेट भरेगा उनका। और बेटे को गले लगा फफक फफक कर रो उठी।

 

© श्रीमती कृष्णा राजपूत  ‘भूमि ‘

अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #15 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के ह्रदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #15 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

परोपकार ही पुण्य है, पर-पीड़न ही पाप । 

पुण्य किये सुख ही जगे, पाप किये संताप ।। 

– आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

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Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

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Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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हिन्दी साहित्य ☆ कविता ☆ होली ☆ डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ (स्वर – श्री आर डी वैष्णव, जोधपुर, राजस्थान )

डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ 

(डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ पूर्व प्रोफेसर (हिन्दी) क्वाङ्ग्तोंग वैदेशिक अध्ययन विश्वविद्यालय, चीन ।  वर्तमान में संरक्षक ‘दजेयोर्ग अंतर्राष्ट्रीय भाषा सं स्थान’, सूरत. अपने मस्तमौला  स्वभाव एवं बेबाक अभिव्यक्ति के लिए प्रसिद्ध। आज प्रस्तुत है डॉ  गंगाप्रसाद शर्मा  ‘गुणशेखर ‘ जी  की कविता  “होली ” और उनके मित्र श्री आर डी  वैष्णव जी के मधुर स्वर में  काव्य पाठ। ) 

 सस्वर काव्य -पाठ का  ई-अभिव्यक्ति ने प्रयोग स्वरुप एक प्रयास प्रारम्भ किया है।  प्रबुद्ध पाठकों के ह्रदय से स्नेह एवं प्रतिसाद के लिए आभार। 

आपसे विनम्र अनुरोध है कि कृपया श्री आर डी वैष्णव जी के चित्र पर या यूट्यूब लिंक पर क्लिक कर उनका सुमधुर काव्य पाठ अवश्य आत्मसात करें।

श्री आर डी वैष्णव, जोधपुर, राजस्थान 

यूट्यूब लिंक  >>>>  https://youtu.be/XdTDyW9J88k

  ☆ होली पर्व पर विशेष  – होली   

 

बन्द करके कीचड़ी व्यापार होली में

खेल लें कुछ रंग अबकी बार होली में

हर सियासी रंग पे जो रंग चढ़ जाए

बस रंग झोली में वही हो यार होली में

राधिका की लाठियों की मार भी मीठी

खानी हमें है प्यार वाली मार होली में

चढ़ गईँ नफ़रत की बेलें हैं बहुत लंबी

हो सके तो काट देना झाड़ होली में

नाव जो मझधार र्में है डूब जाएगी

थामे नहीं गँवार कोई पतवार होली में

फूल सहमे पत्तियों में छिप के बैठे हैं

हो न जाएँ डालियाँ खूँख्वार होली में

वास्तु के हैं या असल के साँप ही तो हैं

साफ़ करना ध्यान से घर बार होली में

 

©  डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’

सूरत,  गुजरात

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 30 ☆ मुसाफिर ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जीसुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  कविता “ मुसाफिर ”। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 30☆

☆ मुसाफिर

ज़्यादा, ज़्यादा और ज़्यादा

बारिश के इस मौसम में

मैं तुम्हें खोना भी नहीं चाहती,

पर तुमने तो जाने की

ठान ही ली है, है ना?

 

चले जाओ!

न ही तुम्हें मैं आवाज़ दूँगी,

न तुमसे रुकने की

कोई नम्र गुजारिश करूंगी

और न ही कोई हठ करूंगी…

आखिर जाने वाले को

रोका भी नहीं जा सकता ना?

 

सुनो ए आफताब!

जा रहे हो तुम

अपनी रज़ामंदी से,

ज़रूरी नहीं

कि जब तुम वापस आओ

मैं तुम्हारी बाहों में सिमट जाऊं,

आखिर मेरी भी तो कोई मर्ज़ी है, है ना?

 

जब तुम वापस आओगे

देखती रहूँगी तुम्हें आसमान पर,

तुम बस आते और जाते रहना

जैसे किसी राह पर मिले

हम कोई मुसाफ़िर थे,

और भूल गए एक दूसरे को

कुछ पल साथ चलकर!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ होली पर्व विशेष – होली के रंग छंदों के संग ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आज होली के पर्व पर प्रस्तुत है आचार्य संजीव वर्मा ‘ सलिल ‘ जी की विशेष रचना  ‘ होली के रंग छंदों के संग ‘।)

☆ होली पर्व विशेष – होली के रंग छंदों के संग ☆

 

हुरियारों पे शारद मात सदय हों, जाग्रत सदा विवेक रहे

हैं चित्र जो गुप्त रहे मन में, साकार हों कवि की टेक रहे

हर भाल पे, गाल पे लाल गुलाल हो शोभित अंग अनंग बसे

मुॅंह काला हो नापाकों का, जो राहें खुशी की छेंक रहे

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चले आओ गले मिल लो, पुलक इस साल होली में

भुला शिकवे-शिकायत, लाल कर दें गाल होली में

बहाकर छंद की सलिला, भिगा दें स्नेह से तुमको

खिला लें मन कमल अपने, हुलस इस साल होली में

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करो जब कल्पना कवि जी रॅंगीली ध्यान यह रखना

पियो ठंडाई, खा गुझिया नशीली होश मत तजना

सखी, साली, सहेली या कि कवयित्री सुना कविता

बुलाती लाख हो, सॅंग सजनि के साजन सदा सजना

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नहीं माया की गल पाई है अबकी दाल होली में

नहीं अखिलेश-राहुल का सजा है भाल होली में

अमित पा जन-समर्थन, ले कमल खिल रहे हैं मोदी

लिखो कविता बने जो प्रेम की टकसाल होली में

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ईंट पर ईंट हो सहयोग की इस बार होली में

लगा सरिए सुदृढ़ कुछ स्नेह के मिल यार होली में

मिला सीमेंट सद्भावों की, बिजली प्रीत की देना

रचे निर्माण हर, सुख का नया संसार होली में

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न छीनो चैन मन का ऐ मेरी सरकार होली में

न रूठो यार! लगने दो कवित-दरबार होली में

मिलाकर नैन सारी रैन मन बेचैन फागुन में

गले मिल, बाॅंह में भरकर करो सत्कार होली में

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नैन पिचकारी तान-तान बान मार रही, देख पिचकारी मोहे बरजो न राधिका

आस-प्यास रास की न फागुन में पूरी हो तो मुॅंह ही न फेर ले साॅंसों की साधिका

गोरी-गोरी देह लाल-लाल हो गुलाल सी, बाॅंवरे से साॅंवरे की कामना भी बाॅंवरी

बैन से मना करे, सैन से न ना कहे, नायक के आस-पास घूम-घूम नायिका

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©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ०७६९९९५५९६१८ ईमेल: [email protected]

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ (होली पर्व विशेष) संजय दृष्टि – प्रहलाद ☆ श्री संजय भारद्वाज

होली पर्व विशेष

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – प्रहलाद ☆

 

मेरे लिखे ख़त

जब-जब उसने

आग को दिखाए,

कागज़ जल गया

हर्फ़ उभर आए,

झुंझलाई,भौंचक्की-सी

हुई बार-बार दंग,

कई होलिकाएँ जल मरीं,

प्रहलाद सिद्ध हुआ

हर बार मेरे प्रेम का रंग..!

होली की ‘प्रह्लाद’ शुभकामनाएँ।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

(कविता संग्रह *मैं नहीं लिखता कविता* से)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 39 – होली पर्व विशेष – रंग गुलाबी बरसे बदरिया ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं  होली के पर्व पर  होली की मस्ती में सराबोर एक श्रृंगारिक गीत  रंग गुलाबी बरसे बदरिया। इस अतिसुन्दर गीत के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 39☆

☆ होली पर्व विशेष  –  रंग गुलाबी बरसे बदरिया

 

रंग गुलाबी बरसे बदरिया

पी के मिलन को तरसे अखियां

 

इधर उधर से नजर चुरा  के

तुम कब मिलोगे हमसे सांवरिया

 

घर में मन लगता नहीं है

बिन देखे चैन पड़ता नहीं है

 

चुपके से मिलने का कोई बहाना

लिखकर कब अब भेजोगे पतिया

 

सूना सूना है मेरे घर का आंगन

मैय्या बाबुल  न भाई बहना

 

आओगे कब राह देख रही सजना

फागुन की होली का करके बहाना

 

जब तुम आओगे नैनों में कजरा

सजा के रखूंगी बालों में गजरा

 

अपने ही रंग में रंग लूं सांवरिया

रंग गुलाबी बरसे बदरिया

 

रुत है मिलन की मेरे सांवरिया

गुजिया पपडी खोये की मिठाइयां

 

होश गवा दे  भांग की ठंडाईया

अपने हाथों से पिलाऊगी सैंया

 

रंग गुलाबी बरसे बदरिया

अपने पिया की मै तो बांवरिया

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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हिन्दी साहित्य- कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #14 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

आचार्य सत्य नारायण गोयनका

(हम इस आलेख के लिए श्री जगत सिंह बिष्ट जी, योगाचार्य एवं प्रेरक वक्ता योग साधना / LifeSkills  इंदौर के ह्रदय से आभारी हैं, जिन्होंने हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के महान कार्यों से अवगत करने में  सहायता की है। आप  आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के कार्यों के बारे में निम्न लिंक पर सविस्तार पढ़ सकते हैं।)

आलेख का  लिंक  ->>>>>>  ध्यान विधि विपश्यना के महान साधक – आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी 

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

☆  कविता / दोहे ☆ आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे #14 ☆ प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

(हम  प्रतिदिन आचार्य सत्य नारायण गोयनका  जी के एक दोहे को अपने प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप उस दोहे के गूढ़ अर्थ को गंभीरता पूर्वक आत्मसात कर सकें। )

आचार्य सत्य नारायण गोयनका जी के दोहे बुद्ध वाणी को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करते है. प्रत्येक दोहा एक अनमोल रत्न की भांति है जो धर्म के किसी गूढ़ तथ्य को प्रकाशित करता है. विपश्यना शिविर के दौरान, साधक इन दोहों को सुनते हैं. विश्वास है, हिंदी भाषा में धर्म की अनमोल वाणी केवल साधकों को ही नहीं, सभी पाठकों को समानरूप से रुचिकर एवं प्रेरणास्पद प्रतीत होगी. आप गोयनका जी के इन दोहों को आत्मसात कर सकते हैं :

सदाचरण ही धर्म है, दुराचरण ही पाप । 

सदाचरण से सुख जगे, दुराचरण दुःख ताप ।।

– आचार्य सत्यनारायण गोयनका

#विपश्यना

साभार प्रस्तुति – श्री जगत सिंह बिष्ट

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – (1) रिश्तों की सर्जक  (2) वंदन स्त्री शक्ति ☆ श्री मच्छिंद्र बापू भिसे

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष

श्री मच्छिंद्र बापू भिसे

(श्री मच्छिंद्र बापू भिसे जी की अभिरुचिअध्ययन-अध्यापन के साथ-साथ साहित्य वाचन, लेखन एवं समकालीन साहित्यकारों से सुसंवाद करना- कराना है। यह निश्चित ही एक उत्कृष्ट  एवं सर्वप्रिय व्याख्याता तथा एक विशिष्ट साहित्यकार की छवि है। आप विभिन्न विधाओं जैसे कविता, हाइकु, गीत, क्षणिकाएँ, आलेख, एकांकी, कहानी, समीक्षा आदि के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ प्रसिद्ध पत्र पत्रिकाओं एवं ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं।  आप महाराष्ट्र राज्य हिंदी शिक्षक महामंडल द्वारा प्रकाशित ‘हिंदी अध्यापक मित्र’ त्रैमासिक पत्रिका के सहसंपादक हैं। आज प्रस्तुत है अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर उनकी  दो  विशेष नवसृजित कवितायें “(1) रिश्तों की सर्जक  (2) वंदन स्त्री शक्ति ।)

☆ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष  – (1) रिश्तों की सर्जक  (2) वंदन स्त्री शक्ति

● रिश्तों की सर्जक 


एक माँ की चाहत थीं

बेटा मुझे प्राप्त हो

बड़ा बन श्रवण-सा

हमेशा अपने पास हो।

 

एक बहन ने ईश से

बड़ी अरज एक की

भाई बन कृष्ण-सा

लाज राखे राखी की।

चाची ने मिठाई बाँटी

भतीजा नहीं वह मेरा

बहन का बेटा ही सही

आँखों का है चमकता तारा।

दादी की खुशियाँ न्यारी

पोते से आँगन खिल गया

झोली भर-भर आशीष देती

घर का दीप बन जाग गया।

नानी आईं झूला लेकर

नाती मेरा झूलेगा

दीठ उतारे वारंवार

जब भी गोद आएगा।

बुआ का ईठलाना

भानजा भाई-सा दुलारा

सोच-सोच नाम रखा

जैसा हो नव ध्रुवतारा।

मामी ने तो कहर ढाया

देख मुझे जमाई बनाया

जब भी गाँव से खो गया

मामी के आँगन में पा‌या।

खुद के होने की खुशियों में

मैं तुझे कैसे भूल गया

दुनिया की चकाचौंध में

यह अपराध मुझसे हो गया।

 

वंदन स्त्री शक्ति

सोचता हूँ….अगर

यह रिश्तों की सृजक न होते

सुंदर रिश्तों की

यह अटूट डोर के सहारे न होते।

 

सौरी में पैरों रख

बड़े प्यार-से नहलाना

कईं रातें कहानियाँ सुनाना

राखी का इंतजार करवाना

अपनों को छोड़ औरों के

आँगन की तुलसी बनना

और जब

साँस छूटे तो

अर्थी के पीछे

एक दीप के लिए

कई दीप जलाना

फिर यह संसार में

कभी न होता

अगर तू न होती,

और किसी बेटे की

कोई छाया न होती।

हर रिश्ता शुरू है आपसे

और अंत भी है आपसे,

वंदन तुम्हें स्त्री शक्ति

ईश से पहले

‌सम्मान हो तुम्हारा

ईश की भी साँस के पहले।

 

© मच्छिंद्र बापू भिसे

भिराडाचीवाडी, डाक भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा – ४१५ ५१५ (महाराष्ट्र)

मोबाईल नं.:9730491952 / 9545840063

ई-मेल[email protected] , [email protected]

 

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